किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह

प्रो. रविंदर कुमार तेवतिया

 एक प्रतिभाशाली और प्रतिबद्ध राजनेता रहे चौधरी चरण सिंह अपनी वाक् पटुता और दृढविश्वासपूर्ण साहस के लिए जाने जाते हैं। उनके बारे में लिखने के दो मूल कारण हैं- पहला तथ्य यह है कि मैं किसान समुदाय की पृष्ठभूमि से हूं और दूसरा मैं उस वंश समानता की अवधारणा और भाईचारे की भावना से अवगत हूँ जोकि पूरे भारत में विशेष रूप से जाट समाज में पायी जाती है। मैं मिट्टी का पुत्र हूं और मैं मिट्टी के एक और पराक्रमी बेटे से बहुत निकटता से जुड़ा हूँ। उनका जन्मदिन  23 दिसंबर को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि स्वतंत्र भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 के बीच दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले लोकतांत्रिक देश का नेतृत्व किया। चौधरी चरण सिंह देश के अंतिम महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे जिनका सक्रिय राजनीतिक जीवन स्वतंत्रता पूर्व राजनीतिक आंदोलनों से लेकर स्वतंत्रता के बाद की पार्टी राजनीति तक फैला था। उनकी राजनीतिक यात्रा में जिला, राज्य और राष्ट्रीय राजनीति शामिल थी। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने आम आदमी के कल्याण के लिए विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों की शुरूआत करने का प्रयास किया। उन्होंने श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार में उपप्रधानमंत्री के रूप में भी कार्य किया। वह भारतीय क्रांति दल और लोक दल के संस्थापक थे।

चौधरी चरण सिंह को इतिहासकारों और सामान्य लोगों द्वारा किसानों के मसीहा के रूप में सम्मान दिया  जाता है। इसलिए यह शीर्षक उनके लिए पूरी तरह से उपयुक्त प्रतीत होता है। उत्तर प्रदेश के कृषक जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चरण सिंह ने देश के किसानों और कमजोर वर्गों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए निरंतर प्रयास किया। जवाहरलाल नेहरू के दिनों में अपने लोगों के लिए जोरदार तरीके से लड़े थे। उन्हें नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 64 वे सत्र में भूमि नीतियों के खिलाफ बोलते हुए भी देखा गया था।

पॉल ब्रास ने अपने लेख “चौधरी चरण सिंह: एक भारतीय राजनीतिक जीवन”, जो उन्होंने इकोनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, दिनांक 25,….1993 ((पीपी 2087-2088) में प्रकाशित किया था, लिखते हैं कि “चरण सिंह खतरों से दृढता से निपटने के इच्छुक थे। यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में उनके दो कार्यकाल में सार्वजनिक व्यवस्था स्पष्ट थी”। अपने विचारों को दोहराते हुए पॉल ब्रास ने उसी लेख में लिखा है कि उनकी प्रतिक्रिया सार्वजनिक व्यवस्था और विपक्षी ताकतों की राजनीतिक गतिविधियों के विघटन को रोकने के लिए किए गए उपायों पर केंद्रित थी ; कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले हडपने के आंदोलन से उनका दृढ संचालन; विश्वविद्यालय छात्र संघ में अनिवार्य सदस्यता पर प्रतिबंध; उनके कार्यकाल के दौरान छात्रों की हड़ताल की सापेक्ष अनुपस्थिति; और जो एक बड़ी हड़ताल हुई थी, उसे तोड़ना” इन उपायों ने चरण सिंह की अर्थव्यवस्था के सतत विकास के लिए राजकोष की वित्तीय अखंडता के लिए चिंताओं को चित्रित किया। चौधरी चरण सिंह को उनकी दूरदृष्टि और भारत के विकास की योजना के लिए जाना जाता है जिससे उन्होंने गांवों और ग्रामीण भारत के लिए बात की थी। गाँव हमेशा से भारतीय समाज के सूक्ष्म रूप रहे हैं और रहेंगे। उन्होंने 1947 में ‘एबोलिशन ऑफ जमींदारी’ किताब लिखी और 1956 में उन्होंने राजस्व मंत्री उत्तर प्रदेश के रूप में खेतिहर कोऑपरेटिव फार्मिंग की रचना की।

