प्रिय पाठकों/मित्रों,कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी के त्यौहार रूप में मनाया जाता है गोपाष्टमी का पर्व गोवर्धन पर्वत से जुड़ा त्यौहार है | श्रीकृष्ण ने गौचारण लीला गोपाष्टमी के दिन शुरू की थी। कहा जाता है की द्वापर युग में श्री कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा को ब्रज वासियों की भारी वर्षा से रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया था | श्री कृष्ण भगवान की इस लीला से सभी ब्राज़ वासी उस पर्वत के निचे कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक रहे तब जाकर इन्द्र देव को पछतावा हुआ | और इन्द्र देव को वर्षा रोकनी पड़ी | तब से लेकर आज तक गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है | वर्ष में जिस दिन गायों की पूजा अर्चना की जाती है | वह दिन भारत में गोपाष्टमी के नाम से मनाया जाता है । जहाँ गाय पाली-पौंसी जाती हैं उस स्थान को गोवर्धन कहा जाता है । गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम ‘गोविन्द’ पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। साल 2017 में गोपाष्टमी पूजन 28 अक्तूबर को है।
शुलक्षमी कार्तिके तु स्मृता गोपाष्टमी बुधै ।
तद-दिनाद वासुदेवो’भुद गोपः पूर्वं तु वत्सपः ॥
“शास्त्रज्ञों एवं आचार्यों के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है । इस दिन से भगवान वासुदेव ने गोपालन की सेवा प्रारम्भ की, इसके पूर्व वे केवल बछड़ों की देखभाल करते थे ।”
गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। अतिप्रिय गाय की रक्षा तथा गोचारण करने के कारण भगवान श्री कृष्ण को ‘गोविन्द या गोपाल’ नाम से संबोधित किया जाता है । भगवान ने कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा ।
कार्तिक मास में आने वाला यह महोत्सव अति उत्तम फलदायक है। जो लोग नियम से कार्तिक स्नान करते हुए जप, होम, अर्चन का फल पाना चाहते हैं उन्हेें गोपाष्टमी पूजन अवश्य करना चाहिए। इस दिन गाय, बैल और बछड़ों को स्नान करवा कर उन्हें सुन्दर आभूषण पहनाएं। यदि आभूषण सम्भव न हो तो उनके सींगों को रंग से सजाएं अथवा उन्हें पीले फूलों की माला से सजाएं। उन्हें हरा चारा और गुड़ खिलाना चाहिए। उनकी आरती करते हुए उनके पैर छूने चाहिएं। गौशाला के लिए दान दें। गोधन की परिक्रमा करना अति उत्तम कर्म है। गोपाष्टमी को गऊ पूजा के साथ गऊओं के रक्षक ‘ग्वाले या गोप’ को भी तिलक लगा कर उन्हें मीठा खिलाएं। ज्योतिषियों के अनुसार गोपाष्टमी पर पूजन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं, उपासक को धन और सुख-समृ्द्धि की प्राप्ति होती है और घर-परिवार में लक्ष्मी का वास होता है।
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दीपावली के बाद ‘गोपाष्टमी’ त्यौहार सभी हिन्दू मनाते हैं। गोपाष्टमी हमारे निजी सुख और वैभव में हिस्सेदार होने वाले गौवंश का सत्कार है। द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया था तभी से इस महोत्सव को मनाने की परम्परा शुरु हुई। गोपाष्टमी की पूजा प्रत्येक वर्ष ” कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी ” के दिन गौ माता की पूजा की जाती है | वर्ष 2017 में गोपाष्टमी पूजन 28 अक्तूबर को होगा |
श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा करने और अपने भक्तों को दिए वचन को पूरा करने के लिए धरती पर अवतार लेकर गिरिराज गोवर्धन का मान बढ़ाने गोसंवर्धन के लिए ही यह लीला की।
हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं। माँ का दर्जा दिया जाता हैं क्यूंकि जैसे एक माँ का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिती में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं।
गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गोसंवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विध्दान पंडितो द्वारा संपन्न की जाती है। बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है। सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ रक्षा व गौ संवर्धन का संकल्प करते हैं।
शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऎसा करने से प्रगत्ति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य की वृध्दि होती है।
हिन्दू धर्म में गायो का दर्जा उतना ही बताया गया है की जितना माँ का दर्जा होता है | कहा जाता है की माँ का ह्रदय जितना कोमल और सरल होता है उतना ही गौ माता का होता है | कहा जाता है की माँ अपने बच्चे के लालन पालन में कोई कमी नहीं रखती है उसी प्रकार गौ माता भी मनुष्य जाती को लाभ प्रदान करती है | कहा जाता है की गाय से उत्पन प्रतेक चीज लाभदायक होती है चाहे वह उसक दूध ,दही ,यहाँ तक की उसका मूत्र भी लाभदायक होता है | इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है की गाय की हम रक्षा करे | कहा जाता है की दवापर युग में कृष्ण भगवान ने गायो की सेवा की थी | जब भगवान ने गायो की सेवा की तो हम तो मनुष्य है | हमारी तो गाय पूज्यनीय है और माता के सामान है | तो हमें भी गायो की पूजा करनी चाहिए |
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गोपाष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त 2017
गोपाष्टमी तिथि प्रारंभ – 14:44, 27 अक्तूबर 2017
गोपाष्टमी तिथि अंत – 16:51, 28 अक्तूबर 2017
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कथा है कि बालक श्री कृष्ण आज से पहले केवल बछड़ों को चराने जाते थे और उन्हें अधिक दूर जाने की भी अनुमति नहीं थी ।
इसी दिन बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की और कहा कि, माँ मुझे गाय चराने की अनुमति चाहिए। उनके अनुग्रह पर नन्द बाबा, और यशोदा मैया ने शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने के लिए जो समय निकाला, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था। मैया ने भगवान को बहुत सुन्दर रूप से तैयार किया । उन्हें बड़े गोप-सखाओं जैसे वस्त्र पहनाये, सिर पर मोरमुकुट, पैरों में पैजनिया पहनाई । परंतु जब मैया उन्हें सुन्दर सी पादुका पहनाने लगी तो वे बोले यदि सभी गौओं और गोप-सखाओं को भी पादुकाएं पहनाएंगी तभी वे भी पहनेंगे । गोविन्द के इस प्रेम-पूर्ण व्यवहार से मैया का हृदय भर आया और वे भावविभोर हो गयीं । इसके पश्चात् बालक कृष्ण ने गायों की पूजा की तथा प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम किया और बिना पादुका पहने गोचारण के लिए निकल पड़े ।
ब्रज में किवदंती यह भी है कि, राधारानी भी भगवान के साथ गोचारण के लिए जाना चाहती थीं परंतु स्त्रियों को इसकी अनुमति नहीं थी इसलिए वे और उनकी सखियाँ गोप-सखाओं का भेष धारण करके उनके समूह में जा मिले । परंतु भगवान ने श्रीमती राधारानी को तुरंत पहचान लिया । इसी लीला के कारण आज के दिन ब्रज के सभी मंदिरों में राधारानी का गोप-सखा के रूप में श्रृंगार किया जाता है ।
गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गोसंवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। इसके लिए दीपक, गुड़, केला, लडडू, फूल माला, गंगाजल इत्यादि वस्तुओं से इनकी पूजा की जाती है। महिलाएं गऊओं से पहले श्री कृष्ण की पूजा कर गऊओं को तिलक लगाती हैं। गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। बाद में सभी को प्रसाद वितरण किया जाता है। सभी लोगों को गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ रक्षा व गौ संवर्धन का संकल्प करते हैं ।
गोपाष्टमी के दिन गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा उनसे सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गोपाष्टमी पूजन के पश्चात् गायों की चरणधूलि को अपने मस्तक पर लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। यदि संभव हो सके तो इस दिन गायों के साथ कुछ दूर तक चलना भी चाहिए क्योंकि माना जाता है कि ऐसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। कई स्थानों पर गोपाष्टमी के अवसर पर गायों की उपस्थिति में प्रभातफेरी और सत्संग के कार्यक्रम भी संपन्न होते हैं और अन्नकूट भंडारे का आयोजन किया जाता है। गोपाष्टमी पर्व की पूर्व संध्या पर कई मंदिरों में सत्संग-भजन का आयोजन भी किया जाता है। गोपाष्टमी पूजन बहुत पुण्यदायी माना जाता है और गो सेवा करने से जीवन धन्य हो जाता है।
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जानिए, गौ माता के किस अंग में कौनसे देवी देवता का होता हैं निवास—
शास्त्रों के अनुसार, सभी देवी-देवता गाय में वास करते हैं। इसलिए गाय को अत्यंत पवित्र माना जाता है। गाय की सेवा करने से आसुरी वृत्ति का नाश होता है और मनुष्य सद्मार्ग की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित होता है। जब हम कहते हैं कि गाय में 33 करोड़ देवी देवता निवास करते हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि हम गाय के अंग अंग को देवताओं का भौतिक निवास मानकर चलें, बल्कि गाय की सेवा करने से जो श्रद्धाभाव एवं प्रेम का वातावरण बनता है। जानिए, गाय के किस अंग में कौनसे देवता का वास है।
पद्म पुराण में कहा गया है कि गाय के मुख में चारों वेद बसते हैं। उसके सींगों में शिवजी तथा भगवान विष्णु का निवास है। गौ माता के पेट में कार्तिकेय निवास करते हैं। इसी प्रकार माथे पर ब्रह्मा, रुद्र, सींगों के अगले हिस्से में इंद्र का वास है।
गाय के दोनों कानों में अश्विनी कुमार हैं। आंखों में सूर्यदेव और चंद्रमा, दांतों में गरुड़ और जीभ में मां सरस्वती, अपान में सभी तीर्थ और मूत्र स्थान में गंगाजी का वास है।
गाय के रोमकूपों में ऋषियों का निवास है, पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्र्व में वरुण देव एवं कुबेर, वाम पार्श्र्व में यक्ष, मुंह के अंदर गंधर्व, नाक के अगले भाग में नाग, खुरों के पृष्ठभाग में अप्सराओं का निवास है।
गाय के गोबर में 86 प्रतिशत तक द्रव पाया जाता है। गोबर में खनिजों की भी मात्रा कम नहीं होती। इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैंगनीज़, लोहा, सिलिकन, ऐल्यूमिनियम, गंधक आदि कुछ अधिक मात्रा में विद्यमान रहते हैं तथा आयोडीन, कोबल्ट, मोलिबडिनम आदि भी थोड़ी थोड़ी मात्रा में रहते हैं।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार गोमूत्र में गांगा मैया का वास है। इसलिए आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए गोमूत्र पीने की भी सलाह दी जाती है। श्वास रोग, आंत्रशोथ, पीलिया, मुख रोग, नेत्र रोग, अतिसार, मूत्राघात और कृमिरोग का उपचार गोमूत्र से होता हे। इसके आलावा आधुनिक चिकित्सा विज्ञानी गोमूत्र को हृदय रोग, कैंसर, टीबी, पीलिया, हिस्टिरिया जैसे खतरनाक रोगों में प्रभावकारी मानते हैं।
वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से भी गोबर को चर्म रोग एवं गोमूत्र को कई रोगों में फायदेमंद बताया गया है। गोमूत्र का इस्तेमाल आयुर्वेदिक चीजें बनाने में भी होता हे। गाय के अंगों में सभी देवताओं का निवास होता है। गाय की छाया भी बेहद शुभप्रद मानी गयी है। गोमूत्र में मोजूद गुणों के कारण उसे इसे ‘अमृत’ कहा गया है।
गोबर को जलाने से उसमे जो धुआ निकलता हे उससे सकारात्मक ऊर्जा फेलती है। सिर्फ इतना ही नहीं यह हमारे आसपास के वातावरण का भी शुध्ध और पवित्र रखता हे। उन्हीं कारणों की वजह से इसे पवित्र माना गया हे।
नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है। जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है।
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ज्योतिष से जानिए गाय (गौ माता) की महिमा—
1. ज्योतिष में गोधूलि का समय विवाह के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
2. यदि यात्रा के प्रारंभ में गाय सामने पड़ जाए अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई सामने पड़ जाए तो यात्रा सफल होती है।
3. जिस घर में गाय होती है, उसमें वास्तुदोष स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
4. जन्मपत्री में यदि शुक्र अपनी नीच राशि कन्या पर हो, शुक्र की दशा चल रही हो या शुक्र अशुभ भाव (6, 8, 12)- में स्थित हो तो प्रात:काल के भोजन में से एक रोटी सफेद रंग की गाय को खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र संबंधी कुदोष स्वत: समाप्त हो जाता है।
5. पितृदोष से मुक्ति- सूर्य, चंद्र, मंगल या शुक्र की युति राहु से हो तो पितृदोष होता है। यह भी मान्यता है कि सूर्य का संबंध पिता से एवं मंगल का संबंध रक्त से होने के कारण सूर्य यदि शनि, राहु या केतु के साथ स्थित हो या दृष्टि संबंध हो तथा मंगल की युति राहु या केतु से हो तो पितृदोष होता है। इस दोष से जीवन संघर्षमय बन जाता है। यदि पितृदोष हो तो गाय को प्रतिदिन या अमावस्या को रोटी, गुड़, चारा आदि खिलाने से पितृदोष समाप्त हो जाता है।
6. यदि किसी की जन्मपत्री में सूर्य नीच राशि तुला पर हो या अशुभ स्थिति में हो अथवा केतु के द्वारा परेशानियां आ रही हों तो गाय में सूर्य-केतु नाड़ी में होने के फलस्वरूप गाय की पूजा करनी चाहिए, दोष समाप्त होंगे।
7. यदि रास्ते में जाते समय गोमाता आती हुई दिखाई दें तो उन्हें अपने दाहिने से जाने देना चाहिए, यात्रा सफल होगी।
8. यदि बुरे स्वप्न दिखाई दें तो मनुष्य गोमाता का नाम ले, बुरे स्वप्न दिखने बंद हो जाएंगे।
9. गाय के घी का एक नाम आयु भी है- ‘आयुर्वै घृतम्’। अत: गाय के दूध-घी से व्यक्ति दीर्घायु होता है। हस्तरेखा में आयुरेखा टूटी हुई हो तो गाय का घी काम में लें तथा गाय की पूजा करें।
10. देशी गाय की पीठ पर जो ककुद् (कूबड़) होता है, वह ‘बृहस्पति’ है। अत: जन्म पत्रिका में यदि बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर में हों या अशुभ स्थिति में हों तो देशी गाय के इस बृहस्पति भाग एवं शिवलिंगरूपी ककुद् के दर्शन करने चाहिए। गुड़ तथा चने की दाल रखकर गाय को रोटी भी दें।
11 गोमाता के नेत्रों में प्रकाश स्वरूप भगवान सूर्य तथा ज्योत्स्ना के अधिष्ठाता चन्द्रदेव का निवास होता है। जन्मपत्री में सूर्य-चन्द्र कमजोर हो तो गोनेत्र के दर्शन करें, लाभ होगा।
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जानिए गाय से जुड़े वैज्ञानिक सच क्या है ???
