प्रमोद भार्गव
अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम चरण में खड़ीअब जाकर सुशासन की दिशा में कदम बढ़ाने को मजबूर हुर्इ है। दरअसल उसका मुख्य मकसद सुशासन के बहाने चुनावी अजेंडे को आगे बढ़ाकर अमल में लाना है। इस गोपनीय मुहिम की दो खास बातें हैं। एक विकास से जुड़े कार्यों में ग्रामीणों के पारंपरिक ज्ञान और दृष्टि को तरजीह दी जाएगी। दूसरे हितग्राही मूलक योजनाओं के तहत लाभ देने के वैधानिक रास्ते खोजे जाएंगे, न कि काम नहीं करने के बहाने ? इस मुहिम को समयबद्ध सीमा में पूरा कर लेने के नजरिये से इसका ढांचा निर्वाचन प्रकि्रया के संरचनात्मक ढांचे में ढाला जाएगा। इसे नगरीय क्षेत्रों में लागू नहीं किया जाएगा।
वैसे तो बिना किसी नामाकरण वाली यह मुहिम आपकी सरकार आपके द्वार, ग्राम संपर्क अभियान और समस्या निवारण शिविरों की ही नकल है। इस मुहिम में राजस्व और हितग्राहीमूलक समस्याओं को ही हाथ में लिया गया है। पूर्व सरकारों द्वारा चलाए अभियानों में भी यही मुददे हावी रहे थे। मसलन एक बार फिर नर्इ बोतल में पुरानी शराब भरकार शिवराज सिंह सरकार भ्रष्ट प्रशासन को सुशासन की राह पर लाने की कवायद में लग गर्इ है। जिस सरलता, शालीनता व कानूनी शिथिलता के साथ सरकार ने गांव-गांव पहुंचकर समस्याओं के निवारण का वीड़ा उठाया है, यदि वाकर्इ वह इस मकसद में कामयाब हो जाती है तो उसे तीसरी पारी खेलने में निशिचत आसानी होगी। भाजपा सरकार के इस अजेंडे को अमल में लाने की दृष्टि से पहली बैठक प्रदेश के मुख्य सचिव ने संभाग आयुक्तों की भोपाल में ली और अब आयुक्त जिलेबार बैठकें लेकर अजेंडे को ग्रामस्तर पर उतारने की मुहिम में जुट गए हैं।
मुहिम के अमलीकरण के लिए जो ग्राम – दल 4-5 पंचायतों के उपर बनाए गए संकुल केंद्र पर समस्या निवारण के लिए जाएंगे, वे बिना किसी तामझाम के जाएंगे। मंच नहीं बनाया जाएगा। यहां तक सरकारी अमला भोजन भी घर से टिफिन में लेकर चलेगा। इस दल को यह भी सख्त हिदायत दी गर्इ है कि वे नौकरशाही का चरित्र बन चुकी कठोरता और प्रकरण को टालने की प्रवृतित नहीं अपनाएंगे। ग्रामीण यदि तालाब के लिए कोर्इ स्थल बताते हैं तो उसे मंजूर करेंगे। नामांतरण हाथों-हाथ निपटांयेगे। वृद्धावस्था पेंशन, आंगनवाड़ी, लाडली लक्ष्मी को लाभ और सांप काटे के परिजनों को आर्थिक मदद फौरन मुहैया करार्इ जाएगी। लाडली लक्ष्मी प्रकरण निपटाने के लिए तो यह भी निर्देष दिए हैं कि यदि कोर्इ अभिभावक समय पर लाभ-अर्जन के लिए अर्जी नहीं लगा पाया है तो ऐसे प्रकरणों को पटवारी, सचिव और कोटवार से जानकारी हासिल करके अधिकारी स्वमेव निगरानी में लें और लाडली का लाभ हितग्राही को दें। हर हाल में ग्राम स्तर पर ग्रामीणों को मिलने वाले ये लाभ शतप्रतिषत मिलें, यह जिम्मेबारी कलेक्टरों को सौंपी गर्इ है। हितग्रहियों को शतप्रतिषत लाभ मिल गया है, बतौर सबूत इस बात का प्रमाण-पत्र सरपंच, सचिव और पटवारी को क्षेत्राधिकारी को देना होगा। इसके बाद अनायास पंचायतों के निरीक्षण के लिए कलेक्टर अथवा जिला पंचायत सीर्इओ पंहुचेंगे। उन्हें यदि कोर्इ प्रकरण षेश मिला तो पटवारी व सचिव को तो फौरन निलंबित किया जाएगा और सरपंच के खिलाफ धारा 40 के तहत पद से पृथक करने की कार्रवार्इ की जाएगी। जाहिर है, सरकार ग्रामीण हितग्राहियों को सौ फीसदी लाभ देकर सीधे वोट बटोरने की कवायद में लग गर्इ है।
इस चुनावी अजेंडे को आगे बढ़ाने की दृष्टि से जिले के समस्त अधिकारियों को आयुक्तों ने स्पष्ट रुप से कहा है कि ग्रामों में कायदे-कानून के तकाजों के साथ नहीं जाना है। कानून लोगों के सुविधा के लिए हैं, अड़ंगे लगाकर टालने के लिए नहीं। हर हाल में हितग्राही मूलक योजनाओं का लाभ व्यकित को वैघानिक दायरे में लाकर पहुंचाना ही है। फिलहाल तो यह योजना शुरुआती दौर में है, लेकिन वाकर्इ इसका आयुक्तों द्वारा बोले कथनों के अनुसार जमीनी अमल जून के अंत तक हो जाता है तो प्रदेश की मौजूदा भाजपा सरकार को इसका चुनावी प्रतिफल मिलना तय है। गुटबाजी में उलझी कांग्रेस इसका कोर्इ सकारात्मक तोड़ निकाल पाएगी, ऐसा मौजूदा हालातों में तो कतर्इ नहीं लगता हैं। विपक्ष अप्रत्यक्ष तौर से लागू किए जा रहे चुनावी अजेंडे का प्रत्यक्ष विरोध भी नहीं कर सकता। क्योंकि सरकार योजनाओं के वास्तविक अमलीकरण के लिए गांव-गांव जा रही है, न कि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता ? उन्हें तो इस मुहिम से दूर रहने की हिदायत दी गर्इ है। विधायकों को भी इस मुहिम से इसलिए दूर रखा गया है जिससे इस गुप्त राजनैतिक अजेंडे का राजनीति करण न हो और विपक्षी दलों के विधायकों को किसी भी प्रकार का श्रेय न मिलने पायैं