मनुष्य की मनुष्य के प्रति कृतज्ञता है क्षमा !

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मनुष्य जीवन में क्षमा(माफ करना )का बहुत बड़ा महत्व है। जो व्यक्ति क्षमा करना जानता है वह जीवन में सदैव आगे बढ़ता है, उन्नति प्रगति करता है। क्षमाशील होने का मतलब है सहनशील होना या क्षमा करने वाला। क्षमा देखा जाए तो हमारे जीवन का एक आभूषण है। क्षमा करने वाला व्यक्ति हमेशा शांत प्रकृति का होता है, धैर्य वान होता है,संयमी होता है। वह हृदय से उदार और दयालु होता है। संस्कृत में बड़े ही सुन्दर शब्दों में कहा गया है कि -‘क्षमा विना न दृढ़तां द्रव्यं, क्षमा विना न परं सुखम्।व्यर्थं व्ययते जन्तूनां क्षमा सर्वप्रधानता॥ इसका मतलब यह है कि  क्षमा े बिना धन दृढ़ नहीं होता, क्षमा के बिना दूसरों का सुख नहीं होता। जीवों का सर्वोपरि लाभ बेकार हो जाता है। इसी प्रकार से यह भी कहा गया है कि ‘क्षमा शिवे भगवति, क्षमा दानं परम सुखम्।क्षमा दृढ़ता शक्तिश्च, क्षमाया: पापकर्मिणाम्॥’ मतलब यह है कि क्षमा भगवान शिव की ही तरह है, क्षमा देने से परम सुख होता है। क्षमा स्थिरता और शक्ति है, क्षमा पाप कर्मियों के लिए ही है। वैसे क्षमा करना कोई आसान काम नहीं है। इस मानव जीवन में सबसे कठिन यदि कुछ है तो वह है किसी व्यक्ति विशेष को उसके अपराध के लिए क्षमा कर देना। छोटी कक्षाओं में हम सभी रहीम जी का यह प्रचलित दोहा खूब पढ़ते आए हैं -क्षमा बड़ेन को चाहिये, छोटन को उत्पात।का रहीम हरी का घट्यो, जो भृगु मारी लात।।’ इसका मतलब यह है कि उद्दंडता करने वाले हमेशा छोटे कहे जाते हैं और क्षमा करने वाले ही बड़े बनते हैं।  ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु की सहिष्णुता की परीक्षा लेने के लिए उनके वक्ष पर ज़ोर से लात मारी। मगर क्षमावान भगवान ने नम्रतापूर्वक उनसे ही पूछा, “अरे! आपके पैर में चोट तो नहीं लगी? क्योंकि मेरा वक्षस्थल कठोर है और आपके चरण बहुत कोमल हैं।” भृगु महाराज ने क्रोध करके स्वयं को छोटा प्रमाणित कर दिया जबकि विष्णु भगवान क्षमा करके और भी बड़े हो गए। दरअसल क्षमाशीलता ही वह आभूषण है जो हमारे व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का मार्ग खोलती है। हमें महसूस होता है कि यह जीवन छोटी-छोटी बातों में उलझकर व्यर्थ गंवाने के लिए प्राप्त नहीं हुआ है, बल्कि इसका मूल उद्देश्य तो ज्ञान प्राप्त करना है और ज्ञान तभी प्राप्त किया जा सकता है जब हमें अपने व्यक्तित्व को क्षुद्र आदतों पर नियंत्रित कर लें। दरअसल सच तो यह है कि क्षमा माँग लेना या क्षमा कर देना, ये दोनों ही वृत्तियाँ हमारा मन हल्का करने वाली बहुत ही उदार वृत्तियाँ है। मनुष्य के अंदर हमेशा बदले की भावनाएं निहित रहती हैं और ये बदले की भावनाएं ही उसे जीवन में सफल नहीं होने देती। बदले की भावनाएं हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचातीं हैं, हमारी प्रगति, उन्नति में हमेशा बाधक सिद्ध होती हैं।यदि हम मनुष्य अपनी सभी इंद्रियों और मन पर नियंत्रण प्राप्त कर लें तो हम स्वयं को जान पाएंगे और इसके साथ ही अपनी मानसिक चेतना को भी जान सकेंगे।