—विनय कुमार विनायक
ये कश्मीर वही है जहाँ ज्ञान की देवी श्री शारदा पीठ में रहती,
शारदा कश्मीर की अधिष्ठात्री देवी जिससे निकली शारदा लिपी,
ये कश्मीर वही जहाँ सती देह से सतीसर बना,वितस्ता निकली,
सती ही कश्मीरा देवी,कश्यपमेरु से कश्यपमीड़ संज्ञा कश्मीर की
कश्मीर के मूल निवासी नाग पिशाच व आर्य कश्यप की संतति
कश्यप पुत्र नीलनाग प्रथम राजा नीलमत पुराण गाथा जिनकी!
आज जम्मू हिन्दू,कश्मीर मुस्लिम,लद्दाख में बौद्ध संस्कृति,
ये वही कश्मीर जो भारतीय ज्ञान परम्परा की सारस्वत भूमि
जहाँ महाकवि विल्हण ने विक्रमांकदेवचरित की रचना की थी,
जहाँ कल्हण की राजतरंगिणी कश्मीर इतिहास की मुकुटमणि,
जो नीलमत पुराण आदि पर आधारित संस्कृत महाकाव्य कृति,
महाभारत काल से ग्यारह सौ अड़तालीस तक की कथा वर्णित!
कल्हण ने ग्यारह सौ पचास में राजतरंगिणी की लेखनी की,
द्वितीय राजतरंगिणी में जैनुल आब्दीन के राजदरबारी कवि
जोनराज ने ग्यारह सौ उनचास से चौदह सौ उनसठ तक की
जयसिंह से कोटारानी व मुस्लिम काल की घटना व्यक्त की,
फिर जोनराज शिष्य श्रीवर ने तृतीय जैन राजतरंगिणी लिखी
जो चौदह सौ उनसठ से चौदह सौ छियासी ई तक में घटित!
प्राज्यभट्ट ने चतुर्थ राजतरंगिणी ‘राजावलि पताका’ लिखी थी
जो चौदह सौ छियासी से पंद्रह सौ तेरह ई तक की,सुलभ नहीं,
पंचम राजतरंगिणी प्राज्यभट्ट के शिष्य शुक ने रचना कर डाली
जो पंद्रह सौ तेरह से पंद्रह सौ अड़तीस तक ऐतिहासिक गाथावली
कल्हण, जोनराज,श्रीवर, प्राज्यभट्ट,शुक ने राजतरंगिणी पूर्ण की!
कल्हण ने राजतरंगिणी में इतिहास लिखा है कश्मीर राजतंत्र का,
ये आख्यान कश्मीर में शैव बौद्ध हिन्दू मुस्लिम शासक वर्ग का,
महाभारत काल में मगधराज जरासंध का मित्र गोनन्द; गोनर्द था
कश्मीर का शासक,जो भीम द्वारा जरासंध के वध से विक्षुब्ध था
कृष्ण पर आक्रमण किया जिसे कृष्ण भ्राता बलराम ने हत दिया!
गोनन्द पुत्र दामोदर ने गद्दी संभाली और कृष्ण से युद्ध किया,
जो कृष्ण के हाथों मारा गया था पर कृष्ण ने ऐसा न्याय किया
कि रणभूमि में गर्भवती रानी के राजतिलक का सद उपाय किया,
विधवा रानी यशोवती के गर्भ से गोनन्द द्वितीय ने जन्म लिया,
गोनन्द द्वितीय शिशु राजा ने महाभारत रण में भाग नहीं लिया!
गोनन्द द्वितीय के बाद अर्जुनपौत्र परीक्षित भ्राता हरणदेव के
तेईस वंशजों ने कश्मीर पर राज किए फिर लववंशी बने राजा,
मगधराज धनानन्द काल में पुष्कराक्ष था कश्मीर का महाराजा,
फिर कश्मीर चंद्रगुप्त मौर्य के अधीन, आगे उनके पौत्र अशोक
बौद्ध और उनके पुत्र जलौक शैव ने कश्मीर पर शासन किया!
