बृजनन्दन राजू
भाजपा के अरूण का असमय चले जाना

भाजपा नेता अरुण जेटली की पहचान भारतीय राजनीति में ऐसे कुशल राजनेता की थी जिसके पास हर प्रश्न का उत्तर होता था। वह कल्पनाशील राजनेता के साथ—साथ कुशल रणनीतिकार भी थे। वे बड़े मन व सरल ह्रदय के व्यक्ति थे। वे जितने प्रखर थे, उतने ही सहज भी थे। वाकपटुता के मामले में वह विरोधियों की बोलती बंद कर देते थे।
उनकी साख भाजपा के साथ—साथ विरोधी दलों में भी थी। उत्तर प्रदेश में एक बार प्रेस कांफ्रेस में सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने अरुण जेटली की कही हुई बात का उल्लेख करते हुए कहा था कि अगर जेटली जी ने यह बात कही है तब तो सही ही होगी। ऐसा दृढ़ विश्ववास विरोधी पक्ष के नेताओं का उनके प्रति था।
उनकी गिनती देश के शीर्षस्थ अधिवक्ताओं में होती थी। अरूण जेटली कुशल राजनेता के साथ —साथ एक सफल अधिवक्ता भी थे। भाजपा का संकटमोचक भी उन्हें कहा जाता था। बाबरी विध्वंस के मामले में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी का बचाव करने में जेटली सफल हुए थे। नब्बे के दशक के आखिरी सालों में जेटली ने, अडवाणी पर हवाला घोटाले के आरोपों में भी उनका बचाव किया था। यही नहीं अरूण जेटली 2002 से मोदी-शाह के लिए तारणहार साबित होते रहे है। अटल बिहारी वाजपेयी ने जब गुजरात के मुख्यमंत्री बतौर नरेंद्र मोदी को ‘राजधर्म’ याद दिलाया था, तो उस वक्त भी अरुण जेटली ही थे, जिन्होंने मोदी के प्रति अटल बिहारी वाजपेयी के गुस्से को कम किया था। इसके अलावा नरेंद्र मोदी को 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की औपचारिक घोषणा से पहले जेटली ने राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को साथ लाने का काम अरूण जेटली ने किया था।
जेटली छात्र राजनीति से सक्रिय राजनीति में आये् थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे। आपात काल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के नेता के रूप में उनकी पहली गिरफ्तारी हुई। उस समय उनकी आयु महज 22 वर्ष थी। उन्हें गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल ले जाया गया जहां पर उनकी भेंट संघ के कई बड़े पदाधिकारियों से हुई। इसके बाद तो इनके जीवन की दिशा ही बदल गयी। जनवरी 1977 में जब जेटली तिहाड़ से बाहर आए तो वे विपक्षी राजनीति का सबसे प्रमुख छात्र चेहरू के रूप में उनकी ख्याति फैल चुकी थी।
जेटली ने आपातकाल के बारे में स्वयं लिखा था कि आपातकाल अनावश्यक था। इंदिरा इंदिरा ने लोकतंत्र को संवैधानिक तानाशाही में बदलने के लिए संवैधानिक प्रावधानों को बेजा इस्तेमाल किया । उन्होंने लिखा कि इंदिरा सरकार के निर्मम कार्रवाई के खिलाफ वह पहले सत्याग्रही बने और 26 जून 1975 को विरोध में बैठक करने पर गिरफ्तार कर तिहाड़ भेज दिया गया। वह 22 साल की उम्र में उन घटनाओं में शामिल हो रहे थे जो इतिहास का हिस्सा बनने जा रही थीं। इंदिरा की तानाशाही ने न केवल लोगों के मूल अधिकार निलंबित कर दिए थे, बल्कि उन्हें जीवन के अधिकार से भी वंचित कर दिया था।
जेल से बाहर निकलने के बाद उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया। जब आपातकाल खत्म हुआ और आम चुनावों की घोषणा हुई तो नानाजी देशमुख के सुझाव पर उन्हें नवगठित जनता पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया।
जेटली ने स्वयं अपने साक्षात्कार में कहा है कि वाजपेयी चाहते थे कि वे 1977 का लोक सभा चुनाव लड़ें, लेकिन उस वक्त वे चुनाव लड़ने की 25 साल की न्यूनतम आयु से एक साल कम थे। इसकी बजाय उन्होंने अपनी कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद वकालत करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। वे फौरी तौर पर राजनीति से भी जुड़े रहे।
अदालतों के अनुभव के कारण, जेटली अगले कुछ सालों में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं के करीबी बन गए, जिसमें वे 1980 में उसके गठन के साथ ही शामिल हो गए थे।
सितंबर 1990 में अडवाणी ने जब अयोध्या की रथयात्रा शुरू की, जेटली ने उनकी दैनिक प्रेस ब्रीफिंग के लिए प्रभावशाली नोट्स तैयार किया करते थे बाद में जब देश भर में साप्रदायिक दंगे भड़के तो जेटली ने वीपी सिंह पर विहिप की मांगें मान लेने के लिए दबाव बनाना शुरू किया। इस दौरान जेटली और गुरुमूर्ति, केन्द्र सरकार और विश्व हिन्दू परिषद के बीच की कड़ी थे। वीपी सिंह के बाद कांग्रेस के बाहरी समर्थन से समाजवादी जनता पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर नए प्रधानमंत्री बने लेकिन उनकी पार्टी द्वारा सरकार से हाथ खींच लिए जाने के बावजूद भी जेटली कुछ समय तक अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के पद पर बने रहे।
