हौआ नहीं है ओमिक्रॉन

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प्रमोद भार्गव

दक्षिण अफ्रीका से निकले कोरोना विषाणु के नए स्वरूप (वैरिएंट) के अवतरित होने के बाद भारत समेत दुनिया दहशत के साथ चिंता में है। इसका इतना हौआ बना दिया गया है कि कानपुर के एक चिकित्सक ने ओमिक्रोन के डर से अपनी पत्नी समेत दो बच्चों की हत्या कर दी।जबकि अब तक किसी भी वैज्ञानिक ने इसके खतरनाक होने की पुष्टि नहीं की है।बावजूद एक डॉक्टर अवसाद में आ गया और उसने अपने घर को तबाह कर दिया। डॉ सुशील कुमार कोई मामूली डॉक्टर नहीं था, बल्कि रामा चिकित्सा महाविद्यालय में फोरेंसिक विभाग का अध्यक्ष था और उसकी पत्नी शिक्षिका थी।जबकि दो माह से भी ज्यादा समय से वजूद में आए इस नए प्रतिरूप के कोई खतरनाक परिणाम देखने में नहीं आए हैं।दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिक इसे कतई खतरनाक नहीं मान रहे हैं।दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे लेकर इसलिए भय पैदा कर रहा है क्योंकि चीन के वुहान से इस महामारी के फैलने के समय डब्ल्यूएचओ ने इसके दिशा निर्देश व यात्रा पर प्रतिबंध अतिरिक्त बिलंब से जारी किए थे।इस कारण उसे चीन का चाटुकार और उसके हितों का संरक्षक भी कहा गया।लेकिन कोरोना के इस नए रूप के अवतरण होते ही इसे डब्ल्यूएचओ ने अत्यंत संक्रामक बताने के साथ डेल्टा से सात गुना ज्यादा तेज गति से फैलना भी बता दिया।जबकि फिलहाल यह भी तय नहीं हो पाया है कि यह इंसान के लिए कितना घातक है।यही नहीं यह भी अभी संदिग्ध है कि विषाणु के इस नए रूप का उदगम किस देश से हुआ है।असल में इसरायल के डॉ एलाड माओर का दावा है कि दक्षिण अफ्रीका में इसका पहला मामला आने के दस दिन पहले ही ब्रिटेन के दो डॉक्टर ओमिक्रोन से संक्रमित हो गए थे।           वैसे तो 24 नवंबर को सबसे पहले कोरोना के नए रूप की पहचान की थी।इसी के अगले दिन, यानी 25 नवंबर को डब्ल्यूएचओ ने इसका नाम “ओमिक्रोन” देते हुए “वैरिएंट ऑफ कन्सर्न” रख दिया।मसलन चिंता का बहुरूप ! तब से अब तक यह रूप करीब 50 देशों में फैल चुका है और इसका विस्तार जारी है।बावजूद इससे मौत होने की एक भी आधिकारिक खबर नहीं है।डब्ल्यूएचओ भी इस तथ्य की पुष्टि करता है।यानी दस दिन से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी ओमिक्रोन के रोगी सुरक्षित हैं।दक्षिण अफ्रीका के सबसे बड़े हेल्थ केयर सेंटर के सीईओ रिचर्ड फ्रेडलैंड ने भी कहा है कि “इससे लोग जरूर अधिक संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन लक्षण गंभीर या जानलेवा नहीं हैं।स्पेनिश फ्लू की भी यही प्रकृति है।”हालांकि यह प्रतिरूप टीका लगवा चुके लोगों में भी खूब फैल रहा है।किंतु लक्षण कमजोर हैं।लेकिन अभी इसकी पूरी सच्चाई  सामने आने में समय लगेगा।

