झुकी तो हया हो गई
उठी तो दुआ हो गई।
बढ़ी इतनी दीवानगी
मुहब्बत सजा हो गई।
तुम्हारे बिना जिंदगी
बड़ी बेमज़ा हो गई।
अजाब मुस्कराहट तेरी
सरापा कज़ा हो गई।
हुई तुमसे क्या दोस्ती
ये दुनिया खफा हो गई।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।