नये भारत के जन्म का सुखद संकेत

0
119

-ः ललित गर्ग:-

आजादी की पचहरवीं वर्षगांठ मनाने की ओर अग्रसर होते हुए नया भारत बनाने, भारत को नये सन्दर्भों के साथ संगठित करने, राष्ट्रीय एकता को बल देने की चर्चाएं सुनाई दे रही है। इसकी आवश्यकता इसलिये महसूस की जा रही है क्योंकि हम आजाद हो गये, लेकिन हमारी मानसिकता एवं विकास प्रक्रिया अभी भी गुलामी की मानसिकता को ओढ़े हैं। शिक्षा से लेकर शासन व्यवस्था की समस्त प्रक्रिया अंग्रेजों की थोपी हुई है, उसे ही हम अपनाये जा रहे हैं। जीवन का उद्देश्य इतना ही नहीं है कि सुख-सुविधापूर्वक जीवन व्यतीत किया जाये, शोषण एवं अन्याय से धन पैदा किया जाये, बड़ी-बड़ी भव्य अट्टालिकाएं बनायी जाये और भौतिक साधनों का भरपूर उपयोग किया जाये। उसका उद्देश्य है- निज संस्कृति को बल देना, उज्ज्वल आचरण, सात्विक वृत्ति एवं स्व-पहचान। भारतीय जनता के बड़े भाग में राष्ट्रीयता एवं स्व-संस्कृति की कमी महसूस हो रही है। राष्ट्रीयता के बिना राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये  आजादी की पचहरवें वर्ष के आयोजनों का लक्ष्य है नया भारत-सशक्त भारत निर्मित करना। अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र’ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक, संघ के प्रचारक एवं शिक्षाविद् सुनील अंबेडकर ने नया भारत निर्मित करने की आवश्यकता उजागर करते हुए उसके इतिहास में सच्चाई के प्रतिबिम्बों को उभारने पर बल दिया है। भारत के इतिहास को धूमिल किया गया, धुंधलाया गया है, अन्यथा भारत का इतिहास दुनिया के लिये एक प्रेरणा है, अनुकरणीय है। क्योंकि भारत एक ऐसा शांति-अहिंसामय देश है जिसका न कोई शत्रु है और न कोई प्रतिद्वंद्वी।
सम्पूर्ण दुनिया भारत की ओर देख रही है, उसमें विश्व गुरु की पात्रता निरन्तर प्रवहमान रही है, हमने कोरोना महामारी के एक जटिल एवं संघर्षमय दौर में दुनिया के सभी देशों के हित-चिन्तन का भाव रखा, सबका साथ, सबका विकास एवं सबका विश्वास मंत्र के द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साबित किया कि वसुधैव कुटुम्बकम- दुनिया एक परिवार है, का भारतीय दर्शन ही मानवता का उजला भविष्य है। इसी विचार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आगे बढ़ रहा है, वह एक अनोखा और दुनिया का सबसे बड़ा गैर राजनीतिक संगठन है। यह भारतीय राष्ट्रवाद की सबसे मुखर, सबसे प्रखर आवाज है। देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता उसका मूल उद्देश्य है। जैसे-जैसे संघ का वैचारिक, सांस्कृतिक, सामाजिक प्रभाव देश और दुनिया में बढ़ रहा है, वैसे-वैसे हिंदुत्व और राष्ट्र के प्रति समर्पित इस संगठन के बारे में जानने और समझने की ललक लोगों के बीच बढ़ती जा रही है। इस विशाल संगठन के विभिन्न विषयों पर विचार तथा इसकी कार्यप्रणाली से आमजन परिचित होना चाहते हैं। अंबेडकर की पुस्तक संघ से जुड़ी जिज्ञासाओं का प्रभावी, प्रासंगिक एवं तथ्यपरक विवेचन करती है। एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन होते हुए भी संघ ने भारतीय राजनीति की दिशा को राष्ट्रीयता की ओर कैसे परिवर्तित किया है, यह समझने के लिए भी यह पुस्तक पढ़ना आवश्यक है। भारत की हिंदू अस्मिता, हिंदू समाज की उत्पत्ति व संघटन, विवाह, माता-पिता द्वारा संतान का पालन-पोषण, आपसी सौहार्द, सामाजिकता, आध्यात्मिकता, धार्मिकता, आर्थिक स्थितियां, कृषि, जीवनशैली तथा ऐसे ही अन्य अनेक विषयों पर इसमें मुक्त भाव से चर्चा की गई है। भारत का विश्वगुरु के रूप में अभ्युदय एक महत्वपूर्ण प्रश्न रहा जिसकी विवेचना लेखक ने समग्र रूप से प्रस्तुत पुस्तक में की है, जो आजादी के पचहरवें वर्ष की आयोजना का मूल केन्द्र है।
