गोरखपुरः अबकी योगी के सामने आलाकमान ने टेके घुटने

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भोजपुरी सुपर स्टार रविकिशन लगाएंगे बीजेपी की नैया पार

संजय सेक्सना

गोरखपुर सदरन संसदीय सीट पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार और भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार रवि किशन ने लोकसभा चुनाव का टिकट मिलते ही चुनावी रणनीति बनाना शुरू कर दी है। रवि किशन ने आज लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ से मुलाकात करके उनका आशीर्वाद लिया। योगी आदित्यनाथ यहां से पांच बार सांसद रह चुके हैं। गोरखपुर योगी का मजबूत गढ़ माना जाता है,लेकिन सीएम बनने के बाद जब उन्होंने यहां से सांसद के रूप में त्यागपत्र दिया तो उनके बाद बीते वर्ष हुए उप-चुनाव में यहां भाजपा प्रतयाशी उपेंद्र दत्त शुक्ला  को समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी प्रवीण कुमार निषाद(अब भाजपा में) से बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था,जिसके चलते योगी की प्रतिष्ठा पर भी सवाल खड़े किए गए थे। योगी इस विवाद में तो नहीं फंसे लेकिन पार्टी के भीतर से जो संकेत सामने आए थे,उससे यह साफ हो गया था कि भाजपा आलाकमान ने यहां योगी की पसंद की परवाह न करते हुए अपनी पसंद का प्रत्याशी थोप दिया था,जिसके चलते भाजपा आलाकमान का प्रत्याशी योगी के आशीर्वाद से वंचित रह गया और उसे हार का सामना करना पड़ गया। ताज्जुब की बात यह भी गोरखपुर लोकसभा उप चुनाव के दौरान ही गुजरात और त्रिपुरा में हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा की जीत का श्रेय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दिया जा रहा था और उन्हें कर्नाटक में पार्टी के प्रचार के लिए भेजा जा रहा था, वही आदित्यनाथ अपनी लोकसभा सीट को जिताने में असफल रहे थे,जिससे उनकी काफी किरकिरी भी हुई थी।
 बहरहाल,योगी की नापंसद का प्रत्याशी क्या उतारा गया, गोरखपुर सदर संसदीय सीट के उप-चुनाव में भाजपा मुंह दिखाने लायक भी नहीं रही। समाजवादी पार्टी  ने 29 साल बाद भाजपा का किला ही ढहा दिया। 1989 से ही यह सीट गोरक्षपीठ और भाजपा के पास थी। यही नहीं मुख्यमंत्री योगी ने जिस बूथ पर वोट डाला था, वहां भी भाजपा हार गई है। वैसे,सच्चाई यह भी थी कि उसी समय दूसरा लोकसभा उप-चुनाव फूलपुर संसदीय सीट(प्रयागराज) में हुआ था जहां से 2014 में भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य 52 फीसदी वोट पाकर जीते थे. जिस व्यक्ति ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को तीन चैथाई बहुमत से जिताया और उपमुख्यमंत्री बना, वह अपनी ही लोकसभा सीट पर पार्टी को नहीं जिता पाया था,लेकिन योगी की नाकामी के सामने फूलपुर की हार को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया।क्योंकि यह बीजेपी का गढ़ भी नहीं था।

आश्चर्यजनक इसलिए भी था क्योंकि पिछले तीस सालों के दौरान देश में या राज्य में लहर चाहें किसी भी दल की हो, गोरखपुर में जीत भाजपा की ही होती थी। दोनों ही राष्ट्रीय दलों बीजेपी की तरह ही कांग्रेस को भी करारी हार का सामना करना पड़ा। उसकी प्रत्याशी डॉ. सुरहीता करीम की जमानत तक जब्त हो गई थी। उप-चुनाव में सपा को मुस्लिम, यादव, दलित और निषादों के अच्छे वोट मिले हैं।
सूत्रों के अनुसार योगी ने उप-चुनाव के समय ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साफ तौर पर बताया दिया था कि गोरखपुर में केवल गोरखपुर पीठ का व्यक्ति ही जीत सकता है. लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने चुना उपेन्द्र शुक्ला को जो गोरखपुर के क्षेत्रीय अध्यक्ष थे। इसके पीछे बीजेपी आलाकमान का अपना तर्क था। वहीं योगी का कहना था गोरखपुर के आसपास के इलाके में जगदंबिका पाल को छोड़कर अन्य सभी सांसद ब्राह्मण हैं. ऐसे में एक अन्य ब्राह्मण को चुनाव लड़ाना जातिगत समीकरणों के लिहाज से भी ठीक नहीं था।
वैसे भी गोरखपुर में निषाद सहित पिछड़ी जातियां काफी संख्या में हैं यही वजह है समाजवादी पार्टी ने कभी फूलन देवी को सांसद बनाया था। इसी वजह से सपा के निषाद उम्मीदवार को सजातीय वोट काफी संख्या में मिले। निषाद वोट बैंक का महत्व मुलायम सिंह ने सबसे पहले पहचाना था। तभी 1999 में उन्होंने गोरखपुर से गोरख निषाद को उम्मीदवार बनाया था। एक जनसभा में उन्होंने यादवों की भारी संख्या देखकर कहा था-यादव, निषाद यहाँ है तो मुसलमान कहां जाएगें?
खैर,अबकी से योगी ही चली। उन्हीं के कहने पर रवि किशन को बीजेपी ने गोरखपुर से टिकट दिया है। सीएम से मुलाकात के बाद रवि किशन ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की अभूतपूर्व जीत होगी और नरेंद्र मोदी फिर से देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। बताते चलें भोजपुरी फिल्मों से अपने करियर की शुरुआत करने वाले रवि किशन ने राजनीति की पारी कांग्रेस से शुरू की थी। उन्होंने ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जौनपुर से चुनाव लड़ा था। हालांकि उन्हेें हार का सामना करना पड़ा था। इस बार वह भाजपा से किस्मत आजमा रहे हैं।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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  1. योगी के सामने घुटने टेकने के लिए भा ज पा आलाकमान के पास अन्य कोई विकल्प भी नहीं था उपचुनाव में पराजय के बाद वह पुनः ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहती थी इसलिए ऐसा करना जरुरी भी था अब इन्हें जिताना योगी की बड़ी जिम्मेदारी बन गयी है

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