10 जनपथ जाओ,अपनी मांगें मनवाओ

आर.एस.शर्मा ‘नागेश’

भारतवासियों के लिए महात्मा गांधी का व्यक्तित्व, नाम और काम सभी ही भूलने लायक नहीं हैं क्योंकि उन्होंने जीवन पर्यन्त जो भी किया न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व के लिए भी सराहनीय साबित हुआ। यह बात दूसरी है कि उन्हें लंगोटी और धोती बहुत पसंद थी। उनकी नकल करने वाले उनके कुछ सिद्धांत तो आज मानते हैं परन्तु ज्यादातर नहीं। हां अभी कुछ समय पहले उत्तराखंड की एक शख्सियत ने महात्मा गांधी के कुछ उसूलों को अपनाने की कोशिश की परन्तु चारों खाने चित्त हो गया। नकल में भी अक्ल की जरुरत होती है, यह बात उत्तराखंड के इस शख्स के भेजे में नहीं उतरी थी। महात्मा गांधी ने धोती और लंगोटी पहनी और उत्तराखंड के इस शख्स ने लंगोटी के साथ भगवा वस्त्र पहना। योगी ने सफलता की पहली सीढ़ी तो चढ़ी और जोश में सीधा आखिरी सीढ़ी चढ़ने के लिए छलांग लगा दी नतीजा जो होना था वह सबके सामने आ गया।

सर्वोदयी नेता बने अन्ना हजारे ने भी कुछ-कुछ ऐसा ही किया। पहले किया या बाद में फिर करना पड़ेगा, प्रश्न यह नहीं है। प्रश्न यह है कि जो किया उसमें समझदारी कम थी और जोश ज्यादा। एक जंतर-मंतर पर बैठ जाता है तो दूसरा रामलीला मैदान में। सैकड़ों-हजारों की तादाद में अक्सर सरकारी विरोध करने वाले जंतर-मंतर पर बैठे नजर आते हैं, कुछ तो स्थायी रुप से वहां बस से गए हैं और कुछ आते-जाते रहते हैं परन्त ु सरकार का टालू मिक्सचर ऐसा जबरदस्त है जिसको पीने के बाद बड़े-बड़ों के सपने चकनाचूर हो जाते हैं।

शायद उत्तराखांडी शख्स को यह रहस्य पता था इसलिए उसने अपने नाम राशि वाले मैदान में बैठकर बड़े-बड़े धाकड़ और नामी-गरामी राजनीतिज्ञों के गिरेबान पर हाथ डालने की जुर्रत कर डाली। यह शख्स यह भूल गए कि सामने वाला पक्ष दिखने में तो बड़ा कमजोर लगता है परन्तु उसके पास दो-चार ऐसे भी हैं जो बड़े-बड़ों की हवा निकालने में पल भर भी देर नहीं लगाते और इस उत्तराखंडी के साथ वही हुआ। धरने प्रदर्शन के कुछ घंटों बाद ही सजा-धजा और हजारों की भीड़-भड़क्के वाला ऐतिहासिक मैदान रेगिस्तान बना दिया गया। कोई सिर पर पैर रखकर भागा तो कोई धीर-गंभीर, वीर मानव नारी वस्त्र पहनकर भागने में अपनी खैर समझ बैठा।

मुद्दा लगभग एक ही था परन्तु मुद्दई दो थे। सरकार के सामने बड़ी भीषण समस्या थी कि क्या करे? एक हजारे नामक शख्स को टालू मिक्सचर ऐसा पिलाया कि वह आज तक सरकार के इस मिश्रण को बुरी तरह से झेलने में लगा हुआ है। कर देंगे, साथ बैठेंगे, हमारे अपने हो, हम आपसे अलग नहीं, हम भी चाहते हैं भ्रष्टाचार मिट जाए इत्यादि-इत्यादि के नाम पर लोकपाल बिल बनाने के आश्वासनों की रोटी सेंकने में लगा दिए गए। महीनो गुजरने के बाद भी न तवा गरम हुआ और न रोटी सिकी। ‘9 दिन में चले अढ़ाई कोस’ कहावत सिद्ध हो गई। जग में किरकिरी अलग से हुई, दूसरे का मैदान ही रेगिस्तान बना दिया।

