भगवान, इंसान व हैवानों से रूबरू उत्तराखंड त्रासदी

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khernath1देश का उत्तराखंड राज्य इन दिनों भारतवर्ष में अब तक हुई सबसे भयंकर प्रलय रूपी प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है। हालांकि प्रशासन व बचाव दलों द्वारा मृतकों तथा लापता लोगों के बारे में कुछ आंकड़े पेश करने की कोशिश की जा रही है। परंतु हक़ीक़त में सही आंकड़ों तक पहुंच पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव भी है। इसका कारण जहां 16 जून को आई प्रलय रूपी बाढ़, तूफ़ान तथा बारिश हैं वहीं इसके बाद बचाव कार्यों के दौरान पुनः मौसम का बिगडऩा भी है। और इससे भी अफसोसनाक यह कि इसी क्षेत्र में एक बार भूकंप ने भी राहत कार्यों के दौरान अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर दिखाया है। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार इस क्षेत्र में जून माह में प्राय: 70 मिलीमीटर तक वर्षा रिकॉर्ड की जाती है। परंतु इन दिनों इस इलाके में 300 मिलीमीटर से अधिक वर्षा रिकॉर्ड की जा चुकी है।

इस प्राकृतिक त्रासदी को देश में कुछ वर्षों पूर्व आई सुनामी के बाद अब तक की सबसे बड़ी प्राकृतिक त्रासदी माना जा रहा है। इस प्रलयकारी हादसे का सबसे दर्दनाक पहलू यह भी है कि विपरीत परिस्थितियों तथा बार-बार मौसम के बिगडऩे के चलते तथा क्षेत्र के भौगोलिक हालात के कारण यहां राहत पहुंचाने में अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। राहत व बचाव कार्यों में हो रही परेशानी व इसमें आने वाले संकट का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तक बचाव कार्य में लगे दो हेलीकॉप्टर राहत कार्यों के दौरान क्रैश हो चुके हैं तथा कई जवान अपनी जानें गंवा बैठे हैं। कहा जा सकता है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर,भगवान या ख़ुदा ने एक बार फिर अपना रौद्र रूप दिखला कर यह जताने की कोशिश की है कि सर्वशक्तिमान सत्ता पर सिर्फ और सिर्फ उसी का कब्ज़ा है और वही जब,जैसे और जहां चाहे अपने किसी भी रूप का प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्र है।

परंतु इस प्राकृतिक त्रासदी के बाद नाना प्रकार की थ्यौरी सामने आने लगी है। कुछ राजनीतिज्ञ व पर्यावरणविद इसका कारण विकास के नाम पर पहाड़ी क्षेत्रों में होने वाले खनन तथा नए बांधों के निर्माण को बता रहे हैं। जबकि कुछ लोगों को मत है कि तीर्थ यात्रियों की बेतहाशा बढ़ती संख्या तथा उनकी मौजूदगी के कारण बढ़ता रिहाईशी क्षेत्र, इसके लिए होने वाला निर्माण कार्य तथा बढ़ता प्रदूषण इसके लिए ज़िम्मेदार है। एक नेता तो इस हादसे को चीन की साज़िश बता रहा है। जबकि कुछ धर्मावलंबी लोगों का यह तर्क है कि गढ़वाल मंडल के श्रीनगर क्षेत्र में अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित धारा देवी के मंदिर को चूंकि इस त्रासदी से कुछ ही घंटे पहले हटा दिया गया था इसलिए देवी के प्रकोप के परिणामस्वरूप यह प्राकृतिक विपदा लोगों को झेलनी पड़ी। कोई कहता नज़र आ रहा है कि वाह रे भगवान शंकर का चमत्कार कि मुख्य केदारनाथ मंदिर व उसमें लटके घंटे को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा तो कोई कह रहा है कि यह कैसा चमत्कारी भगवान जिसने अपने मंदिर को तो बचा लिया परंतु अपने चारों ओर अपने भक्तों की लाशों का ढेर इकठ्ठा कर दिया।