• कहते हैं की देसी गाय की गर्दन का उभरा हुआ भाग शिव लिंग है । जबकि वास्तविकता यह है की इसमें सूर्यकेतू नाम की नाड़ी होती है जो सूर्य की ऊष्मा को अपनी ओर आकर्षित करती है इससे गाय की दूध में शक्ति आती है।
• श्याम वर्ण की गाय का दूध वात संबंधी रोगों के निवारण में सहायक होता है। पीले रंग की गाय का दूध पित्त और वात रोग को दूर करने वाला माना गया है।
• गाय के गोबर से खाद और विटामिन बी 12 की प्रचुर मात्रा मिलती है। इसी गोबर के कंडे जलाने से किटाणु और मच्छर आदि का नाश होता है।
• गोमूत्र से लीवर और मधुमेह संबंधी बीमारियाँ बहुत आसानी से दूर होती हैं।
• गाय के रंभाने से वातावरण शुद्ध होता है। इसलिए इसे पर्यावरण की संरक्षिका भी कहा गया है। वैज्ञानिक इस बात पर भी सहमत हैं की गाय ही एक ऐसा प्राणी है जो न केवल ऑक्सीजन ग्रहण करती है बल्कि छोड़ती भी है।
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जानिए गाय से जुडी धार्मिक मान्यताएं—
गाय का धार्मिक/ सांस्कृतिक महत्व:—-
गौ की उत्पत्ति की पुराणों में कई प्रकार की कथायें मिलती हैं। पहली तो यह है कि जब ब्रह्मा एक मुख से अमृत पी रहे थे तो उनके दूसरे मुख से कुछ फेन निकल गया और उसी से आदि-गाय सुरभि की उत्पत्ति हुई। दूसरी कथा में कहा गया है कि दक्ष प्रजापति की साठ लड़कियाँ थीं उन्हीं में से एक सुरभि भी थी। तीसरे स्थान पर यह बतलाया गया है कि सुरभि अर्थात् स्वर्गीय गाय की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय चौदह रत्नों के साथ ही हुई थी। सुरभि से सुनहरे रंग की कपिला गाय उत्पन्न हुई। जिसके दूध से क्षीर सागर बना।
प्राचीन काल से आर्य-जाति गौ की बहुत अधिक महिमा मानती आई है। ऋग्वेद तथा अन्य वेदों में भी गौ के गुणानुवाद के सैकड़ों मंत्र भरे पड़े हैं। गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने भी कहा है कि ‘गौओं में कामधेनु मैं हूँ।” गाय के शरीर में सभी देवता निवास करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि धन की देवी लक्ष्मी जी पहले गाय के रूप में आयी और उन्हीं के गोबर से विल्व वृक्ष की उत्पत्ति हुई।
कपिल मुनि के शाप से जले हुये अपने साठ हजार पूर्वजों की राख का पता जब राजा रघु नहीं लगा सके तब वे गुरु वशिष्ठ जी के पास आये। गुरुजी ने दया करके उनकी आँखों में नन्दिनी गाय का मूत्र आँज दिया, जिससे रघु को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो गई और वे पृथ्वी में दबी हुई अपने पुरखों की राख का पता लगाने में समर्थ हो सके।
गंगाजी को पहले पहल जब संसार (मृत्यु लोक) में आने को कहा तो वे बहुत दुखी हुई और आना कानी करने लगीं। उन्होंने कहा कि “पृथ्वी पर पापी लोग मुझ में स्नानादि करके अपवित्र किया करेंगे, इसलिये मैं मृत्युलोक में न जाऊँगी। तब पितामह ब्रह्माजी ने समझाया कि “लोग तुमको कितना भी अपवित्र करें किन्तु फिर भी गौ का पैर लगने से तुम पवित्र होती रहोगी।” इससे भी गौ और गंगा के हिन्दू धर्म से विशेष सम्बन्ध होने पर प्रकाश पड़ता है।
गाय सब प्राणियों की माता है और प्राणियों को सब प्रकार के सुख प्रदान करती है।
ऋग्वेद ने गाय को अघन्या कहा है।
यजुर्वेद कहता है कि गौ अनुपमेय है।
अथर्ववेद में गाय को संपतियों का घर कहा गया है।
अमृतपान से ब्रह्माजी के मुख से फेन निकला, उससे गौएं उत्पन्न हुई। गोदुग्ध से क्षीर सागर बना। समुद्र मंथन से कामधेनु की उत्पत्ति हुई। पौराणिक मान्यताओं व श्रुतियों के अनुसार, गौएं साक्षात विष्णु रूप है, गौएं सर्व वेदमयी और वेद गौमय है। भगवान श्रीकृष्ण को सारा ज्ञानकोष गोचरण से ही प्राप्त हुआ। जिससे आगे चलकर सारें संसार का उद्धार करने वाली गीता का ज्ञान निकला।
श्रीकृष्ण गौ सेवा से जितने प्रसन्न होते है उतने किसी अन्य प्रकार से नहीं। गणेश भगवान का सिर कटने पर शिवजी कर मूल्य एक गाय रखा गया और वहीं पार्वती को देनी पड़ी। भगवान राम के पूर्वज महाराजा दिलीप नन्दिनी गाय की पूजा करते थे। भगवान भोलेनाथ का वाहन नन्दी दक्षिण भारत की आंगोल नस्ल का सांड था।
जैन आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का चिह्न बैल था। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में चारों फल गाय के चार थन है। महात्मा नामदेव ने दिल्ली के बादशाह के आह्नवान पर मृत गाय को जीवनदान दिया। शिवाजी महाराज को समर्थ रामदास की कृपा से गौ-ब्राहमण प्रतिपालक की उपाधि प्राप्त हुई। दशम् गुरू गोविन्द सिंह ने चण्डी दी वार में दुर्गा भवानी से गौ- रक्षा की मांग की है।
यही देहु आज्ञा तुर्क खपाऊँ। गऊघात का दोष जग सिउ मिटाऊँ।।
यही आस पूरन करों तु हमारी। मिटे कष्ट गौअन, छटै खेद भारी।।