महात्मा गांधी बनना बड़ा आसान है परन्तु उसके नक्शे कदम पर चलना आसान नहीं। गांधी जी जानते थे कि उनको अपना मकसद पूरा करने के लिए क्या करना चाहिए? परन्तु आजकल के नासमझ बच्चे इस रहस्य को जानने की इच्छा भी नहीं रखते। हां, नकल करने में जरुर शेर बने हुए हैं।

समय, काल और परिस्थिति का तकाजा अवश्य देखना चाहिए। आज भारतवर्ष में यदि कुछ भी सरकार से प्राप्त करना है तो जंतर-मंतर, इंडिया गेट, रामलीला मैदान, लालकिला, राजघाट इत्यादि पर बैठने से कुछ मिलने वाला नहीं। अरे! अगर कुछ लेना हो तो वहां जाओ जहां सरकार के सभी संतरी, मंत्री, छोटे-बड़े सब जाते हैं। इधर-उधर भटकने का क्या फायदा? आज मंत्री पद चाहिए तो नेता जी 10 जनपथ भागते हैं, किसी को मुख्यमंत्री बनना है, राज्यपाल बनना है तो 10 जनपथ भागता है, ऐसे में जंतर-मंतर, रामलीला ग्रांउड में बैठने से सिवाय अपमान के कुछ नहीं मिलने वाला। खबर मिली है कि अब अन्ना हजारे सोनिया को मनाने जा रहे हैं। यदि यही काम पहले कर लिया होता तो लोकपाल बिल कभी का बन गया होता। बाबा रामदेव जी ने यदि रामलीला मैदान के बदले 10 जनपथ की शरण ली होती तो आज उनकी वाह-वाह हो रही होती। वह तो केवल विदेशों में सड़ रहे 400 लाख करोड ़ रुपए के काले धन की देश में वापिस और उसे राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने का रोना रो रहे हैं, यदि वह 10 जनपथ गए होते तो उन्हें विदेशी काले धन के साथ-साथ देश में सड़ रहे कुछ सौ लाख करोड़ अधिक की जानकारी भी आसानी से मिल जाती क्योंकि तब नाम 10 जनपथ का होता। 10 जनपथ ऐसे में प्रधान बन जाता और सहयोग मांगने वाला गौण हो जाता। आज तो प्रधान बनने के लिए नेता लोग कुछ भी करने को तैयार हैं। ऐसे में अन्ना ह जारे हों या रामदेव या कोई अन्य जब तक 10 जनपथ को महत्व नहीं देंगे तब तक काम सफल होने वाले नहीं। अभी भी समय है आप भी संभलो और भटके हुओं को भी समझाओ।

2 COMMENTS

  1. वाह सुनील भाई जैसा लेख वैसी टिप्पणी, शुरू-शुरू में तो मैं समझ ही नहीं पाया की लेख का प्रयोजन क्या है, बाद में समझ में आया लेखक ने अपने मन की पीड़ा व्यंग्य के माध्यम से प्रदर्शित की है, अगर गौर किया जाए तो काफी सच्चाई छुपी है इसमें.

  2. श्री अन्ना हजारे और श्री स्वामी रामदेव जी के प्रयासों को किसी भी प्रकार से कम नहीं आँका जा सकता है.
    आजाद भारत में बहुत ही कम अवसर हुए है जब पुरे भारत में लोग एक मकसद के लिया एकत्र हुए है. आजादी के पहले से और आजादी के बाद से हमेशा से भ्रष्टाचार होता आया है, हो रहा है. यह दूसरा मौका (पहला १९७७ आपातकाल का समय) है की आम आदमी सरकार के खिलाफ पुरे देश में एकत्र हुआ है. कारण है तो स्वामी रामदेव जी और श्री अन्ना हजारे ही है.

    श्री गाँधी जी को भारत देश भले ही भूल जाय किन्तु पूरा विश्व कभी नहीं भूल पायेगा – कारण :- दुनिया में सबसे अमीर, सबसे शक्तिशाल्ली, सबसे ताकतवर, बलशाली, सबसे ज्यादा धार्मिक और आदर्शवान व्यक्ति भारतीय ही मने जाते थे. किन्तु श्री महात्मा गाँधी जी ने दुनिया की इस सोच को बदल दिया. अब भारत अहिंषा, दुबला पतला, कमजोर, लाठी का सहारा लेकर चलने वाले लोगो का प्रतीक बनकर रह गया.

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