साक्षरता के लक्ष्य को पाने में कितना सार्थक है आंगनबाड़ी?

भावना मिश्रा

देश में शिक्षा के महत्व को बढ़ाने के मकसद से शिक्षा का अधिकार कानून जब से लागू किया गया है, तब से इसके काफी सकारात्मक परिणाम मिले हैं। शिक्षा का स्तर सुधरा है वहीं गरीब छात्रों को भी अवसर प्रदान हुए हैं। कभी देश के मानचित्र पर बिहार एक ऐसे राज्य के रूप जाना जाता था जहां विकास नाममात्र की थी। शिक्षा के क्षेत्र में भी यह अन्य राज्यों के मुकाबले निचले पायदान पर रहता था। लेकिन आज स्थिती बदल चुकी है। राज्य सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसमें कोई दो राज्य नहीं कि बिहार में शिक्षा योजना को बढ़ावा देने में अन्य स्वरूप के साथ-साथ आंगनवाड़ी का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। जिसकी शुरूआत 30 साल पहले 2 अक्टूबर 1975 को की गयी थी। इसका उद्देश्य 0-5 वर्श तक के बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास करना ताकि प्राथमिक स्तर से ही उनमें शिक्षा का प्रसार हो और उन्हें उचित मार्गदर्शन मिल सके।

इस वक्त राय में करीब 80,211 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित है। हालांकि भारत सरकार द्वारा बिहार के लिए 91,968 आंगनबाड़ी स्वीकृत हैं। प्रत्येक केंद्र में तीन से छह वर्श तक के 40 बच्चे होते हैं। जिनमें अधिकांष गरीब परिवार के हैं। जहां उन्हें लिखने-पढ़ने के लिए स्लेट, पेंसिल मफ्त मुहैया कराई जाती है। इसके अतिरिक्त इन बच्चों को दोपहर में खाने के लिए खिचड़ी और चोखा दिया जाता है। जो सरकार की प्रायोजित योजना के द्वारा बच्चों के भोजन के लिए लागू है। खास बात यह है कि यहां बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं का भी विशेष ध्यान रखा जाता है और इसी अनुसार उन्हें सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। विशेष तौर पर दोपहर के खाने में पौष्टिकता को प्राथमिकता दी जाती है। इन केंद्रों की निगरानी के लिए बाल विकास परियोजना पदाधिकारी नियुक्त होता है। एक सीडीपीओ के अधीन 250 आंगनबाड़ी केंद्र होते हैं। आंगनबाड़ी के माध्यम से शिक्षा की योजना को बढ़ाने का सरकार का यह अनोखा तरीका काफी कामयाब होता नजर आ रहा है। मुज़फ्फरपुर जिले के कुढ़नी ब्लॉक अंतर्गत बसौली पंचायत के वार्ड संख्या चार में संचालित आंगनबाड़ी में 25 बच्चे योजना का लाभ उठा रहे हैं। इस वार्ड में अधिकतर ऐसे परिवार हैं जो आर्थिक और धार्मिक दोनों ही स्तर पर निचले पायदान पर हैं। दो वक्त की रोटी के लिए भी इन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है। कभी कभी हालात साथ नहीं देते हैं तो घर में चुल्हा तक नहीं जल पाता है। ऐसे में इनके बच्चों के पेट की आग बुझाने के लिए यही आंगनबाड़ी सहायक सिध्द हो रहा है। सेंटर की सेविका शकुंतला देवी और सहायिका पानवती देवी बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए सरकार की तरफ से उपलब्ध कराए गए सभी आवश्यकताओं की समय पर पूर्ति करने में तत्पर रहती हैं। यही कारण है कि इस सेंटर पर बच्चों को समय पर पोशाहार और टीकाकरण का इंतजाम कराया जाता है वहीं गर्भवती महिलाओं को भी सभी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं। गांव के एक अभिभावक मुनिया राम कहते हैं कि वह दिहाड़ी मजदूर हैं। जब काम मिल जाता है तो घर में चुल्हा जलता है नहीं तो कहीं से उधारी मांग कर वह अपने बच्चों को खिला देते हैं और स्वंय भूखे पेट सो जाते हैं। आंगनबाड़ी के कारण उनके बच्चों को दोपहर का खाना नसीब हो जाता है वहीं खेल खेल में वह षिक्षा भी प्राप्त कर रहे हैं।

हालांकि बिहार में जिन योजनाओं में सबसे अधिक भ्रष्टाचार पाया गया उनमें आंगनबाड़ी भी प्रमुख रहा है। लेकिन राय सरकार की ओर से इस संबंध में उठाए गए सख्त कदम के बाद इसमें काफी सुधार आया है। बिहार सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए उसके सोषल ऑडिट का जिम्मा महिला स्वयं सहायता समूह को सौंप रखा है। इसके माध्यम से आंगनबाड़ी केंद्रों में सही तरीके से टेक होम राशन मिल रहा है या नहीं, आंगनबाड़ी सेविका नियमित रूप से बच्चों को पढ़ा रही है या नहीं, उन्हें जो डयूटी सौंपी गई है उसका उचित ढ़ंग से पालन हो रहा है या नहीं, इन सब पर नजर रखी जा सकेगी। शुरूआत में यह योजना राजधानी पटना के मनेर ब्लॉक स्थित तीन पंचायतों शेरपुर, व्यापुर और सादिकपुर के आंगनबाड़ी केंद्रों में की गई है। जिसे बाद में पूरे राय में लागू करने का फैसला किया गया। सोशल ऑडिट की जिम्मेदारी महिला विकास निगम के अंतर्गत गठित 42 हजार स्वयं सहायता समूहों को दी गयी। जिसके बाद राय में चल रहे जीविका प्रोजेक्ट के तहत गठित महिला स्वंय सहायता समूह और महिला सामाख्या को भी इसके ऑडिट की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। पिछले कुछ वर्षों में राय सरकार ने यह महसूस किया है कि प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्रों पर सरकार की ओर से हजारों रूपए खर्च करने के बावजूद इसका समुचित परिणाम नहीं आ रहा है। ब्लॉक स्तर से लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार तक आंगनबाड़ी केंद्रों में हो रही धांधलियों की षिकायतें बढ़ती ही जा रही थीं। यह शिकायत कितना उचित है यह तो जांच का विशय है। लेकिन इसकी वास्तविकता का अंदाजा अपने आसपास संचालित आंगनबाड़ी केंद्र को देखकर लगाना मुश्किल नहीं है। ऐसे में राय सरकार का फैसला शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर लगने वाले भ्रष्टाचार के दीमक से पाक साफ अवश्‍य रहेगा।(चरखा फीचर्स)

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