भगवान बुद्ध को गाय के पास उस क्षेत्र के सरदार की बेटी सुजाता द्वारा गायों के दूध की खीर खानें पर तुरन्त ज्ञान और मुक्ति का मार्ग मिला। गायों को वे मनुष्य की परम मित्र कहते है। जैन आगमों में कामधेनु को स्वर्ग की गाय कहा गया है और प्राणिमात्र को अवध्या माना है। भगवान महावीर के अनुसार गौ रक्षा बिना मानव रक्षा संभव नहीं। साथ ही गाय दौलत की रानी है। ईसा मसीह ने कहा है कि एक बैल को मारना एक मनुष्य को मारने के समान है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते है कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है जबकि उसके मांस से 80 मांसाहारी लोग अपना पेट भर सकते है। गांधीजी ने कहा है कि गोवंश की रक्षा ईश्वर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना है, भारत की सुख- समृद्धि गाय के साथ जुड़ी हुई है।
गाय प्रसन्नता और उन्नति की जननी है, गाय कई प्रकार से अपनी जननी से भी श्रेष्ठ है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कहा था कि आजादी के बाद कलम की एक नोक से पूर्ण गो-हत्या बंद कर दी जायेगी। प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद कहते थे कि भारत में गौ पालन सनातन धर्म है।
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गोपाष्टमी पूजन विधि—-
कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी त्यौहार के रूप में मनाया जाता है | यह त्यौहार ब्रज की संस्कृति को पुनर्जीवित उदहारण है | कहा जाता है की इस गोपाष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने गौचारण लीला आरम्भ की थी | कहा जाता है की भगवान श्रीकृष्ण ने गायों की रक्षा गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा कर की थी उस दिन से भगवान श्री कृष्ण का नाम गोविन्द भी पड़ा था | कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से सप्तमी तक गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाये रखा था |जिस की वजह से गो-गोपियों की रक्षा की थी | तब जाकर इन्द्र देव का अहंकार समाप्त हुआ और वो श्रीकृष्ण की शरण में आये | और यह भी कहा जाता है की इस दिन कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया था | तब से श्रीकृष्ण जी का नाम गोविन्द पड़ा था |
गोपाष्टमी त्यौहार के दिन गाय के बछड़े सहित पूजा करने की परंपरा है | गोपाष्टमी के दिन नित्य कार्य करने के बाद गायों को स्नान कराकर गौ माता के सींगो में मेहंदी, हल्दी, रंग के छापे लगाकर सजाया जाता है | और गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिय | गया की आरती उतारी जाती है | इस दिन कई व्यक्ति ग्वालों को उपहार देकर उनका भी पूजन करते हैं | गायों को गो-ग्रास दिया जाता है | गोपाष्टमी के दिन जब गाये चरकर घर आये तब भी उनको गो गास खिलाना चाहिए | और उनके चरणों को माथे से लगाये | गोपाष्टमी का त्यौहार मुख्यतय गोशालाओं में मनाया जाता है | गोपाष्टमी के दिन गोशालाओं में दान देना चाहिए | और इस दिन गाय की रक्षा करनी चाहिए।
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आखिर क्यों हुईं गोपाष्टमी के दिन नेहरू खानदान में मौतें ???
बात साठ के दशक की है इंदिरा गांधी के लिये उस समय चुनाव जीतना बहुत मुश्किल था,करपात्री जी महाराज के आशीर्वाद से इंदिरा गांधी चुनाव जीती.इंदिरा ग़ांधी ने उनसे वादा किया था चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्ल खाने बंद हो जायेगें.जो अंग्रेजो के समय से चल रहे हैं.लेकिन इंदिरा गांधी मुसलमानों और कम्यूनिस्टों के दवाब में आकर अपने वादे से मुकर गयी.प्रधानमंत्री ने संतों इस मांग को ठुकरा दिया,जिसमे सविधान में संशोधन करके देश में गौ वंश की हत्या पर पाबन्दी लगाने की मांग की गयी थी,तो संतों ने 7 नवम्बर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया,हिन्दू पंचांग के अनुसार उस दिन विक्रमी संवत 2012 कार्तिक शुक्ल की अष्टमी थी,जिसे “गोपाष्टमी” भी कहा जाता है.इस धरने में मुख्य संतों के नाम इस प्रकार हैं, शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ,स्वामी करपात्री महाराज और रामचन्द्र वीर है.राम चन्द्र वीर तो आमरण अनशन पर बैठ गए थे,लेकिन इंदिरा गांधी ने उन निहत्ते और शांत संतों पर पुलिस के द्वारा गोली चलवा दी,जिस से कई साधू मारे गए .इस ह्त्या कांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने अपना त्याग पत्र दे दिया,और इस कांड के लिए खुद को सरकार को जिम्मेदार बताया था. लेकिन संत ” राम चन्द्र वीर ” अनशन पर डटे रहे जो 166 दिनों के बाद उनकी मौत के बाद ही समाप्त हुआ था .राम चन्द्र वीर के इस अद्वितीय और इतने लम्बे अनशन ने दुनिया के सभी रिकार्ड तोड़ दिए है.यह दुनिया की पहली ऎसी घटना थी जिसमे एक हिन्दू संत ने गौ माता की रक्षा के लिए 166 दिनों तक भूखे रह कर अपना बलिदान दिया था .
