यॉर ऑनर !
ये जो व्यक्ति मेरे सामने
कटघरे में खड़ा है।
पांच वर्षों से मेरे पीछे पड़ा है।
जहाँ भी जाता हूँ, मेरे पीछे लग जाता है।
बार-बार, एक ही बात दोहराता है।
हिन्दी बोलना सीख जा…
नमस्ते बोलना सीख जा…
इसकी हरकतों से हम अपना सिर पीट रहे हैं।
हम तो खुद बैल हैं, यॉर ऑनर।
जो इस आधुनिकता की मजबूरी में
अंग्रेजी की गाड़ी खींच रहे हैं।
लोग कहते हैं –
अंग्रेजी सीख जाओ
इसमें बहुत फायदा है।
हिन्दी में कौन-सा कद है,
कौन-सा कायदा है ?
और ये कहता है –
तुम बड़े बेवकूफ हो
एम.ए. कर चुके हो।
नमस्ते कहना आता नहीं
हैलो, हाय कर रहे हो।।
अब भी समय है, सुधर जाओ।
अपने अंग्रेजी के पागलपन से
जरा बाहर आओ।
और क्या कहूँ यॉर ऑनर,
इसकी हरकतों से कॉलेज के
मित्रों का खून खौल रहा है।
विद्यार्थियों का क्या कहें,
शिक्षकों का भी बचा-कूचा
अंग्रेजी सिंहासन डोल रहा है।
कानून इसे सख्त से सख्त सजा सुनाये।
इस आधुनिक युग में अंग्रेजी की
परिभाषा बतलाये।
आय ऑप्जेक्शन मिलॉड,
मेरे काबिल दोस्त मेरे मुवक्किल
पर बेवजह आरोप लगा रहे हैं।
कानून क्या किसी साधु का भभूत है
हिन्दी अच्छी भाषा नहीं है
इसका इनके पास क्या सबूत है?
विश्व का हर विद्वान,
हिन्दी भाषा की उच्चता को
अच्छे से जानता है।
जब संसार हिन्दी को जानता है
तो कानून हिन्दी को मानता है…
ऑर्डर-ऑर्डर
हिंदी के अपार समर्थक जी आप अपने
सफाई में कुछ कहेंगे ।
या इस अंग्रेज के औलाद के लगाये
आरोपों को चुपचाप सहेंगे ।
जज साहब,
सभी आरोपों को सुनकर
मैं अपना मुँह खोलता हूँ ।
हिन्दी और अंग्रेजी की वर्तमान स्थिति
को बराबर तौलता हूँ।
हिन्दी भाषा भारत के लिए उज्ज्वल किताब है।
जिसमें विद्यमान
हमारे पूर्वजों की गौरवगाथा,
वीरता और त्याग है।
हमारे पूर्वज बड़े ही विवेकशील व बुद्धिमानी थे।
संस्कृत व हिन्दी के महाज्ञानी थे।
हम हिन्दुस्तानी अब उन आदर्शों को भूल रहे हैं।
राष्ट्रभाषा भूलकर
हम आत्मिक शांति ढूंढ रहे हैं।
लेकिन इस कानून की दहलीज पर मेरा एक सवाल है ?
जिसका हमारे मन में मचता रोज बवाल है।
कि, स्वदेशी कहाँ है ? जज साहब,
आज स्वदेशी कहां है ?
अब क्या बात है कि स्वदेशीमन के लोग
कहीं पर नजर आते नहीं है ?
स्वदेशी तो बापू अपनाते थे
हम लोग अपनाते नहीं है ।।
हमारी सदियों से आदत है कि
हर मोड़ पर हम परायों को अपनाते हैं,
इसलिए हम हिन्दू सहिष्णु कहलाते हैं।
यह माना कि दूसरों को अपनाना चाहिए,
पर इसका मतलब यह तो नहीं,
कि खुद के भाई को भूल जाना चाहिए।
कई ऐसे लोग हैं जो
अंग्रेजी सीखकर केवल खुद को
बड़े होशियार समझते हैं।
हिन्दी को तुच्छ जानकर
बड़े अहंकार से जीते हैं।
मैं तो कहता हूँ कि
तुमसे अच्छे तो वे शराबी हैं
जो रोज देशी पीते हैं,
मर-मर कर जीते हैं…
फिर ऐसा जीना भी क्या जीना है ?
इस पीने की होड़ ने ही
वास्तव में, समाज का सुख छीना है।
गर्व करना है तो अपनी भाषा पर,
अपनी संस्कृति पर गर्व करें ।
अपने सुमधुर वाणी से
सबकी पीड़ा हरें।
हिन्दी तो हमें भी आती है
पर क्या करें ?
