गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा।

आज के इस आधुनिक युग में हमारी युवा पीढ़ी स्वयं को हर तरफ तनाव, अवसाद व अकेलेपन से घिरी हुई महसूस करती है। अवसाद, तनाव व अकेलेपन से आज भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में आत्महत्या के मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिल रही है और यह बहुत ही संवेदनशील होने के साथ ही अत्यंत चिंताजनक भी है। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2021 में दुनियाभर में आठ लाख लोगों ने आत्‍महत्‍या की और हमारे देश में 1,64,033 ने आत्‍महत्‍या करके अपनी जान गंवाई। आंकड़े बताते हैं कि अब भी दुनियाभर में हर साल आत्‍महत्‍या से लगभग 10 लाख लोग जान गंवाते हैं, जो युद्ध या अन्‍य हिंसक मौतों का लगभग 50 प्रतिशत है। सच तो यह है कि आज के समय में आत्महत्या एक प्रकार से महामारी का रूप धारण करती चली जा रही है। आखिर इसके पीछे कारण क्या हैं ? तो जानकारी देना चाहूंगा कि आज टीवी व मोबाइल संस्कृति भी इसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार है। टीवी और मोबाइल संस्कृति ने हमारे आपसी संवाद को बहुत कम कर दिया है और वर्चुअल दुनिया में हम खोये रहते हैं। आज न तो माता पिता, अभिभावकों, रिश्तेदारों के पास अपने बच्चों, सगे-संबंधियों के लिए समय बचा है और न ही हमारी युवा पीढ़ी के पास। सभी अपने आप में व्यस्त हैं। कम्प्यूटर, इंटरनेट, व्हाट्स एप, इंस्टाग्राम, फेसबुक, ट्विटर संस्कृति ने हमारी खेल संस्कृति को एक प्रकार से डस लिया है और किशोर और युवा वर्ग इनमें (इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग साइट आदि) में बहुत ही व्यस्त हैं। आज आपसी सहयोग, मेल मिलाप,टीम भावना, भाईचारा, आपसी सौहार्द विकसित करने वाले, शरीर में स्फूर्ति प्रदान करने वाले और खुशी-उत्साह बढ़ाने वाले खेल अब लगातार विलुप्त होते चले जा रहे हैं‌। शायद यही वजह और कारण भी है कि आज के इस आधुनिक युग में ना तो बाहरी रिश्तों में ही सुकून नजर आता है और ना ही ना घर-परिवार के रिश्तों में शांति और सुकून ही नजर आते हैं।  आपसी दोस्ती व, रिश्तों -नातों और आपसी संबंधों का सुगठित ताना-बाना अब लगातार उलझता नजर आ रहा है। कल तक जो संबल और सहारा हुआ करते थे आज वे बोझ और बेमानी लगने लगे हैं। आज हम अपने अभिभावकों, माता पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, काका, ताऊ, फूंका,बुआ, मौसी किसी से कोई बात तक साझा नहीं करते, ना ही पल दो पल उनके साथ बिताते हैं। एक जनरेशन गैप हमारे में पैदा हो चुका है। परिवार भी आज संयुक्त नहीं एकल हो गये हैं। बहरहाल, शायद यही कारण हैं कि आज बहुत से युवा आत्महत्या जैसे पाप की ओर अग्रसर हो रहे हैं। आज युवा बिखरा हुआ है लेकिन समाधान हमारे भीतर ही है। क्या आत्महत्या किसी भी समस्या का, परेशानी का, दुख तकलीफ़ का हल है ? नहीं कदापि नहीं। आत्महत्या कभी भी किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता है। आत्महत्या बुजदिली है,पाप है। ईश्वर ने हमें यह जीवन जीने के लिए दिया है न कि स्वयं को समाप्त करने के लिए। समस्याएं तो जीवन में आती ही रहती हैं। जीवन कोई फूलों की सेज नहीं है, यहां पल पल संघर्ष हैं, दुख हैं, तकलीफ़ हैं, परेशानी हैं लेकिन हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जीवन में समय हमेशा एक सा