इंदिरा के वंश पर श्राप
लेकिन खुद को निष्पक्ष बताने वाले किसी भी अखबार ने इंदिरा के डर से साधुओं पर गोली चलने और रामचंद्र वीर के बलिदान की खबर छापने की हिम्मत नहीं दिखायी, सिर्फ मासिक पत्रिका “आर्यावर्त ” और “केसरी ” ने इस खबर को छापा था.कुछ दिन बाद गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका “ कल्याण ” ने ” गौ अंक में एक विशेषांक ” प्रकाशित किया था,जिसमे विस्तार सहित यह घटना दी गयी थी.जब मीडिया वालों ने अपने मुहों पर ताले लगा लिए थे तो करपात्री जी ने कल्याण के उसी अंक में इंदिरा को सम्बोधित करके कहा था “यद्यपि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या करवाई है, फिर भी मुझे इसका दुःख नही है.लेकिन तूने गौ हत्यारों को गायों की हत्या करने की छूट देकर जो पाप किया है वह क्षमा के योग्य नहीं है,इसलिये मैं आज तुझे श्राप देता हूँ कि “गोपाष्टमी” के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा! “आज मैं कहे देता हूँ कि गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का भी नाश होगा”
श्राप सच हो गया
जब करपात्री जी ने यह श्राप दिया था तो वहाँ “प्रभुदत्त ब्रह्मचारी” भी मौजूद थे,करपात्री जी ने जो भी कहा था वह आगे चल कर अक्षरशः सत्य हो गया.इंदिरा का का वंश गोपाष्टमी के दिन ही नाश हो गया.
सबुत के लिए इन मौतों की तिथियों पर ध्यान दीजिये-
1-संजय गांधी की मौत आकाश में हुई उस दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार “ गोपाष्टमी ” थी .
2-इंदिरा की मौत घर में हुई उस दिन भी ” गोपाष्टमी थी
3-राजीव गांधी तमिलनाडू में मरे उस दिन भी “ गोपाष्टमी ” ही थी .
उस दिन करपात्री जी महाराज ने उपस्थित लोगों के सामने गरज कर कहा था कि लोग भले इस घटना को भूल जाएँ लेकिन मैं इसे कभी नहीं भूल सकता.गौ हत्यारे के वंशज नहीं बचेंगे चाहे वह आकाश में हो या पाताल में हों,और चाहे घर में हो या बाहर हो यह श्राप इंदिरा के वंशजों का पीछा करता रहेगा.
फिर करपात्री जी ने राम चरित मानस की यह चौपाई लोगों को सुनायी,
“संत अवज्ञा करि फल ऐसा, जारहि नगर अनाथ करि जैसा”
राम चरित मानस – लंका काण्ड
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जानिये गौ माता की अद्भुत महिमा और अनजान रहस्य !!
महामहिमामयी गौ हमारी माता है उनकी बड़ी ही महिमा है वह सभी प्रकार से पूज्य है गौमाता की रक्षा और सेवा से बढकर कोई दूसरा महान पुण्य नहीं है .1. गौमाता को कभी भूलकर भी भैस बकरी आदि पशुओ की भाति साधारणनहीं समझना चाहिये गौ के शरीर में “३३ करोड़ देवी देवताओ” का वास होता है.गौमाता श्री कृष्ण की परमराध्या है, वे भाव सागर से पार लगाने वाली है.2. गौ को अपने घर में रखकर तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिये, ऐसा कहा गया है जो तन- मन-धन से गौकी सेवा करता है. तो गौ उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करती है.3. प्रातः काल उठते ही श्री भगवत्स्मरण करने के पश्चात यदि सबसे पहले गौमाता के दर्शन करने को मिल जाये तो इसे अपना सौभाग्यमानना चाहिये.4. यदि रास्ते में गौ आती हुई दिखे, तो उसे अपने दाहिने से जाने देना चाहिये.5. जो गौ माता को मारता है, और सताता है, या किसी भी प्रकार का कष्ट देता है, उसकी २१ पीढियाँ नर्क में जाती है.6. गौ के सामने कभी पैर करके बैठना या सोना नहीं चाहिये, न ही उनके ऊपरकभी थूकना चाहिये, जो ऐसा करता है वो महान पाप का भागी बनता है.7. गौ माता को घर पर रखकर कभी भूखी प्यासी नहीं रखना चाहिये न ही गर्मी में धूप में बाँधना चाहिये ठण्ड में सर्दी में नहीं बाँधना चाहिये जो गाय को भूखी प्यासी रखता हैउसका कभी श्रेय नहीं होता.8. नित्य प्रति भोजन बनाते समय सबसे पहले गाय के लिए रोटी बनानी चाहिये गौग्रास निकालना चाहिये.गौ ग्रास का बड़ा महत्व है.9. गौओ के लिए चरणी बनानी चाहिये, और नित्य प्रति पवित्र ताजा ठंडा जल भरना चाहिये, ऐसा करने से मनुष्य की “२१ पीढियाँ” तरजाती है .10. गाय उसी ब्राह्मण को दान देना चाहिये, जो वास्तव में गाय को पाले, और गाय की रक्षा सेवाकरे, यवनों को और कसाई को न बेचे. अनाधिकारी कोगाय दान देने से घोर पापलगता है .11. गाय को कभी भी भूलकर अपनी जूठन नहीं खिलानी चाहिये, गाय साक्षात् जगदम्बा है. उन्हें जूठन खिलाकर कौन सुखी रह सकता है .12. नित्य प्रति गाय के परम पवित्र गोवर से रसोई लीपना और पूजा के स्थान को भी, गोमाता केगोबर से लीपकर शुद्ध करना चाहिये .13. गाय के दूध, घी, दही, गोवर, और गौमूत्र, इन पाँचो को ‘पञ्चगव्य’ के द्वारा मनुष्यों के पाप दूर होते है.14. गौ के “गोबर में लक्ष्मी जी” और “गौ मूत्र में गंगा जी” का वास होता है इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में उपयोग करने से पापों का नाश होता है, और गौमूत्र से रोगाणु नष्ट होते है.15. जिस देश में गौमाता के रक्त का एक भी बिंदु गिरता है, उस देश में किये गए योग, यज्ञ, जप, तप, भजन, पूजन , दान आदि सभी शुभ कर्म निष्फल हो जाते है .16. नित्य प्रति गौ की पूजा आरती परिक्रमा करना चाहिये. यदि नित्य न हो सके तो”गोपाष्टमी” के दिन श्रद्धा से