अशोक जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर का संस्थापक था,
बौद्ध धर्मी अशोक मौर्य का पुत्र जलौक शैव धर्मी शासक था,
जलौक ही कश्मीर में चतुर्वर्णी वर्णाश्रम धर्म व्यवस्थापक था,
तीन सौ इक्कीस से एक सौ पचासी ईसापूर्व के बीच मौर्यों ने
कश्मीर में शासन किया पर कश्मीर शुंगों के अंतर्गत नहीं था!
एक सौ साठ से एक सौ बीस ईसापूर्व में यूनानी राजा मिलिंद
मिनाण्डर थे बौद्ध नागार्जुन से मिलिंदपन्हो ग्रंथ के प्रश्नकर्ता,
जलौक के बाद दामोदर, उनके बाद कनिष्क वासिष्क हुविष्क,
बौद्ध कनिष्क कश्मीर में चतुर्थ बौद्ध महासभा के आयोजक,
मगर कनिष्क का उतराधिकारी पुत्र वासिष्क थे परम भागवत,
सत्तावन ईसापूर्व विक्रमादित्य काल में सुनंदन थे गद्दीनशीन!
तुरुष्क कुषाणों के पश्चात अभिमन्यु कश्मीर सिंहासन पर बैठे
जो वैदिक धर्मी,पुनः गोनन्द तृतीय ने वैदिक धर्म प्रसार किए,
गोनन्द वंश में प्रवरसेन से किन्नर तक कई राजा कश्मीर के,
फिर उपलाक्ष हिरण्याक्ष हिरण्यकुल वसुकुल मिहिरकुल हूण हुए
मिहिरकुल शैव मतावलंबी अति कठोर अत्याचारी क्रूर दंभी थे!
कर्कोटक कायस्थ राजवंश
गोनन्दवंशी अंतिम भूप बालादित्य ने राजकुमारी अनंगलेखा का
विवाह नागवंशी दुर्लभवर्द्धन नामक एक कार्यस्थ यानि कायस्थ
सामान्य राजकर्मी से किया, जो कर्कोटक राजवंश के संस्थापक,
कर्कोटक राजवंश अवैदिक अनार्य, शैव मतावलम्बी नाग शासक,
कश्मीरपति रहे थे छः सौ पचीस ईस्वी से आठ सौ पचपन तक!
ये दुर्लभवर्द्धन स्थाथानेश्वर सम्राट हर्षवर्द्धन के समकालीन थे,
इनके काल में ही चीनी बौद्ध धर्मयात्री ह्वेनसांग कश्मीर आए,
दुर्लभवर्द्धन-अनंगलेखा पुत्र दुर्लभक प्रतापादित्य भूप कश्मीर के
फिर उनके पुत्र चन्द्रापीड वज्रादित्य कश्मीर पर शासन किए थे,
उसे जादूटोना से मारकर भाई तारापीड उदयादित्य सत्तासीन हुए,
ये भी वैसे मारे गए,अनुज ललितादित्य मुक्तापीड सत्ता पाए थे!
ललितादित्य मुक्तापीड थे अग्रज चन्द्रापीड वज्रादित्य के जैसा,
वे प्रतापी राजा थे, जिनका कार्यकाल कश्मीर का स्वर्णयुग था,
जिन्होंने कन्नौज मगध गौड़ कलिंग सौराष्ट्र व कामरूप जीता,
कम्बोज तुखार चीन ईरान लद्दाख तिब्बत सिंध और अरब को
पराजित किया,भवभूति वाक्पतिराज दरबारी बनने आए उनका!
ललितादित्य बाद कुवलयापीड, वज्रापीड,पृथिव्यापीड,जयापीड ने
सात सौ साठ से आठ सौ तेरह तक कश्मीर की सत्ता संभाली,
जयापीड विनयादित्य थे महान विजेता व साहित्य कलानुरागी,
जिन्होंने पतंजलि के लुप्त व्याकरण महाभाष्य किए पुनर्जीवित,
जयापीड के बाद पुत्र ललितापीड राजा बने कर्कोटक कुलनाशी!
ललितापीड ने जयादेवी नामक कलाल कन्या से विवाह किया,
जयादेवी के साथ वासना विगलित होकर राज को तबाह किया,
ललितापीड का भाई, फिर जयापुत्र वृहस्पति उत्तराधिकारी हुआ,
पर जयादेवी के पाँच योद्धा भाईयों ने राजसत्ता कर ली अपहृत,
और ज्येष्ठ भाई उत्पल पौत्र अवन्तिवर्मा को किया अभिषिक्त!