  राष्ट्रीयता एवं हिंदुत्व का अभियान लोकव्यापी बना और उसके वैचारिक पक्ष को समृद्ध बनाने में जिन लोगों का योगदान रहा उनमें डाॅ. केशव बलीराम हेडगेवार, एम.एस. गोलवाकर, वीर सावरकर, श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय प्रमुख हंै। जो नये भारत के आदर्श पात्र एवं कर्णधार हैं। राजनीतिक स्वार्थों एवं संकीर्णताओं के चलते अब तक उनको उचित सम्मान नहीं मिला, अब संघ एवं भाजपा इसके लिये प्रयासरत है, जो नये भारत की बुनियाद को मजबूती देने के लिये आवश्यक है। न केवल व्यक्ति, परिवार बल्कि समाज, राष्ट्र और विश्व के संदर्भ में इन भारत निर्माताओं ने आरएसएस का गहन और विस्तृत विश्लेषण करते हुए जो विचार दिए, उन्हीं विचारों को इस पुस्तक में संकलित कर हिंदुत्व अस्मिता एवं सुदृढ़ भारत का नया आलोक बिखेरा गया है। इस पुस्तक में सुनील आंबेकर ने हिंदुत्व की विशद् विवेचना करते हुए आरएसएस का विभिन्न संदर्भों- व्यक्ति, समाज, धर्म, शिक्षा एवं संस्कृति के साथ तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक संघ को परम प्रतिष्ठा देती है क्योंकि संभवतः इतनी सहज और सरल अभिव्यक्ति में संघ की गूढ़ एवं गहन विवेचना का यह अपना एक अनूठा प्रयास है।
प्रस्तुत पुस्तक में संघ के प्रति जन दृष्टिकोण एवं संघ का राष्ट्र निर्माण में योगदान का समन्वित प्रस्तुतीकरण है।  भारत के राजनीतिक भविष्य के संदर्भ में संघ अनुभव करता है कि यहां बहुत से राजनीतिक दल होंगे किंतु वे सब प्राचीन भारतीय परंपरा एवं आध्यात्मिक धरोहर का सम्मान करेंगे। आधारभूत मूल्य तथा हिंदू सांस्कृतिक परंपराओं के संबंध में एकमत होंगे। मतभेद तो होंगे लेकिन ये केवल देश के विकास के प्रारूपों के संदर्भ में ही होंगे। वहीं संघ के भविष्य के बारे में पुस्तक कहती है कि जब भारतीय समाज समग्र रूप में संघ के गुणों से युक्त हो जाएगा, तब संघ तथा समाज की दूरी समाप्त हो जाएगी। उस समय संघ संपूर्ण भारतीय समाज के साथ एकाकार हो जाएगा और एक स्वतंत्र संगठन के रूप में इसके अस्तित्व की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। संघ देश के समक्ष चुनौतियों को लेकर भी अत्यंत गंभीर है। इनमें इस्लामी आतंकवाद, नक्सलवाद अवैध घुसपैठ, हिंदुओं की घटती जनसंख्या, हिंदुओं का धर्मांतरण जैसे विषय शामिल हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यह पुस्तक, जो संघ से परिचित हैं उनकी समझ एवं सोच को परिष्कृत करेगी। जो अपरिचित हैं उन्हें संघ से परिचित कराएगी। इसके अतिरिक्त संघ के विरोधियों को भी यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। जिससे वे आग्रह, पूर्वाग्रह और दुराग्रह से मुक्त होकर इस राष्ट्रवादी संगठन को समझ सकेंगे।
राष्ट्र जीवन के सभी अंगों में संघ के स्वयंसेवक सक्रिय हैं व अपने संपर्क से संस्कारों का वातावरण बना रहे हैं। अभावग्रस्तों की सेवा में भी समाज के सभी वर्गों साथ लेकर एक लाख सत्तर हजार के लगभग सेवा के कार्य संघ से जुड़े विभिन्न संगठनों व संस्थाओं के माध्यम से संचालित हो रहे हैं। समाज में इन सब कार्यों से बने वातावरण से ही समाजमन के भेद, स्वार्थ, आलस्य, आत्महीनता, अकर्मण्यता आदि त्रुटियां दूर होकर उसके संगठितता व गुणवत्ता से परिपूर्ण आचरण का चित्र खड़ा होगा। संघ के माध्यम से सामाजिक जीवन में व्याप्त अर्थहीन, रूढ़ परंपराओं को समूल नष्ट करने के लिए संघ के संस्थापक एवं उसके सर संघसंचालकों ने अहम् भूमिका निभाई है। संघ का व्यापक विरोध भी हुआ किंतु सभी प्रतिवादों को नकारते हुए सफलता के चरण आगे बढ़ते ही रहे। एक नया आत्मविश्वास लेकर संघ प्रगति पथ पर बढ़ रहा है।
सृजन में शोर नहीं होता। साधना के जुबान नहीं होती। किंतु सिद्धि में वह शक्ति होती है कि हजारों पर्वतों को तोड़कर भी उजागर हो उठती है। यह कथन संघ पर अक्षरशः सत्य सिद्ध होता है। 1925 में डाॅक्टर हेडगेवार द्वारा लगाया गया नन्हा सा पौधा आज इतना विशाल वृक्ष बन गया है कि उसकी शाखाएं विदेशों तक फैली हुई हैं। साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा आदि समाज का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र और समाज के लिए कार्य कर न कर रहे हों। कोरोना महामारी के दौरान भी संघ ने सेवा के अनूठे अध्याय गढ़े। यह पुस्तक बताती है कि बिना किसी सरकारी सहायता के संघ इतना सब कुछ कैसे कर पा रहा है। इसके अनुसार संघ व्यक्ति निर्माण के अतिरिक्त कुछ नहीं करता। जो भी करता है स्वयंसेवक करता है। अपनी शाखाओं के माध्यम से चरित्र निर्माण करना संघ का मुख्य कार्य है। इंसान को इंसान बनाना और ऐसे इंसानों को राष्ट्र के प्रति समर्पित करना संघ का ध्येय है। विभिन्न क्षेत्रों में स्वयंसेवक संघ के कार्य को मूर्त रूप देते हैं।
पुस्तक संघ के बारे में फैलाई गई कई भ्रामक धारणाओं को स्पष्ट रूप से दूर करती है। साथ ही अनेक विवादित विषयों पर संघ के विचार सामने लाती है। हिंदू राष्ट्र को लेकर संघ का स्पष्ट मानना है कि यह संकल्पना किसी भी पंथ, संप्रदाय या रिलीजन की विरोधी नहीं है। हिंदू राष्ट्र में सभी पूजा पद्धतियों का सम्मान और स्वतंत्रता स्वयं सम्मिलित है। इसी प्रकार संघ जाति व्यवस्था को सनातन परंपरा का अंग नहीं मानता। इसलिए जन्म के आधार पर कोई भी छोटा या बड़ा नहीं। हमारे वेद भी यही कहते हैं। संघ का मानना है कि हमारी वर्ण व्यवस्था गुण कर्म पर आधारित थी, ना कि जन्म के आधार पर। वहीं आरक्षण पर भी संघ ने दो टूक कह दिया है कि जब तक समाज में भेदभाव विद्यमान है। संघ आरक्षण का समर्थन करता रहेगा। संघ एक सशक्त हिंदू समाज के निर्माण के लिए सभी जातियों के लोगांे को संगठित करना चाहता है। संघ मानता है कि भारत की सामाजिक, राजनीतिक अवधारणा का बीज हिंदू राष्ट्र में है और इस कारण भारत में इस्लाम, ईसाई तथा अन्य संप्रदायों के अनुयायियों को अपनी पूजा पद्धतियों के अनुपालन की पूरी स्वतंत्रता है लेकिन हिंदुत्व भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा कवच है। जब-जब हिंदुत्व सशक्त होता है देश की एकता और अखंडता अभेद्य और अपराजेय बन जाती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

15,481 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress