आदित्य कुमार गिरि
मीडिया के विकासमूलक चरित्र की सारी परिकल्पनाएं अब झूठी साबित हो रही हैं।जिन मूल्यों की स्थापना और जैसे मूल्यों के विरोध की जमीन तैयार करने की उम्मीदें उससे की गई थी,वह सब निराशा के गर्त में जा चुकी हैं। बल्कि दूसरी संस्थाओं द्वारा उठाए मुद्दों को भी हल्का करने का काम मीडिया जरुर कर रहा है।
आज हम एफएम रेडियो के जमाने में जी रहे हैं,जो तकनीक और पहुँच में आकाशवाणी से बहुत आगे है। इसके अलावा एफएम चौबीस घंटे की सेवा देता है साथ ही यह डिजिटल तकनीक से युक्त है,लेकिन गुणवत्ता की दृष्टि से देखा जाए तो एफएम की प्रकृति की कुछ बुनियादी दिक्कतें हैं मसलन उसका समूचा ढाँचा मनोरंजनपरक कार्यक्रमों पर आधारित है।
आकाशवाणी का ढाँचा विकासमूलक कार्यक्रमों पर आधारित था। किसानों की, मजदूरों की समस्याओं पर कार्यक्रम बनाये जाते थे। साहित्य के लिए स्पेस था। लोगों की अन्य समस्याओं को भी एक उचित स्थान दिया जाता था।इसकी जगह एफएम ने मनोरंजन का संसार रच दिया है।बलि्क कहा जाना चाहिए कि सामाजिक सांस्कृतिक मुद्दों को भी मनोरंजकपरक बनाकर एक मजाकिया रवैया अपनाया जाता है। पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टीवी चैनल्स) ने मनोरंजन का एक वृहद संसार रच दिया है। इसके आदि दर्शक और श्रोता रेडियो के इन कार्यक्रमों को भी मनोरंजन के एक प्रकार के रुप में लेते हैं,जिसके कारण उस मुद्दे की गंभीरता नष्ट हो जाती है। कार्यक्रमों के निर्माण की रुपरेखा में जनवाद की जगह उपभोक्तावादी दृषि्ट का प्रयोग किया जाता है।
असल में अगर केवल मनोरंजन को भी आधार बनाया जाता तो कोई समस्या नहीं थी,परन्तु यहां तो सामाजिक मुद्दों का मजाक बना दिया जाता है।व्यकि्त की कुंठाओं और जब्ती प्रवृतियों पर आधारित कार्यक्रम बनाये जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया,इंटरनेट आदि को अधिक महत्तव दिया जाता है और यह समझा जा रहा है कि एफएम रेडियो के श्रोताओं की संख्या या प्रभाव क्षेत्र कम है,पर यह एक गलत धारणा है। एफएम रेडियो के पास बड़ी संख्या में श्रोता हैं।देश के बड़े-बड़े पूँजीपतियों का रेडियो में पैसा लगाना इस बात का प्रमाण है कि रेडियो का एक बड़ा प्रभाव-क्षेत्र है।अतः प्रसार भारती द्वारा एफएम रेडियो की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
उसके कार्यक्रमों को सुबह से लेकर रात तक के कार्यक्रमों का अध्ययन करने पर यह बात और साफ हो जाती है।किसी भी मुद्दे के साथ किया जानेवाला ट्रीटमेंट देखा जाना चाहिए।कार्यक्रमों को बनाते समय जो दृष्टिकोण रखा जाता है उससे ही आकाशवाणी और एफएम के बीच के फर्क को आसानी से समझा जा सकता है। हमारे अध्ययन का आधार भी यही होगा,जिससे हम सही निष्कर्ष पर पहुँच सके।
पिछले दिनों औरतों पर बढ़ रही हिंसा के मद्दे नज़र पशि्चम बंगाल की नवनिर्मित सरकार ने पाँच सौ महिला-पुलिस भर्ती करने का फैसला किया।हालांकि यह संख्या काफी कम है,पर कदम प्रशंसनीय है।इसकी प्रशंसा की भी जानी चाहिए।पर इस घटना पर कलकत्ते के रेडियो चैनेल “104.8” ने एक चार घंटे के कार्यक्रम का आयोजन किया।यह श्रोतांओं द्वारा फोन पर रिप्लाइ का कार्यक्रम था।इस पूरे कार्यक्रम का प्रारुप ही आपत्तिजनक था।सवालों के जो ढाँचे बनाये गये थे वह पूरे-के-पूरे प्रतिगामी और स्त्री विरोधी थे।जिसमें उठाईगिरों और छेड़छाड़ करने वालों की प्रकृति और सोचने के तरीके को ही न सिर्फ बढ़ावा दिया जा रहा था,बलि्क प्रकारांतर से उनको जस्टीफाई भी किया जा रहा था।