राष्ट्रीय मुद्दों और राजनीति की बेहतर समझने रखने वाले अरुण जेटली को 1999 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया। 1999 के चुनाव में अटल बिहारी वायपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (ठऊअ) की सरकार सत्ता में आई। तब की वाजपेयी सरकार में जेटली को सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के साथ ही विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 23 जुलाई 2000 को केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के कैबिनेट मंत्री राम जेठमलानी के इस्तीफा देने के बाद उनके मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी अरुण जेटली को ही सौंप दिया गया था। महज चार माह में उन्हें वायपेयी सरकार की कैबिनेट में शामिल कर कानून, न्याय और कंपनी मामलों के साथ-साथ जहाजरानी मंत्रालय की भी जिम्मेदारी सौंप दी गई। इस दौरान उन्होंने बखूबी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। वायपेयी सरकार में लगातार उनका कद बढ़ता गया। 2004 के चुनाव में वाजपेयी सरकार सत्ता से बाहर हुई तो जेटली पार्टी महासचिव बनकर संगठन कार्य में लग गये। इसके बाद संगठन और सरकार की जो जिम्मेदारी उन्हें मिली उन्होंने उसे बखूबी निभाया।
वह राजनीति के माहिर खिलाड़ी थे। भाजपा के बड़े नेता भी उनकी प्रतिभा के लोहा मानते थे। यही कारण रहा कि अरुण जेटली नरेंद्र मोदी व अमित शाह के भी करीबी रहे और उससे पहले अटल बिहार वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी के भी पसंदीदा राजनेताओं में शामिल रहे हैं। मोदी के पहले कार्यकाल में अरुण जेटली ने वित्त मंत्री रहते कई क्रांतिकारी फैसले लिए जिसका परिणाम आज दिख रहा है। उन्होंने देश में जीएसटी लागू करने का कठिन फैसला किया। शुरू में लोगों को लगा कि यह फैसला घातक है। जीएसटी का देशभर में विरोध हुआ लेकिन वह झुके नहीं। कहा देशहित में लिया गया निर्णय वापस नहीं लेंगे। बाद में धीरे—धीरे जीएसटी के फायदे लोगों को समझ में आने लगे। उनके नेतृत्व में लिया गया जीएसटी का निर्णय आज व्यापारियों के लिए वरदान साबित हो रहा है। किसानों के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का फैसला उनके कार्यकाल में ही हुआ। नोटबंदी जैसा देश को हिला देना वाला फैसला भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ। राजनीति में तमाम समस्याओं का समाधान ढूंढ़ लेने वाला व्यक्ति और हर सवाल का जबाव रखने वाला नेता 24 अगस्त को बीमारी से हार गया। उनका निधन भाजपा के लिए ही नहीं बल्कि देश की राजनीति के लिए अपूर्णीय क्षति है। लोग उनके फैसलों से सहमत और असहमत हो सकते हैं किन्तु एक राजनेता के रूप में उनका व्यक्तित्व विराट था। बैंकों का एकीकरण हो या देशभर में जनधन खाता खोलना हो उनके नेतृत्व में इतिहास रचा गया।
जनधन योजना के तहत देशभर में अभियान चलाकर उन लोगों के बैंक खाते खुलवाए गए, जिनके पास कोई खाता नहीं था। इससे गरीबों के खातों में सीधे सब्सिडी पहुंचने लगी। इससे सब्सिडी की चोरी रोकने में सरकार को काफी मदद मिली। वहीं सरकार द्वारा पेश किए जाने वाले सालाना बजट के प्रस्तुतिकरण में सुधार किया। रेलवे बजट को अलग से पेश करने की परंपरा को खत्म कर उसे आम बजट का हिस्सा बनाया गया। बजट भाषण से बहुत सी गैर-जरूरी चीजों को हटाकर उसके प्रस्तुतिकरण का समय उनके समय में कम किया गया है। इससे पहले तक रेलवे का अलग बजट होता था जो अलग से संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाता था। मोदी के दूसरे कार्यकाल में भी सरकार को उनका योगदान आवश्यक था लेकिन स्वास्थ्य ने उनका साथ नहीं दिया। वे उदारमना ह्रदय के व्यक्ति थे। आज वह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी कीर्ति हमेशा देशवासियों के दिलों में विद्यमान रहेगी।
बृजनन्दन राजू
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(लेखक पत्रकार हैं और प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से जुड़ हैं)