ऐ लाला कुछ दे दे
मेरे बच्चे भूखे हैं,
भिखारन ने लाला से सवाल किया
लाला ने नोटों की गिनती बन्द कर
नोट मुटठी में छुपा लिये
और नजर उठाकर, भिखारन के शरीर पर गड़ा दी,
उसके सोने जैसे तन को वो भूखे गिद्ध की तरह
निहारने लगा
ऐ लाला बच्चे भूखे हैं,
कुछ दे दे, भगवान तेरा भला करेगा
तेरे बच्चे सुखी रहें, दे दे कुछ
लाला ने इधरउधर नजरों से देखा
और भिखारन से बोला
क्यों इस तन को कष्ट दे रही है
पूरे सौ रूपए दूंगा
ये सुनते ही भिखारन का रूप बदल गया
लाला तेरे कीड़े पड़ें, तू नरक में जाये,
तेरी अर्थी को कोई कांधा न दे, भगवान तुझे नरक दे
भिखारन बड़बड़ाती हुई आगे ब़ गई
कुछ दूर जाकर वो सोचने लगी
आखिर मैं यू ही कब तक लड़ती रहूंगी
इन भूखे भेड़ियों से
मुझे भी एक न एक दिन करना ही पड़ेगा
भूख की खातिर
भूखे बच्चों की खातिर,
’’समझौता’’॥
“सियासत’’
पंख सियासत के लगे तो आदमी उड़ने लगा
और जमीं वालों से उसका राब्ता कटने लगा
सींग भी उग आये उसके सर पे दो हैवान से
शक्ल भी बदली नजर आने लगी इन्सान से
जा के वो संसद भवन में पाठ ये पॄने लगा
अपने मतलब के लिए काटेगा लोगों का गला
हिन्दू, मुस्लिम, सिख ईसाई, भूल जा सारे मजहब
ओ़ ले चोला उसी का, वोट मांगे जिससे जब
भाई से भाई लड़ा दे, बाप से बेटा लड़ा
अपना मतलब हो गधे को बाप तू अपना बना
तू अगर जिन्दा रहा, पी0एम का नंबर आयेगा
रख यकीं के एक दिन, भारत रतन मिल जायेगा
देश के हित में रहा गांधी सा मारा जायेगा
नोट तेरे नाम का भी देश में चल जायेगा।
नोट तेरे नाम का भी देश में चल जायेगा।
मैं वृक्ष पीपल’’
आज सब की श्रद्घा का पात्र हूं
खुश हूं कि लोग सुबह शाम आकर मुझे
पूजते हैं।
बहू, बेटियां, पुत्र, पौत्र समान मानव रूपी
आत्माएं रोज सुन्दर मेरी जड़ों को किसी
बुजुर्ग के चरणों के समान स्पशर कर
आशीर्वाद लेते हैं।
किन्तु, आज जब मैं अपने उस बू़ढे मित्र को
देखता हूं तो मेरा मन तड़प जाता है।
वह मेरे बचपन का साथी जिसने,
मुझे एक छोटी सी पगडंडी से लाकर यहां
मन्दिर के पास जमीन में रोंपा था।
मैं सोचता हूं ,कि यदि मुझे यह देव समान
व्यक्ति उस पगडंडी से लाकर यहां न रोंपता
तो मैं कब का लोगों के पांव तले कुचल कर
मर गया होता।
आज व मेरा साथी, लोगों की दया, भीख पर
निर्भर है।
अभी कल की ही तो बात है,
जब उसका शरीर बलवान था,
उसके छोटेछोटे दो बेटे रोज सुबह शाम
मेरे पांव छूने आते थे।
मेरी क्यारी बनाकर पानी देते थे,
थोड़े बड़े हुए तो पढाई के साथसाथ खेती,
में भी पिता का हाथ बंटाने लगे।
मेरे मित्र ने इन के विवाह खूब धूमधाम से
किये।
वह दिन मुझे आज भी याद है,जब
दो सुन्दरसुन्दर बहुओं ने आकर,
मेरे पांव छूकर ,आशीर्वाद लिया था।
मैंने भी खुश होकर दूधो नहाओ
फूलो फलों का ,उन्हे आशीर्वाद दिया था।
काश !उस दिन मैंने अपने मित्र को भी
सुखमय जीवन जीने का आशीर्वाद दिया होता
हाय! अब पछताने से क्या फायदा।
किन्तु ,एक सवाल मैं आप लोगों से जरूर
पूछना चाहूंगा।
मैं एक पीपल हे वृक्ष हूं ,जड हूॅ
किन्तु मेरा ये मित्र एक मानव है,
चेतन है उसके, शरीर में आत्मा वास करती है
फिर
क्यो बूढ होने पर उस के बच्चे ने,
उसे घर से निकाल दिया।
क्यो उसके बहू बेटे पांव छूकर
आशीर्वाद नहीं लेते ?
क्यो उसके पुत्र उस के बू़ढे शरीर की सेवा
नहीं करते ?
क्यों उसे दो वक्त की रोटी ,उसके पुत्र
नहीं दे सकते, जो उसका अंश है ?
जिनका वह जीवनदाता है ?
क्यों आज उसे भीख मांगने के लिए
छोड़ दिया गया है ?
मैं बू़ा पीपल आप आप लोगों से
निवेदन करता हूं ,आप लोगो को
सावधान करता हूं , कि ,जब तक
आप बू़ोंढ के पांव छूकर
आशीर्वाद नहीं लेंगे, तब तक मेरी पूजा
बेकार है।
मै अपने दुखी मन से तुम्हें
कभी नहीं दे पाऊंगा
कभी नहीं दे पाऊंगा।
“आशीर्वाद’’
आदरणीय इकबाल हिन्दुस्तानी और शादाब जी
आज मेरे पास थोडा वक़्त था तो मैंने शादाब जी के लेख पढने चाहे यह जान कर बड़ी प्रसन्नता हुई की शादाब भाई एक अच्छे शायर भी हैं . इक़बाल हिन्दुस्तानी भी अपने लेखों का अंत कुछ शेर दे कर करते हैं. मुझे खास तौर से उनका दुष्यंत कुमार का शेर
“कैसे आसमान में सूराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो.” बहुत पसंद आया. शादाब भाई की कवितायेँ अच्छी लगी और विशेष रूप से उनकी पीपल के पेड़ वाली कविता मर्मस्पर्शी लगी .आशा है
आप लोगों के लेखों से उर्दू कविता प्रेमिओं का मनोरंजन होता रहेगा