पंचायत से बड़ी नौकरशाही – राजेन्द्र बंधु

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पंचायत रात व्यशवस्थान के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में सत्ता1 और विकास के अधिकार पंचायत इकाईयों को सौप दिए गए हैं। किन्तुं ये अधिकार पंचायत नौकरशाही के हाथों में ही सिमट कर रह गए हैं। पंचायत स्ततर पर नौकरशाही इतनी शक्तिशाली हो गई है कि पंचायत प्रतिनिधियों के निर्देशों की अवहेलना आम बात हो गई है। हाल ही में देवास जिले की बागली जनपद पंचायत की अध्य क्ष द्वारा क्षेत्र में दौरा करने पर ग्राम पंचायत सचिवों द्वारा अपत्ति व्यकक्त‍ गई आैर उनके दौरे पर एक भी सचिव उपस्थित नहीं हुआ। ग्राम पंचायत सचिवों का कहना था कि हमोर इलाके मे जनपद अध्यथक्ष को दौरा करने की जरूरत नहीं है। उल्लेिखनीय है कि त्रिस्त रीय पंचायत राज अधिनियम के अंतर्गत मध्यदप्रदेश में ब्लाेक स्तहर की पंचायत को जनपद पंचायत कहा जाता है, जिसे पूरे ब्लाशक में विकास कार्यों को संचालित करने तथा उसके निरीक्षण का अधिकार भी है।

आखिर एक लोकतांत्रिक व्यनवस्थाी में जनप्रतिनिधियों के दौरे और निरीक्षण पर कर्मचारियों द्वारा पाबंदी कैसे लगाई जा सकती है। उल्लेंखनीय है कि जनपद पंचायत बागली में दलित समुदाय की महिला अध्य क्ष के पद पर है। वे विकास कार्यों के लिए सक्रिय है। पद संभालने के एक साल बाद उन्होंीने जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायतों का दौरा शुरू किया तो कई अनियमितता सामने आई। उनके दौरे से कई ग्राम पंचायतों के निर्माण कार्यों में अनियमितता उजागर हुई, वहीं कई विद्यालयों में मध्यायन्हप भोजन व्य्वस्थां भी नियमों के अनुरूप नहीं पाई गई। कई विद्यालयों में शिक्षक अनुपस्थित थे और उपस्थिति रजिस्टंर पर उनके एडवांस में हस्ता क्षर पाए गए। एक विद्यालय में तो बच्चों् का उपस्थिति रजिस्ट र ही रिक्त पाया गया।

गौरतलब है कि पंचायत राज अधिनियम में विकास कार्यों के संबंध में निर्णय लेने और उनका निरीक्षण करने का अधिकार जनपद अध्यकक्ष सहित पंचायत इकाईयों को सौपे गए हैं, जिनमें शिक्षा, स्वा स्य्का , क्रषि, राजस्वू आदि विभाग शामिल है। इन विभागों के प्रशासनिक तंत्र की यह जिम्मेषदारी है कि जनप्रतिनिधियों द्वारा लिए गए निर्णयों का क्रियान्वतयन करें। किन्तुम पंचायत राज की स्थायपना के बाद ग्राम पंचायत सचिव से लेकर जनपद पंचायत व जिला पंचायत के मुख्या कार्यपालन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के बीच टकराव की कई घटनाएं सामने आती रही है। बागली जनपद पंचायत की यह घटना अब तक की सबसे ताजा घटना है, जिसमें ग्राम पंचायत सचिवों ने जनपद अध्य क्ष के ही अधिकारों को मानने से इंकार कर दिया है।

यदि कानूनी प्रक्रियाओं और प्रावधानों को देखें तो ग्राम पंचायत सचिव से लेकर जनपद व जिला पंचायत के मुख्य् कार्यपालन अधिकारी संबंधित निर्वाचित सदन के सचिव होते हैं जिन्हेंय निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। उनकी जिम्मेंदारी निर्वाचित सदन द्वारा लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करने की होती है। किन्तु वास्त‍विकता कुछ और ही है। पंचायतों के ज्या्दातर फैसलों में नौकरशाही का अत्य धिक हस्तवक्षेप देखा गया है। यह स्थिति पंचायतों की स्वावयत्ताो को तो प्रभावित करती ही है, साथ ही य ह लोकतांत्रिक मूल्योंप के विपरीत है और विकास कार्यो में बाधा उत्प न्न करती है। इस संदर्भ में सरकार की नीतियों और नौकरशाही के मानस को गहराई से समझना होगा। दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में भारत ही ऐसा संघीय प्रजातंत्र है जो नौकरशही को संवैधानिक मान्याता देता है। जबकि अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया ऐसी मान्यहता नहीं देते। भारत में नौकरशाही की यह स्थिति औपनिवेशिक शासन की देन है। आजादी से पहले प्रत्येेक सरकारी कर्मचारी स्थाशई था और उसे कानूनी सुरक्षा प्राप्तज थीं। आजादी के बाद हमने नौकरशाही की इस स्थिति को बदलने पर विचार नहीं किया। इस दशा में जब पंचायत राज व्यीवस्थाि में ग्रामवासियों को सत्ताद और विकास के अधिकर सौपे जाते हैं तो उस पर नौकरशाही का हावी होना स्वांभाविक है। 73 वें संविधान संशोधन में पंचायतों की नौकरशाही को राज्य् सरकार का मुद्दा माना गया है है। अत: राज्यज सरकार द्वारा नियुक्ता नौकरशाही स्वसयं को पंचायतों से उपर समझती है।

