हे महामारी! आपकी महिमा अपरम्पार है

अवधेश कुमार सिंह

कोरोना का कमाल देखिए। अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा सम्पूर्ण विश्व आज कोरोना के प्रकोप के आगे विवश है। लाचार है, अर्थात “एक महामारी सब पर भारी” सिध्द हो रहा है। चीन के वुहान शहर से चला है एक राक्षस,   नाम है जिसका करोना वाइरस। कोविड -19 दिया गया जिसका नाम, अब तक इसने लाखों का किया काम–तमाम। जी हाँ, चीन के वुहान शहर से शुरू हुई इस जानलेवा महामारी का खौफ कितना भयवाहक है कि दुनिया के जो शहर कभी अपने राजाओं व शासकों की मृत्यु के समय भी उनके शोक पर बंद नहीं हुए दुनिया के उन कोरोना प्रभावित कई शहरों में महीनो तक पूरी तरह शट डाउन देखा जा रहा है। दुनिया में जो बड़े से बड़े आयोजन अथवा कार्यक्रम कभी रद्द नहीं हुए उन्हें कोरोना की दहशत ने अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करा दिया है। इतना ही नहीं जो कभी मौत से भी नहीं डरने का दावा करते थे ऐसे महारथी भी करोना संक्रमण के भय से भयभीत होकर खुद अपने अपने घरो में कैद हो गये। “घर गुलज़ार, सूने शहर, बस्ती बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई, आज फिर ज़िन्दगी महँगी और दौलत सस्ती हो गई।”

 वैसे ही जो लोग कभी लाइन में खड़ा होना अपने शान के खिलाफ समझते थे वे भी कोरोना संक्रमण के भय से भयभीत होकर सोशल डिस्टेंशिंग और दो गज की दूरी है जरुरी के महत्व को समझकर उसका पालन करने को मजबूर हो गए। यानि यो कहे तो जो कोई नहीं किया वो कोरोना ने कर दिखाया। वाह रे कोरोना तुम भी क्या कमाल की चीज हो,  तुमने वो कर दिखाया जो अच्छे अच्छे ना कर सके। राष्ट्रों की सीमाएं टूट गईं। युद्ध के नगाड़े थम गये, आतंकी बंदूकें खामोश हैं; अमीर-गरीब का भेद मिट गया। आलिंगन, चुम्बन का स्थान; मर्यादित आचरण ने ले लिया। क्लब, स्टेडियम, पब, मॉल, होटल, बाज़ार के ऊपर अस्पताल की महत्ता स्थापित हो गई। अर्थशास्त्र के ऊपर चिकित्साशास्त्र स्थापित हो गया। एक सुई, एक थर्मामीटर; गन, मिसाइल टैंक से अधिक महत्वपूर्ण हो गया। मंदिर बंद, चर्च बंद ,दरगाह, मस्जिद बंद! हृदय में विराजमान प्रभु को पूजा जा रहा है। धर्म पर अध्यात्म स्थापित हो गया। भीड़ में खोया आदमी, परिवार में लौट आया। बिजली सी भागती दुनिया को घुटनों पर ला दिया। घर के दीवारों में कैद जिन्दगी ने अपना बना लिया, बदली फिजा ने घर मे रहना सिखा दिया।

हे महामारी आपकी महिमा अपरम्पार है, आप कोरोना नहीं करुणा अवतार है ! आपने तो असंभव को संभव कर दिया। दुनिया भर में वायुमंडल साफ है हवा शुध्द हो रही है किन्तु हम चैन की सांस नहीं ले पा रहे है। चिड़ियाँ चहक रही है  मगर इंसान घर में कैद है। सड़के खुली है, सड़कों पर सन्नाटा है। फिर भी लोग यहाँ वहाँ यात्रा करना छोड़ परिवार के साथ समय बिता रहे हैं। लक्जरी क्रूज जहाज समुद्र को गंदा नहीं कर रहे हैं। गर्मी का मौसम है लेकिन कोई आइसक्रीम नहीं खा रहा है। लोग मांस खाना छोड़ रहे हैं और शाकाहार को अपना रहे है। परिणामस्वरूप जीव हत्या काफी रुक गई है। जीव जन्तु सब प्रसन्न है, जीवित रहने के लिए कोरोना को धन्यवाद दे रहे है। आपका आभार महसूस कर रहे हैं। ऐसे में आप ही बताओ यह करुणा अवतार नही तो और क्या है ? कोरोना तुम अब तक कहा थी?  आपके आने के बाद बीवी की  शॉपिंग बन्द,  मॉल जाना बंद, फ़िल्म की फरमाइश बन्द, आउटिंग की फरमाइस बन्द,  बाहर खाना बंद, और सबसे बड़ी बात की मुँह पर मास्क का ताला लगाये फिरने से दिन भर की चिक चिक बन्द। धन्य हो कोरोना आप तो नारी पर भी भारी पड़ गई।

