G-20 नेतृत्व: बदलते वैश्विक क्रम में उभरता भारत

शिवेश प्रताप

            भारत के द्रुतगति से होती विकास यात्रा ने उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख खिलाड़ी बना दिया है। हमारा देश, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सूची में लगातार ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है,  इसके पीछे कई क्रांतिकारी परिवर्तन जिम्मेदार हैं। भारत के व्यापक डिजिटलाइजेशन, कनेक्टिविटी एवं इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। ऐसे में G-20 समूह का नेतृत्व भारत के हिस्से में आना देश के वैश्विक क्रम में और ऊपर जाने के द्वार खोलते हुए भारत की समृद्धि को भी बढ़ाएगा। G-20 का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि दुनिया का 80% आर्थिक निर्गम, 75% अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं 60% वैश्विक जनसंख्या इसी समूह से आती है।

            G-20 का निर्माण सितंबर 1999 में एशिया की आर्थिक संकट के दौरान एक अनौपचारिक समूह के रूप में 19 देशों तथा यूरोपियन यूनियन से मिलकर हुआ था। दुनिया के सबसे बड़े एवं स्थापित अर्थव्यवस्थाओं तथा उभरती अर्थव्यवस्थाओं का यह ग्रुप देशों के वित्त मंत्रियों तथा रिजर्व बैंकर के स्तर पर संचालित होता था जिसका लक्ष्य था आर्थिक स्थिरता को बनाए रखना। इस लेख के माध्यम से हम G-20 के द्वारा भारत को मिलने वाली चुनौतियां तथा स्वर्णिम अवसरों की बात करेंगे।

जी-20 में भारत की भूमिका:

            दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या एवं 5 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सम्मिलित भारत का महत्व G-20 देशों में स्वयं ही प्रासंगिक हो जाता है। इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले समय में भारत की आर्थिक वृद्धि 7.4% की दर से बढ़ने वाली है। इसका अर्थ है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगी परंतु इसी के साथ भारत के लिए सतत विकास के लक्ष्य को भी पूरा करने का दबाव बढ़ता जा रहा है।

भारत के सतत विकास लक्ष्य:

            दुनिया आज जिन परिस्थितियों में जी रही है ऐसे में केवल आर्थिक लाभ ही नहीं अपितु ग्लोबल वार्मिंग एवं सतत विकास जैसे महत्वपूर्ण बिंदु पर भी ध्यान देना जरूरी है। चाहे देश हो या कोई कारपोरेशन दोनों को गंभीरता से विचार करते हुए नीतियां बनाने एवं उसका पालन करने हेतु प्रतिबद्ध होना चाहिए।

            G-20 में भारत अकेला एक ऐसा देश है जिसने अपने जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी राष्ट्रीय निर्धारित योगदान के लक्ष्य को पूरा कर लिया है। इस टारगेट के अंतर्गत सभी देशों को अपने जलवायु परिवर्तन पर उठाए गए कदमों को बताना होता है। भारत ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा के 38.5% संयंत्रों का निर्माण पूरा कर लिया है तथा निर्माणाधीन संयंत्रों को मिलाया जाए तो यह 48% हो जाता है। भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन की दिशा में किए जा रहे इन कार्यों ने पेरिस एग्रीमेंट के लक्ष्यों को भी पीछे छोड़ दिया है। भारत द्वारा इन लक्ष्यों की पूर्ति तय किए गए समय सीमा से 9 वर्ष पहले ही पूर्ण कर लिए गए हैं जो एक बहुत ही प्रभावशाली विकास को दर्शाता है।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की विफलता:

            दुनिया के सभी प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्था इस समय मंदी से गुजर रही हैं इसका सबसे मुख्य कारण है कोविड-19 के दौरान पैदा हुए आपूर्ति श्रृंखला की समस्याएं। विनिर्माण से संबंधित अधिकतर वस्तुएं अपने बनने से लेकर उपभोक्ता की प्रक्रिया में दुनिया के कई देशों से होकर गुजरती है ऐसे में आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी प्रकार की रुकावट पूरे विश्व को प्रभावित करती है। श्रम, तकनीकी, संचार एवं संसाधन से भरा पूरा यह नेटवर्क ही वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला कहलाती है। कोविड-19 के कारण उपजे उपभोग वस्तुओं की भारी मांग को वर्तमान आपूर्ति श्रृंखला पूरा कर पाने में अक्षम है।

