स्वतंत्रता संग्राम में रा.स्व.सं. की भूमिका-2

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सत्याग्रह
६ अप्रेल १९३० को दांडी में समुद्रतट पर गांधीजी ने नमक कानून तोड़कर जनांदोलन प्रारम्भ किया.संघ का कार्य उस समय तक केवल मध्यभारत में ही प्रभावी हो सका था.वहां पर नमक कानून के स्थान पर जंगल कानून तोड़कर सत्याग्रह करने का निश्चय हुआ.डॉ. हेडगेवार द्वारा संघ के सरसंघचालक का दायित्व डॉ परांजपे को सौंपकर स्वयं अनेकों स्वयंसेवकों के साथ सत्याग्रह करने गए.जुलाई १९३० में सत्याग्रह के लिए यवतमाळ जाते समय पुसद नमक स्थान पर आयोजित जनसभा में डॉ.हेडगेवार के सम्बोधन में स्वतंत्रता संग्राम के प्रति संघ का दृष्टिकोण स्पष्ट हो जाता है.उन्होंने कहा था,”स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के बूटपालिश से लेकर उनके बूट को पैर से निकालकर उससे उनके ही सिर को लहूलुहान करने तक के सब कार्य मेरे मार्ग में स्वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं.मैं तो इतना ही जनता हूँ की दश को स्वतंत्र कराना है.”
डॉ.हेडगेवार के साथ गए जत्थे में अप्पाजी जोशी ( जो बाद में संघ के सरकार्यवाह बने),दादाराव परमार्थ( जो बाद में मद्रास प्रान्त के प्रथम प्रान्त प्रचारक बने),आदि १२ प्रमुख स्वयंसेवक थे.उनको ९ मॉस का सश्रम कारावास का दंड दिया गया.उसके बाद अ.भा.शारीरिक शिक्षण प्रमुख श्री मार्तण्ड राव जोग, नागपुर के जिला संघचालक श्री अप्पाजी हल्दे आदि अनेक स्वयंसेवकों ने भाग लिया.तथा शाखाओं के जत्थों ने भी सत्याग्रह में भाग लिया.सत्याग्रह के समय पुलिस की बर्बरता के शिकार बने सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए १०० स्वयंसेवकों की टोली बनायीं गयी जिसके सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे.
८ अगस्त को गढ़वाल दिवस पर धारा १४४ तोड़कर जुलूस निकलने पर पुलिस की मार से अनेकों स्वयंसेवक घायल हुए.
विजयदशमी १९३१ को डॉ. जी जेल में थे.उनकी अनुपस्थिति में गांव गांव में संघ की शाखाओं पर एक सन्देश पढ़ा गया, जिसमे कहा गया था:-
“देश की परतंत्रता नष्ट होकर जब तक सारा समाज बलशाली और आत्मनिर्भर नहीं होता तब तक रे मन! तुझे निजी सुख की अभिलाषा का अधिार नहीं.”
जनवरी १९३२ में विप्लबी दल द्वारा सरकारी खज़ाना लूटने के लिए हुए बालाघाट कांड में वीर बाघा जतिन (क्रन्तिकारी जतिन्द्र नाथ) अपने साथियों सहित शहीद हुए और श्री बालाजी हुद्दार आदि कई क्रन्तिकारी बंदी बनाये गए.श्री हुद्दार उस समय के संघ के अ.भा.सरकार्यवाह थे.
संघ पर प्रतिबन्ध
संघ के विषय में गुप्तचर विभाग की रपट के आधार पर मध्य भारत सरकार ने जिसके क्षेत्र में नागपुर था,१५ दिसंबर १९३२ को सरकारी कर्मचारियों के संघ में भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया.बाद में डॉ.हेडगेवार जी के देहांत के बाद ५ अगस्त १९४० को संघ की सैनिक वेशभूषा और प्रशिक्षण पर देश भर में प्रतिबन्ध लगा दिया.
क्रमशः……………

