गोहिंसा के विरुद्ध एक गीतात्मक-प्रतिवाद..

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अबला गैया हाय तुम्हारी है यह दुखद कहानी..

गिरीश पंकज

आलेख के साथ गीत. यानी ”गीतालेख”. गाय की व्यथा-कथा लिखना मुझ जैसे कुछ दीवाने किस्मके लेखकों का शगल भी कहा जासकता है, मैं यहाँ साफ़ कर देनाचाहता हूँ कि मैं कट्टर हिन्दू नहीं हूँ. एक नागरिक हूँ बस. संयोगवश हिन्दू हूँ. गाय का सवाल हिन्दुओं का सवाल नहीं है. मुझे लगता है, यह एक ज़रूरी काम है. यह किया जानाचाहिए. लेखक और कुछ करे, न करे, वातावरण बनाने का काम तो करता ही है. आज इस महादेश में रोज हजारों गायें कट रही है. उस देश में जहाँ गाय को माता कह कर पूजा जाता है..आज भी. कृष्ण-कन्हैया उर्फ़ गोपाल के नाम से पुकारे जाने वाले भगवान् गायों की सेवा करते हुए बड़े हुए थे. अनेक देवताओं से जुडी गो-कथाएं भी प्रचलित है. गाय को ले कर अनेक लोमहर्षक मिथक भी सुने जाते है. आश्चर्य की बात है,कि फिर भी हमारे देश का एक वर्ग गाय को लेकर निर्मम आचरण करता है. जो हिन्दू नहीं है, उनमे अब विवेक जाग रहा है. वे गो ह्त्या, या गो माँस से परहेज़ कर रहे हैं, वही बहुतेरे हिन्दू अपने आप को कुछ ज्यादा ही ”आधुनिक” समझ कर गाय की ह्त्या पर अपनी सहमति दर्शा देते है. जबकि मेरी नज़र में सही आधुनिक वह है, जो पूर्णतः अहिंसक है. मै तो किसी भी जीव की ह्त्या के विरुद्ध हूँ. गो वंश हो, चाहे अन्य कोई जानवर, या पक्षी,आदमी इतना भयंकर-माँस-चटोरा हो गया है, कि हिंसा इसके जीवन का सहज-हिस्सा बन गयी है. इसलिए उसको मुक्तकरना कठिन लगता है. फिर भी बात होनी चाहिए. हम तो आबाज़ लगायें. कभी तो कोई सुनेगा, राह पर आयेगा. दुःख तब होता है, जब कुछ हिन्दुओ का पाखण्ड देखता हूँ. ये नकली लोग गाय का दूध पीयेंगे. उसके गोबर और मूत्र से लाभ भी कमाएंगे, और एक दिन जब बेचारी गाय बाँझ हो जायेगी, बैल किसी काम के नहीं रहेंगे तो किसी कसाई को बेचने में भी संकोच नहीं करेंगे. पिछले दिनों पंढरपुर (महाराष्ट्र) के कुछ पुजारियों ने शर्मनाक हरकत की. जो गाय उन्हें दान में दी गयी थी, उन्हें कसाइयों को बेच दी. तो ये हाल है हमलोगों का.इस दोगले चरित्र पर कभी सुदीर्घ लेख भी लिखूंगा, बहरहाल, सुधी पाठक इस ”गीतालेख” को पढ़ें और प्रतिक्रया दें-

अबला गैया हाय तुम्हारी है यह दुखद कहानी..

अबला गैया हाय तुम्हारी है यह दुखद कहानी,

माँ कह कर भी कुछ लोगों, ने कदर न तेरी जानी..

कोई तुझको डंडा मारे, कोई बस दुत्कारे,

भूखी-प्यासी भटक रही है, तू तो द्वारे-द्वारे.

देख दुर्दशा तेरी मैया, बहे नैन से पानी.

अबला गैया हाय तुम्हारी है यह दुखद कहानी.

पीकर तेरा दूध यहाँ पर, जिसने ताकत पाई,

वही एक दिन पैसे खातिर, निकला निपट कसाई.

स्वारथ में अंधी दुनिया ने, बात कहाँ-कब मानी.

अबला गैया हाय तुम्हारी, है यह दुखद कहानी.

गो-सेवा का अर्थ यहाँ अब, केवल रूपया-पैसा,

इसीलिए कटवा देते सब, क्या गैया, क्या भैसा.

हिंसा से है लालधरा उफ़… धर्मग्रन्थ बेमानी.

अबला गैया हाय तुम्हारी है यह दुखद कहानी.

ऋषि-मुनियों ने कही कथाएं, गौ में देव समाए,

मगर ये अनपढ़ दुनिया इसका, मर्म समझ ना पाए.

कदम-कदम पर हैवानों की, शर्मनाक मनमानी..

अबला गैया हाय तुम्हारी है यह दुखद कहानी.

किसी जीव की हो ना हत्या, कैसी जीभ चटोरी,

खून बहा कर पूजा करते, उस पर है मुंहजोरी.

