कहने से नहीं, अपनाने से होगी हिंदी की सार्थकता

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सुशील कुमार ‘नवीन’

आप सभी जेंटलमैन को ‘ हिंदी दिवस’ की मैनी मैनी कांग्रेचुलेशन। यू नो वेरी वेल कि हिंदी हमारी मदरटेंग है। इसकी रिस्पेक्ट करना हम सब की रेस्पॉनसबिलीटी है। टुमारो हमारे कॉलेज ने भी हिंदी-डे पर एक प्रोग्राम आयोजित किया था। उसमें पधारे चीफ गेस्ट ने हिंदी की इंपोर्टेंस पर बड़ी ही अट्रेक्टिव और वेल्युबल स्पीच दी। आप भी सोच रहे होगे कि बड़ा अजीब आदमी है। अपने आपको हिंदी साहित्यकार कहता है और हिंदी का कार्यक्रम सम्पन्न करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा। बुरा लगा ना। ऐसा ही बुरा हर हिंदी प्रेमी को लगता है। लगना भी चाहिए। हिंदी हमारी मातृभाषा है। हमारी मां है। हमारी पहचान है। हिंदी हैं हम वतन है, हिंदोस्तान हमारा का नारा बचपन से लगा रहे हैं।     गुरुवार को देवत्व रूप धारी हमारी मातृभाषा हिंदी का जन्मदिन है। दोस्तों, यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि हिंदी की वर्तमान दशा और दिशा बिगाड़ने में हम सब का कितना योगदान है।

   एक संस्थान ने समाचार पत्र में विज्ञापन दिया। इसमें सबसे पहले बड़े अक्षरों में लिखा गया’ वांटेड’। नीचे लिखा हिंदी असिस्टेंट प्रोफेसर। नीचे वाली लाइन तो और गजब की थी। आप भी पढ़ते तो पदम् श्री की सिफारिश कर देते। लिखा-  अंग्रेजी जानने वाले को वरीयता दी जाएगी। कमाल है भाई। ये तो वही हो गया कि सोसायटी की चौकीदारी की नौकरी को आए एक जने से पूछा गया कि अंग्रेजी आती है क्या। उम्मीदवार भी बड़ा हाजिरजवाब था, क्यों ,चोर इंग्लैंड से आयेंगे क्या। 

    कहने को हम अपने आप को हिंदुस्तानी कहते है और हिंदी हमारी मातृभाषा बताते हैं। इसे हम अपने जीवन में कितना धारण किए हुए हैं, यह आप और हम भलीभांति जानते हैं। सितम्बर में हिंदी पखवाड़ा का आयोजन करते है। जहां कहीं बड़ा आयोजन हो, वहां चाट पकोड़े के चटकारों के साथ हिंदी प्रेम की इतिश्री कर लेते हैं। सभी ‘हिंदी अपनाएं’ हिंदी का प्रयोग करें ‘ की तख्तियां गले में तब तक लटकाए रखते हैं, जब तक कोई पत्रकार भाई हमारी फ़ोटो न खींच लें। या फिर सोशल मीडिया पर जब तक एक फोटो न डाल दी जाए। फ़ोटो डालते ही पत्नी से ‘आज तो कोई ऐसा डेलिशियस फ़ूड बनाओ, मूड फ्रेश हो जाए’ सम्बोधन हिंदी प्रेम को उसी समय अदृश्य कर देता है। आफिस में हुए तो बॉस का ‘स्टुपिड’ टाइप सम्बोधन रही सही कसर पूरी कर देता है।  

  और भी सुनें, हमारी सुबह की चाय ‘बेड-टी’ का नाम ले चुकी है। शौचादिनिवृत ‘फ्रेश हो लो’ के सम्बोधन में रम चुके हैं। कलेवा(नाश्ता) ब्रेकफास्ट बन चुका है। दही ‘कर्ड’ तो अंकुरित मूंग-मोठ ‘सपराउड्स’ का रूप धर चुके हैं। पौष्टिक दलिये का स्थान ‘ ओट्स’ ने ले लिया है। सुबह की राम राम ‘ गुड मॉर्निंग’ तो शुभरात्रि ‘गुड नाईट’ में बदल गई है। नमस्कार ‘हेलो हाय’ में तो अच्छा चलते हैं का ‘ बाय’ में रूपांतरण हो चुका है। माता ‘मॉम’ तो पिता ‘पॉप’ में बदल चुके हैं। मामा-फूफी के सम्बंध ‘कजन’ बन चुके हैं। गुरुजी ‘ सर’ गुरुमाता ‘मैडम’ हैं। भाई ‘ब्रदर’ बहन ‘सिस्टर’,दोस्त -सखा ‘फ्रेंड’ हैं। लेख ‘आर्टिकल’ तो कविता ‘पोएम’ निबन्ध ‘ऐसए’ ,पत्र ‘लेटर’ बन चुके है। चालक’ ड्राइवर’ परिचालक ‘ कंडक्टर’, वैद्य” डॉक्टर’ हंसी ‘लाफ्टर’ बन चुकी हैं। कलम ‘पेन’ पत्रिका ‘मैग्जीन’ बन चुकी हैं। क्रेडिट ‘उधार’ तो पेमेंट ‘भुगतान का रूप ले चुकी हैं। सीधी बात नो बकवास।  ‘हिंदी है वतन हैं.. हिन्दोस्तां हमारा’ गाना गुनगुनाना आसान है पर इसे पूर्ण रूप से जीवन में अपनाना सहज नहीं है। तो हिंदी प्रेम का ड्रामा भी क्यों।  

    इंडिया को भारत बनाने की पहल सार्थक है। यह किसी एक के बस की बात नहीं है। सब साथ देंगे तो यह भी हो सकता है। विचारें, इंडिया को भारत लिखने से भारत थोड़े ही बन जाएगा। इंडिया को भारत के रूप में स्थापित करने ले लिए सर्वप्रथम हमें  इंडियन की जगह भारतीय बनना होगा। भारतीय संस्कृति को अपने अंदर धारण करना होगा। ‘ इंडियननेसज’ का मुखौटा छोड़ भारतीयता को अपनाना होगा। तभी तो इंडिया भारत बन पाएगा और हम इंडियन भारतीय। बात कड़वी जरूर है पर शहद के झूठे लबादों से हिंदी की दशा का सुधरना संभव नहीं। शुरुआत ‘ हिंदी के लिए एक दबाएं, दो नहीं। हिंदुस्तान है तो हिंदी के लिए एक दबेगा और दूसरी भाषा के लिए दो। 

नोट: लेख मात्र मनोरंजन के लिए है, इसे कोई व्यक्तिगत रूप से न लें।

लेखक: 

सुशील कुमार ‘नवीन’ 

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