ग्रामीण क्षेत्रों में परिवेश एवं व्यक्तिगत स्वच्छता

अतुल कुमार तिवारी

स्वच्छता जीवन की बुनियादी आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में सदियों से सुनिश्चित स्वच्छता सुविधायें मुहैया कराने के इरादे से ग्रामीण विकास मंत्रालय का पेयजल आपूर्ति एवं स्वच्छता विभाग सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) चला रहा है। इस अभियान का उद्देश्य ग्रामवासियों की खुले में शौच जाने की आदत में बदलाव लाना है। सरकार का लक्ष्य है कि २०१० तक शौच का यह तरीका पूरे तौर पर बंद हो जाए और लोग शौचालय का प्रयोग करें।

रणनीति –

टीएससी के अंतर्गत सहभागिता और मांग आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाता है। पूरे जिले को इकाई मानते हुए ग्राम पंचायतों और स्थानीय लोगों को इसमें शामिल किया जाता है। रणनीति यह है कि कार्यक्रम का नेतृत्व समुदाय के लोगों को ही सौंपा जाए तथा कार्यक्रम को जनकेन्‍द्रित बनाया जाए । इसमें व्यक्तिगत स्वच्छता और व्यवहार में परिवर्तन पर ही विशेष जोर दिया जाता है। टीएससी में संपूर्ण स्वच्छता की सामूहिक उपलब्धि पर बल देने वाले सामुदायिक नेतृत्व के दृष्टिकोण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस कार्यक्रम की प्रमुख विशेषताओं में स्वच्छता के बारे में लोगों को प्रेरित करने हेतु सूचना, शिक्षा एवं संप्रेषण (आईईसी) पर जोर, बीपीएल परिवारों / गरीबों और विकलांगों को इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहन राशि और प्रोद्योगिकी के विभिन्न विकल्पों में से किसी को भी अपनाने की छूट शामिल है। इसके अलावा ग्राम स्तर पर पैदा होने वाली मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक व्यवस्था को बनाए रखना भी इसी कार्यक्रम का जरुरी हिस्सा है। संपूर्ण स्वच्छता अभियान के क्षेत्र में श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए निर्मल ग्राम पुरस्कार (एनजीपी) के रुप में नकद राशि प्रोत्साहन स्वरूप दी जाती है।

घटक

लोगों को घरों में शौचालय के निर्माण के लिए केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा क्रमश: 1500 रूपए और 700 रूपये की राशि दी जाती है। यह प्रोत्साहन राशि बीपीएल परिवारों के उन्हीं लोगों को दी जाती है,जो अपने घरों में शौचालय का निर्माण कर उनका इस्तेमाल भी करते हैं।गरीबी रेखा से ऊपर वाले परिवारों को अपने ही खर्च से या ऋण लेकर शौचालय बनवाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। ये ऋण स्वयं सहायता समूह (एसएचजी),बैंक अथवा सहकारी संस्थाओं से लिया जा सकता है। विद्यालयों और आंगनवाड़ी शौचालयों के निर्माण के लिए केंद्र और राज्य सरकारें 70 और 30 के अनुपात में खर्च वहन करती हैं। सामुदायिक प्रसाधन सुविधाओं के निर्माण (स्‍वच्‍छता संबंधी) सामग्रियों के उत्पादन केंद्रों को सहायता,स्वच्छता संबंधी ग्रामीण विक्रय केंद्रों और ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन भी संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के महत्वपूर्ण घटक हैं।

क्रियान्वयन –

अभिनव रणनीतिओं के फलस्वरूप ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का प्रसार 1981 के 1 प्रतिशत से बढ़कर इस वित्त वर्ष में 67 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत जो प्रगति हुई है वह इस प्रकार है : वर्तमान में 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 607 ग्रामीण जिलों में टीएससी को लागू किया जा रहा है। स्वच्छता कार्यक्रम का विस्तार 2001 में 22 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2010 में 67 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

भौतिक प्रगति

कार्यक्रम के अंतर्गत सितंबर 2010 तक 7.07 करोड़ व्यक्तिगत घरों में शौचालय, 10.32 लाख शाला शौचालय, 3.46 लाख आंगनवाड़ी शौचालय बनाए गए हैं। इसके अतिरिक्त महिलाओं के लिए अलग से 19502 प्रसाधन केंद्रों का निर्माण किया गया है। इनमें 3.81 करोड़ बीपीएल परिवार सम्मिलित हैं।

