‘अच्छे दिनों ‘ में आम – आदमी  …!

-तारकेश कुमार ओझा-

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पता नहीं क्यों तथ्यों व आंकड़ों के खेल से मुझे शुरू से ही एलर्जी सी रही है। गाहे – बगाहे खास कर बजट के दिनों में प्रबुद्ध लोग जब आंकड़े देकर बताते हैं कि पिछले साल के बनिस्बत इस बार विकास दर इतना बढ़ा या इतना गिरा तो मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ता। अक्सर यह आंकड़ेबाजी  भी कि इतने दिनों के भीतर फलां राजनेता या पार्टी की लोकप्रियता में इतने फीसद की गिरावट आई या बढ़ोतरी हुई तब भी बात मेरे सिर से गुरजने लगती है। आजकल  अच्छे दिनों के सुनहरे सपनों की बुनियाद पर खड़ी देश की नई सरकार की सफलता – असफलता को लेकर देश में जोरदार बहसें छिड़ी हुई है। हर चैनल पर इस विषय पर बहस और तर्क – वितर्क का दौर लगातार चल रहा है। लेकिन अपनी मोटी बुद्धि जो देख पा रही है कि वह यह कि अच्छे दिनों में भी शादियां खूब हो रही है। पता नहीं यह विरोधियों की साजिश है या कुछ और कि ज्यादातर बड़े राजनेताओं के बच्चों की शादियां विरोधी खेमे से हो रही है।हालांकि यह समझना गलत होगा कि चर्चित शादियां सिर्फ अच्छे दिनों के विरोधी खेमे में होती अाई है।वर्तमान सरकार में बड़े पद पर आसीन एक मंत्री कम राजनेता की ख्याति इस बात के लिए है कि जब – जब दुनिया मंदी की चपेट में आई , उस राजनेता ने अपने बेटों की शादी धूमधाम से की। लाखों लोगों को जिमाया। मेहमानों के आने – जाने के लिए किराये के विमानों की व्यवस्था की और नवविवाहित बेटों को करोड़ों की संपति उपहार में दी। बहरहाल वर्तमान की बात करें तो   पहले लालू यादव की बेटी व मुलायम सिंह यादव के पोते की शादी हुई। जो अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के धुर विरोधी माने जाते हैं। अब दिग्विजय सिंह के बेटे की शादी हुई है। वही दिग्विजय जो प्रधानमंत्री मोदी को कोसने का कोई मौका कभी हाथ से नहीं जाने देते हैं। एक बात कॉमन यह है कि अपने प्रधानमंत्री भी भारतीय संस्कृति व परंपरा का पालन करते हुए अपने सभी विरोधियों के बच्चों की शादियों में पूरी गर्मजोशी से उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। इस तरह अच्छे दिनों का भरोसा दिलाने वाले अपने पीएम इस मामले में भी सनातनी परंपरा को बचाने में लगे हैं। गांव – देहातों में हम क्या देखते हैं। धुर विरोधी के यहां  भी यहां होने वाले शादी – ब्याह से लेकर बरही – तेरही में पूरी गर्मजोशी से शिरकत की जाती है।पांत में बैठे खा रहे हैं।तभी देखा कि वह आ रहा है जिसके परिवार से  महीनों  से बोलचाल बंद है। सो तपाक से किसी एेसे को बुला लिया जिससे दांत – काटी रोटी का रिश्ता है और उसका हाथ भी पकड़ लिया जिसके साथ दांत – पिसाई का रिश्ता है और बैठा लिया साथ में भोजन करने। सहभोज का दो – एक और कौर निगलते ही विरोधी की कड़वाहट तेजी से घुलने लगती है। भोजन के दौरान ही बीमार दद्दा की तबियत पूछ ली और साथ ही यह ताकीद भी कर दी कि न समझ में आ रहा हो तो वे पास के शहर एक बड़े डाक्टर को जानते हैं, साथ चल कर दिखवा देंगे। बस इस जादू से देखते ही देखते रिश्तों की कड़वाहट छू मंतर होने लगती है। अभी हाल में अपने सूबे में शेरनी कही जाने वाली एक मुख्यमंत्री ने भी इसी तर्ज पर विरोधियों को साधने की कोशिश की।अच्छे दिनों के खेमे की कट्टर विरोधी मानी जाने वाली उक्त मुख्यमंत्री  ने एक कार्यक्रम में शिरकत के लिए जाते समय देखा कि उन्हें हमेशा भला – बुरा कहने वाला नया – नया राजनेता बना उनका एक विरोधी कार न  मिलने की वजह से सड़क पर खड़ा है। बस फिर क्या था। मुख्यमंत्री ने उसे अपनी गाड़ी में न सिर्फ लिफ्ट दी, बल्कि रास्ते में गाड़ी रुकवा कर उसे सूबे का परंपरागत खाद्य झालमूढ़ी भी खिलाई। अब यह झाड़मूढ़ी खाई किसी ने और खिलाई किसी ने, लेकिन सी.. सी अच्छे दिनों के खेमे वाले कर रहे हैं। खैर , दुनिया चाहे जो कहे , लेकिन अपने राम तो अच्छे दिन की उम्मीद इतनी जल्दी छोड़ने वाले नहीं।

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