प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेव

—विनय कुमार विनायक
जिन से बना है जैन
जिन से चला है जैन धर्म
जिन वही थे जिन्होंने वासना को जीता
कैवल्य ज्ञान प्राप्त कर
जिन को कहते अरिहंत जिनेंद्र कहलाते
जैन तीर्थंकर वही जो जीवन नैया को
पार लगा दे तीर्थ बनाकर
चौबीस जैन तीर्थंकर जन्मे है भारत भू पर
भारत नाम पड़ा है आदि तीर्थंकर
ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर
ऋषभदेव थे ब्रह्मा के पुत्र स्वयांभुव मनुपुत्र
प्रियव्रत के प्रपौत्र नाभि राज के जेष्ठ पुत्र
ऋषभदेव राजा थे कैवल्य ज्ञान प्राप्त कर
बड़े पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाया
और छोटे पुत्र बाहुबली को पोदनपुर का राज दिया
निश्चय किया भरत ने चक्रवर्ती बनने का
किंतु विजित कर नहीं पाया अनुज बाहुबली को
दोनों भ्राताओं ने किया दृष्टि युद्ध/जल युद्ध/मल्ल युद्ध
लेकिन अनुज ने ही किया अपना नाम सार्थक बाहुबली
अनुज को अग्रज के पहले कैवल्य ज्ञान मिला
और अग्रज भरत ने कैवल्य भूमि कर्नाटक के
श्रवण बेल गोला में स्थापित की विशाल प्रतिमा बाहुबली की
श्रवण शब्द श्रमण से निकला
जो पर्याय है जैन तपस्वी का
बाहुबली कहलाते प्रथम कामदेव/दीर्घकाय/अजानबाहु
बाहुबली ने पराजित किया था अग्रज भरत को
और ग्लानि बस करने चले गए तप को
कैवल्य ज्ञान मिला/ निर्वाण मिला किन्तु बाहुबली
बने नहीं तीर्थंकर पर पूजते उनको जैनी दिगंबर!
—विनय कुमार विनायक

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