भगवान महावीर ने क्षमा माँगने से अधिक क्षमा करने को महान बताया है। वे कहते हैं, ‘मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ। सब जीव मुझे क्षमा करें। सब जीवों से मेरा मैत्रीभाव है। किसी से वैर-भाव नहीं।’ जानकारी देना चाहूंगा कि इस संसार में जितने भी विचारक हुए हैं वे क्षमादान को महान दान मानते आए हैं, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि कायरों की भाँति भयंकर अपराध को भी संरक्षित किया जाए। अगर हम ऐसा करेंगे तो समाज कभी अपने सही उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकेगा। सच तो यह है कि क्षमा कमज़ोरों की ताकत और शक्तिशालियों का आभूषण है। सारा संसार क्षमा से वश में किया जा सकता है। इससे सभी कार्य सिद्ध हो सकते हैं। वास्तव में,क्षमा मनुष्य की मनुष्य के प्रति कृतज्ञता है, इसलिए क्षमा दान को वीरों का आभूषण कहा गया है। क्षमा याचना से मनुष्य का समस्त अहंकार समाप्त हो जाता है। वास्तव में,क्षमा याचना के लिए मनुष्य में अपनी गलती, असफलता और कमजोरी को स्वीकार करने की क्षमता होनी जरूरी है।एक मुनि महाराज जी ने तो यहाँ तक कहा है, ‘पुष्प कोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्र कोटि समं जपः।जप कोटि समं ध्यानं, ध्यान कोटि समं क्षमा।।’ यानी कि मतलब यह है कि एक करोड़ पुष्पों के समान एक स्तोत्र, एक करोड़ स्तोत्रों के समान एक जप, एक करोड़ जपों के बराबर एक ध्यान और एक करोड़ ध्यान के बराबर एक बार की क्षमा है और जो व्यक्ति क्षमाशील बन जाए, उसकी महानता की तो बात ही क्या है ? संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि यदि हम दूसरों को क्षमा कर देते हैं, तो हम अपना जीवन प्रसन्नता से भर सकते हैं। क्षमादान हमारे बड़प्पन का प्रतीक है। क्षमा करने वाला महान कहलाता है। क्षमाशील व्यक्ति के शत्रु नहीं होते और एक क्षमाशील व्यक्ति जीवन में हमेशा खुश व प्रसन्न रहता है।क्षमा करुणा को प्रोत्साहित करती है।कवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि क्षमा वीरों को ही सुहाती है। जो व्यक्ति, सामने वाले को क्षमा कर देते हैं, उसकी चर्चा चारों दिशाओं में फैल जाती है।महात्मा गांधी जी कहा हैं कि कमजोर व्यक्ति कभी क्षमा नहीं कर सकता, क्षमा करना शक्तिशाली व्यक्ति का गुण है। सभी धर्मो में क्षमा को श्रेष्ठ गुण बताया गया है। बाकायदा जैन संप्रदाय में इसके लिए एक दिन विशेष आयोजन किया जाता है।सही मायने में क्षमा एक ईश्वरीय गुण है जो बहुत कम लोगों के भीतर पाया जाता है। प्रत्येक धर्म हमें दूसरों को क्षमा करना सिखता है, क्योंकि इसे देने वाला और पाने वाला दोनों ही सुख उठाता है। सच तो यह है कि क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। अंत में यही कहूंगा कि क्षमा तेजस्वी पुरुषों का तेज है, क्षमा तपस्वियों का ब्रह्म है, क्षमा सत्यवादी पुरुषों का सत्य है।

सुनील कुमार महला

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