अनेक मुसीबतज़दा यात्री यह कहते भी सुने गए कि इस हादसे के बाद तो उनका भगवान पर से विश्वास ही उठ गया है। परंतु मैं व्यक्तिगत रूप से इनमें से किसी भी तर्क को मानने को तैयार नहीं। इसका कारण यह है कि मेरा मानना है कि प्राकृतिक विपदा केवल पृथ्वी पर ही नहीं बल्कि ब्राह्मंड में मौजूद किसी भी ग्रह पर किसी भी समय किसी भी तीव्रता के साथ आ सकती है। यदि उत्तराखंड क्षेत्र में आई विपदा के कारण उपरोक्त मान भी लिए जाएं तो अभी पिछले दिनों सूर्य की सतह पर भयंकर आग बरसाता हुआ प्रचंड तूफान आया था। आखिर इसकी ज़िम्मेदारी किसे दी जाए? इसके कारण क्या हो सकते हैं? वहां किसने दखलअंदाज़ी की या पर्यावरण से छेड़छाड़ की अथवा किसी देवी या पीर को वहां से हटाया गया? ब्रह्मांड में ग्रहों के टुकड़े हो जाते हैं। बड़े से बड़े उल्कापिंड टूट कर बिखर जाते हैं। आसमान में तरह-तरह की तूफानी गतिविधियां देखी जाती हैं। आकाश में कई बार निर्धारित समय पर वैज्ञानिकों ने आतिशबाज़ी जैसे नज़ारे रिकॉर्ड किए जो हम जैसे साधारण लोगों ने भी कई बार देखे। लिहाज़ा इतनी बड़ी त्रासदी को छोटे-मोटे कारणों से जोड़ना मेरे विचार से कतई मुनासिब नहीं है। हां इतना ज़रूर कहा जा सकता कि पर्यावरण से छेड़छाड़,अत्यधिक खनन, पहाड़ों पर प्रकृति से छेड़छाड़ करना आदि ऐसी प्राकृतिक त्रासदी में मृतकों व घायलों की संख्या में इज़ाफा ज़रूर कर सकता है।

देखकर हर हाल में यह विश्वास करना पड़ेगा कि जीवन देने व जीवन लेने का अधिकार केवल उसी का है और वह जब और जहां चाहे व जिस सूरत में चाहे अपनी लीला दिखाकर कहीं भी कोई भी दृश्य प्रस्तुत कर सकता है। उत्तराखंड त्रासदी में भगवान ने जहां अपना तांडवरूपी दृश्य प्रस्तुत किया वहीं इसके बाद शुरु हुए राहत व बचाव कार्यों में लगे देश की सेना व आईटीबीपी जवानों ने हज़ारों प्रभावित लोगों को दुर्गम क्षेत्रों से निकाल कर इंसानियत का परिचय दिया। यहां तक कि इस दौरान कई जवानों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। सेनाध्यक्ष ने भी प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर राहत कार्यों में लगे जवानों में यह कहकर जोश भरने की कोशिश की कि अंतिम यात्री के फंसे होने तक बचाव कार्य जारी रहेगा। दो विशाल पर्वत श्रृखंलाओं के बीच 20 हज़ार से लेकर 22 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई तक केवल नीचे दिखाई देने वाली नदी की पतली सी नज़र आती रेखा के ऊपर राहत कार्यों के लिए हेलीकॉप्टर से उड़ान भरना वास्तव में बेहद जोखिम भरा कार्य है।

कल्पना की जा सकती है कि यदि इतनी गहरी खाई में उड़ान भरते समय हैलीकॉप्टर के समक्ष बादल का कोई टुकड़ा आ जाए तो पॉयलट भ्रमित हो कर अपनी दिशा बदल सकता है। और इसका परिणाम हेलीकॉप्टर क्रैश होने के सिवा और कुछ नहीं। परंतु हमारे साहसी जवानों ने अपने कर्तव्य निभाने के साथ-साथ अपनी जान पर खेलकर दूसरे लोगों को बचाने का बेहद जोखिम भरा जो कार्य अंजाम दिया है मानवता अथवा इंसानियत की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है? राहत कार्य में लगे हैलीकॉप्टर कई ऐसी जगहों पर भी उतारे गए जहां धरती ऊबड़-खाबड़ व ढलावदार थी। ऐसी जगहों पर कभी भी हेलाकॉप्टर नहीं उतारे गए। परंतु फर्ज़ और इंसानियत के जज़्बे से लबरेज़ हमारे जवानों ने अपनी जान पर खेलकर ऐसी दुर्गम जगहों पर भी हैलीकॉप्टर उतारे तथा राहत सामग्री प्रभावित लोगों तक पहुंचाने व उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले जाने जैसा मानवतापूर्ण कार्य अंजाम दिया। गोया इस त्रासदी में जहां खुदा ने अपनी खुदाई ताकत दिखाई वहीं बचाव व राहत कार्यों में लगे जवानों व स्थानीय नागरिकों ने इंसानियत का भी ज़बरदस्त परिचय दिया।