वाह रे हिन्दू पाखंडी तू, मूरख औ अभिमानी..

अबला गैया हाय तुम्हारी, है यह दुखद कहानी.

बहुत हो गया दिल्ली जागे, यह कानून बनाए,

धर्म-जात की आड़ में अब, गोवंश न काटने पाए.

करें न गौ से दूध-हरामी, काम करें कल्यानी..

8 COMMENTS

  1. Maharastra ke pujarion dwara ki gayee harakat koi nai baat nahi hai. Yah baat aab itihaas ban chuki hai ki doosare vaishwa yudh ke samay beaf ke liye jo gayen supply hoti thee unke main contractor generally upper caste hindus hote the.par saamne koi anya hoaa tha.Ek jamaane mein Dhanbad mein jo SPCA ke head the.unhone gayon ko Bangladesh(Us jamane mein East Pakistan) le jane wale vyaparion se bahut paisa kamaaya tha..Isi baat par ek Doctor ne unki beti se shaadi se inkaar kar diya tha. Aaj bhi gayon aur anya pasuon ki jo durdasaa bhaarat mein ha.utna kisi anya desh mein nahi hai.

  2. लघुरूप में ही सही लेकिन इस लेख में बहुत अच्छी बातें गिरीश पंकज जी ने कही और लिखी है इसके लिए मैं हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ !

    ख़बरों में बने रहने के लिए २-४ फोटो खिंचवाने वाले उन गौरक्षक झंडाबर्दारों को, इंजेक्शन लगा लगा कर दूध निकालने वाले पापी लोगों के खिलाफ भी मुहीम चलानी चाहिए!
    अव्वल तो ये हो की जो भी दोषी पाया जाए उसको इतनी सजा दी जाए की उसकी आने वाली पीढियां भी ऐसा काम करने के बारे में न सोचे! एक कठोर कानून अगर बन जाए तो …………………………………. !

  3. गोमाता केवल हिन्दुओ के लिए ही नहीं है बल्कि समाज के लिए भी बहुत उपयोगी है.
    गोवंश का समुचित उपयोग किया जय तो दूध, घी, दही, उर्जा (गोबर गैस), खाद सभी कुछ मिल जायेगा.
    गिरीश जी को धन्यवाद.

  4. ये सिर्फ हिन्दुओं या गैर हिदुओं के हित की बात नहीं अपितु सारे संसार के न केवल मानव अपितु जलचर थलचर नभचर सभी चेतन प्राणी मात्र के हित में होगा की गाय /बेल /भेंस /बकरी तथा अन्य पालतू पशुओं को भीजीवन संरक्षण प्रदान किया जाए .पर्यावरण संतुलन का वैज्ञानिक सुझाव संयुक्त राष्ट्र संघ में अहिंसा समर्थकों के मार्फ़त कई दफे प्रस्तुत किया गया होगा किन्तु मांस भक्षण के समर्थकों की ;इसकी तिजारत से धन अर्जित करने बालों की तादाद और ताकत ज्यादा है.इस अंतर राष्ट्रीय व्यापारिक शक्तिशाली लाबी के सामने गौ हत्या रोकने के लिए पर्यावरण संतुलन का ठोस मुद्दा बनाकर न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के निरामिष प्रेमियों को सर्व धर्म समभाव के बेनर तले एकजुट संघर्ष चलाना चाहिए .गौ हत्या को हिदू धरम विरोधी कृत्य बताने पर व्यर्थ की साम्प्रदायिक बहस या झड़प तो हो सकती है किन्तु कसाई खाने बूचड़ खाने बंदनहीं होते .

  5. डा हितेश जी, वंदेमातरम !
    प्रो. मधुसुदन जी के आग्रह का मान आप रखेंगे, ऐसा विश्वास है. आपकी ओर से गो पर सामग्री की प्रतीक्षा कइओं को है. शायद आपकी भारी व्यस्तता के कारण मुझे भी अभी आपकी सामग्री नहीं मिली. जानता हूँ की आप अनेक कार्यों में व्यस्त हैं. पर इस पत्रिका हेतु सामग्री भेजने में देरी न करें, बहुत सुपात्रों तक उपयोगी जानकारी पहुंचेगी. शुभकामनाओं सहित,

  6. डॉ. हितेष जी से प्रार्थना, कि गौ सेवा और गौ विज्ञानके बारे में कुछ विस्तारसे जानकारी दे, हमें भी लाभ होगा। कवि हृदय गिरीश जी को धन्यवाद।
    क्या हम, (कृष्ण) मोहन की,
    मोहनदास (गांधी) की, गौओं को
    मन मोहन कठ पुतली से न्याय दिला सकते हैं?
    गौए वोट तो देती नहीं!
    और वे लघुमति भी नहीं!

  7. girishji ,
    आप से सहमत हु,जब तक गौ सेवा से गौविज्ञान नहीं जोड़ा जाएगा तब तक गौमाता को बचाना मुश्किल hai.
    Dr.Hitesh Jani
    Gujarat Ayurved University

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