उत्कल कल्यपाल राजवंश
अंततः आठ सौ पचपन ईस्वी में कर्कोटक कायस्थ राजवंश से
उत्कल कलाल राजवंश को कश्मीर की हस्तांतरित हो गई सत्ता,
प्रथम उत्पलवंशी राजा अवन्तिवर्मा ने सौतेले भाई से की मित्रता
शूरवर्मा को मंत्री बनाया जो कश्मीर का कुशल प्रशासक निकला,
अवन्तिवर्मा वैष्णव थे प्रतिबंधित किए पशुबलि और जीवहत्या!
अवन्तिवर्मा के निधन पर शूरवर्मा पुत्र शंकरवर्मा हुए अधिपति,
दर्वाभिसार त्रिगर्त गुर्जरप्रदेश जीत लिए,शंकरवर्मा थे दिग्विजयी,
उतरापथ के स्वामीराज कन्या सुगंधा देवी थी उनकी धर्मपत्नी,
उन्होंने मंदिर प्रबंधन हाथ में ले ली,कर हेतु बेगार प्रथा चलाई,
उनके द्वारा रुढभारोढि प्रथा प्रजा की दारिद्र्य की बन गई दूती,
उनकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र गोपालवर्मा बने थे कश्मीरपति!
सुगंधादेवी स्वेच्छाचारिणी थी मंत्री प्रभाकरदेव पर आसक्त हुई,
पुत्र की हत्या कराके राजगद्दी पर बैठी सुगंधापुर नगर बसाई,
गोपालपुर में गोपालमठ गोपालकेशव मंदिरों की स्थापना कराई,
अंततः उनके सम्बंधी निर्जितवर्मा के पुत्र पार्थ को गद्दी मिली,
फिर चक्रवर्मा,फिर शूरवर्मा, फिर चक्रवर्मा, फिर उन्मत अवन्ति,
उन्मत अवन्ति से नौ सौ उनतालीस में उत्पलवंश की अधोगति!
उन्मत अवन्ति ने अपने सभी सगे सम्बन्धियों की हत्या कर दी,
ब्राह्मण परिषद ने सुगंधादेवी के उपपति ब्राह्मण मंत्री प्रभाकर के
पुत्र यशस्कर को कश्मीर की राजगद्दी पर बिठाकर सत्ता पाई थी,
फिर यशस्कर पुत्र संग्रामदेव की, मंत्री पर्वगुप्त ने हत्या करवा दी,
फिर पर्वगुप्त पुत्र क्षेमगुप्त, जो था क्रूर मदिराव्यसनी परस्त्रीगामी,
जिसने खस जाति लोहर दुर्गपति सिंहराज पुत्री दिद्दा से शादी की!
नौ सौ अट्ठावन में क्षेमगुप्त की मृत्यु बाद दिद्दा पुत्र अवयस्क
अभिमन्यु को राजपद देकर राजमाता दिद्दा बन गई अभिभावक,
अभिमन्यु की मृत्यु बाद उनका छोटा भाई नन्दिगुप्त बने शासक,
फिर दिद्दा के दो पौत्र, सबको दिद्दा ने मौत की घात उतार दी,
स्वयं गद्दी हासिल की, खस जाति के तुंग को उपपति बना ली,
नौ सौ अस्सी से एक हजार तीन तक दिद्दा निरंकुश शासक थी!
लोहर खस राजवंश
दिद्दा ने मृत्युपूर्व कश्मीर राजसत्ता पितृकुल लोहरवंश को सौंप दी,
दिद्दा के भतीजे संग्राम राज ने लोहर खस राजवंश की नींव रखी,
ये लोहर राजवंश लोहार जाति नहीं,खस जाति जो शक से निकली,
अभिसार क्षेत्र के पर्णोत्स या पुंछ की राजधानी लोहर से लोहरवंशी,
संग्रामराज काल में तुंग थे सेनापति, जब कायस्थ हो गए उपद्रवी!
