- -एम. अफसर खां सागर-
- शिव की जटाओं से निकलने वाली मोक्षदायीनी गंगा शिव की नगरी काशी में आकर अपनी पवित्रता भले न त्यागती हो मगर उसकी चमक जरूर फीकी पड़ जाती है। मोक्ष की नगरी काशी सम्पूर्ण विश्व के लिए धर्म और आस्था का केन्द्र है बावजूद इसके मानवता के स्वार्थ और पाप को ढ़ोते हुए मां गंगा मोक्ष की नगरी में ही मोक्ष के तलाश में भटकती नजर आती है। चुनाव के वक्त देश के प्रधानमंत्री के मंच से हर–हर गंगे, घर–घर गंगे का नारा गुंजायमान हुआ था साथ ही नरेन्द्र मोदी ने काशी के मंच पर स्वंय कहा था कि ‘‘मैं आया नहीं हूं, मुझे गंगा मां ने बुलाया है।’’ तमाम बातें व जुमले चुनावी समर में कहें और सुने जाते हैं। निर्मल गंगा अभियान का आगाज हो या गंगा सफाई अभियान इन सबके बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट मंडराना बदस्तूर जारी है। अब वक्त आ गया है कि सियासी व कागजी लफ्फाजी से हट कर गंगा को जन–जन से जोड़ा जाए, तब जाकर गंगा निर्मलीकरण का सपना साकार हो सकता है।
गंगा सिर्फ नदी ही नहीं है बल्कि हमारी संस्कृति और आस्था का प्रतीक है। भारतीय जनमानस के उपसना का केन्द्र है। वर्तमान भौगोलिक परिदृश्य में गंगा के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, बांध और व्यवसायिकरण के खतरों ने गंगा को समेट कर रख दिया है। तमाम दावों और वादों के बावजूद गंगा के हित की बातें सिर्फ और सिर्फ आश्वासन से आगे नहीं बढ़ सकीं। देश का बड़ा तबका आज भी गंगा को लेकर चिंतित जरूर है मगर सामाजिक जागरूकता के आभाव में यह परवान नहीं चढ़ पा रहा है। आज जरूरत है हर–हर गंगे, घर–घर गंगे के नारे को साकार करने की तब जाकर गंगा निर्मलीकर अभियान सफल हो पायेगा। यहां सबसे जरूरी बात ये है कि सरकार सबसे पहले नदी पुनर्जीवन नीति, बांध निर्माण नीति और कचरा प्रबन्धन नीति बनाकर ढ़ांचागत व्यवस्थ को सुधारने का प्रयास करे।
जल ही जीवन है। जल के बिना मानव जीवन की कल्पना करना बेमानी होगा। गंगा समूचे भारत के लिए आस्था का प्रतीक है। गंगा के जल को आमजन नहाने के साथ प्रसाद स्वरूप पीने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन दुखद पहलू ये है कि जल प्रदूषण की वजह से गंगा में आॅक्सीजन की मात्रा सामान्य से कम हो गयी है। एक वैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक गंगा के जल में बैक्टिरियोफेज नामक विषाणु पाया जाता है, जो जीवाणुओं और दूसरे हानिकारक सूक्ष्म जीवों को समाप्त कर देते हैं। किन्तु जल प्रदूष की वजह से इन लाभदायक विषाणुओं की संख्या में काफी कमी आ गयी है। इसके अलावा गंगा को साफ करने में सक्रिय भूमिका अदा करने वाली मछलियां, कछुए व अन्य जल जीव समाप्ती की कगार पर हैं। ऐसे विकट हालात में गंगा के अस्तित्व को बचा पाना बेहद दुरूह कार्य है। इसके लिए हर–हर गंगे, घर–घर गंगे के नारे को असल में साकार करने की जरूरत है। आम जन को गंगा की व्यथा को समझने और उसके निवारण के लिए सामूहिक पहल की जरूरत है। केन्द्र व प्रदेश सरकारों के साथ गैर सरकारी संगठनों और आम जन को गंगा बचाने के लिए व्यापक जन आन्दोलन छेड़ने की जरूरत है।
सामाजिक जागरूकता और सहभागिता से ही गंगा को बचाया जा सकता है। हर व्यक्ति स्वयं यह प्रण ले कि गंगा हमारे लिए केवल उपभोग की वस्तु नहीं है बल्कि हमें गंगा को प्रदूषण मुक्त करने तथा उसके निर्मलीकरण हेतु प्रयास करने की जरूरत है। गंगा में पूजा सामग्री को ना फेंका जाए, गंगा के तटवर्ती निवासी गंगा में साबुन व मल–मूत्र न त्यागें। औद्योगिक कचरा को सीवेज ट्रीटमेंट प्लान्टों द्वारा शोधित कर गंगा में प्रवाहित किया जाए। व्यक्तिगत लाभ की भावना को त्याग कर गंगा को बचाने के लिए औद्योगिक घरानों को एक व्यापक नीति बनाने की जरूरत है ताकि औद्योगिक अपशिष्टों से गंगा को प्रदूषित होने से बचाया जा सके। एक आकलन के मुताबि गंगा में प्रदूषण के लिए औद्योगिक अपशिष्टों का योगदान 12 प्रतिशत है। यहां सबसे चिन्ता की बात है कि गंगा को मां का दर्जा तो सभी लोग देते हैं मगर उसको बचाने के लिए महज दिखावा के सिवा कुछ नहीं हो सका है।
केन्द्र सरकार ने भले ही गंगा को बचाने के लिए बाकायदा गंगा पुनर्जीवन मंत्रायल बना दिया हो मगर गंगा निर्मलीकरण का सपना तब तक साकार नहीं होगा जब तक इसमें आम जनमानस की प्रत्यक्ष सहभागिता नहीं होगी। भारतीयों की जीवन रेखा मानी जानी वाली गंगा को बचाने के लिए सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के साथ आम आदमी का सहयोग बहुत जरूरी है। जब हर भारतीय अपने मन में यह ठान लेगा कि गंगा केवल एक नदी ही नहीं बल्कि मां है तब जाकर गंगा निर्मलीकरण का सपना साकार होगा तथा हम गर्व से हर–हर गंगे, घर–घर गंगे का नारा लगा सकेंगे।
मैं लेखक के कथन से पूर्णरूप से सहमत हूँ।बिना आम देशवासी के ईस आंदोलन से जुड़े यह भगीरथ कार्य सफल नही होगा।साथ ही मेरा एक सुझाव यह है की शास्त्रों के अनुसार गंगा के दर्शन मात्र से मुक्ति मिलती है,उस दशा में प्रत्येक सनातनी को गंगा में स्नान न कर केवल आचमन किया जाय।