नहीं रहता है। यहां पाठकों को यह कहना चाहूंगा कि जीवन में कभी दुख हैं तो कभी सुख की छाया है। हर आत्महत्या करने वाले को एक बार, सिर्फ एक बार यह जरूर ही सोचना चाहिए कि क्या उसकी जिंदगी सिर्फ उसकी ही है। इस जिंदगी पर कितने लोगों का कितना-कितना हक है क्या उसे इसके बारे में पता है? क्या वह जानता है कि उसकी मौत के बाद उसका परिवार, दोस्त, रिश्तेदार, करीबी लोग कितनी-कितनी मौत मरेंगे ? उनको कितना दुख और तकलीफ होगी ? आत्महत्या से क्या कोई भी समस्या हल हो जाती है ? कभी नहीं, आत्महत्या से कभी भी कोई भी समस्या हल नहीं होती है।हमें कोई हक नहीं उस जिंदगी को समाप्त करने का जिस पर इतने सारे लोगों का अधिकार है। ईश्वर ने हमें सकारात्मक ऊर्जा के साथ यह जीवन जीने के लिए दिया है, हम कर्म करते रहें और आगे बढ़ते रहें। संघर्ष तो जीवन का आभूषण है, यही हमें जीवन को जीना सिखाता है। संघर्ष बिना जीवन का कोई भी आनंद या मजा नहीं है। संघर्ष हमें प्रेरणा प्रदान करता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज लोगों की तेजी से बदलती जीवनशैली, रहन-सहन और भौतिक वस्तुओं के प्रति अत्यधिक आकर्षण, पारिवारिक विघटन और बढ़ती बेरोजगारी और धन-दौलत को ही सर्वस्व समझने की प्रवृत्ति के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं।बहरहाल,जानकारी देना चाहूंगा कि आत्‍महत्‍या के प्रति जागरूक करने के लिए दुनियाभर में हर साल 10 सितंबर को विश्‍व आत्‍महत्‍या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि आत्महत्या के मामलों में युवा वर्ग के आंकड़े चौंकाने वाले हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) के अनुसार हर सेकंड कोई ना कोई व्यक्ति ख़ुदकुशी करने की कोशिश करता है, और हर 40 सेकंड में कोई ना कोई व्यक्ति आत्‍महत्‍या करता है। इस तरह दुनियाभर में हर साल तकरीबन 10 लाख़ लोग आत्‍महत्‍या कर लेते हैं। स्टेनलेस हाल प्रसिद्ध मनोविज्ञानी ने यह बात कही है कि ‘किशोरावस्था बड़े ही संघर्ष, तूफान व वेग की अवस्था है।’ सच तो यह है कि युवावस्था एक प्रकार से संक्रमण काल है, जिसमें युवाओं को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। खासतौर से कॅरियर, जॉब, रिश्ते, खुद की इच्छाएं, व्यक्तिगत समस्याएं जैसे लव अफेयर, मैरिज, सैटलमेंट, पढ़ाई आदि। आज युवा वर्ग बेरोजगारी के बारे में सोचता है कि उसका क्या होगा और क्या नहीं ?भविष्य के प्रति उसकी अनिश्चितता बढ़ जाती है। वह मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होता है और अपरिपक्वता के कारण कई बार उसे बहुत सी परेशानियां आती हैं, जिससे वह डिप्रेशन, एंग्जाइटी, सायकोसिस, पर्सनालिटी डिसऑर्डर का शिकार हो जाता है। आज का युवा पारिवारिक अपेक्षाओं के बोझ तले दबा है, वह समस्याओं के संदर्भ में संवाद नहीं करता है। परिवार को भी युवा वर्ग से बहुत सी अपेक्षाएं होती हैं। अभिभावक युवाओं की तुलना भी करते हैं और युवा डिप्रेशन में आ जाते हैं। आज के समय में युवाओं पर पढ़ाई का बहुत बड़ा दबाव है। आज हमारे देश की संस्कृति, परंपरा, नैतिक मूल्यों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है, हमारी संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव गहरा चुका है।नैतिक मूल्यों में गिरावट, परिवार का टूटना, अकेलापन धीर धीरे हमारे युवाओं को आत्महत्या की तरफ प्रेरित करता है। नशा भी एक बड़ा कारण बनता है आत्महत्या का। इसलिए युवाओं को नशे से बचाने की जरूरत है।