            सीक्वेसिंग की निगरानी करने वाली भारतीय वैज्ञानिकों की संस्था इन्साकॉग का मानना है कि यह नया ओमिक्रॉन का रूप अगर डेल्टा वायरस से मिश्रित होता है तो गंभीर संकट के हालत पैदा हो सकते हैं। हालांकि इस मिश्रण के कोई साक्ष्य अब तक सामने नहीं आए हैं।कोरोना की पहली और दूसरी लहर में शुरुआती लक्षण स्वाद और सूंघने की क्षमता का गायब हो जाना था।जबकि ओमिक्रोन में ऐसा नहीं है।इसलिए इसकी वास्तविकता तभी सामने आएगी,जब रोगी की जीनोम सिक्वेंसिंग जांच होगी।यह जांच महंगी होने के साथ मंद गति से होती है।तीन सप्ताह तक का समय इसमें लग सकता है।हालांकि भारतीय अनुवांशिक वैज्ञानिकों के एक समूह का मानना है कि यदि आरटी-पीसीआर जांच को आंशिक तौर से न करके संपूर्ण तौर से किया जाए तो शरीर में इसके लक्षणों का पता चल सकता है।पूरी जांच में  इसकी चार जींस एन, एस, ई और ओआरएस की जींस में उपस्थिति का परीक्षण किया जाता है।  यदि जांच के परिणाम में यह निष्कर्ष निकलता है कि इन जींन्सों में से ‘एस’ जींस विलोपित है और अन्य तीनों उपलब्ध हैं तो नमूने में ओमिक्रोन के लक्षण हैं।लेकिन इस रूप की एक अन्य विलक्षणता के बारे में सीएसआईआर इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक अनुराग अग्रवाल ने कहा है कि ‘इस रूप में शरीर की रोग प्रतिरोधक संरचना को भेदने की क्षमता है,जो अब तक मिले कोरोना के अन्य प्रारूपों में नहीं थी।इस कारण यह खतरनाक हो सकता है।’ डॉ अग्रवाल ने ही जब कोरोना का नया रूप डेल्टा प्लस डर का माहौल बना रहा था, तब सटीक भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि यह डेल्टा तीसरी लहर की वजह नहीं बनेगा।यह बात डॉ अग्रवाल ने महाराष्ट्र से लिए गए 3500 से ज्यादा नमूनों की जीनोम सिक्वेंसिंग जांच के बाद कही थी।बावजूद ओमिक्रोन के भारत में ज्यादा घातक होने की आशंका इसलिए भी कम है,क्योंकि 80 फीसदी आबादी में प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है।दूसरे देश में कोरोना संक्रमण रोधी टीके की 127.61 खुराकें लोगों को लगाई जा चुकी हैं।इस उपलब्धि के साथ ही 50 प्रतिशत से अधिक पात्र वयस्क आबादी का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है।

         कोरोना के इस रूप का वैज्ञानिक नाम बी.1.1.529 रखा गया है। इसकी सबसे पहले पहचान दक्षिण अफ्रीका में जरूर हुई है,लेकिन नीदरलैंड, स्कोटलैंड और अब इजरायल के चिकित्सक एलाड माओर ने कहा है कि इस ओमिक्रोन रूप का दक्षिण अफ्रीका में पता चलने से 10 दिन पहले ही वे ब्रिटेन में संक्रमित हो गए थे।कार्डियोलॉजिस्ट माओर 19 नवंबर को लंदन पहुंचे थे, वहां चार दिन रुकने के बाद जब इजरायल वापस आ गए, तब उन्हें कोरोना के लक्षण महसूस हुए और ओमिक्रोन पॉजिटिव पाए गए।लेकिन यूरोप के इन देशों ने ओमिक्रोन की मौजूदगी को छिपाए रखा।दरअसल पश्चिमी देशों की हमेशा ही मंशा किसी भी बुराई को विकसित देशों पर लाद देना रही है।चीन ने भी यही खुराफात की थी,जिसका दुष्परिणाम आज भी दुनिया भोगने को अभिशप्त है।इस लिहाज से हमें दक्षिणी अफ्रीका का कृतज्ञ होना चाहिए कि उन्होंने इस नए रूप की पहचान होते ही दुनिया को सचेत कर दिया।