संयुक्त खेती, एक्स रे समस्या और उसका समाधान को भारतीय विद्या भवन, बॉम्बे द्वारा 1959 में प्रकाशित किया गया था जब उन्होंने उत्तर प्रदेश में राजस्व, सिचाई और बिजली मंत्री के रूप में कार्य किया था। पुस्तक बड़े करीने से एक प्रस्तावना के साथ दो भागों में विभाजित है।भाग 1 में जिसमें दस अध्याय है, पूर्व प्रधानमंत्री ने कृषि संगठन के प्रकार; आधुनिक संयुक्त खेती की विशेषताएं; सहकारी और सामूहिक खेती; हमारी समस्याएं और मूल सीमा; संपदा का सृजन; रोजगार; धन के समान वितरण; लोकतंत्र को सफल बनाना; और बड़े पैमाने पर खेती की अव्यवहारिकता के बारे में चर्चा की। उन्होंने अध्याय lX के तहत विस्तार से बताया कि कैसे एक लोकतंत्र को सफल बनाया जा सकता है और अध्याय V के तहत उन समस्याओं और बुनियादी सीमाओं पर चर्चा की जिनका सामना भारत ने किया है। उन्होंने लिखा है कि भारत में जिन मुख्य समस्याओं के समाधान की आवश्यकता है ये है (i) कुल संपत्ति या उत्पादन में वृद्धि ,(ii) बेरोजगारी का उन्मूलन, (iii) धन का समान वितरण, और (iv) लोकतंत्र को सफल बनाना (संयुक्त खेती एक्स-रे, 2020 पृष्ठ 25)

उपरोक्त खण्ड के भाग 2 में जो अध्याय XI से शुरू होता है, चरण सिंह उपरोक्त समस्याओं के संभावित समाधान पर ध्यान केंद्रित करते हैं। पुस्तक का अगला (बारहवां) अध्याय भूमि सुधार, पुनर्वितरण और उत्प्रवास के मुद्दों पर केंद्रित है जबकि अध्याय XIII गैर-कृषि व्यवसायों की आवश्यकता के बारे में बात करता है। उन्होंने अपनी पुस्तक के अध्याय XV के तहत कंडीशन्सफॉर इंडस्ट्रियलिज्म के मामले को इतनी अच्छी तरह से तैयार किया है और बताया कि वे भारत में मौजूद नहीं हैं। वह भाग I I के अध्याय XVI में पाठकों को भारत के लिए उपयुक्त औद्योगिक संरचना और अध्याय XIX के तहत औद्योगीकरण से संभावनाएं’ के बारे में भी बताते हैं। चरण सिंह मिट्टी के उपयोग; मृदा संरक्षण जनसंख्या नियंत्रण की आवश्यकता; और जनसंख्या नियंत्रण के साधन के बारे में अंतिम चार अध्याय (XX से XXIII) में अपने विचार व्यक्त करते हैं जो पाठक को उन पहलुओं  का  अहसास कराते हैं जो भारत में सतत विकास के लिए बहुत आवश्यक है और जो उन्होंने अपनी पुस्तक के माध्यम से उठाई है।

श्री चरण सिंह ने भारत गणराज्य के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री सहित विभिन्न दायित्वों में कार्य किया और एक कठोर कार्यपालक के रूप में ख्याति प्राप्त की। उन्हें प्रशासन में अक्षमता, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार कतई बर्दाश्त नहीं था।

वे  उत्तर प्रदेश में भूमि सुधारों के मुख्य वास्तुकार थे। उन्होंने ऋण मोचन विधेयक, 1939 के निर्माण और अंतिम रूप देने में अग्रणी भूमिका निभाई जिससे ग्रामीण देनदारी को बड़ी राहत मिली। यह भी उनकी पहल पर हुआ कि यू.पी. में मंत्रियों को वेतन और जो अन्य विशेषाधिकार प्राप्त थे उनमें भारी कमी कर दी गई। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने भूमि जोत अधिनियम, 1960 को लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसका उद्देश्य पूरे राज्य में भूमि जोत की सीमा को कम करना था ताकि इसे एक समान बनाया जा सके।

स्वतंत्रता के बाद के भारत के विधायकों का नाम लिया जाए तो मैं व्यक्तिगत रूप से चौधरी चरण सिंह का नाम लूंगा। मैं उन सभी लोगों को भी भारत के पूर्व दूरदर्शी पीएम द्वारा लिखित पुस्तकों को पढ़ने के लिए आग्रह करूंगा जो भारतीय राजनीति पर काम कर रहे हैं और ग्रामीण भारत का अध्ययन करना चाहते हैं और जो उनके वैकल्पिक दृश्य को समझने के लिए भारत को विकसित करना चाहते हैं। इस प्रकार के अध्ययन और शोध  के लिए चौधरी चरण सिंह अभिलेखागार एक उपयोगी संस्था हो सकती है। भारत सरकार को इसकी स्थापना के लिए प्रयत्नशील होने की आवश्यकता है।

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प्रो. रविंद्र कुमार तेवतिया
लेखक दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग में वरिष्ठ प्रोफेसर हैं। वे सामाजिक विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता हैं। इससे पहले वे वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष रह चुके है तथा तुलनात्मक धर्म एवं सभ्यता केंद्र और के. आर. नारायण दलित अध्ययन केंद्र के निदेशक भी रह चुके हैं। उनके 50 से अधिक शोध-पत्र और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की 10 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके चिंतन और लेखन पर राष्ट्रीय-सांस्कृतिक विचारों का गहरा प्रभाव है। संपर्क-सूत्र: 95602 16128

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