आज की जीवनशैली तनावपूर्ण हो गई है। तनाव के कारण युवा वर्ग नशे की ओर अग्रसर होने लगता है और वह सोचता है कि नशे से उसका तनाव कम हो जाएगा लेकिन यह ठीक नहीं है क्यों कि नशा तो आदमी की बर्बादी का कारण बनता है। यह हमारे शरीर, धन, समय, पारिवारिक प्रतिष्ठा को बर्बाद कर देता है। हमें क्राइम की ओर, लड़ाई झगड़ों की ओर बढ़ाने का काम करता है। नशा नाश का प्रमुख कारण है। आज लोगों के पास काम की अधिकता है और वे समुचित रूप से विश्राम नहीं कर पा रहे हैं। समय होते हुए भी समय की कमी है। हर कोई आलतू फालतू में ही व्यस्त नजर आता है। सोशल नेटवर्किंग साइटस ने हमारी युवा पीढ़ी को बहुत व्यस्त कर दिया है और यह हमारे लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो रहा है। वर्चस्व संवाद में हमारे युवाओं को आनंद आता है लेकिन घर में बैठे सदस्यों से बात तक भी, संवाद तक भी हम नहीं करना चाहते हैं। आपसी पारिवारिक कलह, बेरोज़गारी, तलाक, प्रेम में विफलता, गरीबी, मानसिक व शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य आदि के कारण भी लोगों को लगता है कि आत्‍महत्‍या के अलावा कोई विकल्‍प ही नहीं बचा है। पहले की भांति आज किसी में भी सहनशक्ति नहीं बची है, सादा जीवन और उच्च विचार की भावना जैसे आज समाप्त सी हो गई है। पहले के जमाने में सीमित संसाधनों में भी लोग खुशी महसूस करते थे, लेकिन आज उदारीकरण और टेक्नोलॉजी के इस युग ने आदमी को भौतिकवादी या पदार्थ के प्रति कहीं अधिक आसक्त बना दिया है। आज भौतिकवादी युग में हम जी रहे हैं और जीवन मूल्यों से हमें कोई लेना देना नहीं रह गया है। हम पदार्थ में खुशियां महसूस करते हैं, हमें धन,पद, प्रतिष्ठा की ही लालसा है। तेजी से एक साथ सब कुछ हासिल करने की लालसा हम सभी के भीतर लगातार तीव्रतर होती चली जा रही है, संयम, धैर्य, सहनशक्ति का ह्वास आज हमारे में से हो चुका है। हम पदार्थ के वशीभूत हो गये हैं और आध्यात्मिकता हमारे में से धीरे धीरे नदारद होती चली जा रही है, जबकि हमारी सोच की दिशा यह होनी चाहिए कि मेहनत, सकारात्मक सोच ईमानदारी और लगन से सब कुछ हासिल करना संभव है बशर्ते कि हमारे अंदर धैर्य बना रहे, संयम बना रहे, लेकिन यह विडंबना ही है कि आज समय के साथ हमारी सहनशक्ति और समझदारी विलुप्त होती चली जा रही है। आज हर तरफ गला काट प्रतिस्पर्धा जन्म ले रही हैं। शिक्षण का क्षेत्र हो या कोई भी क्षेत्र भविष्य संवारने की सभी को चिंता है।भारत में नई शिक्षा नीति की घोषणा बहुत उम्मीदों आशाओं के साथ की गई है। यह समझा गया है कि नई शिक्षा नीति रोजगारपरक होगी, लेकिन भारत का नया शिक्षण ढांचा प्रतियोगी ढांचा बन गया है। कोचिंग सेंटरों, ट्यूशन सेंटरों की आज जित देखो तित बहार ही बहार है। शिक्षा का मतलब आज सिर्फ और सिर्फ रोजगार से ही रह गया है। शिक्षा का काम व्यवहार में परिवर्तन लाना है,अच्छे सुशिक्षित नागरिकों को तैयार करना है न कि सभी को सरकारी रोजगार प्रदान करना। एक शिक्षित व्यक्ति जरूरी नहीं है कि सिर्फ और सिर्फ सरकारी नौकरी ही करें, वह शिक्षा ग्रहण कर कोई भी रोजगार अपना सकता है और अपने जीवन को सफल बना सकता है। युवा पीढ़ी यह सोचती है कि सरकारी नौकरी नहीं लगी तो उसका भविष्य ही खराब हो गया, लेकिन युवा वर्ग का यह सोचना ठीक नहीं