अंतरिक्ष में खेती-किसान

प्रमोद भार्गव

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के प्रवासी भारतीय शुभांशु शुक्ला ने भविष्य की सुरक्षित खेती-किसानी के लिए अंतरिक्ष में बीज बो दिए हैं। यह सुनने में आश्चर्य होता है कि अंतरिक्ष लोक में खेती ? आखिर कैसे संभव है ? मनुष्य धरती का ऐसा प्राणी है, जिसकी विलक्षण बुद्धि नए-नए मौलिक प्रयोग करके धरती के लोगों का जीवन सरल व सुविधाजनक बनाने में लगी है। इसी क्रम में अब अंतरिक्ष में किया जा रहा खेती करने का प्रयोग है।
  तीन अन्य साथी यात्रियों के साथ शुभांशु ने एक्सिओम-4 अभियान के अंतर्गत अंतरिक्ष की उड़ान भरी थी। 28 घंटे में 420 किमी की यात्रा कर यान अपनी मंजिल पर पहुंचा था। यहां यह भी हैरानी पाठकों की हो सकती है कि जब फाल्कन-9 ड्रैगन रॉकेट की गति 27 हजार किमी थी, फिर इतना समय कैसे लग गया ? प्रश्न तार्किक है। इसकी मुख्य वजह है, वायुमंडल का गुरुत्वाकर्षण! असल में यहां शून्य गुरुत्वाकर्षण के साथ ‘निर्वात‘ यानी खाली जगह की मौजदूगी है। अर्थात यह ऐसी स्थिति दर्शाता है, जहां कोई हवा या गैस उपस्थित नहीं होती है। इस कारण यान की गति धीमी होती है। अब तक 633 यात्री अंतरिक्ष स्टेशन पर अपने कदम रख चुके हैं। शुभांशु 634वें यात्री थे। इस अभियान का लक्ष्य इस अंतरिक्ष ठिकाने पर विशेष खाद्य पदार्थ और उनके पोषण संबंधी 60 प्रयोग करना था । इनमें सात इसरो यानी भारतीय अनुसंधान संगठन के थे। अंतरिक्ष स्टेशन प्रतिदिन पृथ्वी की 16 बार परिक्रमा करता था। यात्रियों को विभिन्न 16 सूर्योदय और 16 सूर्यास्त देखने का रोमांच और आनंद मिलता था। ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है, सूर्य अनेक हैं। सात दिशाएं हैं, उनमें नाना सूर्य हैं।
शुभांशु मेथी और मूंग की दाल के जो बीज अंतरिक्ष में बोकर अंकुरित करने के प्रयोग का नेतृत्व धरती से दो कृषि विज्ञानी रविकुमार होसामणि और सुधीर सिद्धपुरेड्डी कर रहे थे। एक्सिओम स्पेस अभियान की ओर से जारी एक बयान में कहा है कि यात्रियों के धरती पर लौटने के बाद बीजों को कई पीढ़ियों तक उगाया जाएगा। तंत्र और पोषण की क्रमिक विकास की संरचना होने वाले बदलावों को ज्ञात किया जा सके। षुभांशु एक अन्य प्रयोग के लिए सूक्ष्म शैवाल ले गए थे ,जिससे भोजन, प्राणवायु (ऑक्सीजन) और यहां तक की जैव ईंधन उत्पन्न करने की क्षमता को वैज्ञानिक ढंग से परखा जा सके।
अंतरिक्ष में आनुवंशिकी सूक्ष्मजीवी पारिस्थितिकी तंत्र और उनकी पोषण संरचना की जानकारी हमें अपने प्राचीन संस्कृत ग्रंथ श्रीमद्भागवत में भी मिलती है। कश्यप-दिति पुत्र हिरण्यकश्यप केवल बाहुबलि ही नहीं है, अपितु अपनी मेधा और अनुसंधानमयी साधना से उन्होंने चमत्कारिक वैज्ञानिक उपलब्धियां भी प्राप्त की हुई थी। सभी बुद्धिमान जानते हैं कि प्रकृति में उपलब्ध प्रत्येक पदार्थ के सूक्ष्म कण स्वमेव संयोजित होकर केवल नव-सृजन ही नहीं करते हैं, अपितु उन्हें संयोजित और वियोजित (विघटित) भी करते हैं। अतएव इस अनंत ब्रह्मांड में दृश्य एवं अदृश्यमान संपूर्ण पदार्थों के तत्व उपलब्ध हैं। सूर्य की किरणों में भी सभी पदार्थों को उत्सर्जित करने वाले तत्वों की उपस्थिति मानी जाती है। 
अब दुनिया के भौतिक विज्ञानी मानने लगे हैं कि अंतरिक्ष और अनंत ब्रह्मांड में विविध रूपों में जीव-जगत व वनस्पतियों का सृजन करने वाले बीजों के सूक्ष्म कण हमेशा विद्यमान रहते हैं। गन्ना (ईख) एक बार बोने के बाद कई साल तक फसल देता है। रूस के वैज्ञानिकों ने ऐसे संपुटिका (कैपस्यूल) बना लिए हैं, जिनमें बीजों के कई-कई मूल कण संयोजित रहते हैं। आनुवंशिक रूप से बीजों को परिवर्धित करके कुछ इसी तरह के उपाय किए जा रहे हैं।

प्रमोद भार्गव

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