अंग्रेजी चाची ने हिंदी, दादी पर हमला बोला|
डर के मारे दादी का, सिंहासन है थर थर डोला|
चुपके चुपके दादी माँ ,अपने दड़बे मे घुस आई|
“मैं वेदों की महरानी हूँ,” जोर जोर से चिल्लाई|
“बड़े बुज़्रगों ने मुझको ,धर्मों करमों में ढाला था|
बहुत प्यार से बड़े लाड़ से ,स्मृतियों ने पाला था|
मेरे पुरखों दादों ने, दुनियाँ को जीना सिखलाया|
सत्य अहिंसा दया धर्म का, मार्ग जहाँ को दिखलाया|
तुम सब नाती पोते, दादी ,हिंदी को क्या पहचानों|
तुम अधकचरे मात पिता की, हो अधकचरी संतानो|
दादी का अस्तित्व अभी तक, कोई मिटा न पाया है|
नहीं मिटेगी किसी तरह भी ,अमर हो चुकी काया है|
हिंदी दादी अमर रहेगी ,इंग्लिश चाची के घर में|
गूंजेगी आवाज़ हमेशा ,थल में जल में अंबर में|”