कोरोना ने सिर्फ धमाल नहीं किया बल्कि कोरोना ने कमाल भी किया है। कुछ दिन पहले तक प्रदूषण तथा दूषित वातावरण के कारण धरातलीय एवं जलीय जीवों के साथ साथ उन्मुक्त गगन में विचरण करने वाले पशु पक्षियों जीना दुर्लभ हो गया था। ऐसे में करोना ने कमाल कर दिया हैं। इतने तांडव के बाद भी इस वायरस के चलते हमारी धरती पर एक ऐसा सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है जिसका सपना भारत समेत कई राष्ट्र देख रहे थे। यूरोपियन स्पेस एजेंसी द्वारा जारी जानकारी के मुताबिक, कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया में प्रदूषण का स्तर काफी गिर गया है। जिस प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए भारत, चीन और अमेरिका जैसे देश सालों से जुटे थे, कोरोना ने पलक झपकते ही उसका सफाया कर दिया है। बता दें कि इसका कारण सड़कों पर चलने वाले वाहन और फैक्ट्रियां और थर्मल पावर स्टेशन थे जो पिछले काफी समय से बंद पड़े हैं। हे वैश्विक महामारी आपकी महिमा अपरम्पार है।

किसी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि भारत जैसे धर्म प्रधान देश में एक साथ सारे मंदिर, मस्जिद चर्च और गुरुद्वारे बंद हो जायेंगे और नवरात्र तथा रामनवमी जैसे त्योहार पर कोई भक्त मंदिर नहीं जायेगा। रमजान के पवित्र महीने में मुसलमानो को मस्जिदों में नमाज पढ़ने से रोका जायेगा? चर्च या गुरुद्वारे में जाकर प्रार्थना करने से श्रदालु परहेज करेंगे ? कुछ दिन पहले तक यह सब असंभव लग रहा था। किन्तु करोना ने असंभव को संभव कर दिखाया। कहते है जब दवा काम नहीं करती है तब दुआ काम करती है और संकट की घडी में लोग अपने आराध्यदेव की शरण में मंदिर, मस्जिद चर्च अथवा गुरुद्वारे जाते है परन्तु ऐसा पहली बार  हुआ है कि मंदिर, मस्जिद चर्च और गुरुद्वारे में रहने वाले अपने भगवान के परम भक्त पुजारी मौला तथा फादर कोरोना के डर से घर में आकर छिप गये।

इतना ही नहीं घर अपना घर और परिवार को परिवार नहीं समझने वाले  अपने घर और परिवार के शरण में ही आना पड़ा। हमारे जैसे तथाकथित कर्मयोगियों को जो कर्म को पूजा और कर्मस्थल को ही अपना घर समझने वाले को भी कोविड-19 ने घर का रास्ता दिखा दिया। गैरों की गुलामी में मस्त और व्यस्त रहने वाले ऐसे लोगो जिनके पास मरने तक का फुर्सत नहीं था उनको भी कोरोना ने अपनों के बीच फुर्सत से बैठा दिया। ऐसा संयोग शायद पहली बार हुआ है कि सबको बिना मांगे लम्बी छुट्टी मिली हो और परिवार के साथ रहने का मौका। सरकार ने समझाया- दूर तक उड़ने के लिये अब कुछ पल ठहरना होगा,  खुशहाल जिंदगी जीने के लिये घरों में रहना होगा। हमने भी सोचा चलो कुछ वक़्त घर वालों के साथ बिताया जाये और इस बीमारी को देश से भगाया जाये |

लेकिन इसके साथ ही इसका साइड इफेक्ट भी हुआ ज्यादा दिन घर में रहने से किचेन को लेकर घर में किचकाच शुरू हो गया। प्यार तकरार में बदल गया। एक दोस्त का फोन आया। अरे यार क्या करें?  कहां जाऐं?  यह तो जिंदगी भर का रोना है, घर में बैठी है शेरनी और बाहर कोरोना है। मैंने भी दोस्ती का फर्ज निभाया और सलाह दे दिया – यार, लॉकडाउन तक परीक्षा की घड़ी है, आपकी घरवाली सतायेगी,आपको उकसाएगी, वाद- विवाद प्रतियोगता के लिए तरह-तरह के आव्हान करेगी। परंतु हे आर्यपुत्र ! तुम विचलित ना होना, एक बौद्ध भिक्षु की तरह दैवीय मुस्कान बनाए रखना, निश्चित ही जीत आपकी होगी।

