
डा. राधेश्याम द्विवेदी
नवाब ने दी थी जमीन:- 1764 में बक्सर की जंग के बाद नवाब शुजाउद्दौला फैजाबाद से राजधानी को लखनऊ ले गए थे। फैजाबाद में रहने के दौरान उन्होंने हनुमानगढ़ी मंदिर बनाने के लिए जमीन दान दी थी। जमीन जब कम पड़ी तो मंदिर के महंत उनसे मिलने लखनऊ गए थे। उस वक्त नवाब ने उस चार बीघा जमीन को मंदिर को दान दिया, जिस पर आलमगीरी मस्जिद बनी हुई थी। कहा जाता है कि आलमगिरी मस्जिद का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब की अनुमति से उसकी सेना के एक जनरल ने 17वीं शताब्दी में किया था। जर्जर हो चुकी यह मस्जिद जिस जमीन पर है वह हनुमान गढ़ी के स्वामित्व में है।
जर्जर हो चुकी आलमगिरी मस्जिद:- बीते सावन अयोध्या झूला मेले के दौरान यादव मंदिर की छत गिरने के बाद हरकत में आये प्रशासन ने अयोध्या के जर्जर मंदिरों और भवनों की सूची बनायी थी, जिसमें आलमगिरी मस्जिद को बेहद जर्जर मानते हुए इस पर नोटिस चस्पा कर दिया था कि वहां जाना खतरे से खाली नहीं है। बाबरी मस्जिद विध्वंस के 24 साल होने के बाद आज एक अच्छी खबर आई है। अब एक और बड़ी घटना यहां होने जा रही है, लेकिन ये उस घटना से बिल्कुल अलग है। बाबरी मस्जिद का ध्वंस जहां दो समुदायों के बीच रिश्तों को कड़वा बना गया था। वहीं, अब यही शहर सांप्रदायिक सौहार्द की नई मिसाल लिखने जा रहा है। हनुमानगढ़ी मंदिर के अधिकार क्षेत्र में आने वाली 300 साल पुरानी आलमगिरी मस्जिद जर्जर हालत में थी, अब मस्जिद दोबारा बनेगी।
अयोध्या हनुमानगढ़ी की सागरिया पट्टी के पंचानों की बीते 24 अगस्त 2016 को आपात बैठक हुई है। बैठक में पंचों ने निर्णय लिया है कि पट्टी की संपत्ति आलमगिरी मस्जिद को सद्भावना के तहत शीघ्र ही मरम्मत करवाया जाएगा। मंदि र की जमीन पर मस्जिाद है। महंत ज्ञानदास का कहना है कि हनुमानगढ़ी की सागरिया पट्टी के पंचानों की बैठक में आलमगिरी मस्जिद के मरम्मत करवाने का फैसला लिया गया है और निर्माण का खर्च हनुमान गढ़ी से ही होगा। हनुमानगढ़ी ट्रस्ट ने फैसला किया है कि मस्जिद वाले स्थान पर न केवल दोबारा मस्जिद बनाने की अनुमति दी जाएगी, बल्कि उसका खर्च भी ट्रस्ट ही वहन करेगा और वहां नमाज पढ़ने की अनुमति भी दी जाएगी। अब इस मस्जिद की जर्जर हालत को सुधार करने का बीड़ा महंत ज्ञान दास ने उठाया है । इस शहर का नाम पूरी दुनिया बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए जानती है। वो घटना करीब 24 साल पहले हुई थी।
क्या है मामला:-फैजाबाद नगर निगम ने 17वीं सदी में बनी आलमगीरी मस्जिद को खतरनाक घोषित कर दिया था। इस मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के ही एक सेनापति ने कराया था। इसके कारण इसका नाम आलमगीर रखा गया। मस्जिद की जमीन को अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने साल 1765 में इस शर्त पर हनुमानगढ़ी मंदिर ट्रस्ट को दान दे दी गई कि नमाज मस्जिद में पहले की ही तरह होती रहेगी तभी से मंदिर की जमीन पर होने के बावजूद आलमगीरी मस्जिद में नमाज अदा हो रही थी। पुरानी होने की वजह से जब मस्जिद ढहने के कगार पर पहुंच गई, तो नमाज भी बंद हो गई। अब खतरनाक घोषित होने के बाद हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत ज्ञानदास ने मुसलमानों को दोबारा मस्जिद तामीर करने की मंजूरी दी है। हालांकि नमाज धीरे-धीरे से कम हो गया। प्रशासन के जरूरी ध्यान न दिए जाने से मस्जिद की हालत समय के साथ जर्जर होती चली गई। मंदिर के महंत ज्ञानदास ने कहा कि ट्रस्ट ने मुस्लिम भाइयों से मस्जिद निर्माण का काम कराने को कहा है जिसका सारा खर्च ट्रस्ट वहन करेगा। बताते चलें कि महंत ज्ञानदास एक बार हनुमान गढ़ी परिसर में रमजान के पवित्र महीने में अयोध्या के मुसलमान भाइयों के लिए इफ्तार का आयोजन कर चर्चा में आ चुके हैं । इस बारे में महंत ज्ञानदास का कहना है कि उन्होंने मस्जिद को दोबारा बनाने के लिए मुस्लिमों से कहा है। खास बात ये भी है कि मस्जिद को दोबारा बनाने में खर्च होने वाला धन हनुमानगढ़ी मंदिर से दिया जाएगा। महंत के मुताबिक मंदिर की तरह मस्जिद भी खुदा का घर होती है। इसके अलावा जमीन पर मौजूद एक मकबरे की हालत सुधारने के लिए भी धन दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि मकबरा भी मस्जिद जितना ही पुराना है।