पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई
पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई
सुनते हैं नमी आँख में उनके भी आ गई।
मैं आईने के सामने पहुँची जिस घडी
मेरी बुराई साफ़ नज़र मुझको आ गई।
एक मैकदा सा बंद था उसकी निगाह में
मदहोश कर गई मुझे बेखुद बना गई।
पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई
पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई
सुनते हैं नमी आँख में उनके भी आ गई।
मैं आईने के सामने पहुँची जिस घडी
मेरी बुराई साफ़ नज़र मुझको आ गई।
एक मैकदा सा बंद था उसकी निगाह में
मदहोश कर गई मुझे बेखुद बना गई।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।