है। इस दुनिया जहां में किसी भी व्यक्ति के पास अवसरों की कोई कमी नहीं है। आदमी यदि चाहे तो वह कुछ भी करके अपने जीवन को सफल बना सकता है। जरूरत इस बात की है कि हमारी सोच हमेशा सकारात्मक हो, उच्च हो, अच्छी हो। यह बहुत ही दुखद है कि आज देश में 6 बड़े राज्य ऐसे हैं जहां नौनिहालों में खुदकुशियों की दर लगातार बढ़ती जा रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि आज महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तामिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा और राजस्थान ऐसे हैं जो ऐसे नौनिहाल छात्रों की आत्महत्याओं के मामले में शिखर पर हैं। बहरहाल, आत्महत्या रोकने के लिए हमें सबसे जरूरी यह है कि हम ज्यादा से ज्यादा आपसी संवाद करें, खेलों की ओर मुड़े, अपनी भावनाओं को अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, मित्रों के साथ व्यक्त करें, शेयर करें। हमें कोई दिक्कत या परेशानी आए तो हम उन्हें दूसरों को बताएं, तनाव और अवसाद से बाहर निकलने के लिए मेडिटेशन, योगा, प्राणायाम करें। प्रकृति के सानिध्य में अपना जीवन बिताने की कोशिश करें। छोटी छोटी चीजों में खुशियां ढ़ूढ़ने का प्रयास करें। सकारात्मक सोच रखें, ईश्वर और मेहनत में विश्वास रखें। नशे से व नकारात्मक लोगों से दूर रहें। संघर्ष ही जीवन है यह स्वीकार करें। समस्याओं, दुखों, तकलीफों से भागे नहीं अपितु परिवार, दोस्तों के साथ, गुरू के साथ मिल-बैठकर उनका समाधान तलाशें। सादा जीवन उच्च विचार को अपनाएं। आध्यात्मिक रहें। नकारात्मक ऊर्जा, नकारात्मक विचारों को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दें। पशु पक्षियों से, प्रकृति से प्यार करें। नफ़रत, घृणा के विचारों से हमेशा बचें। अधिकाधिक अच्छी पुस्तकें पढ़ें। महान् विचारकों को पढ़ें, स्वयं को हमेशा मोटिवेट करें। पौष्टिक व संतुलित भोजन के साथ पर्याप्त आराम करें। खुद को हमेशा प्रेरित और प्रोत्साहित करें। नयी रूचियां पैदा करें।ड्रग्स और अल्कोहल से बचें क्योंकि वे हमारे आवेगों को बढ़ाते हैं और नकारात्मक भावनाओं को ट्रिगर करते हैं। खेल के मैदानों की ओर मुड़े। वर्चुअल दुनिया से ही हमेशा न चिपके रहें। पर्यटन स्थलों पर जाएं, प्रकृति में बहुत सुन्दरता बिखरी हुई है, इसका भरपूर आनंद लें।इस बात का ध्यान रखें कि समस्याएं अस्थायी होती हैं, लेकिन आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है और न ही कभी है। हमेशा धैर्य और संयम रखें और परिस्थितियों के बदलने का इंतजार करें। समय हाथों की पांचों उंगलियों की तरह हमेशा एक सा नहीं रहता है। अपनी इच्छाशक्ति और साहस को मजबूत करने का प्रयास करें, मेहनत में विश्वास करें, शार्टकट में नहीं। अच्छा म्यूजिक सुनें। जीवन को बोझ न समझें, जीवन को ईश्वर की नैमत समझें। अंत में इन्हीं शब्दों के साथ लेखनी को विराम देना चाहूंगा कि -‘ आज नहीं तो कल निकलेगा,अर्जुन के तीर सा सध,मरुस्थल से भी जल निकलेगा।मेहनत कर , पौधों को पानी दे,बंजर जमीन से भी फल निकलेगा।ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,फौलाद का भी बल निकलेगा।जिंदा रख, दिल में उम्मीदों को,गरल के समंदर से भी गंगाजल निकलेगा।कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,जो हैं आज थमा थमा सा, चल निकलेगा।’ जय जय।

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