‘‘निशंक सरकार’’ पड़ सकती है कई सियासी मुसीबतों में

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उत्तराखंड प्रदेश में निशंक सरकार की मुसीबतों में इजाफा होने लगा है जिसकी रफ्तार काफी तेज नजर आ रही है। मुख्यमंत्री डॉ़ रमेश पोखरियाल निशंक के लिए बड़ी परेशानी यह पैदा होने लग गयी है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी उन मामलों को खंगालने लगा है जो कि कुछ समय पहले घोटालों के रूप में उजागर हुए थे और विपक्षी दल ने उन घोटालों को महाघोटाले करार देते हुए सड़कों पर जमकर हंगामा किया । आगामी विधानसभा का जो सत्र अगले माह के द्वितीय सप्ताह से संभवतः होने जा रहा है उसमें सरकार के लिए बड़ी मुसीबते खड़ी हो सकने की पूरी संभावनाएं भी बन चुकी है। मुख्यमंत्री डॉ़ निशंक पर अब तक उनके कार्यकाल में करीब एक दर्जन ऐसे घोटालों के आरोप लग चुके है जिन्होंने सरकार की जमकर किरकिरी की है। इन घोटालों में विद्युत परियोजनाओं के घोटाले, कुंभ घोटाला, सैफ गेम्स घोटाला व अन्य घोटाले शामिल है। करोड़ों के इन घोटालों के आरोपों की परतें राज्य में खुलती भी प्रतीत हो रही है। निशंक सरकार पर कई घोटालों के और भी आरोप लगाने की रणनीतियां बन रही है। ऐसी चचार्एं है कि निशंक सरकार भी इन बन व पक रही रणनीतियों को जानने के लिए अपने दूतों को इशारे कर चुकी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सचिवालय के अन्दर कुछ अधिकारी ऐसे है जो कि सरकार की किरकिरी करने की मुहिम में लगे हुए है। यह भी चचार है कि जो अफसर सरकार के खिलाफ तानाबाना बुन रहे है उनको भाजपा के ही कुछ नेताओं की पूरी शह मिली हुइ है? आज ऐसे ही माहौल को भांपते हुए राज्य के सचिवालय में कोई भी अधिकारी अपना मुंह नहीं खोल पा रहा है। यह भी खबरें प्रकाश में आ रही है कि कुछ पत्रकारों व अधिकारियों पर मुख्यमंत्री डॉ़ रमेश पोखरियाल निशंक की अपने मुखबिरों के माध्यम से विशेष नजरें टिकी हुई है। मुख्य बात यह है कि मुख्यमंत्री निशंक को जो खबरें लगातार अपने मुखबिर सूत्रों के हवालों से मिल रही है, उनका अध्ययन कर एवं सोचसमझकर वे उनके विरूद्ध कार्यवाही को भी अंजाम दे रहे है। हाल ही में कुछ पत्रकारों पर सरकार ने अपना नजला भी निकाला है। पत्रकारों के खिलाफ भाजपा सरकार के इस कदम ने जिस तरह से मीडिया जगत में भारीभरकम सनसनी फैला डाली है उससे कई पत्रकारों में निशंक सरकार के खिलाफ आक्रोश भी ब़नने लग गया है। मीडिया जगत के नुमाइंदों को मानहानि के नोटिस भी भेजे जाने के मामले सामने आ रहे है। यही कारण है कि कुछ पत्रकार संगठन सरकार के खिलाफ लामबंद हो रहे है। सरकार इन पत्रकार संगठनों से किस तरह से लड़ेगी अथवा उनके संघर्ष का जवाब वह किस रूप में देगी, यह तो सरकार ही भलीभांति जानती है, लेकिन इतना अवश्य है कि निशंक सरकार आगामी विधानसभा चुनाव के शुरू हो चुके चुनावी मौसम में बड़ी मुसीबत में पड़ सकती है। मीडिया के कुछ नुमाइंदों से चल रही सकरार की लड़ाई का प्रभाव सरकार की विकास उपलाब्धियों पर भी पड़ता नजर आ रहा है। भाजपा खेमे में भी यह चर्चा है कि मुख्यमंत्री डॉ़ रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा मीडिया के साथ जो कथित तरीका अपनाया जा रहा है उसे लेकर स्वयं सत्ता दल में हैरानी बनी हुई है। पूर्व की कांग्रेस सरकार के पूरे पांच वर्षीय कार्यकाल में मीडिया व सरकार के बीच सियासी घुसपैठ अवश्य हुई भी, भाजपा ने ही विपक्ष में रहकर कांग्रेस के समय में हुए घोटालों को उठाया था तब मुख्यमंत्री एनडी तिवारी यह कह कर मामले को तूल नहीं देते थे कि सरकार अपना काम कर रही है और मीडिया अपना कार्य कर रहा है। सरकार मीडिया के काम में हस्तक्षेप नही कर सकती, लेकिन मौजूदा प्रदेश सरकार ने जो फार्मूला व रणनीति मीडिया के साथ तालमेल व खिलाफ रूप में अपनाई हुई है वह वास्तव में किसी भी रणनीतिकार, राजनैतिक विशेषज्ञ के गले नहीं उतर पा रही है। कहने का अभिप्राय यह है कि निशंक सरकार यदि ऐसे ही विवादों में पड़ती रही है और नोटिसों को भेजने में अपना कीमती समय देती रही तो वह विकास के अपने गणित को सही ढंग से कैलकुलेट नहीं कर सकती।

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