‘आत्मनिर्भरता’ का फ्लेवर और कलेवर !

                        प्रभुनाथ शुक्ल 

‘आत्मनिर्भरता’ यानी स्वावलंबन जीवन में बेहद आवश्यक है। लेकिन आजकल बगैर अवलंबन के काम ही नहीँ चलता। पति- पत्नी पर, प्रेमी- प्रेमिका पर, बुजुर्ग – छड़ी पर , सरकार- गठजोड़ पर, विपक्ष- ट्विटर पर आत्मनिर्भर है। हमारे आसपास इस तरह के स्वावलंबियों की लम्बी फेहरिश्त है। समाज और व्यवस्था में बहुतेरे आत्मनिर्भरार्थी हैं जो परजीवी हैं। उनका परजीवी होना ही उनकी ‘आत्मनिर्भरता’ का पहला मंत्र है। हालाँकि यह मंत्र बेहद पुराना है। हमारे पुरखों की कई जमात आने वाली पीढ़ी को यह मंत्र देती चली आई है। लेकिन सत्तर साल के बाद भी हम आत्मनिर्भर नहीँ हो पाए। 

स्वराजकाल का यह अमोघ मंत्र ‘कोरोना काल’ में नए फ्लेवर और कलेवर में आया है। अब देखना है कि यह कितना कारगर होगा। हालाँकि हमने कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल की है, लेकिन वह शायद दिखाई नहीँ देती। या फ़िर दिखाई देती भी है तो हम अंधे होने का स्वांग रचते हैं। क्योंकि इस स्वांग से भी आत्मनिर्भरता हासिल होती है। शायद जब हम अंधे होने का दिखावा करते हैं तो ओढ़ी गई अंधता हमें आत्मनिर्भर बनाती है। 

हमारे समाज ने कई विशेष क्षेत्रों में खास तौर की आत्मनिर्भरता हासिल की है। भले वह अच्छे या बुरे क्षेत्र की रही हो , लेकिन आत्मनिर्भरता तो आत्मनिर्भरता है। क्योंकि अगर हम जेब क़तरे को निकम्मा कहें तो यह उसके आत्मनिर्भरता के कौशल का अपमान होगा। हालाँकि इसकी जड़ी- बूटी कहाँ से आई कुछ कहाँ नहीँ जा सकता है। क्योंकि पुरखों ने हमें आत्मनिर्भरता के मंत्र में बाईपास का रास्ता नहीँ दिया था, लेकिन हमने अपनी सुविधा के लिहाज से बना लिया। हमारे तंत्र में करप्शन और कमीशनखोरी एवं निंदा की आत्मनिर्भरता बेहद गहरी जड़ें जमा चुका है।  दिन-रात लोग इसी का अनुलोम- विलोम करते हैं। 

अगर आपको किसी काम में सफलता हासिल करनी है तो हर हाल में ‘आत्मनिर्भरता’ के इसी गलियारे से गुजरना होगा। आप सीधे रास्ते से वहाँ नहीँ पहुँच सकते हैं। क्योंकि वहां ‘आदर्शवादी कोरोना’ विराजमान रहता है जो इस सभ्य प्रथा को आम रास्ते से नहीँ घुसने देता है। अगर आप इस गलियारे का इस्तेमाल किए बगैर आगे बढ़ना चाहते हैं तो ‘आ बैल मुझे मार’ की स्थिति होगी। बेहतर होगा कि अक्लमंदी का परिचय देते हुए आप आत्मनिर्भरता गलियारे का इस्तेमाल करें। फ़िर तो आपके सारे काम निर्विघ्न और सकुशल सम्पन्न होंगे। 

कोरोना काल हमारे लिए नया मौका लेकर आया है। यह प्रयोगवादी काल साबित हुआ है। लोगों ने इस दौरान अपनी खोई प्रतिभा को नया आयाम दिया है। करप्शन के  आत्मनिर्भरता समर्थकों के लिए बेहद सूखा काल साबित हुआ है। दो महीने से आत्मनिर्भरता वादियों की बोहनी तक नहीँ हुई हैं। लेकिन अब स्वर्णिमकाल आने वाला है। क्योंकि हमारी सरकार ने ‘आत्मनिर्भरता’ का नया मंत्र दिया है। मीडिया में इसकी खूब चर्चा है। 

अभी लोग कोरोना काल में बेहद जकड़े हुए हैं। लेकिन सरकार की तरफ़ से ‘आत्मनिर्भरता मंत्र’ की घोषणा के बाद मुरझाए चेहरे खिल गए हैं। उन्हें लगने लगा है कि अब कोरोना का सूखा ख़त्म होगा। अभी हाल में शराब की बंदी ख़त्म होने से ‘ड्राई- डे’ का संकट ख़त्म हुआ है। अब लोगों के घरों तक ‘आत्मनिर्भरता’ बढ़ाने के लिए शराब की ऑनलाइन डिलवरी होगी। क्योंकि लोग टुन्न होकर आत्मनिर्भरता के बारे में गहन विचार करेंगे। करें भी क्यों न, मसला बेहद संवेदनशील है। 

‘आत्मनिर्भरता मंत्र’ की घोषणा के बाद से बेचारा विपक्ष दुम दबाए घूम रहा है। वह कह रहा है कि यह सब हमारे प्रयास से हुआ है। क्योंकि हम कोरोना काल में लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए टीवी से लेकर ट्वीटर तक पर यह लड़ाई लड़ी है। क्योंकि हम तो सिर्फ माँग ही कर सकते हैं। सियासत में माँग भी एक आत्मनिर्भरता है। अब  आत्मनिर्भरता की लड़ाई तीखी हो चली है। सोशलमीडिया पर विपक्ष घिर गया है। उस पर तीखे प्रहार हो रहें हैं। लोग सवाल पूँछ रहें हैं कि ‘आत्मनिर्भरता’ के मंत्र में कितने ‘शून्य’ होते हैं। 

टीवी चैनल वालों ने टीआरपी का ख़याल रखते हुए इस बारीकी को पकड़ लिया है। स्क्रीन पर जीरो की लाट लग गई है। विपक्ष कम से कम इस मौके का फ़ायदा उठाते हुए अपनी ज्ञान छमता की आत्मनिर्भरता बढ़ा सकता है। हम अपना शोध आगे बढ़ात कि तभी धर्मपत्नी जी जोर से चिल्लाई “अजी सुनते हो ?” क्या है भगवान” हमने कहा था। उन्होंने विपक्ष की तरह सरकार को दिए जाने वाले चेतावनी लहजे में कहा था “अगर अपनी भूख मिटानी हो तो रसोई में घूस जाइए, क्योंकि हमने आज से ही आत्मनिर्भरता की शुरुवात कर दिया है। इस फ़रमान के बाद मैं माथा पकड़ कर बैठ गया था। अब मैं अपनी ‘आत्मनिर्भरता’ के बारे में सोचने लगा था। 

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