व्यक्तिगत घरेलू शौचालय ( आई.एच.एच.एल) का निर्माण

इस मद में दादर एवं नागर हवेली, पुड्डूचेरी, मणिपुर, जम्मू एवं कश्मीर, बिहार, असम, नगालैंड, मेघालय, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और उत्तराखंड का प्रदर्शन 50 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से नीचे रहा है। सिक्किम और केरल में सभी घरों में शौचालय निर्माण हो चुका है। इस प्रकार इनका प्रदर्शन 100 प्रतिशत रहा है, जो कि सराहनीय कहा जाएगा। जहां तक शालाओं में शौचालयों के निर्माण का प्रश्न है, मेघालय, जम्मू एवं कश्मीर, बिहार,हिमाचल प्रदेश,पश्चिम बंगाल,गोवा,नगालैंड,मध्य प्रदेश,उत्तराखंड,त्रिपुरा,तमिलनाडु और मणिपुर का प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर से नीचे है।

मार्च 2011 तक सभी शालाओं और आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में शौचालयों का निर्माण :

शालाओं में 13,14,636 शौचालयों के निर्माण के लक्ष्य के विरुद्ध 10,32,703(78.55 प्रतिशत) शौचालयों का निर्माण हो चुका है। समस्‍त राज्यों ने सभी शालाओं और आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में मार्च 2011 तक शौचालयों के निर्माण का संकल्प व्यक्त किया है। टी.ए.सी के तहत निर्धारित लक्ष्य को मिजोरम और सिक्किम ने पहले ही पूरा कर लिया है। बजट आबंटन जो 2002-03 में 165 करोड़ रूपए था, उसे बढ़ाकर2010-11 में 15 अरब 80 करोड़ रूपए कर दिया गया।

वित्तीय प्रगति

टी.एस.सी के अंतर्गत कुल वित्तीय प्रावधान 1 खरब 96 अरब 26 करोड़ 43 लाख रुपये का है। इससे जुड़ी परियोजनाओं में केंद्र का अंश 1 खरब 22 अरब 73 करोड़ 81 लाख रुपये का है, जबकि राज्यों और हित ग्राहियों का हिस्सा क्रमश: 52 अरब 5 करोड़ 79 लाख और 21 अरब 46 करोड़ 83 लाख रुपये का है। केंद्र अब तक 58 अरब 70 करोड़ रुपये 61 लाख रुपये जारी कर चुका है, जिसमें से 47अरब 30 करोड़ 28 लाख रुपये इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन पर खर्च किये जा चुके हैं।

केंद्र द्वारा जारी राशि के विरुद्ध पंजाब, दादरा एवं नगर हवेली, मणिपुर, असम,आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओड़ीशा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, त्रिपुरा, बिहार, झारखंड, मेघालय, पश्चिम बंगाल और जम्मू एवं कश्मीर का प्रदर्शन राष्ट्रीय औसत से कम रहा है।

निर्मल ग्राम पुरस्कार

1999 में टीएससी के आरंभ होने के बाद निर्मल ग्राम सुधार के अंतर्गत जो प्रोत्साहन राशि दी जाती है उससे ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छता संबंधी कार्यक्रम में तेजी आई है। 2001 से 2004 के बीच औसत वृद्धि 3 प्रतिशत वार्षिक की रही है। परंतु 2004 में निर्मल ग्राम पुरस्कार की शुरुआत के बाद इस कार्यक्रम में सात से आठ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हो रही है।

सीमायें

कुछ राज्यों में स्वच्छता को प्राथमिकता नहीं देना, कुछ राज्यों द्वारा अपना हिस्सा जारी नहीं करना, ग्राम स्तर पर पारस्परिक संप्रेषण पर जोर नहीं देना, निचले स्तर पर अपर्याप्त क्षमता विकास, कुछ परिवारों अथवा परिवार के सदस्यों के बीच व्यवहारजन्य परिवर्तन का अभाव, छात्रों की संख्या के अनुपात में शालाओं में शौचालयों और मूत्रालयों का अभाव और ठोस तथा तरल कचरा प्रबंधन पर अधिक बल न देना इस कार्यक्रम में अनुभव की जाने वाली कुछ समस्यायें हैं।

चुनौतियां

आशा है कि 11 वीं योजना के अंत तक करीब 2.4 करोड़ और घरों में भी स्वच्छता संबंधी सुविधायें उपलब्ध करा दी जाएंगी। प्रतिवर्ष लगभग 1.2 करोड़ ग्रामीण घरों में स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया करायी जा रही हैं। इस प्रकार 11 वीं योजना के अंत तक 3.18 करोड़ ग्रामीण परिवारों में स्वच्छता संबंधी सुविधायें मुहैया कराने की जरुरत होगी। कार्यक्रम का जो वर्तमान उद्देश्य है उसके लिए इन सभी शेष 3.18 करोड़ परिवारों में 12 वीं योजना के दौरान स्वच्छता सुविधायें उपलब्ध करानी होंगी। बगैर स्वास्थ्य सुविधा वाले नए परिवारों की पहचान अथवा बीपीएल की परिभाषा में भविष्य में यदि कोई परिवर्तन होता है तो उससे कार्यक्रम की रूपरेखा में भी बदलाव हो सकता है।