            संसार के कारखाने के नाम से जाना जाने वाला चीन एवं इसका बुहान शहर कोविड-19 के जबरदस्त चपेट में आने के कारण चीन से निर्यात होने वाले उपभोग की वस्तुओं में भी कमी देखी गई जिसने कोढ़ में खाज जैसी स्थिति उत्पन्न कर दिया। लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण लोग अपनी नौकरियां भी ना बचा सके इससे दुनिया भर में श्रम की गंभीर कमी उद्योगों में देखनी पड़ी। वर्तमान में जो दुनिया के सारे देश विनिर्माण की बाधाओं आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं और कमजोर मांग के चलते परिस्थितियों से जूझ रहे हैं तब G-20 की अध्यक्षता भारत के लिए कैसा सुनहरा अवसर है जहां उत्कृष्ट नीतियां बनाकर भारत नए वैश्विक क्रम हेतु स्वयं को बेहतर ढंग से पेश कर सकता है।

आर्थिक मंदी की ओर बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं:

            रही सही कसर रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी कर दी जिसके कारण दुनिया में खाद्यान्न संकट तक मडराने आने लगा। रूस पर लगाए गए कड़े आर्थिक प्रतिबंधों एवं चीन-अमेरिका के ट्रेड वॉर ने आग में घी का काम किया है। कुल मिलाकर संसार की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाऐं अत्यधिक दबाव एवं भ्रम की स्थिति में है। इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस के अनुसार वर्तमान आर्थिक मंदी ने बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों को और कर्ज लेने पर मजबूर कर उन्हे आर्थिक दिवालियेपन की ओर धकेल दिया है।

            भारत को अपने दूरगामी हितों को साधने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके लक्ष्य अन्य देशों के साथ तारतम्यता में हों। विशेषज्ञों के अनुसार भारत की तीन प्रमुख लक्ष्य हो सकते हैं पहला है प्राइवेट कंपनियों को ध्यान में रखते हुए एक सुरक्षित एवं उत्कृष्ट आपूर्ति श्रृंखला संरचना, दूसरा कूटनीति एवं संवाद के माध्यम से क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाना एवं तीसरा डिजिटल एवं हरित विकास पर ध्यान देना।

प्रारम्भ हो समाधान आधारित विमर्श:

            आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं के लिए देशों को प्राइवेट उद्योगों के साथ मिलकर अपनी समस्याओं को सही मंच पर लाकर उसके स्थाई समाधान पर कार्य करना चाहिए। दूसरी और सरकारों को उन बिंदुओं पर भी समाधान ढूंढना चाहिए जिसकी कमी के कारण निवेश एवं व्यापार दोनों में बाधा उत्पन्न होती हैं। आपूर्ति श्रृंखला को भविष्य की संभावित समस्याओं तथा चुनौतियों से निपटने में भी सक्षम बनाया जाना चाहिए। इसका एक महत्वपूर्ण माध्यम हो सकता है संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को डिजिटाइज़ करना। साथ ही कुछ ऐसे उच्च आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन मानक बनाने चाहिए जिसको सभी देश आपसी सहयोग से संचालित कर सकें। भारत सदैव से एक स्वतंत्र एवं समृद्ध वैश्विक क्रम को सहयोग देता आया है एवं भविष्य में G-20 के अध्यक्ष के रूप में भी वह अपनी इसी विचार को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखेगा।

साइबरसिक्योरिटी तथा इकोनामिक कॉरिडोर:

            वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में केवल व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है अभी 2 देशों की सुरक्षा के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसे में भारत अपने बहुपक्षीय संबंधों का लाभ लेते हुए आपूर्ति श्रृंखला के द्वारा सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकता है, जैसे आस्ट्रेलिया और जापान के साथ सप्लाई चैन रेसिलियंस इनीशिएटिव एवं इंडो पेसिफिक इकोनामिक फ्रेमवर्क। साइबरसिक्योरिटी तथा इकोनामिक कॉरिडोर के द्वारा आपूर्ति श्रृंखला को अधिक व्यावहारिक एवं सुरक्षित बनाया जा सकता है। कोविड-19 के दौरान हुए आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं में विश्व ने द्विपक्षीय व्यापार की जगह पर क्षेत्रीय समूह व्यापार पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है। क्षेत्रीय समूह व्यापार जितना मजबूत होगा, चीन जैसे देशों पर अन्य देशों की आत्मनिर्भरता लगातार कम होती जाएगी।

भारत, हरित ऊर्जा कूटनीति का नेतृत्वकर्ता:

            भारत सोलर ऊर्जा के साथ हाइड्रोजन ऊर्जा से संबंधित क्षेत्रों में भी अन्य देशों के साथ एक बेहतर सहयोग स्थापित कर सकता है। इस प्रकार हरित ऊर्जा की आवश्यकताओं के लिए भारत एक अंतरराष्ट्रीय सहयोग स्थापित कर सकता है। भारत के नेतृत्व में चल रहे अंतरराष्ट्रीय सोलर अलायंस में वर्तमान में 121 देश शामिल है। इस तरह से भारत हरित ऊर्जा कूटनीति के क्षेत्र में एक नेतृत्वकर्ता देश के रूप में विद्यमान है। इंटरनेशनल सोलर अलायंस का बजट इस वर्ष 15 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

अवसर में चुनौतियाँ भी हैं:

            भारत के सामने जितने अवसर है उतनी ही चुनौतियां भी हैं। विशेषज्ञों के अनुसार G-20 में पांच विशेष चुनौतियां हैं जिसमें पहला है दुनिया के कई छोटे एवं मध्यम देशों का बढ़ता हुआ कर्ज। दूसरा, जलवायु परिवर्तन में विकसित देशों की ओर से कम सहयोग का प्राप्त होना जबकि प्रारंभ में उन्हीं के द्वारा प्रदूषण फैलाया गया। तीसरा, हरित ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलंबी बनने के लिए निवेश की चुनौती, चौथा, पश्चिमी देशों से प्रभावित अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधारों की कमी तथा पांचवा, विश्व भर में फैली खाद्य असुरक्षा।

            कोविड-19 से उत्पन्न हुई समस्याएं, जलवायु परिवर्तन तथा हरित ऊर्जा जैसे बिंदुओं पर भारत ने G-20 नेतृत्व हेतु अपनी तैयारी लगभग पूर्ण कर लिया है। जिसके अंतर्गत सस्ते दवाइयों तथा इंजेक्शन, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग तथा संचार एवं तकनीकी के बल पर खाद्यान्न संकट को हल करने जैसे बिंदुओं पर भारत अपने योगदान हेतु तैयार है। वर्तमान परिस्थितियों में भारत को G-20 के तमाम छोटे देशों हेतु वैश्विक अनुदान राशि भी जुटाने की जरूरत पड़ेगी।

भारत, ब्राज़ील, साउथ अफ्रीका फोरम के तीनों देश क्रम से अगले 3 वर्षों तक जी-20 की अध्यक्षता करेंगे। ऐसे में आईबीएसए फोरम 3 वर्षों की कार्य योजना बनाकर G-20 देशों हेतु एक अधिक रणनीतिक कार योजना के साथ आगे बढ़ सकता है। भारत ने विगत वर्षों में जिस तरह से वैश्विक कूटनीति में अपनी धाक जमाई है ऐसे में जी-20 की अध्यक्षता पाना वैश्विक क्रम में भारत को उच्चतम बिंदुओं पर स्थापित करने हेतु एक बहुत ही सामायिक अवसर है। जिसे मोदी के वैश्विक प्रभाव एवं एस जयशंकर के कूटनीतिक अनुभव से अभूतपूर्व सफलता मिलना तय है।

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