राजनैतिक रूप से तठस्थ  रहने के लद गये दिन 

0
18

        पिछले दशक दुनिया में जो कुछ विशेष  प्रकार के परिवर्तन देखने को मिले।  उनमें  से एक है दैनिक रूप से चलने वाली गतिवीधीयों  का ‘शस्त्र के रूप में उपयोग’। उनमें  व्यापार, पर्यटन , कनेक्टिविटी, सप्लाई चैन  य वित्तीय कुछ भी हो सकता है। इसीलिए हर चीज़  की ‘हेजिंग’ (घेराबंदी)  आवश्यक हो चली  है। कहने कि जरूरत नहीं,  अब राजनैतिक रूप से तठस्थ  रहने के दिन लद  चुके हैं। ये कहना है विदेश मंत्री एस जयशंकर का अपनी किताब ‘व्हाए  भारत मेटर्स’ में ।

इंजी. राजेश पाठक

      याद करें जब  २००७ में ब्रिटिश स्टील निर्माता कंपनी ‘कोरस’ का  टाटा स्टील ने चीन व दुनिया की अन्य कम्पनीयों को पीछे छोड़  अधिग्रहण कर लिया था। लेकिन भले ही  अधिग्रहण के दांव में चीन मात खा  गया हो, पर  उसके पास  चलने के लिए और भी दांव शेष थे। जैसा की जयशंकर ने कहा, उसने अपने सबसे विश्वसनीय ‘शस्त्र’  वामपंथ को आत्मसात कर चलने वाली ब्रिटेन  की ‘लेबर यूनियन’  को आगे कर टाटा की राह  मुश्किल बना, उसको  गहरे आर्थिक संकट में डाल दिया। जैसा कि भारत में हम देखने के अभ्यस्त हैं, पर्यावरण और मानव संसाधन के नियमों के उल्लंघन का शोर मचा-मचाकर वामपंथी ईकोसिस्टम  ने लंबे समय तक काम शुरू ही नहीं होने दिया। अंतत: कंपनी  इस संकट से तभी उबर पायी  जब टीसीएस(टाटा कनसल्टेंसी  सर्विसेज़) से कर्ज लेकर दोबारा कारोबार को संभाला। लेकिन टाटा ने भी दुनिया को  दिखला दिया कि यदि आप ने ठान ही लिया है, तो  सफलता अपना मार्ग ढूंढ आप  तक चलकर आ  ही जाती है।  आज इसी अधिग्रहण  की बदोलत टाटा स्टील  दुनिया की सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कम्पनीयों में से एक है।

      लेकिन यहाँ  जयशंकर ने भू-राजनीति में परस्पर हितों के टकराव को लेकर  खुलते  नए मोर्चों की और ध्यान दिलाकर बताना चाहा  हैं कि अब इससे निपटने के लिए इच्छाशक्ति से युक्त, देशहित  में निर्णय लेने में सक्षम सरकार देश की जरूरत है। जिसको चुनकर भेजने की जिम्मेदारी राजनैतिक रूप से जागरूक सम्पूर्ण नागरिकों की है।

        चीन हो य अमेरिका   यहाँ आर्थिक उन्नति का चरम वहाँ   मौजूद निजी क्षेत्र के  ‘वेल्थ क्रीएटर्स’ (पूंजी-सर्जनकर्ता) के साझा प्रयास की बदोलत ही देखने को मिला।  अमेरिका में एक समय  कच्चे  तेल के व्यवसाय में रॉकफेलर परिवार का प्रभाव था; तो  स्टील उत्पादन में,  एंड्रू कारेनगी का । जबकि  रेल-रोड और एयरपोर्ट सेक्टर में जेपी मॉर्गन का आधिपत्य रहा ।  बताया जाता है उनकी ही दूरदृष्टी  के चलते देश में कॉनेक्टिविटी (आवागमन) को जबरदस्त उछाल मिला , और  फिर उद्धोग को भी। आगे चलकर मॉर्गन ने स्टील उत्पादन में कदम निकालते हुए, कार्नेगी की कंपनी को खरीद लिया। ये दुनिया की सबसे बड़ी डील बताई जाती है।  

         इतिहास में ये भी दर्ज है कि  अमेरिकी राष्ट्रपति थीयोडोर  रूज़वेल्ट सबसे बड़े बैंकर,  दुनिया की पहली बिलियन डॉलर स्टील कंपनी के मालिक और अमेरिका की लाइफलाइन कहे जाने वाले  जे पी मॉर्गन के जबरदस्त विरोधी थे। लेकिन १९०७ में  जब देश की अर्थव्यवस्था दिवालिया  होने की कगार पर आ  पहुंची  तो रूज़वेल्ट भी इनके दरवाजे पहुँचने को बाध्य हुए। जे पी मॉर्गन  देश में हुई ओद्धोगिक क्रांति के  दौरान सबसे अग्रणी  पंक्ति में रहे लोगों में से एक थे। उन्होंने अपने प्रभाव से  देश के बड़े निवेशक, उद्धोगपति और धनाडय  राजनेताओं को बैंक में पैसा पम्प करने को प्रेरित किया । उनकी बात मानी गई, देश संकट से उबर गया। 

      आज देश का  एक वर्ग  दुनिया के तौर -तरीकों से जानबूझ कर अनदेखी कर  भारत के अहित में ही  अपने अवसर ढूँढने में लगा दिखता है । आज  ‘वेल्थ क्रीएटर्स’ उनके निशाने पर हैं। देश की उन्नति के लिए  इसके  प्रति भी कितना सजग रहने की जरूरत है, ये अमेरिका का आर्थिक इतिहास बताता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here