इस प्राकृतिक त्रासदी का एक तीसरा पहलू भी था। और वह था कुछ इंसान रूपी प्राणियों का हैवान-शैतान या राक्षस बन जाना। कुदरत के क़हर के बाद जहां सैन्यकर्मी व बचाव कार्य में लगे स्थानीय लोग मानवता का परिचय देते हुए परेशान हाल व त्रासदी के शिकार लोगों के सामने भगवान के रूप में नज़र आ रहे थे वहीं कईं लोग ऐसे भी थे जिन्होंने इस त्रासदी को अपनी अय्याशी, व्याभिचार, लूट, चोरी व डकैती के लिए शुभ अवसर के रूप में इस्तेमाल किया। सबसे ज़्यादा अफसोस की बात तो यह है कि इनमें अधिकांश लोग ऐसे पकड़े गए जो साधू वेशधारी थे। कई स्थानीय लोग भी हैवानियत के इन दुष्कर्मों में लगे हुए थे। उदाहरण के तौर पर राहत में लगे जवान जब एक साधू को बचाकर सुरक्षित स्थान पर लाए तो उसके कब्ज़े से लूटी गई एक करोड़ रुपये से भी अधिक की रकम जवानों ने बरामद की। ऐसे कई साधू वेशधारी सेना द्वारा बचाकर लाए गए जिनके पास से बड़ी मात्रा में नगद धनराशि तथा आभूषण आदि बरामद हुए।

किसी बाबा ने अपनी ढोलक में पैसे छुपा रखे थे तो किसी ने प्रसाद की गठरी के नाम पर धन छुपाया हुआ था। तो कई लोग अपने वस्त्रों में ही लूट के पैसों को लपेटे हुए थे। बाबा रूपी ऐसे ही एक अकेले व्यक्ति के पास से 83 लाख रुपये भी बरामद किए गए। हद तो यह है कि केदारनाथ मंदिर की तिजोरी व गुल्लक को भी इन्हीं साधू रूपी डाकुओं ने नहीं बख्शा। यह इसे भी लूट ले गए। केदारनाथ में यात्रियों की सुविधा के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा खोली गई शाखा भी ध्वस्त हो गई। इस बैंक में मौजूद पांच करोड़ रुपये स्थानीय लोगों व तथाकथित बाबाओं द्वारा लूट लिए गए। बात अगर केवल धन व आभूषण की लूट पर ही समाप्त हो जाती तो भी इन्हें धनलोभी कहकर क्षमा किया जा सकता था। परंतु इंसान रूपी इन हैवानों ने हैवानियत की इंतेहा तो उस समय कर डाली जब कि परेशानहाल व मुसीबतज़दा परदेसी यात्रियों की बहन-बेटियों की इज़्ज़त के साथ भी इन राक्षसों ने खिलवाड़ करना शुरु कर दिया। एक अविश्सनीय सी रिपोर्ट तो यहां तक सुनने को मिली कि किसी मृतक महिला के शरीर के साथ भी किसी राक्षसी प्रवृति के व्यक्ति ने बलात्कार किया।

गोया हम कह सकते हैं कि उत्तराखंड त्रासदी केवल एक त्रासदी मात्र नहीं थी बल्कि त्रासदी के बाद भी इसके कई पहलू सामने आए। इनमें जहां प्रकृति ने अपने सर्वशक्तिमान होने का एहसास और मज़बूत कराया वहीं बचाव कार्यों में लगे हमारे देश के जवान इंसानियत का भरपूर परिचय देते नज़र आए तो वहीं इस त्रासदी के तीसरे पक्ष के रूप में धर्म का पाखंड रचने वाले कई साधू वेशधारी तथा देवभूमि के निवासी कहलाने वाले कई स्थानीय नागरिक इस त्रासदी के बाद लोगों की मदद करना तो दूर उल्टे चोरी, डकैती, लूटमार, बलात्कार यहां तक कि मृतकों व मलवे से दबे लोगों के शवों की जेबों से पैसे निकालते दिखाई दिए।

 

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