पूजा करनी चाहिये .17. गाय यदि किसी गड्डे में गिर गई है या दलदल में फस गई है, तो सब कुछ छोडकर सबसे पहले गौमाता को बचाना चाहिये गौ रक्षा में यदि प्राण भी देना पड़ जाये तो सहर्ष दे देने से गौलोक धामकी प्राप्ति होती है.18. गाय के बछड़े को बैलो को हलो में जोतकर उन्हें बुरी तरह से मारते है, काँटी चुभाते है, गाड़ी में जोतकर बोझा लादते है, उन्हें घोर नर्ककी प्राप्ति होती है .19. जो जल पीती और घास खाती, गाय को हटाता है वो पाप के भागी बनते है .20. यदि तीर्थ यात्रा की इच्छा हो, पर शरीर मेंबल या पास में पैसा न हो, तो गौ माता के दर्शन, गौ की पूजा, और परिक्रमा करने से, सारे तीर्थो का फल मिल जाता है, गाय सर्वतीर्थमयी है, गौ कीसेवा से घर बैठे ही ३३देवी देवताओ की सेवा हो जाती है .21. जो लोग गौ रक्षा के नाम पर या गौ शालाओ के नाम पर पैसा इकट्टा करते है, और उन पैसो से गौ रक्षा न करके स्वयं ही खा जाते है, उनसे बढकर पापी और दूसरा कौन होगा. गौमाता के निमित्त में आये हुए पैसो में से एक पाई भी कभी भूलकर अपने काम में नहीं लगानी चाहिये, जो ऐसा करता है उसे “नर्कका कीड़ा” बनना पडता है . गौ माता की सेवा ही करने में ही सभी प्रकारकेश्रेय और कल्याण है
प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों ने गाय को पूजनीय बताया है।गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसके मल मूत्र तक पवित्र हैं। गाय का दूध तो रोगों में उपयोगी है ही उसका मूत्र और गोबर भी अत्यंत उपयोगी है। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है। दूध देते समय गाय के मूत्र में लेक्टोज की वृद्धि होती है। जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है। गाय का दूध फैट रहित परंतु शक्तिशाली होता है उसे पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है। गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश होता है। गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है। गोमूत्र का एक पाव रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है।गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है।
कौटिलीय अर्थशास्त्र में गो – पालन और गो – रक्षण का विस्तृत विवरण मिलता है। जिस भूमि में खेती न होती हो , उसे गोचर बनाने का आदेश अर्थशास्त्र का ही है। इस प्रकार गोधन ‘ अर्थ ‘ और’ धर्म ‘ दोनों का प्रबल पोष क है। अर्थ से ही काम कामनाओं की सिद्धि होती है और धर्म से ही मोक्ष की। अतएव गोधन से अर्थ ,धर्म , काम , मोक्ष – चारों की प्राप्ति होती है। इसीलिये भारतीय जीवन में गोधन का इतना ऊँचा माहात्म्य है। जो हिंदू धर्मशास्त्र पर विश्वास रखते हैं , उन्हें चाहिये कि चतुर्वर्ग – फल – सिद्धयर्थ शास्त्रविधान के अनुसार गो सेवा करते हुए गोधन की वृद्धि करें और जो धर्मशास्त्र पर आस्था नहीं रखते , उन्हें चाहिये कि ‘ अर्थ ‘ और ‘ काम ‘ की सिद्धि के लिये अर्थशास्त्र के नियमों के अनुसार गोपालन करते हुए गोवंश की वृद्धि करने का प्रयत्न करें।
प्रल्यक्षवादियों के लिये इससे अधिक गोमाता की दयालुता हो ही क्या सकती है कि वह सूखे तृण भक्षण करके जन्म भर उन्हें दुग्ध – घृत – जैसे पौष्टिक द्रव्य प्रदान करे। इतने पर भी यदि वे गोमाता के कृतज्ञ हुए , तब तो उन में मानवता का लेश भी नहीं माना जा सकता। गोमाता के द्वारा मानवसमाज को जो लाभ है , उसे पूर्णतय व्यक्त करने के लिये सहस्रों पृष्ठों की कई पुस्तकें लिखनी होंगी। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि गोमाता से मानवसमाज को जो लाभ है , उससे मानवजाति गोमाता की सदा ऋणी रहेगी।
वध आदि हिंसक उपायोंद्वारा गोवंश का ह्रास करना धार्मिक और आर्थिक दोनों हृष्टियों से राजा – प्रजा दोनों के लिये हानिकर है। अतएव ऐसी भय्ंकर प्रथाओं को सर्वथा रोकने का प्रयत्न सभी को करना चाहिये। कई देशी रजवाड़ों ने इस सम्बन्ध में प्रशंसनीय कार्य किया है किन्तु जबतक केन्द्रीय सरकार को इसके लिये बाध्य नहीं किया जायगा , तबतक सन्तोष – जनक परिणाम असम्भव – सा प्रतीत होता है। इसके लिये देशव्यापी यथेष्ट प्रयत्न होना चाहिये।
साथ – ही – साथ प्रत्येक गृह में गोपालन की प्राचीन प्रथा को बढ़ाने का प्रयत्न भी सभी सद्गृहस्थों को करना चाहिये। तालुकेदारों , जमींदारों , सेठ – साहूकारों आदि को चाहिये कि गोशालाओं की वृद्धि करें , जहाण् से आदर्श हृष्ट – पुष्ट गौओं और बैलों की प्राप्ति हो सके। गोचर भूमि के सम्बन्ध में आज कल की व्यवस्था अत्यन्त शोचनीय है। इस सम्बन्ध में मनुजी ने लिखा है – ‘ प्रत्येक गाण्व और शहर के चारों ओर काफी गोचर भूमि छोड़नी चाहिये।’ सभी समर्थ किसानों , जमींदारों और सेठ – साहूकारों को अपने – अपने केन्द्रों में गोचर भूमियों चाहिये। इसी में भारत और भारतीय सभ्यता का गौरव तथा सच्चा स्वार्थ निहित है। का यथोचित्र प्रबन्ध करना चाहिये। और गोधन की वृद्धि का सदैव ध्यान रखना चाहिये। इसी में भारत और भारतीय सभ्यता का गौरव तथा सच्चा स्वार्थ निहित है।