हे महामारी आपकी महिमा अपरम्पार है। आपने प्राचीन भारतीय परम्परा नमस्कार के चमत्कार को फिर से उजागर कर दिया। दुनियाभर में लोग कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए एक – दूसरे से हाथ मिलाने से बच रहे हैं और भारतीय परंपरा में दूर से नमस्कार करने की परंपरा को अपना रहे हैं।  ये अलग बात है कि हम भारतीय अपनी संस्कृति अपना संस्कार भूल रहे है।  नकल के पीछे अकल गवाकर पश्च्मि सभ्यता के पीछे भाग रहे थे । नमस्कार के चमत्कार को भूलकर हाथ मिलाना, गले लगना और कीस करना सीख गये थे। सिर्फ इतना ही नहीं, आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम भारतीय नर-नारी अपनी पहचान अपना पहनावा साड़ी, दुपट्टा और गमच्छा को त्याग चुके है जबकि कोरोना संकट के समय इस सक्रमण से सुरक्षा या बचाव में ज्यादा कारगर साबित हो रहा है। टिशू पेपर के प्रचलन के साथ हम रुमाल भी रखना भूल गए थे। धन्य हो कोरोना तूने हमें आईना दिखा दिया। 

कोरोना वायरस भले ही तबाही मचा रहा हो, किंतु कोरोना ने दुनिया को स्वच्छता की जो सीख सीखा गया उससे हर कोई ताउम्र याद रखेगा। आज लगभग हर व्यक्ति नियमित तौर पर साबुन से हाथ धो रहा है। बार बार हाथ धोने की सलाह का बखूबी पालन किया जा रहा है। कोरोना वायरस ने जिन लोगों को साबुन से हाथ धोने की आदत नहीं थी, उनके हाथ में भी सेनिटाइजर थमा दिया है। मज़बूरी में ही मगर मास्क लगाना जरुरी हो गया। घर से निकलते ही मास्क लगाया करो। खुद भी हाथ धुला करो औरों के भी धुलाया करो।

कोरोना की कहर से जहां एक तरफ वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था को तबाह कर रही है वहीं दूसरी तरफ यह हमारी इंसानियत का इम्तिहान भी ले रहा है। संक्रमण के कारण दुनिया भर में लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर भी काफी असर पड़ा है। हालत ये है कि लोगों ने मिलने-जुलने का तरीका तक बदल लिया है विशेषज्ञों का मानना है कि आनेवाले दिनों में ये वायरस खानपान, काम करने के तरीकों, कारोबार के माध्यमों, यात्रा के तौर तरीकों, घरों के डिजाइन, सुरक्षा का स्तर में स्थायी तौर पर बदल कर रख देगा। बदले हुए हालात में हमें ऐसे काम करने की आदत डालनी पड़ रही है जो अशिष्ट या अभद्र माने जाते हैं. मगर कोरोना का करिश्मा देखिये दो दो गज दुरी है जरुरी के तहत बाक़ी लोगों से कम से कम दो मीटर दूर खड़े होना, उनसे हाथ न मिलाना, दोस्त के गले न लगना जैसे अशिष्ट व्यवहार हमारे इस दौर के नए शिष्टाचार बन गये हैं। कोरोना महामारी से बचाव के लिए सबसे पहले लोगों को भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचने की सलाह दी जा रही है। फासलों से मोहब्बत जताया करो, ऐ जान अब क़रीब मत आया करो। बिना मिले फोन पर ही हाल बताया करो, दूर रहकर आंखों में डूब जाया करो। ऐसी स्थिति में पार्टी, क्लब सार्वजनिक समारोह ,और शादी – विवाह जैसे उत्सव जहां सैकड़ों-हजारों की संख्या में भीड़ होती है, वहां भी बेवजह जाने से परहेज करना होगा। चलो कोरोना भय के कारण ही सही किन्तु यज्ञकर्ता को बिन बुलाये मेहमानों राहत तो मिलेगी। अब तो आनेवाले दिनों में विवाह पत्रिका ऐसी होगी – भेज रहे है स्नेह निमंत्रण,  प्रियवर तुम्हे दिखाने को, हे मानस के राजहंस, तुम आ मत जाना खाने को।

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