
भारत में जो रची बसी है , वह जनभाषा है हिन्दी।
भारतमाँ के माथे की है , वह प्यारी सी बिन्दी ।।
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उत्तरदिशि केदारनाथ में , गूँज रही है ये हिन्दी।
दक्षिण में रामेश्वरम तक, व्याप रही अपनी हिन्दी।।
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पूर्वदिशा में जगन्नाथपुरि , में भी तो छाई हिन्दी।
पश्चिम में है बसी द्वारिका,वहाँ भी सब बोलें हिन्दी।।
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अब तो देश-विदेशों में भी, पढ़ें पढ़ाएँ सब हिन्दी।
बने राष्ट्रभाषा भारत की, जगभाषा होगी हिन्दी ।।
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सभी कहीं सम्मानित होती, तुलसी “मानस” में हिन्दी।
सूरदास, मीरा के पद में , शोभित होती है हिन्दी ।।
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स्वतन्त्रता-आन्दोलन में भी, सबने अपनाई हिन्दी।
हमको माँ सी जो प्यारी है, वह भाषा केवल हिन्दी।।
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हिन्दी का उत्कर्ष सदा हो, सब में जोश भरे हिन्दी।
गौरवान्वित भारत होगा जब, सब मिलकर बोलें हिन्दी।।
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मौसी सी प्यारी भारत की , सब भाषाएँ विकसित हों ।
एक सूत्र में बँधे सभी तो,भारत की संस्कृति की जय हो।।
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— शकुन्तला बहादुर, कैलिफ़ोर्निया