गाय विश्व में कमोबेश सभी देशों में पाली जाती है। लेकिन भारत में गाय गौमाता है। यहां गौ संस्कृति है। पश्चिमी दुनिया में गाय सिर्फ दूध और मांसाहार का स्रोत है। भारत में गौ कामधेनु है। इसे सब सुख प्रदा माना जाता है। लेकिन पश्चिमी दुनिया में अब मेडकाऊ रोग व्याधि के लिए जानी जाती है और जिस तरह वर्ड फ्लू के समय लाखों मुर्गियों का विनाश हुआ है,जिन देशों में गौ मांस, गाय की दूध तक उपयोगिता रह गयी है,गाय के साथ वहां लगाव सिर्फ आय प्रदायक पशु से अधिक नहीं है। भारत भूमि में गाय की महिमा आदिकाल से रही है। गौ माता के संरक्षण के लिए भगवान को अवतार लेना पड़ा है। श्रीकृष्ण तो अपना शैशव और किशोरवय गौमाता के लिए समर्पित कर देते हैं।
ऋग्वेद में गाय को अवद्या कहा गया है। यजुर्वेद में गौ माता न पिगते, कह कर इसे अनुपमेय बताया गया है। अथर्ववेद में गाय को धेनु:, सदनम् रमीणाम कहा गया है और इसे धन संपत्ति का भंडार कहा गया है। वैदिक काल में गृहस्थ की धनाढयता गौओ में गिनी जाती थी। सामान्य श्रेणी का गृहस्थ शतगु: सौ गायों वाला होता था। हजारों गायों वाले संपन्न गृहस्थ को शहस्त्र गु: संबोधित किया जाता था। पाश्चात्य सभ्यता ने अंधानुकरण का नतीजा यह हुआ कि हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों से दूर चले गए। गौ संपदा की अवनति के रूप में रासायनिक खादों, कीटाणु नाशकों की भरमार हुई। इसकी दुखद परिणति यह हुई कि वातावरण प्रदूषण के साथ मां के दूध तक में इक्कीस गुना, हानिकारक द्रव्य पहुंच गया है। अन्न, फल, सब्जियां भी प्रदूषण से प्रभावित हो चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस मामले में चेताया है।
वारह सौ वर्षों की गुलामी का सबसे त्रासद परिणाम यही है कि हम भूल गये कि भारत गौ संस्कृति, कृषि ऋषि प्रधान देश है। गाय के शरीर में देवता का वास है। इस अवधारणा के पीछे अध्यात्म भले ही न खोजा जाए लेकिन इसके अर्थशास्त्र को तो अब विश्व का विज्ञान और चिकित्सा विज्ञानी भी स्वीकार कर चुके हैं। एक गाय अपने जीवनकाल में चार लाख दस हजार से अधिक व्यक्तियों के आहार उत्पादन में सहायक होती है। लेकिन पश्चिमी उपभोक्ता संस्कृति के तहत इससे अस्सी मांसाहारी ही अपनी तृप्ति पाते हैं। गौ संरक्षण के प्रति बढ़ती जिज्ञासा और सक्रियता के पीछे इसका सात्विक अर्थशास्त्र, गौ उत्पादों में निहित संजीवनी शक्ति की शोध है। जिसने विश्व को चमत्कृत किया है। मजे की बात यह है कि दुनिया में गायों की जितनी नस्लें है. उनमें सर्वाधिक संजीवनी तत्व भारतीय गायों में है। जर्सी गायों में यह संजीवनी नगण्य है। जबकि दुग्ध उत्पादन क्षमता जर्सी में अधिक है। इसका अर्थशास्त्र दुग्ध उत्पादन तक सीमित है।
गाय के उत्पादों पर जो शोध हुए हैं, उससे भारत में गौ की महिमा के वे पृष्ठ खुलते जा रहे हैं, जिन्हें हमने गल्प मान कर खारिज कर दिया था। अमेरिका ने गौ मूत्र का पेन्टेट नं.6410059 किया है। इसका शीर्षक है- फार्मास्युटिकल कम्पोजीशन कन्टेनिंग काऊ यूरिन,डिस्टीलेट एंड एन एन्टीबायोटिक। इससे कैंसर के उपचार में मदद ली जा रही है। रुसी वैज्ञानिक शिरोविच ने अपने शोध के परिणाम उजागर किये हैं, जिनमें कहा गया है कि गाय का दूध एटामिक रेडीएशन से रक्षा करने में सर्वाधिक शक्ति रखता है।
डॉ.जुलियस, डा.ब्रुक जर्मन विज्ञानी ने कहा है कि गाय अपने निश्वास से प्राण वायु आक्सीजन छोड़ती है। पर्यावरण विज्ञानी डॉ.क्रांति सेन सर्राफ ने अपने शोध के परिणाम में बताया है कि जितना दुर्गंध वाला कचरा शहरों से निकलता है, उस पर गौ गोबर का घोल छिड़क दिया जाए तो दो फायदे होते हैं, कचरा खाद में बदला जाता है और दुर्गंध समाप्त हो जाती है। गौपालन में बढती जनरुचि के संदर्र्भ में यह रोचक तथ्य है कि देश में सर्वाधिक गौपशु मध्यप्रदेश में है। उत्तरप्रदेश और बिहार में भी यह संख्या अधिक है। उपयोगिता के आधार पर तीन श्रेणियां मान ली जाती है।
दुधारू मिल्च, मारवाही ड्राट, द्विकाजी-डुअल परपज। सामान्यत: देश में 27 नस्लें हैं। भारत में पायी जाने वाले सभी गौ नस्लें दूध की उत्कृष्टता की दृष्टि से यूरोपीय नस्लों से श्रेष्ठ है। आरोग्य के देवता भगवान धन्वतंरी ने उपदेश देते हुए आचार्य सुश्रुत से कहा कि गाय के शरीर में देवताओं का निवास होता है। गाय सर्वदेवमयी है। गोमय और गौमूत्र में साक्षात लक्ष्मी और गंगा का निवास है। गाय प्रेम और वात्सल्य की साक्षात मूर्ति है। इससे गाय के आयुर्वेदिक, वैज्ञानिक,आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक सभी दृष्टिकोण से गुण सामने आते हैं। आज भौतिक युग में गाय के आर्थिक पहलुओं को जनता के सामने लाकर गौ पालन को आर्थिक दृष्टि से लाभ दायक बनाए बिना गौपालन की प्रतिष्ठा संभव नहीं हो सकती है। गाय के उत्पाद दुग्ध, गोमय (गोबर) और गौ मूत्र के उपयोग को आर्थिक कसौटी पर कसना होगा।
गाय का दूध, धृत, मक्खन, छांछ के स्वास्थ्य चिकित्सकीय पहलुओं की जानकारी सामने लायी जाना चाहिए। आधुनिक शोध ने गौमूत्र के सेवन से रक्तचाप ठीक होने, भूख बढ़ने, किडनी के रोग ठीक होने की बात सिध्द कर दी है। अमेरिका का चिकित्सक क्राकोड हेमिल्टन ने इसका प्रयोग कर सिध्द कर दिया है कि गौमूत्र के उपयोग से हृदय रोग को ठीक किया जा सकता है। डॉ.सीमर्स ने गौमूत्र से रक्त बहने वाली नलियों को अनपेक्षित कीटाणुओं से मुक्त करने की बात उजागर की है। गोमूत्र अर्क से कैंसर का इलाज करने का नुस्खा अमेरिका में पेंटेट किया गया है। इसकी पेंटेट संख्या 6410056 है।