विश्व में अंग्रेजी का ही ज्यादा चलन है।
उनको ही दुनिया करती नमन है।
जो पिछड़े हैं,
जो कम होशियार हैं
उनके द्वारा ही हिन्दी बोली जाती है
हम विद्वान हैं, हमारा मान घट जाएगा
इसलिए हमें हिन्दी बोलने में शर्म आती है।।
ऐसी हमारी धारणा बन गई है ।
अंग्रेज हमारे देश से तो चले गए
पर मन में हमारे अपनी अंग्रेजियत जोड़ गए।
अब हमने उसे अपने दिल में बसा लिया।
अपनी निज भाषा को दिल से भगा दिया।
हमारे कपडे, वस्तु, विचार सब कुछ विदेशी हो रहे हैं।
स्वतंत्र भारत के वासी हम फिर से गुलाम हो रहे हैं।
ये कैसा देश है जज साहब !
जहाँ अंग्रेजी हर मोड़ पर हिन्दी को अंगूठा दिखाती है।
यहाँ दुर्वासा के श्राप से अहिल्या पत्थर हो जाती है।
फिर राम आते हैं, अहिल्या को
पत्थर से पुन: नारी बनते हैं।
लेकिन इस हिन्दी रूपी अहिल्या के लिए
अब राम नहीं है।
हमें लगता है कि, व्यवहार में हिन्दी का काम नहीं है।
आज खेल, मंत्रालय, अदालत, चर्चा, स्कूल-कॉलेज, सभा
सभी में अंग्रेजों की भाषा है।
फिर इस राष्ट्र में
हिन्दी की क्या परिभाषा है ?
हमें लगता है कि
हिन्दी के अस्तित्व को
नकारना हमारा अधिकार है।
तो फिर इसमें हिन्दी का कौन-सा कद है,
कौन-सा आकार है ?
ये कैसा कानून है जज साहब !
जहाँ हमारी राष्ट्रभाषा, हमारे ही कारण
खतरे में पड़े।
और कानून एक बेकसूर हिन्दुस्तानी
को कटघरे में लाकर खड़ा करे।
केवल अपने व्यावासिक लाभ के लिए
हिन्दी के सरलीकरण के नाम पर
आज भाषा को विकृत बना दिया गया है ।
अब हिन्दी का हिन्ग्लिशिकरण करना फैशन बन गया है।
न जाने भारत के बुद्धिजीवी पत्रकारों की बुद्धि
कहाँ गुम गया है ?
हमारी बेबसी और दिखावेपन ने हिन्दी
की दुर्दशा कर दी है।
इसलिए मैं फैसला चाहता हूँ,यॉर ऑनर !
मैं फैसला चाहता हूँ…
आर्डर-आर्डर
तमाम बातें और मौका-ए-वारदात को
मद्देनजर रखते हुए अदालत ये फैसला सुनाती है।
रुक जाइये, यॉर ऑनर।
एक बात और सुन लीजिए !
फिर अपना फैसला दीजिए !
यदि आप अंग्रेजी के पक्ष में
फैसला सुनाएंगे।
तो भारत माँ को आप
अपना कौन-सा मुँह दिखायेंगे ?
मैं ये जो भी कह रहा हूँ
ये मेरी सफाई नहीं
राष्ट्रभाषा के अस्तित्व की कहानी है।
एक ग्लास पानी है,
मैं पीना चाहता हूँ।
बोल-बोल कर थक गया हूँ
एक बार फिर ताकत से जीना चाहता हूँ।
अंत में, मैं यही कहूँगा,यॉर ऑनर !
कि, हमारे पूर्वज हजारों वर्षों तक
हमारी भाषा और हमारी संस्कृति की रक्षा करें।
और हम कुछ ही वर्षों में विदेशी भाषा का सहारा लेकर
निज संस्कृति का ह्रास करें।
ये कैसा न्याय है ?
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी आज इस
आधुनिक और दिखावे के युग में
खुद को कैसे संभाले ?
कानून पहले इसका हल निकाले।
जब तक इस केस का फैसला हमारे पक्ष में नहीं हो जाएगा।
जब तक समुचा भारत
भाषा के प्रकाश से आलोकित नहीं हो जाएगा।
तब तक ये ‘लखेश्वर चंद्रवन्शी’
आप के अदालत में बार-बार आएगा।
बार-बार आएगा… ||
बार-बार आएगा… ||