यह माना गया है कि 73 वें संविधान संशोधन के बाद शासन के तीन स्तेर रहेंगे केन्द्र , राज्यत और पंचायत। किन्तुा सविधान के चौदहवें भाग के अनुसार केन्द्रक और राज्यत के अंतर्गत सरकार नौकरी के सिर्फ दो स्तंर रहेंगे। अत: पंचायतों को अपने कर्मचारी रखने के लिए तीसरा स्तीर जोड़ते हुए संविधान के चौदहवें भाग का विस्ताोर करना होगा, तभी कर्मचारी राज्यस सरकार के बजाय पंचायत राज संस्थााओं के प्रति उत्तनरदायी हो सकेगे। आज राज्यज सरकार ही पंचायत के कर्मचारियों के मुद्दे हल करती है, वो ही उनकी नियुक्ति प्रक्रिया तय करती है और उनका स्था्नांतरण करती है।

कर्मचारियों और अधिकारियों को अपना काम पंचायतों के अधीन करना होता है। विकास के फैसले लेने का अधिकार जनप्रतिनिधियों का है। किन्तुह उन पर नियंत्रण राज्य सरकार का है। यही कारण है कि पंचायतों में नियुक्त् नौकरशाही से दिक्करत होने पर निर्वाचित इकाई को उनकी शिकायत राज्य सरकार से करनी पड़ती है।

पंचायत राज को ज्याकद सक्षम बनाने के लिए पंचायतों को अपने कर्मचारी नियुक्तर करने का अधिकार होना चाहिए। यदि पंचायत के लिए यह संभव न हो तो पंचायत राज संस्था ओं में भेजे जाने वाले अधिकारी राज्यए सरकार द्वारा वहां प्रतिनियुक्ति पर भेजे जाने चाहिए और उनकी सेवाएं पंचायत इकाईयों को सौप देनी चाहिए। इस संदर्भ में कर्नाटक के उदाहरण पर गौर किया जाना जा सकता है, जहां सन 1987 में सकरार ने हजारों कर्मचारियों को प्रतिनियुक्ति पर पंचायत राज संस्थाहओं में भेजा था।

मौजूदा पंचायत राज अधिनियम में इस तरह का प्रावधान न होने से पंचायतों के कर्मचारी व अधिकारी राज्यम सरकार के नियंत्रण में काम करते हैं, न कि पंचायतों के। इससे नौकरशाही तथा जनप्रतिनिधियों के बीच भूमिका और हैसियत को लेकर टकराव की घटनाएं सामने आती रहती है। स्थाकनीय स्व शासन को लेकर सन 1985 में गठित जी़ वी के राज समिति ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि गांवों की गरीबी दूर करने के लिए ऐसा कोई तरीका कारगर नहीं होगा जो मूल्यों पर आधारित न होकर नौकरशाही पर आधारित हो।

हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण है जब नौकरशाही से टकराव की दशा में पंचायत प्रतिनिधियों को राज्या शासन से शरण लेनी पड़ी। क्योंेकि पंचायत में कार्यरत नौकरशाही पर राज्यि शासन का आदेश ही प्रभावी होता है। पंचायत राज इकाईयां उन्हें आदेशित करने की स्थिति में ही नहीं है। इस दशा में पंचायतों की स्वारयत्तान सबसे ज्यािदा प्रभावित होती है जो पंचायत राज के मूल्यों और लांकतांत्रिक सिद्धांतों के विपरीत है। इस दशा में संविधान के चौदहवें भाग का विस्तायर करते हुए पंचायत इकाईयों में कार्यरत नौकरशाही की सेवाएं पंचायतों को सौपना ही एक उपयुक्तर रास्ताा दिखाई देता है।

 

– राजेन्द्र बंधु

संपादक : कम्युंनिटी मीडिया

163, अलकापुरी, मुसाखेड़ी इन्दौकर, मध्ययप्रदेश, पिन- 452001 फोन : 08889884676 एवं 09425636024

 

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