एक हजार तीन से एक हजार अट्ठाईस तक संग्रामराज ने राज किए
तुंग के बूते पर,ये दौर था महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण का,
संग्राम ने महमूद के विरूद्ध हिन्दूशाही राजा त्रिलोचन को सेना भेजी,
उसी दौर में सेनापति तुंग मारे गए,निर्बल संग्राम की रानी श्रीलेखा ने
पुत्र हरिराज की हत्याकर गद्दी हासिल की,वो दुश्चरित्र थी एक न चली,
छोटे पुत्र अनन्तदेव एक हजार अट्ठाईस में बन गए कश्मीर भूमिपति!
अनन्तदेव वीर उदार शासक थे, उनकी रानी सुभटा बुद्धिमान कुशल थी,
कुटिल लेख लिखनेवाले कार्यस्थ कायस्थ और दुष्ट नियोगी को कुचल दी,
पर रानी ने दुराचारी पुत्र कलशको बागी बनाई,राजा ने आत्महत्या करली,
एक हजार तिरसठ में कलश बने शासक,पुत्र हर्ष ने विद्रोह किया बने बंदी,
राजा कलश ने दूसरे पुत्र उत्कर्ष को राजगद्दी दे दी,जिसे हर्ष ने छीन ली!
हर्ष बहुमुखी प्रतिभासंपन्न विचित्र राजा कवि बहुभाषाविद कामुक व्यक्ति थे,
उनके रनिवास में तीन सौ साठ रानियाँ थी,वे अति करसंग्रही फिजूलखर्ची थे,
वे हिन्दू थे मगर देवालयों की स्वर्ण मूर्तियाँ लूटकर गलाने वाले मनमर्जी थे,
कल्हण कहते वे कामुक उन्मत ऐसे थे कि पिता की विधवाओं के संभोगी वे,
सामंत विक्षुब्ध हुए,हर्ष सगोत्री उच्चल व सुसल्ल भाईयों ने हर्ष की हत्या की!
उच्चल और सुसल्ल ने ग्यारह सौ एक में कश्मीर को आपस में बांट लिया,
फिर क्षुब्ध सामंतों के साथ हर्ष पौत्र भिक्षाचर ने सुसल्ल को सिक्स्थ दिया,
पुनः सुसल्ल ने सत्ता वापस पाई, अंततः ग्यारह सौ अट्ठाईस में मारा गया,
सुसल्ल पुत्र जयसिंह सत्तासीन हुए, ग्यारह सौ पचपन ई तक शासन किया,
कल्हण जयसिंह के समकालीन थे गोनन्द से जयसिंह तक इतिहास लिखा,
कल्हण के कालकवलित होने पर जोनराज ने राजतरंगिणी लिखना ठानी,
जयसिंह से प्रमाणुक वान्तिदेव वुप्पदेव जयदेव की लिखी संक्षिप्त कहानी,
आगे कथा प्रथम मुस्लिम शासक शाहमीर वंशज जैनुल आब्दीन तक की,
जोनराज ने कल्हण के बाद ग्यारह सौ उनचास से चौदह सौ उनसठ तक,
जोनराज शिष्य श्रीवर ने चौदह सौ उनसठ से चौदह सौ छियासी तक की,
गुरु जोनराज, शिष्य श्रीवर दोनों ही जैनुल आब्दीन के संस्कृत राजकवि!
कश्मीर महमूद गजनबी और मुहम्मद गोरी के आक्रमण से महफूज था,
कश्मीर का बारह सौ सत्तासी का पहला विदेशी आक्रांता कज्जल तुर्क था,
फिर काशगर के मंगोल शासक कर्मसेन चक्रवर्ती के तातार सरदार डुल्चू
तुर्क ताजिक म्लेच्छ सेना लेके कश्मीरराज सिंहदेव का श्रीनगर लूट गया,
डुल्चू के हमले के बाद लद्दाख के निर्वासित बौद्ध राजकुमार रिंचन का
सिंहदेव के मंत्री रामचंद्र ने अपनी पुत्री कोटा देवी से विवाह कर दिया!