इस कार्यक्रम का आधार जो सवाल था वह यह था कि “हमारे चारों तरफ स्त्री पुलिस की उपसि्थति हो,तो पुरुषों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा?“इसके जवाब में श्रोताओं के जवाब भी वैसे ही थे आपत्तिजनक और मजा लेने वाले।किसीने कहा कि ऐसा होने पर एक्सीडेंटों की संख्या बढ़ जाएगी,ऐसा इसलिए क्योंकि ड्राइविंग पुरुष ही करते हैं,तो उनका ध्यान ड्राइविंग पर कम और महिला पुलिस को देखने पर ज्यादा रहेगा।इसके साथ और भी बीसीयों ऐसे जवाब दिये गये,जिनकी जितनी भी भर्त्सना की जाए,कम है।
पिछले दिनों एक और घटना घटी सरकार ने बारह घंटे की बिजली की कटौती की ,देश के 19 राज्य इसके कारण परेशान हुए। कलकत्ते की सारी ट्रेनें,ऑफिस,स्कूल,कॉलेजों का काम ठप्प हो गया । लोग सड़कों पर,स्टेशनों-प्लेटफॉर्मों पर,ऑफिसों में फँसे हुए थे। पूरे राज्य की गाड़ी थम गई थी यही हाल बाकी 19 राज्यों का भी यही हाल था,लेकिन कलकत्ते के एफएम चैनेल “93.5 रेड एफएम” ने अपने यहां जो कार्यक्रम आयोजित किया,उसमें जनता से प्रश्न किया गया कि आज देश भर में बिजली की जो कटौती हुई है उसका कारण यह है कि हमलोग ज्यादा ऊर्जा की खपत करते हैं,अतः “श्रोता फोन करके बताएं कि सबसे ज्यादा किस काम में ऊर्जा लगती है ?” इस प्रश्न के साथ,जब-जब यह प्रश्न दुहराया जा रहा था,एक बात जरुर कही जा रही थी (अत्यंत अर्थपूर्ण ढंग से) कि शादी-शुदा लोग भी इस प्रश्न का जवाब दे सकते हैं। बहुत आसानी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों ने कैसे-कैसे जवाब दिये होंगे। रेडियो की चिंताओं का अंदाजा इन उदाहरणों से आसानी से लगाया जा सकता है।
एफएम चैनेलों पर कार्यक्रमों के निर्माण की जो दृष्टि अपनाई जाती है उसे समझने के लिए एक और कार्यक्रम का उदाहरण लिया जा सकता है।“98.3 रेडियो मिर्ची” पर रुपा गांगूली एक कार्यक्रम लाती हैं जिसमें लोग फोन करके अपनी समस्याएं बताते हैं।सारी समस्याएं संबंध-विच्छेद,सेक्स,प्रेम इन्हीं पर केनि्द्रत होती हैं और बहुत ही बेहुदे और घटिया जवाब सुझाए जाते हैं।आजकल रेडएफ पर रेडियो जौकी विनीत “दिल से”नाम का कार्यक्रम लेकर आते हैं,इसका आलम भी यही है।
देश की समस्याओं को लेकर आकाशवाणी का जो रवैया था ठीक उसके विपरीत एफएम चैनल्स काम कर रहे हैं।यह अत्यंत चिंताजनक है।रेडियो में अब बड़ी पूँजी का प्रवेश हो चुका है और यह पूँजीवादी हितों को ध्यान में रखकर कार्यक्रम किये जा रहे हैं।जनता को शिक्षित करने,जागरुक बनाने,सामाजिक मुद्दों को आवाज देने का जो काम रेडियो कर सकता था,उसकी जगह उसका पूरा चरित्र ही विकास विरोधी हो चुका है।एफएम की शुरुआत ही इसी चरित्र के साथ हुई।एफएम आमलोगों के मंच के रुप में काम कर सकता था।रिक्सेवाले से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी तक रेडियो पर फोन के माध्यम से जुड़ते हैं।रियल टाइम में अपनी और समाज की समस्याओं को आवाज़ देने वाला सशक्त माध्यम बनकर रेडियो उभर सकता था।ध्यान रहे यह सुविधा आकाशवाणी के युग में नहीं थी।तकनीक की उन्नती का फायदा समाज के हित में किया जाना चाहिए,न कि समाज के विरोध में।अभी भी समय है प्रसार भारती को गंभीरतापूर्वक इस ओर ध्यान देना चाहिए,ताकी रेडियो की प्रासंगिकता को अर्थपूर्ण बनाया जा सके।
(लेखक कलकत्ता विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं)