मैंने वर्ष 1998 में अपने मासिक समाचार पत्र (मीडिया शक्ति) में फस्ट पेज पर एक खबर छापी थी ” हरिद्वार डूब जायेगा”. जिसमें मैंने आशंका व्यक्त की थी कि उतराखंड (उस समय उत्तर प्रदेश था ) टिहरी बांध खुद न खास्ता कभी टूट गया तो अगले चोबीस मिनट में ऋषिकेश तीन सो फुट पानी में डूब जायेगा और अगले एक घंटे में हरिद्वार भी लगभग तीन सो फुट पानी में डूब जायेगा और अगले चोबीस घंटे में टिहरी बांध का पानी पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली को डुबोता हुआ राजस्थान में प्रवेश कर जायेगा . यह बाँध साढ़े आठ सो मीटर ऊँचा और चोबीस किलोमीटर लम्बा बताया जाता है। मैंने तब आशंका व्यक्त की थी खुदा न खस्ता कल को अगर चीन के साथ कोई युद्ध हो जाता है तो चीन अगर इस बांध को ही उड़ा देता है तो देश में करोडों लोंग एक दम काल कलवित हो जायेंगे। इस बांध को बनाने के विरोध में ना जाने कितनी भूख हड़ताल और आन्दोलन हुए लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। भू गर्भ वैज्ञानिको ने भी सरकार को चिताया कि भूकंप के लिहाज से अति संवेदन शील इलाका है अगर कभी आठ रिएक्टर का भूकंप आ गया तो अकल्पनीय हानि होगी। आज भी उतराखंड में छोटे मोटे तीन सो बांध हैं और कई बिजली परियोजनाएं चल रही है लेकिन सब कुछ लोगों की जान माल की कीमत पर हो रहा है। लेकिन सरकार ने कभी लोगो की चिंता को गंभीरता से नहीं लिया। देश के बड़े करपोरेट्स, नेता, अफसर और पर्यटन लाबी सब मिलकर पहाड़ो और नदियों का दोहन करते रहे और मलाई चाटते रहे। पुराना टिहरी नगर जलमग्न हो गया। हजारों लोगों का पुनर्वास करना पड़ा। आज भी कई लोग पुनर्वास और सरकारी मदद की इन्तजार में हैं।
क्या ये संभव नहीं जो चीन अपने यहाँ होने वाले ओलंपिक खेलो के उदघाटन वाले दिन आसमान में आने वाले बादलो का मिसाइल्स के माध्यम से रूख मोड़ सकता है, कृत्रिम बारिश करवा सकता है, बारिश रुकवा सकता है वही चीन जो उत्तराखंड में कुछ ही दूरी पर बैठा है क्लाउड ब्रस्ट (बादल फटने) नहीं करवा सकता। केदार नाथ मंदिर के पीछे तीन किलोमीटर पहाड़ी पर गाँधी सरोवर के ऊपर ही बादलफटा जो पानी से लबालब भरा हुआ था। मंदिर के पुजारी दिनेश बडवानी ने भी कहा है कि बहुत जोर के धमाके की आवाज आयी थी। हो सकता है चीन ने चुपचाप अपना काम कर दिया हो और उसका कहीं नाम भी नहीं आया और हम लोग देवी आपदा देवी आपदा , प्रकृति प्रकोप चिल्ला चिल्ला कर अपनी एनर्जी वेस्ट किये जा रहे हों। आखिर क्या कारण है कि चीन बीस दिन तक हमारे घर बैठ कर वापस शांति से चला गया। क्या पता इस उत्तराखंड की त्रासदी के लिए चीन ही जिम्मेदार हो।
आखिर हमें किसी आम आदमी के मरने पर क्यूँ दर्द नहीं होता, आखिर कब तक हम अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु लोगों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे। आखिर क्यूँ देश के बड़े बड़े धनवान लोग अपने पैसे के बलबूते पर नेताओ और अफसरों को खरीद कर अपने आर्थिक लाभ हेतु लोगों की जान माल से खिलवाड़ करते रहेंगे। हम क्यूँ इतने असंवेदनशील हो गए। आखिर हम क्यों इतने पत्थर दिल हो गए है। भूख-प्यास से तड़फते, जिन्दगी और मौत से लड़ते बच्चे, बूढ़े, जवान महिलाएं, उनके आंसुओ का सैलाब आखिर हमारे दिलों को क्यूँ नहीं झिंझोड़ पाता। क्या हमारा परिवार ही हमारे लिए महतवपूर्ण हैं। कहाँ गयी वासुदेव कुटुम्बकम की भावना। अब भी मांग की जा रही है कि पहाड़ो में बनाये गए बांधो को धीरे धीरे खाली करके इन बांधो को यहाँ से हटाया जाये और पहाड़ों और नदियों के साथ खिलवाड़ बंद किये जाये, तीर्थ स्थानों को, तीर्थ स्थान ही रहने दिया जाये इन्हें पिकनिक या हनीमून स्थल न बनाया जाये, पर्यावरण को बिगड़ने से रोकना होगा,पेड़ों और वनों की कटाई रोकनी होगी तभी रूठी हुई प्रकृति मानेगी। उसके नाराज होने का नतीजा सबने देख ही लिया । जय हिन्द , जय भारत .
चन्द्र प्रकाश शर्मा
यह सब हमारी अदूरदर्शिता पूर्ण नीतियों का अंजाम ही है.ऋषिकेश व हरिद्वार डूबने की आपकी आशंका काफी हद तक सही है.पहाड़ों में पानी रिस कर भूमि की परतों को कमजोर किये जा रहा है.बारूद से उडाये गए पहाड़,बनी गयी सुरंगें पहाड़ों के रूप,स्वरुप,और उनके प्राकर्तिक गठन को ही समाप्त कर रहें हैं.और अब इस क्षेत्र में भूकंप अधिक आने का एक कारण भी यही है.पर विलासियों की सरकार,व उनके हाथों बिक़े राजनीतिज्ञों को यह बात समझ नहीं आती.सरकार के सभी विभाग,भूगर्भ,प्रयावरण, योजना विभाग वनविभाग सब आँखें मूंदे हुए हैं अभी भी हम इससे कोई सबक नहीं लेंगे,इसे प्राकर्तिक विपदा बताकर पल्ला झाड़ लेंगे. कुछ दिनों में देश के अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में भी यही हाल होंना है.
Kya hum sabhi ka dosh nhi?
Kya bheed jaha chahe jut jaye?
Har baat ke liye dusro ko nhi khud ko bhi jano ki kahi hum hi to doshi nhi
उत्तर प्रदेश से अलग होकर विकास चाहते थे हो गया विकास। धार्मिक उन्माद से पीड़ित यात्रियों के वहां
पंहुचाने ,रहने के लियें विकास तो होना था ,हो गया, असंख्य लोगों को वहाँ एक साथ भेजने का प्रबंध है,
होटल हैं, हैलीकौपटर हैं,पूरे देश मे टूअर आपरेटर हैं, फिर क्यों न परलोक सुधारे, ये लोक और परलोक दोनो सुधर गये, कोई देवता नहीं आया बचाने मंदर से निकलकर। सेना के जवानो ने जान पर खेलकर बचाया जो बचे है उनको।
क्या ये संभव नहीं कि कि विनाश के देवता शिवजी ने बादल फटने का कार्य करवाया हो.. विनाश के बाद ही सृजन होता है..ऐसा मैने सुना था।
क्या कल्पना है चीन ने.. यदि ऐसा हो सकता तो उनके देश मे बाढ़ क्यों आती