रिंचन ने विश्वासघात किया रामचंद्र व सिंहदेव को धोखा से मार दिया,
तेरह सौ बीस ई में रिंचन ने स्वयं को कश्मीर का शासक घोषित किया,
रिंचन ने बौद्ध धर्म त्यागकर बुलबुल शाह से इस्लाम धर्म कबूल लिया,
रिंचन नाम बदलकर सुल्तान सदरुद्दीन बने,शाहमीर को द्वारेश बनाया,
शाहमीर चालाक निकला रिंचन के निधन के बाद रिंचन-कोटादेवी के बेटा
नाबालिग हैदर को दरकिनार कर राजवंशी उदयन का राज्याभिषेक किया!
उदयन ने रिंचन विधवा कोटादेवी की हाथ थामी,पर भूटान गए छोड़ गद्दी,
इसी विषय स्थिति में रानी कोटादेवी ने मंत्री भट्ट भिक्षण से कर ली शादी,
जिससे पुत्र जट्ट हुआ जिसे उदयन ने वापस आकर संतान स्वीकार कर ली,
तेरह सौ उनतालीस में उदयन ने अंतिम सांस ली कोटारानी ने सत्ता संभाली,
द्वारेश शाहमीर ने कोटारानी से गद्दारी की, आक्रमण कर सत्ता हथिया ली,
कोटारानी ने सीने में खंजर भोंककर अपनी जीवनलीला को समाप्त कर ली!
शाहमीर छिभ राजवंश
जोनराज ने द्वितीय राजतरंगिणी में कही शाहमीर पार्थपुत्र बभ्रुवाहनवंशी थे,
अबुल फजल ने आईन-ए-अकबरी में लिखी शाहमीर खुद को अर्जुनवंशी कहते,
राजा जयसिंह काल में दरददेश के शिरशिलाकोट के अलंकार चक्र जमींदार थे,
अलंकार पुत्र बभ्रुवाहन से कुरुराज, कुरुराज से ताहराज जिनके पुत्र शाहमीर थे,
शाहमीर तेरह सौ उनतालीस ई में प्रथम छिभ मुस्लिम सुल्तान बने कश्मीर के,
तेरह सौ उनतालीस से चौदह सौ छियासी ई तक ग्यारह शाह,वंशज शाहमीर के!
शाहमीर के उत्तराधिकारी जमशेद, अलाउद्दीन, शिहाबुद्दीन, कुतुबुद्दीन,सिकंदर,
अलीशाह,जैनुल आब्दीन,हैदरशाह,हसनशाह,मुहम्मदशाह से बदल गया कश्मीर,
इन सुलतानों में सिकंदर का काल तेरह सौ छियासी से चौदह सौ दस तक का
हिन्दू बौद्ध के लिए था अति दुखदाई सिकंदर बना बुतशिकन धर्मांध अताताई,
सभी संस्कृत के पुस्तकों को शालीमार तालाब में भरकर आग लगाकर जलवाई!
तेरह सौ अट्ठानवे के आक्रांता तैमूरलंग का समकालीन था सिकंदर बुतशिकन,
महमूद गजनवी सा जालिम, तलवार की जोर से किया हिन्दुओं का धर्मांतरण,
सिकंदर ऐसा कट्टर मुसलमान था कि स्वर्ण सिंहासन को किया हराम घोषित,
हिन्दुओं के मठ-मन्दिर तोड़ दिया,नृत्य संगीत जुआ सती प्रथा किया निषिद्ध,
सिकंदर का पुत्र जैनुल आब्दीन उनसे उलटा था, हिन्दुओं को किया सम्मानित,
जोनराज ने जैनुल को योगी कहा है जो सुनते थे गीतगोविंद और योगवाशिष्ठ!
सिकंदर बुतशिकन ही आगे चलकर बर्बर औरंगजेब का मजहबी आदर्श बना था,
और सिकंदर बुतशिकन का पुत्र जैनुल आब्दीन था पूर्व प्रारुप खाका अकबर का,
जैनुल चौदह सौ उन्नीस-बीस में कश्मीर के शासक बने सत्तर तक शासन किया,
उन्हें बड़शाह का दर्जा मिला, उनका समकालीन मित्र था मेवाड़पति राणा कुम्भा,
उन्होंने गोहत्या प्रतिबंधित की और बंद कर दिया हिन्दुओं पर लगा कर जजिया,
उनका तन मन हिन्दू दर्शन हिन्दू धर्मग्रंथ तीर्थस्थल में आस्था हिन्दू सा जिया!
—विनय कुमार विनायक