वैदिक धर्म की सच्चाइयों से अनभिज्ञ और ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के आलोचक थे गांधीजी

गांधीजी को इस्लाम को समझने के लिए जितना समय मिला उतना अपने वैदिक धर्म को समझने के लिए शायद उन्हें समय नहीं मिला और न उन्होंने उसे समझने में रुचि ली । यही कारण रहा कि वेद में इतनी रुचि नहीं थी जितनी कुरान और बाइबिल में थी। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ जैसे पवित्र ग्रंथ की भी आलोचना करने से हिचक नहीं दिखाई गांधीजी ने । यह सच है कि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में महर्षि दयानंद जी ने उन सारे सारे मिथ्या पन्थों , तथ्यों और कथ्यों को हमारे सामने रखने में सफलता प्राप्त की जिनके कारण मानवता का अहित हो रहा था या वह पथभ्रष्ट और धर्म भ्रष्ट हो रही थी । इसके विषय में गांधीजी से अपेक्षा की जा सकती थी कि वह महर्षि दयानंद के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझते , अपनाते और उसके आधार पर ‘सत्यार्थ प्रकाश ‘ जैसे अमरग्रंथ की सच्चाईयों पर अपना चिंतन प्रस्तुत करते , परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। महर्षि दयानंद और उनके ‘सत्यार्थ प्रकाश ‘ में गांधीजी की कोई रुचि न होने के कारण ही उन्होंने आर्य समाज जैसी देशभक्त संस्था से पैदा हुए किसी भी क्रांतिकारी को कभी स्वतंत्रता सैनानी नहीं माना , उन्हें वे उग्रवादी व आतंकवादी ही मानते रहे। यही कारण रहा कि जब स्वामी श्रद्धानंद जी या उन जैसे किसी भी क्रांतिकारी की हत्या किसी मुस्लिम ने की तो गांधीजी ने हत्यारे का ही पक्ष लिया। यह बिल्कुल वैसे ही था जैसे आज उनकी कांग्रेस या अन्य गांधीवादी धर्मनिरपेक्ष दल शरजील और शाहीन बाग के साथ खड़े हैं ।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने अपने अखब़ार ‘यंग इंडिया’ में 29 मई 1920 में लिखा है, “मेरे दिल में दयानंद सरस्वती के लिए भारी सम्मान है. मुझे ऐसा लगता है कि उन्होंने हिन्दू समाज की बहुत भारी सेवा की है लेकिन उन्होंने धर्म को बेहद तंग बना दिया है. जब मैं यरवदा जेल में आराम फरमा रहा था तब मैंने आर्य समाजियों की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ा. मैंने इतने बड़े रिफार्मर की इससे अधिक निराशाजनक किताब कोई नहीं पढ़ी. इसमें स्वामी जी ने न जानते हुए जैन धर्म, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म और स्वयं हिन्दू धर्म को ग़लत रूप से प्रस्तुत किया है. जिसको इन धर्मो का ज़रा सा भी ज्ञान है वह समझ जायेगा कि क्या हकीक़त है. स्वामी जी ने धर्म को बेहद तंग बना दिया. शायेद यही वजह है कि विरोधाभास के चलते ही आर्य समाजी विघटित हो रहे हैं एवं आपस में ख़ूब लड़ रहे हैं.”
‘सत्यार्थ प्रकाश’ के प्रति गांधी जी के ऐसे विचारों के कारण ही ने करांची में आयोजित मुस्लिम लीग के अधिवेशन में ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की आलोचना करते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी ।सिंध मंत्रिमंडल ने फरवरी 1944 में मुस्लिम लीग के ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पर प्रतिबंध लगवाने के प्रस्ताव को अपनी मान्यता प्रदान कर दी । तब इस सारी कार्यवाही के विरुद्ध आर्य समाज और हिंदू महासभा मिलकर उठ खड़े हुए थे , लेकिन कांग्रेसियों को उस समय सांप सूंघ गया था।
क्रांतिवीर सावरकर जी ने उस समय स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यदि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ को यदि सिंध में प्रतिबंधित किया जाता है तो कुरान को सारे देश में कांग्रेसी सरकारों के वाले प्रदेशों में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। भाई परमानंद जी ने इस विषय में हिन्दू महासभा की ओर से स्पष्ट कर दिया था कि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पर प्रतिबंध लगाया जाना संपूर्ण हिंदू समाज का अपमान है।
भाई परमानंद ने इस प्रश्न को केंद्रीय धारा सभा में भी उठाया कि सिंध सरकार का उक्त निर्णय अन्यायपूर्ण है ! जब भाई परमानंद के स्थगन प्रस्ताव पर बहस हो रही थी, तो कांग्रेसी नेता अपनी ढुल-मुल नीति के कारण वहाँ से कन्नी काट गए ! यद्यपि यह प्रस्ताव पारित न हो सका, किन्तु इससे लोगों तथा भारत सरकार का ध्यान इस ओर अवश्य आकर्षित हुआ।
जिन गांधी जी के ‘सत्यार्थ प्रकाश’ जैसे ग्रंथ के विषय में ऐसे विचार हों और उन्हें इस बात का दुख रहा हो कि स्वामी दयानंद जी ने इस ग्रंथ में कुरान और बाइबल पर आक्षेप कर गलती की , उन गांधीजी की देशद्रोही , धर्मद्रोही व संस्कृतिद्रोही कांग्रेस से आप क्या अपेक्षा कर सकते हैं ? अपने विचारों से अवश्य अवगत कराएं । 

डॉ राकेश कुमार आर्य

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