कठिन क्षेत्र

बाढ़ प्रभावित तटीय, पर्वतीय और मरुस्थली क्षेत्रों में समस्या के समाधान के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए उपयुक्त और कम खर्चीली प्रौद्योगिकियों का विकास करना होगा। लोगों को तैयार करने के लिए विश्वसनीय तौर तरीके अपनाने होंगे।

ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन ( एसएलडब्ल्यूएम)

जैविक और अजैविक कचरे के संग्रहण और निस्तारण के लिए संस्थागत व्यवस्था कायम करना होगा। इसके लिए ग्राम पंचायतों को प्रेरित करने की आवश्यकता है।

व्यक्तिगत स्वच्छता प्रबंधन

शालाओं और आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में चल रहे स्वच्छता संबंधी कार्यक्रम में हाथ की धुलाई को एक अभिन्न हिस्से के रूप में शामिल किया गया है। ग्रामीण महिलाओं और किशोरियों में मासिक धर्म के समय स्वच्छता पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है।

पर्यावरण स्वच्छता

एक बार जब व्यवहार जन्य परिवर्तन के लिए किये जा रहे प्रयास सफल हो जायेंगे,तो पर्यावरण की स्वच्छता पर ध्यान दिया जाना महत्वपूर्ण हो जाएगा। पानी की बचत के लिए और पर्यावरण अनुकूल साधनों से स्वच्छता सुविधाओं के अभावों को दूर करने के वास्ते शीघ्र ही प्रयास शुरू करने होंगे।

विकलांग हितैषी शौचालय

संपूर्ण स्वच्छता अभियान ( टीएससी) में विकलांग व्यक्तियों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। ग्रामीण क्षेत्रों की संस्थाओं में कम से कम ऐसा शौचालय मुहैया कराना जरुरी है जिसे विकलांग व्यक्ति भी आसानी से इस्तेमाल कर सके।

स्वच्छता कार्यक्रम के एकीकरण ( कंवर्जेंस) हेतु विशेष क्षेत्र

रेलवे और राजमार्ग जैसे क्षेत्रों में स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण मुहैया कराने के लिए टी.एस.सी से अन्य कार्यक्रमों को जोड़ने की आवश्यकता है। पर्यटक एवं धार्मिक स्थलों और साप्ताहिक हाट / बाजारों में भोजन और पारिवेशिक स्वच्छता पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

इसे देखते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय के पेयजल आपूर्ति और स्वच्छता विभाग ने कार्यक्रम पर मजबूती से अमल करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इनमें टी.एस.सी के अंतर्गत लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में राज्यों की प्रगति की नियमित समीक्षा और दिशानिर्देशों का पुनरीक्षण कर निर्मल ग्राम पुरस्कार को सुदृढ़ बनाना है ताकि चयन प्रक्रिया को और अधिक विश्वसनीय तथा पारदर्शी बनाया जा सके। कार्यक्रम को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं उनमें कार्यक्रम क्रियान्वयन हेतु आईईसी और एचआरडी की समीक्षा, परिवेश की स्वच्छता पर राष्ट्रीय कार्यशाला और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन कर स्वच्छता प्रौद्योगिकी विकल्पों को टी.एस.सी से जोड़ना, ठोस और तरल कचरा प्रबंधन जैसी अगली पीढ़ी की स्वच्छता गतिविधियों को चलाने की राज्यों की क्षमता को सुदृढ़ बनाना शामिल है।

आशा है कि नए उपायों और प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के लिए बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी। (स्टार न्यूज़ एजेंसी)

2 COMMENTS

  1. बहुत ही जरुरी आलेख के लिए साधुवाद ….अभी तो सम्पूर्ण उत्तर भारत और अन्य जगहों में कमोवेश ये स्थिति है की गाँव की हालत तो बदतर है ही लेकिन अधिकांश शहरों में भी सुबह शाम सड़क किनारे ,रेल पटरी के किनारे यत्र-तत्र सर्वत्र हाथ में लौटा लिए नर नारी विचरण करते मिल जायेंगे .तमाम पवत्र नदियों में ,अपवित्रता के परनाले उफान पर हैं …आजदी के ६४ साल वाद अभी तो हम विचार विमर्श तक ही सीमित हैं .इस दुरावस्था से मुक्त होने के लिए सत्ता प्रतिष्ठान और धन कुबेरों से उम्मीद करना वेकार है ….अब जो भी करेगी जनता ही करेगी …प्रश्न ये है की कब ?

  2. मुझे भी प्रतीक्षा है उस दिन की जब इन सबका का परिणाम दृष्टि गोचर होगा और भारत में स्वच्छता अभियान सफल होगा.ऐसे मुझे शक इसलिए है,क्योंकि हम सामूहिक स्वच्छता के आदि ही नहीं हैं.हमारी स्वच्छता का मापदंड व्यक्तिगत स्वच्छता के साथ ही खत्म हो जाता है.

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