सुबह सुबह फिटनेस के बहाने सरोजनी नगर की पटड़ी पर ताक झांक करने निकला था कि डिपो के पास के मंदिर के बाहर समान बांधे कोर्इ दिखा। पहले तो सोचा कि मंदिर का पुजारी घर जा रहा होगा। सर्दियों में वैसे भी मंदिर में धंधा कम हो जाता है। लोग घर से ही भगवान को धूप दे लेते हैं। ऐसे में पुजारी ने भी सोचा होगा कि चलो कुछ चेंज हो जाए। वरना सारा दिन जमे रहो मूक भगवान की मूर्ति के पास और ताकते रहो इक्का दुक्का की जेब!
नजदीक गया तो देखा कि अरे, ये पुजारी नहीं,ये तो मंदिर वाले भगवान हैं। सपरिवार! सामान बांधे? घोर आसितक होने के चलते मैं उनके पास ठिठक गया! उनके पांव छूने के बाद उनसे पूछा,’ अरे भगवान ,ये क्या? आप सुबह सुबह इस ठंड कोहरे में कहां? वह भी सारा समान बांधे? कहां जाने की तैयारी है? कहीं घूमने घामने का प्रोग्राम बना लिया क्या? ठंड ने परेशान तो नहीं कर दिया? अगर आप यहां से चले गए तो बेचारे पुजारी का क्या होगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि जब तक दिल्ली का कोहरा नहीं छंटता तब तक किसी पहाड़ पर हो लिया जाए? अरे भगवान, ये दिल्ली है दिल्ली! यहां कोहरे के कर्इ रूप हैं। अपन तो पता नहीं कित्ते जन्मों से यहां का ड्रामा देख रहे हैं। पर साली ये दिल्ली है कि छूटती ही नहीं बनारस के पान की तरह! जितनी बार भी मरने के बाद भगवान पुन: मुझे पैदा करने की बात करते हैं तो मैं उनसे कहता हूं कि अगर मुझे इस देश में पैदा करना ही है तो दिल्ली ही भेजो। दिल्ली में जो बात है वह और कहां प्रभु? भले ही यहां पुरूषो तक से बलात्कार होते रहे हों!
वे कुछ देर दूर तक पड़ी धुंध में किसीको बेचैनी से आते देखते रहे। पता नहीं किसको? जब कोर्इ आता नहीं दिखा तो बोले,’ कहां घूमने जा सकता हूं यार! बड़े दिनों से तुम्हारी दिल्ली में जमा पुजारी के परिवार का पेट पाल रहा था। मन को एक सुकून था कि चलो पेट की रोटी तक छीनने वाली दिल्ली में मैं किसीका पेट का तो पाल रहा हूं। नहीं तो यहां सभी सभी के पेट तक की रोटी निकालने में जुटे हुए हैं।
‘ तो अब? ये सामान वामान? कहीं मंदिर बदलने का इरादा है क्या? इधर आजकल पाले बदलने का फैषन चल निकला है। एक पार्टी में तो आजकल जीवों का दम चौथे दिन घुटने लग जाता है। पुजारी से अनबन हो गर्इ होगी? अरे भगवान! जहां दो बरतन एक साथ रहते हैं, वे बजते तो हैं ही न! तो बजने दो। चलो, माफ करो पुजारी को! मैं तुम्हारा सामान अंदर रखवाता हूं,’ कह मैंने उनके सामान को हाथ डाला ही कि वे मुझे गुस्साते बोले,’ रहने दे यार! मेरी मंदिर के पुजारी से कोर्इ झगड़ा नहीं हुआ है। वह तो बेचारा अपने से अधिक मेरा ध्यान रखता है। हर सुबह खुद नहाए या न पर मुझे रोज बिन नागा मेरे लाख मना करने के बाद भी मुझे नहला कर ही दम लेता है। अपने माथे पर उसके तिलक लगा हो या न पर मेरे माथे पर मुझसे भी लंबा तिलक रोज लगाता है। खुद चाहे पंद्रह पंद्रह दिन तक कपड़े न बदले पर बेचारा मेरे कपड़े रोज बदलवाता है। कहने को ही सही, प्रसाद अपने मुंह में डालने से पहले मेरे मुंह से लगाता जरूर है। मेरा मन चाहे खाने को हो या न!
‘तो फिर ये बेरूखी क्यों? क्या आपके द्वार आने वाले भक्तो से कोर्इ गलती हो गर्इ? अगर हो गर्इ हो तो उन सबकी ओर से मैं आपसे माफी मांगता हूं, कह मैंने उनके आगे दोनों हाथ जोड़े तो वे लंबी आह भर मेरे कंधे पर हाथ रखते बोले, ऐसा कुछ नहीं मेरे भक्त! असल में क्या है न कि अब ये दिल्ली रहने लायक नहीं रह गर्इ है। ऐसा लगने लगा है कि अब यहां कोर्इ सुरक्षित नहीं! मैं भी नहीं। बस इसीलिए कि कल पता नहीं क्या हो जाए मैंने सोचा यहां से अपने लोक सेफ निकलना ही भला।
‘तो प्रभु, हम जैसों का क्या होगा? हम तो यहां जी ही आपके दम पर रहे हैं। ये दिल्ली ही नहीं ,देश तक चल ही तो आपके सहारे रहा है, कि तभी समाने से आटो आता दिखा तो वे अपना परिवार, सामान इकटठा करते बोले,’ चलो,चलो, जल्दी करो! अच्छा दोस्त, अलविदा! टेक केयर!
‘कहां जाना है साहब?
बैकुंठलोक! कितने लोगे? उन्होने अपना परिवार, सामान धरने के बाद चैन की सांस लेते पूछा।
‘कैसे चलोगे? मीटर से या ….
‘ अरे आपसे अच्छे तो हम है प्रभु! मरते हुए भी हिम्मत रखते हैं हिम्मत! आप क्या सोचते हैं कि आपके बिना हम जी नहीं सकते? जी के दिखाएंगे, हर डर को पी के दिखाएंगे, गुड बाय! तुम भी अपना ख्याल रखना प्रभु, मैंने उन्हें हाथ हिलाते कहा और आगे हो लिया।