
भारत गाँवों का देश है। भारत की अधिकतम जनता गाँवों में निवास करती हैं। महात्मा गाँधी जी कहते थे कि वास्तविक भारका दर्शन गाँवों में ही सम्भव है जहाँ भारत की आत्मा बसती है। गांव देश की उन्नति में अपना पूर्ण सहयोग दे रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी कहते थे देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है। 2011की जनगणना के अनुसार हमारे देश की कुल जनसंख्या 121.02 करोड़ आंकलित की गई है जिसमें 68.84 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है और 31.16 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में निवास करती है। स्वतंत्र भारत की प्रथम जनगणना 1951 में ग्रामीण एवं शहरी आबादी का अनुपात 83 प्रतिशत एवं 17 प्रतिशत था।2001 की जनगणना में ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 74 एवं 26 प्रतिशत हो गया। इन आंकड़ों के आधार पर भारतीय ग्रामीण लोगों का शहरों की ओर पलायन तेजी से बढ़ रहा है।
गांव से शहरों की तरफ पलायन करने का सिलसिला नया नहीं है गांवों में कृषि भूमि के लगातार कम होने, आबादी बढ़ने और प्राकृतिक आपदाओं आपदाओं के कारण रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीण गांव से शहरों की तरफ मुंह कर कर रहे हैं गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी होने के कारण रोजगार ,शिक्षा ,स्वास्थ्य, बिजली, पानी ,सड़क ,आवास ,संचार स्वच्छता ,जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों की तुलना में कम है रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीणों को शहरों-कस्बों की तरफ रुख करना पड़ा। इन बुनियादी कमियों के साथ-साथ गांवों में भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के चलते शोषण और उत्पीड़न से तंग आकर भी बहुत से लोग शहरो की तरफ पलायन कर लेते हैं
गांधी जी ने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए एक स्थान से दुसरे स्थान पर जा कर रहने की सलाह दी थी। मुंशी प्रेमचन्द ने भी अपने उपन्यास “गोदान” मे गांव छोड़कर शहर जाने की समस्या” को उठाया था। लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपने मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जाते हैं भारत में “गांव से शहरों” की ओर पलायन की प्रवृत्ति कुछ ज्यादा है। एक तरफ जहां शहरी चकाचौंध, भागदौड़ की जिंदगी, उद्योगों, कार्यालयों तथा विभिन्न प्रतिष्ठानों में रोजगार के अवसर परिलक्षित होते हैं। शहरों में अच्छे परिवहन के साधन, शिक्षण संस्थाए, स्वास्थ्य, सुविधाओं तथा अन्य सेवाओं ने भी गांव के युवकों, महिलाओं को आकर्षित किया है। गांव में रोजगार का अभाव तथा मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गांव से शहरों की तरफ पलायन बन रहा है
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने कहा था“हमारी योजनाओं का केवल 15 प्रतिशत धन ही आम आदमी तक पहुंच पाता है।” दिल्ली से देश के किसी गांव में भेजा गया एक रुपया वहां पहुंचते-पहुंचते 15 पैसा हो जाता, शेष राशि 85 पैसे भ्रष्टाचार रूपी मशीनरी द्वारा हजम कर लिया जाता है देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आज भले ही सीधे ग्राम प्रधानो से संबाद करके100% सरकारी धन का उपयोग जनता मे पहुचने की बात करते है लेकिन सरकारी धन का बन्दर बाट जारी है। पंचायती राज व्यवस्था के मंशा की धज्जियाँ उडायी जा रही है i73वें संविधान संशोधन के जरिए पंचायती राज संस्थाओं को अधिक मजबूत तथा अधिकार-सम्पन्न बनाया गया और ग्रामीण विकास में पंचायतों की भूमिका काफी बढ़ गई है। गांवों से शहरों की ओर पलायन रोकने और उन्हें गांव में ही रोजगार मुहैया कराने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार की ओर से विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। आरक्षण के आधार पर सभी सभी वर्गो को प्रतिनिधित्व देने के लिए पंचायत स्तर पर व्यवस्था तो बनाई गई लेकिन गांव में शिक्षा का अभाव होने के कारण सारी योजनाओं की जानकारी नाही ग्राम प्रधान को होती है और ना ही गांव के आम नागरिक को।
भारत में ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रथम प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्र का विकास और ग्रामीण भारत से गरीबी और भूखमरी हटाना है।“महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना” के माध्यम से गांव मे ही रह कर रोजगार की व्यवस्था की तो जा रही है लेकिन गावों मे राजनीतिक गुटबाजी के चलते मूल रुप से काम करने वालो को मनरेगा के अन्तर्गत काम ही नही दिया जाता।
गांवों को शहरों के समतुल्य बनाने के लिए उच्च या तकनीकी शिक्षा के संस्थान खोलना, स्थानीय उत्पादों के मद्देनजर ग्रामीण अंचलों में छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना, परिवहन सुविधा, सड़क, चिकित्सालय, शिक्षण संस्थाएं, विद्युत आपूर्ति, पेयजल सुविधा, रोजगार तथा उचित न्याय व्यवस्था आदि की वयवस्था की जाय। खेती के पारंपरिक बीज खाद और दवाओं को उपलब्ध कराया जाए, जिनके चलते गांवों से युवाओं के पलायन को रोका जा सकता है, शिक्षा का अधिकार कानून क होने के बाद भी शिक्षा का स्तर ज्यो का त्यो बना हुआ है। इस कानून के माध्यम से गांवों के स्कूलों की स्थिति, अध्यापकों की उपस्थिति और बच्चों के दाखिले में वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। शिक्षा से असमानता, शोषण, भ्रष्टाचार तथा भेदभाव में कमी होगी जिसके फलस्वरूप ग्रामीण जीवन बेहतर बनेगा लोक कल्याण एवं ग्रामीण पलायन रोकने के लिए सरकार द्वारा योजनाए लागू तो की जाती है लेकिन ये योजनाए भ्रष्ट व्यक्तियों के हाथों में चली जाती है जिससे आम जनता को उसका लाभ नहीं मिल पाता।
ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत खेती के स्थान पर पूंजी आधारित खेती को बढावा दिया जाय। गांव वो मे मजदूरों तथा अन्य बेरोजगार युवकों के लिए स्वरोजगार के लिए वित्तीय सहायता एवं गांवो मे उनके लिए प्रशिक्षण केन्द्रखोले जाएं। रोजगार के लिए बुनाई, हथकरघा, कुटीर उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण केन्द्र की स्थापना की जाए।स्वयंसहायता समूह, सामूहिक रोजगार प्रशिक्षण, मजदूरों को शीघ्र मजदूरी तथा उनके बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अन्य मनोरंजन की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
गांव और शहर की जीवन शैली अलग होती है। गांव से शहर में पलायन होने से शहर के संसाधन जल्दी समाप्त हो जाते हैं। जो समस्या पैदा कर सकते है। शहर में आबादी के बढ़ते दबाव को रोकने के लिए सरकार व प्रशासन को गांवों में रोजगार पैदा करने चाहिए जिससे गांवो से हो रहे शहरो के पलायन को रोका जा सके।