सारे हिन्दू ऋषियों के गोत्रज, जाति छोड़ो गोत्र धारण करो

—विनय कुमार विनायक
जब ब्राह्मण भी हिन्दू है और गैर ब्राह्मण भी हिन्दू है,
तो दोनों हैं हिन्दू भाई, फिर विवाह और श्राद्ध भोज में
एक साथ एक पाँति में बैठकर क्यों नहीं भोजन करते?
ब्राह्मण भोज के नाम अलग अगली पाँति क्यों चाहते?

इस स्थिति में दोनों में कोई एक हिन्दू नहीं हो सकते,
हिन्दू हो, तो हिन्दू कहने के पूर्व ब्राह्मण क्यों बोलते?
या वो हिन्दू हैं, तो हिन्दू के पहले उसे शूद्र क्यों कहते?
ब्राह्मण में विशेषता,शूद्र में कमी वैज्ञानिक नहीं बताते!

साक्षी भाव से कहो, गर्व से पहले क्या बोलना चाहते?
हिन्दू या ब्राह्मण,ब्राह्मण या हिन्दू, क्या कहना चाहते?
पहले तुम क्या बोलते ब्राह्मण ही तो,निरुत्तर क्यों हो?
क्योंकि तुम पहले ब्राह्मण हो, हिन्दू बाद में बनते हो!

साक्षी भाव से सोच करके देख लो, पहले वो क्या हैं?
शूद्र या हिन्दू, हिन्दू या शूद्र, शूद्र ही तो कहते रहे हो,
ऐसे में ‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’ कौन कह सकता?
तुम नहीं कहोगे, तो उनसे क्यों उम्मीद लगाए बैठे हो?

जब तुम्हारी प्राथमिकता में हिन्दू होना आज भी नहीं,
तो उनकी प्राथमिकता में हिन्दू होना कैसे हो सकता?
तुम्हारा ब्राह्मण होना, हिन्दू से अधिक श्रद्धेय वरेण्य,
उनका हिन्दू होना, शूद्र होने के बाद की भावना दैन्य,
वो बराबरी पाने को लालायित हैं, तुम उसे बराबरी दो!

हिन्दू हो तो सबको हिन्दू कहो,ब्राह्मण-शूद्र क्यों कहते?
वो स्वयं को श्रेष्ठ बौद्ध जैन सिख आर्य समाजी कहते,
कहने दो, तुम भी श्रेष्ठ कहो बौद्ध जैन सिख आर्य को,
बौद्ध जैन सिख आर्य समता व अहिंसा की बातें करते!

तुम स्वयं को ब्राह्मण और दूसरे को शूद्र क्यों कहते हो?
जबकि सृष्टिकर्ता ने मानव में कोई भेद-भाव नहीं किए,
जैसे एक पिता के चार पुत्र होते और चारों एक साथ में
एक ही चौके में बैठ कर साथ-साथ भोजन ग्रहण करते!

ऐसे में छोटा या बड़ा कौन? प्रथम कौर कौन उठाता?
वास्तव में प्रेम से बड़ा भाई ही उठाकर पहला निवाला
कौर बनाकर छोटे भाई के मुख में डाल खिलाने वाला,
एक माता पिता के सभी बच्चे एक जैसे ही प्रिय होते!

तुम कैसे हिन्दू हो घर आए हिन्दू की जातियाँ विचारते?
ऐसे में हिन्दू होके ब्राह्मण कहना सिर्फ अहंकार पालना,
दूसरों को शूद्र कहना मानव जाति पर अत्याचार करना,
स्वयं को सबसे उच्च जाति मानना कुसंस्कार दिखलाना!

कोई नहीं मुख से निकला, सभी योनि से जन्म लेता,
ये जातिवाद ही है, जो हिन्दू को हिन्दू नहीं होने देता,
सबके पूर्वज एक हैं, पर जातिवाद ने पूर्वज बांट दिया,
जातिवाद की खासियत स्वजाति में दुर्गुण नहीं दिखता,
आज व्यक्तित्व नहीं, दुष्ट स्वजाति आदर्श बन जाता!

ब्राह्मणों को मर्यादित राम नहीं,असुर याजक कुल के
भृगु,शुक्राचार्य,ऋचिक,जमदग्नि और परशुराम प्रिय है,
इसलिए नहीं कि परशुराम राम से अधिक संस्कारी थे,
बल्कि परशुराम मातृहंता, क्षत्रिय संहारक, अविचारी थे!

हिन्दू तबतक हिन्दू नहीं होते, जबतक ब्राह्मणवाद है,
पुरोहित नहीं,चतुर्थवर्गी कर्मी भी ब्राह्मणी रौब झाड़ते,
ब्राह्मणों ने ही हिन्दू मध्य घृणा द्वेष नफरत परोसा,
ब्राह्मणों की सोच पर हिन्दुओं को होता नहीं भरोसा!

वर्ण के बंद घेरे को तोड़ दो और जातिवाद को जाने दो,
जब हम सब सनातन ऋषि मुनियों की संतति सनातनी
ऋषियों के गोत्रज, तो जाति छोड़ो, गोत्र को धारण करो,
धर्म पूजा आराधना निजी है,कर्मकाण्ड पाखण्ड मिटा दो!

वर्ण जाति मत पूछो मनु पुत्रों से, सिर्फ गोत्र पूछ लो,
कश्यप हैं चारों वर्ण और हजार जातियों के गोत्र पिता,
ब्राह्मण, सूर्य-चंद्र-नागवंशी क्षत्रिय उद्भूत सर्व जाति के,
सबका गोत्र कश्यप, अत्रि आदि सभी गोत्रों के रक्षक वे!
—विनय कुमार विनायक

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