          सुविधाभोगी यूरोप में इसका विस्तार सबसे ज्यादा देखने में आया है। इस कारण भारतीय वैज्ञानिक चिंतित हैं। नई दिल्ली स्थित काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ विनोद स्कारिया का कहना है कि पहली बार कोविड-19 ऐसा विचित्र विषाणु देखने में आया है, जो 32 बार अपना स्वरूप परिवर्तन कर चुका है। इस वायरस की स्पाइक सरंचना में सबसे अधिक बदलाव हुए हैं। इसी वजह से ‘ब्रेक थ्रू इन्फेक्शन’ (वैक्सीन लेने के बावजूद दोबारा संक्रमित होना) के मामले दर्ज किए जाते हैं। इसलिए भारत में यह रूप प्रवेश करने के बाद यदि बाईदवे इसका संयोग डेल्टा वायरस के रूपों से बन जाता है, तो यह खतरनाक हो सकता है। क्योंकि इस मिश्रण के बाद यह कैसा होगा, वैज्ञानिकों को फिलहाल यह जानकारी नहीं है। क्योंकि अकेले डेल्टा रूप में ही 25 बार परिवर्तन हो चुका है। इन्साकॉग के अनुसार भारत में अब तक 1.15 लाख नमूनों की जिनोम सिक्वेसिंग की गई है, इनमें से 45,394 नमूने गंभीर पाए गए हैं।  

           लेकिन ओमिक्रॉन, यदि सावधानी नहीं बरती गई तो एक बार फिर बढ़ते कदमों में बेढ़िया डाल सकता है। 15 दिसंबर से कुछ अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध का सिलसिला शुरू हो जाएगा।वैज्ञानिकों की ऐसी धारणा है कि वायरस जब परिवर्तित रूप में सामने आता है तो इसके पहले रूप आप से आप समाप्त हो जाते हैं। लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि अपवादस्वरूप नया रूप खतरनाक अवतार में भी पेश आया है। इसी कारण अब तक एड्स के वायरस का टीका नहीं बन पाया है। दरअसल स्वरूप परिवर्तन की प्रक्रिया इतनी तेज होती है कि प्रयोगशाला में वैज्ञानिक एक रूप की संरचना को ठीक से समझ भी नहीं पाते और इसका नया रूप सामने आ जाता है। भारत में कोरोना के वर्तमान में छह प्रकार के रूप प्रसार में हैं और डेल्टा प्लस सातवां रूप है। लेकिन अकेला डेल्टा ही 25 रूप धारण कर चुका है।ओमिक्रोन तो 32 स्पाइक म्यूटेशन वाला वायरस बताया गया है।हालांकि प्रकृति में किसी भी विषाणु का रूप परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।ओमिक्रोन के शुरुआती संक्रमण के आधार पर जब रूप के स्वांग  या व्यवहार (सिमुलेशन)का कंप्यूटर पर परिणाम के लिए गणितीय आकलन किया जाता है, उसमें उसके फैलाव और घातकता का पता चलता है।इसका फैलना तो तय है,लेकिन घातकता निश्चित नहीं है।भारत में इसके ज्यादा घातक होने की आशंका इसलिए कम है,क्योंकि तीन सुरक्षा कवचों के जरिए इसे रोकने के प्रबंध जारी हैं।एक सीरो सर्वे,दूसरे 50 प्रतिशत आबादी का दोनों टीकों का लगना और तीसरे, डेल्टा वैरिएंट का संक्रमण व्यापक स्तर पर फैलने से लोगों में प्रतिरोधक क्षमता का प्राकृतिक रूप से विकसित हो जाना।गोया,ओमिक्रोन का संक्रमण बढ़ता भी है तो ये सुरक्षा कवच उसकी गंभीरता को नियंत्रित रखेंगे।साथ ही बूस्टर डोज के लिए भी देश की प्रयोगशालाओं में क्लीनिकल ट्रायल पर भी तेजी से कम चल रहा है।

प्रमोद भार्गव

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