गोमूत्र और गोमय (गोबर) से आयुर्वेद की औषधियां, रसायन, टाइल्स, डिस्टेंपर, कीटाणु नाशक चूर्ण, दंत मंजन, हवन सामग्री का औद्योगिक उत्पादन कई शहरों में आरंभ हो चुका है। इससे गौमूत्र 5 रु. लीटर और गोबर 5 रु. किलो खरीदे जाने का सिलसिला आरंभ हो चुका है। गौमूत्र, गोबर से बनने वाले उत्पाद कुटीर उद्योग का रुप लेते जा रहे हैं। इससे रोजगार के नये अवसर पैदा हो रहे हैं।
पंचगव्य भारतीय समाज में सनातन काल से चला आ रहा है। इसका प्रतीकात्मक उपयोग देखते आ रहे हैं। इसके चिकित्सकीय गुणों का आकलन कर जन-जन के सामने लाने का वक्त आ गया है। पंच गव्य, देह, मन, बुध्दि को शुध्द करता है।
आजादी के पहले महात्मा गांधी ने कहा था कि आजादी प्राप्त होने पर पहला काम देश में गौ वध पर प्रतिबंध लगाना होगा। लेकिन राय सरकारों ने गौवंश के वध पर प्रतिबंध लगाने की पहल की है। जब तक केन्द्रीय कानून नहीं बनता, इस पर समग्र रोक संभव नहीं हो पाएगी। विडंबना की बात है कि भारत में गौवंश की हत्या ने उद्योग की रूप हासिल कर लिया है। एक ओर गौ वंश का क्षरण हो रहा है, दूसरी ओर देश में पोषक आहार का संकट गहराता जा रहा है। गौपालन के प्रति निरुत्साहित होने के पीचे गौपालन का अलाभकारी हो जाना है। इसे आर्थिक आधार देना होगा। इसके लिए गौ उत्पादों का व्यावसायीकरण करना होगा। पंचगव्य की महिमा को प्रामाणिकता के साथ जन-जन तक पहुंचाना सामयिक आवश्यकता है। पंचगव्य गौ दुध, गौ दही,गौ धृत, गोमय और गौ मूत्र के लिए स्वदेश गाय की नस्ल की जरूरत पड़ेगी। देशी गाय के दूध में अन्य रसायनों के साथ जो लवण, धातुएँ हैं, उनमें सोना भी है। गाय के पचास किलोग्राम दुध में एक ग्राम सोना की मात्रा होती है। यही वे तत्व हैं जो मानव जीवन को स्वास्थ्य, दीर्घ आयु,तेज, ओज प्रदान करते हैं। गाय के दूध में प्राप्त स्वर्णतत्व अन्यत्र दुर्लभ है। इससे गौपालन और पंचगव्य के गुणकारी होने का प्रमाण मिलता है।
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गाय का वैज्ञानिक महत्व
गाय के दूध में रेडियों विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक क्षमता होती है।
गाय कैसा भी तृण पदार्थ चाहे वो विषैला ही हो, खाए तब भी उसका दूध शुद्ध गौर निरापद होता है।
गाय का दूध हृदय रोग से बचाता है, शरीर में स्फूर्ति, चुस्ती व आलस्यहीनता लाता है, स्मरण शक्ति को बढाता है।
गाय के घी को आग पर डालकर धुंआ करने या हवन करने से वातावरण रेडियो विकिरण से बचता है।
गाय के रम्भानें की आवाज से मानसिक विकृतियां व रोग दूर होते है।
गाय के गोबर में हैजे के कीटाणुओ को खत्म करने की ताकत है, क्षय रोगियों को गाय के बाड़े में रखने से गोबर-गौ मूत्र का गंध से क्षय रोग के कीटाणु मर जाते है।
एक तोला घी से यज्ञ करने पर एक टन आक्सीजन बनती है।
गय की रीढ में सूर्यकेतु नाड़ी होती है जो सूर्य के प्रकाश में जाग्रत होती है और पीले रंग का पदार्थ छोड़ती है अतः गाय का दूध पीले रंग का होता है। यह केरोटिन तत्व सर्वरोग नाशक, सर्व विष विनाशक होता है।
रूस में प्रकाशित शोध के अनुसार कत्लखानों से भूकम्प की संभावनाएं बढती है।
गाय का आर्थिक महत्व
राष्ट्रीय आय का प्रतिवर्ष बड़ा भाग पशुधन से प्राप्त होता है।
40,000 मेगावाट अश्वशक्ति पशुधन से प्राप्त होती है।
5 करोड़ टन दूध प्रतिवर्ष पशुधन से मिलता है।
लाखों गैलन गोमूत्र यानि कीट नियंत्रक गोवंश से प्राप्त होता है।
देश का कुल विद्युतशकित का 70 फीसदी पशुशक्ति से प्राप्त हो सकता है।
एक गोवंशीय प्राणी के गोबर से बने केवल नाडेप खाद का मूल्य न्यूनतम 20 हजार रू. होता है।
गोवंश न केवल उत्तम दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी देता है बल्कि औषधियों और कीट नियत्रंकों का आधार गोमूत्र भी देता है साथ ही उत्तम जैविक खाद का स्त्रोत गोबर भी देता है।
भारतीय गोवंश से बैल प्राप्त होते है। देश में आज भी 70 प्रतिशत खेती का काम बैलों द्वारा होता है, बैल भारतीय रेलों की अपेक्षा अधिक यातायात का काम करते है।
भारतीय गोवंश के मूत्र और गोबर से करीब 32 औषधियों का निर्माण किया जाता है जो कई राज्य सरकारों द्वारा मान्यता प्राप्त है।
भारत की खेती हमारे गोवंश पर और गोवंश भारतीय खेती पर निर्भर है।
गोमूत्र में तांबा होता है जो मानव शरीर में जाकर सोने में बदल जाता है। सोने में सर्वरोगनाशक शक्ति होती है।
गाय के गोबर में 16 प्रकार के उपयोगी खनिज पाए जाते है।
मरें पशु के एक सींग में गोबर भरकर भूमि में दबाने से कुछ समय बाद एक एकड़ भूमि के लिए सींग या अणु खाद व मरें पशु के शरीर को भूमि में दबाने से समाधि खाद मिलता है तो कई एकड़ भूमि के लिए उपयोगी होता है।
गोमूत्र में आक, नाम या तुलसी आदि उबालकर कई गुणा पानी में मिलाकर बढिया कीट नियत्रंक बनाते है।
गोबर का खाद धरती का कुदरती आहार है, उससे भूमि का उपजाऊपन बढता है।
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