दान देकर भी प्रहलाद पौत्र बली दानव और कर्ण सूतपुत्र ही रह गए

—विनय कुमार विनायक
याजक जाति का दान पाने का अधिकार एक अस्त्र था,
जिसके आगे राजा महाराजा निरस्त महाजन पस्त था!
दान की महिमा इतनी अधिक गाई गई धर्म शास्त्रों में
कि दान नहीं देनेवाले कृपण और विप्रद्रोही कहलाते थे!

याजकों में दान की लिप्सा इतनी अधिक बढ़ गई थी
कि गोधन स्वर्ण कन्या व जान भी दान मांग लेते थे,
सत्यवादी हरिश्चंद्र ने ब्राह्मण को सपने में राजपाट व
खुली आंखों दारा सुवन को दान चुकाई में बेच दिए थे!

दान पाने का अधिकार सिर्फ याजक ब्राह्मणों को था,
दान प्राप्ति हेतु देवता ब्राह्मण का वेश धर लेता था,
प्रहलादपौत्र बली को विप्र वेशधारी वामन ने छला था,
दानी का याचक को दान देने से होता नहीं भला था!

विप्र के दान पाने का हक इतना वीभत्स हो गया था
कि दान हेतु देवों का ब्राह्मणी अवतार होने लगा था,
दान देकर भक्त प्रह्लाद पौत्र को यश नहीं मिला था,
ऐसे दान के क्या फायदे दान देके बली दानव रह गए!

महादानी राजा उशीनर व शिवि का प्रसंग ऐसा ही था,
आश्रित कबूतर रक्षा में जंघा मांस याचक को दिया था!

महा दानी कर्ण ने ब्राह्मण वेशधारी देवराज इन्द्र को
कवच कुंडल दान देकर अपनी जान तक गंवा दी थी,
ऐसे महादानी क्षत्रिय नहीं सुत पूत कहे गए फिर भी!

च्यवन सुकन्या पुत्र दधिचि ने हड्डियां दान दे दी थी,
कर्णदेव कलचुरी ने ब्राह्मण को पुत्र का मांस खिलाया,
एक समय था जब दान से मुकरना प्रतिष्ठा खोना था
ब्राह्मण द्वारा कन्या मांगने से महाजनों को रोना था!

कन्या दान पाके ब्राह्मण राजा के लिए अवध हो जाता,
विप्र गालव ने ययाति राजकन्या माधवी को दान लेकर
उससे धन प्राप्ति हेतु उसके जिस्म का सौदा किया था,
विप्र की कन्या याचना से चक्रवर्ती नहीं मुकर पाया था!

वृद्ध ब्राह्मण कन्यादान लेकर जीवन नरक बना देता था
ऐसी ही हतभाग्य राजकन्या थी माधवी, रेणुका, सुकन्या!
वृद्ध जमदग्नि ने रेणुका को पुत्र के हाथों कटवा दिए थे,
वृद्ध च्यवन तो इतने अक्षम थे कि शर्याति राजा की पुत्री
सुकन्या के दाम्पत्य सुख हेतु च्यवनप्राश ईजाद कराए थे!

ब्राह्मणों का कन्या दान लेना एक हथियार बन चुका था
जिसके आगे सम्राट हार जाता, कुछ नहीं कर पाता था!

कुलीन कन्या को पुजारी दान लेकर देवदासी बना देते थे
ब्राह्मण देवता सदाचारी राजा की परीक्षा लेने के बहाने से
उनके पुत्र का ही मांस पकाकर खिलाने की मांग करते थे!

इन याजक पुजारी के सामने राजा विवश बौने हो जाते थे
आज रिश्वतखोरी जैसी बुराई निकली इसी दान परंपरा से!
ऐसे में सुविधा शुल्क दान देकर अपराध को बढ़ावा ना दें,
दान देना है तो जरूरतमंद मजलूम अपाहिजों को दान दें!

दान देना है तो शिक्षा चिकित्सा के लिए धन अनुदान दें,
दान को धर्म से नहीं जोड़े, दान को व्यवसाय ना होने दें!
—विनय कुमार विनायक

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