नीति का अच्छा या बुरा होना शिक्षकों पर भी निर्भर है

अब तक की शिक्षा नीतियाँ तय लक्ष्य प्राप्त किये बिना हीं विदा हो गईं और  शिक्षा-विभाग अंकतालिकाएं छापने एवं  विद्यालय मध्यान्ह भोजन बाँटने में ही व्यस्त रहे  | अभी तक शासकीय विद्यालयों में पूर्व प्राथमिक शिक्षा न होने के कारण वे पिछड़ते गए और निजी विद्यालय नर्सरी कक्षाएँ चला कर बच्चों को अपनी ओर ले जाने में सफ़ल हुए |  नई नीति में अब शालेय शिक्षा 12 के स्थान पर 15 वर्ष (5+3+3+4) की कर दी  गई है | तीन से आठ वर्ष के बच्चे (नर्सरी से कक्षा 2 तक) पूर्व -प्राथमिक के नाम से पढ़ेंगे | इसे बुनियादी शिक्षा भी कहा गया है | यह लचीली और सहज और खेल-कूद पर आधारित  होगी, बच्चों को बचपन से ही तीन भाषाएँ सिखाने का प्रावधान किया गया है किन्तु बुनियादी शिक्षा का माध्यम (मीडियम) मातृभाषा/प्रादेशिक भाषा  हो ऐसी अनुशंशा की गई है | प्राथमिक शिक्षा अब तीन वर्ष (कक्षा 3-5) तक होगी | इसके बाद तीन वर्ष की माध्यमिक शिक्षा  (कक्षा 6-8) तक होगी | कक्षा 6 में बच्चों  को भाषा-परिवर्तन की छूट रहेगी | माध्यमिक शिक्षा में विशेष बात यह होगी कि बच्चे को यहीं से कौशल विकास (हुनर) का प्रशिक्षण दिया जाएगा | इसमें बिजली का काम, बागवानी, लकड़ी का काम (कारपेंटरी),खेल, योग ,नृत्य, संगीत,शिल्प आदि की शिक्षा देने की बात कही गई है | ध्यान देने योग्य बात यह है कि अभी तक इन पाठ्यक्रमों की चर्चा कॉलेज स्तर पर ही प्रारंभ हो पाती थी | इंजीनियरिंग में जाकर जो बच्चे कारपेंटरी,रेत छानना (ग्रेडिंग ऑफ़ सेंड ) का ज्ञान सीखते थे वैसा प्रशिक्षण अब माध्यमिक स्तर से ही प्रारंभ होने की संभावना है |  शालेय शिक्षा में एक बड़ा परिवर्तन उच्च माध्यमिक स्तर में भी  किया गया  है यहाँ  हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी को समाप्त कर चार वर्ष (कक्षा 9-12) के लिए बहु-अनुशासनिक अध्ययन/पाठ्यक्रम की व्यवस्था की गई है | इसमें चार वर्ष में आठ सेमेस्टर  होंगें | प्रत्येक सेमेस्टर में 5 से 6 विषय होंगे इस प्रकार कुल 40 से अधिक विषय पढ़ने होंगे इनमें से 15 के आस-पास विषय विद्यार्थियों द्वारा अपनी रूचि के अनुसार तय किये जाएँगे | इनका मूल्याँकन/ आँकलन विद्यालय स्तर पर ही होगा और शेष 24 विषयों (प्रति सेमेस्टर 3) का मूल्याँकन  बोर्ड द्वारा किया जाएगा | विद्यार्थियों के मूल्यांकन के लिए समेटिव के स्थान पर फोर्मेटिव पद्दति को अपनाने पर जोर दिया गया है | इस नीति में उच्च माध्यमिक स्तर पर ही विदेशी भाषा जैसे फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश अदि सीखने का अवसर प्रदान किया जायेगा | अब तक कौशल से संबंधित  जिन गति-विधियों को करीकुलर या को-करीकुलर कहा जाता था वे अब पाठ्क्रम का हिस्सा हो जाने से उनके अध्ययन-अध्यापन के प्रति गंभीरता बढ़ेगी | नई नीति में समेकित विद्यालय (स्कूल काम्प्लेक्स ) बनाने पर बल  दिया गया है | अब तक प्राथमिक, माध्यमिक और हायर सेकेंडरी विद्यालय प्रथक-प्रथक होने के कारण ग्रामीण अंचल के बच्चे प्राथमिक के बाद पढाई छोड़ देते हैं | इसके साथ-साथ संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता या कहीं-कहीं बहुत अभाव रह जाता है | समेकित केम्पस होने से संगीत,भाषा,कला एवं कौशल आदि के शिक्षकों का ठीक प्रकार के नियोजन किया जा सकेगा | हमारी शिक्षा व्यवस्था में अब तक एक बिडम्बना यह भी रही है कि यहाँ बच्चों में संकाय को लेकर हीनग्रन्थि पाली जाती है | कहीं-कहीं  गणित पढ़ने वाले को कला संकाय वाले से श्रेष्ठ माना जाता है | जब कि यह सोच  शिक्षा शास्त्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है | इसके अतिरिक्त विज्ञान का विद्यार्थी कला-संगीत में रूचि होने के पश्चात भी उन विषयों को पढ़ नहीं पता | नई नीति में विज्ञान और कला के इसे कठोर विभाजन को समाप्त कर दिया है | बेटियों की सुरक्षा और आवागमन के लिए भी सुझाव दिए गए हैं,बेटियों के आवास और भोजन को लेकर नवोदय विद्यालय जैसी व्यवस्था को अनुकरणीय माना गया है | कमजोर विद्यार्थी या जिन्होंने पढ़ाई छोड़ दी है को पढ़ाने के लिए  अनुदेशक (इंस्ट्रक्टर) रखने की बात कही गई है | ये अनुदेशक स्थानीय विद्यार्थी होंगे जो 12 वीं पास या स्नातक होंगे इन्हें सेवा के लिए प्रमाण पत्र दिया जाएगा जो भविष्य में शिक्षक बनते समय चयन में सहायक हो सकता है | अनुदेशकों के रूप में बेटियों को विशेष रूप से प्राथमिकता दी जाएगी |  

 कुल मिलाकर बच्चों को आत्मनिर्भर,बहुभाषीय एवं नवाचारी बनाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है | किन्तु इसकी सफलता इसके क्रियान्वयन पर ही निर्भर करेगी | क्योंकि स्कूल कॉम्प्लेक्स का सुझाव तो स्कूल कमीशन रिपोर्ट में 1964-66 से ही लंबित पड़ा है वह अब तक लागू ही नहीं हुआ | 1993 की यशपाल कमेटी रिपोर्ट भी बच्चों पर पुस्तकों का भार कम नहीं कर पाई | नई नीति की  प्रस्तावन में  बाबा साहब अम्बेडकर की बात को उधृत किया गया है “मुझे लगता है यह एक अच्छा संविधान है लेकिन इसका बुरा होना भी निश्चित  है अगर वे लोग जो इस पर काम करेंगे बहुत बुरे होगे |  वहीं पर यदि इस पर कम करने वाले लोग बहुत अच्छे हों तो यह बहुत अच्छा हो सकता है |” वैज्ञानिक कस्तूरीरंगन जी ने भी ऐसी ही भावनाएँ व्यक्त की हैं, अर्थात नीति कितनी भी अच्छी क्यों न हो उसका अच्छा या बुरा होना क्रियान्वयन करने वालों पर निर्भर करता है |

डॉ.रामकिशोर उपाध्याय

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