स्वतंत्रता संग्राम में रा.स्व.सं. की भूमिका-3

१९४२–भारत छोडो आंदोलन
संघ के स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत छोडो आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभायी थी.विदर्भ के अष्टीचिमुर क्षेत्र में सामानांतर सरकार स्थापित करदी.अमानुषिक अत्याचारों का सामना किया.उस क्षेत्र में एक दर्ज़न से अधिक स्वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया.नागपुर के निकट रामटेक के तत्कालीन नगर कार्यवाह श्री रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहेब देशपांडे को आंदोलन में भाग लेने पर मृत्यु दंड सुनाया गया.बाद में आम माफ़ी के समय मुक्त होकर उन्होंने बनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की.
देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थे.दिल्ली-मुजफ्फरनगर रेल लाईन पूरी तरह क्षतिग्रस्त करदी गयी.आगरा के निकट बरहन रेलवे स्टेशन को जला दिया गया.मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झंडा फहराते समय स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलायी जिसमे अनेकों घायल हुए.
आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य भी बहुत महत्त्व का था.केवल अंग्रेजी सरकार के गुप्तचर ही नहीं, कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्त्ता भी अपनी पार्टी के आदेशानुसार देशभक्तों को पकड़वा रहे थे.ऐसे में जयप्रकाश नारायण और अरुणा(आसफ अली) दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज जी गुप्त के यहाँ आश्रय पाते थे.प्रसिद्द समाजवादी श्री अच्युत पटवर्धन और साने गुरूजी ने पुणे के संघचालक श्री भाऊसाहब देशमुख के घर पर केंद्र बनाया था.’पतरी सरकार’ गठित करनेवाले प्रसिद्द क्रन्तिकारी नाना पाटिल को आंध(जिला सतारा) में संघचालक पं.सातवलेकर जी ने आश्रय दिया.
संघ की स्वतंत्रता-प्राप्ति की योजना
ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर विभाग ने १९४३ के अंत में संघ के विषय में जो रपट प्रस्तुत की वह राष्ट्रिय अभिलेखगर की फाइलों में सुरक्षित है.जिसमे सिद्ध किया है की संघ योजनापूर्वक स्वतंत्रता-प्राप्ति की ओर बढ़ रहा है.
फाइलों में सुरक्षित प्रमाणों के कुछ अंश
मई-जून १९४३ — संघ कार्य तेजी से फ़ैल रहा है.उसके अधिकारी शिक्षण शिविर (ओ.टी.सी.) ११ स्थानों पर लगे.पूना शिविर के समारोप में संघ प्रमुख गोलवलकर ने कहा- त्याग का सर्वोच्च प्रकार हुतात्मा(शहीद) होना है.उन्होंने रामदास का दोहा सुनाया, जिसमे कहा गया– हिन्दुओं को धर्म के लिए प्राण न्योछावर कर देना चाहिए.पर उसके पूर्व अधिक से अधिक शत्रुओं को मार दे. इन शिविरों में स्वयंसेवकों से कहा गया–”वे यहाँ सैनिक जीवन का अनुभव करने आये हैं, शीघ्र ही विदेशियों के साथ शक्ति-परिक्षण होगा.”
इन शिविरों में लड़ाकू और खतरनाक किस्म की ट्रेनिंग दी जाती है.और बताया जाता है कि संगठन के शक्तिशाली होने पर अंग्रेजों से दास्तामुक्ति-मुक्ति का संघर्ष शुरू किया जायेगा.
अन्य संघ अधिकारीयों के प्रवास व संघ के कार्यक्रमों पर भी गुप्तचर विभाग ने चिंता प्रकट की है.
संघ के अन्य प्रमुख नेता बाबासाहेब आप्टे ने १२ सितम्बर ‘४३ को जबलपुर में गुरुदक्षिणा उत्सव पर कहा-“अंग्रेजों का अत्याचार असहनीय है, देश को आज़ादी के लिए तैयार हो जाना चाहिए.”
गुप्तचर विभाग की रपट में संघ के क्रांतिकारियों से संबंधों का भी उल्लेख है.–पूना के संघ शिविर और अमरावती के राष्ट्र सेविका समिति के शिविर में सावरकर उपस्थित रहे.बदायूं (उ.प्र.) में संघ शिविर में विदेशों में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष छेड़ने वाले राजा महेंद्र प्रताप का चित्र लगाया गया. इन शिविरों तथा कार्यक्रमों में पूर्ण गोपनीयता बरती जाती है.
आज़ाद हिन्द फ़ौज के साथ सहयोग में संघ की पूर्व तैयारी
२० सितम्बर १९४३ को नागपुर में हुई संघ की गुप्त बैठक में आज़ाद हिन्द फ़ौज़ द्वारा जापान की सहायता से अंग्रेजों के विरुद्ध होने वाले हमले के समय संघ की संभावित योजना पर विचार हुआ.
रियासतों में संघ कार्य पर प्रतिबन्ध
गुप्तचर विभाग से यह सूचना प्राप्त कर कि संघ ने हिन्दू रियासतों के क्षेत्र में अपना संगठन मजबूत किया है, वहां स्वयंसेवकों को शस्त्रों का खुलेआम प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ब्रिटिश सरकार ने सभी ब्रिटिश रेजिडेंटों को संघ कि गतिविधियों को रुकवाने व प्रमुख कार्यकर्ताओं के विषय में जानकारी एकत्र करने का निर्देश दिया.
प्राप्त सूचनाओं के विश्लेषण से गुप्तचर विभाग इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि संगठन के लिए संगठन, राजनीती से सम्बन्ध नहीं, हमारा कार्य सांस्कृतिक है– जैसे वाक्य वास्तविक उद्देश्य पर आवरण डालने के लिए हैं.संघ का वास्तविक उद्देश्य है — अंग्रेजों को भारत से खदेड़ कर देश को स्वतंत्र कराना

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