वैश्विक परिपेक्ष्य में हिन्दी

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हिन्दी भाषा का इतिहास साढ़े तीन हजार वर्षों पुराना है ,लेकिन आज जिस हिन्दी भाषा को हम लिखते बोलते है ये केवल 121 वर्ष पुरानीं है |हिन्दी एक ऐसी भाषा है जो हजारों वर्षों बाद विकसित हुई और समय के साथ बदलती गई |इसके साथ जो लोग अपने को नही बदल पाए ,वे आज भी इससे बहुत कुछ सीख सकते है | हिन्दी को संस्कृत भाषा का आसान रूप माना जाता है |प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लिखित भाषा की शुरुआत मानी जाती है और ये भाषा संस्कृत थी |ये बात लगभग डेढ़ हजार ईसा पूर्व की है |  सनातन धर्म के अनुपम महाकाव्य रामायण और महाभारत को भी एक हजार ईसा पूर्व संस्कृत में लिखा गया | संस्कृत का विस्तार और प्रभाव समय के साथ साथ बढ़ता गया | संस्कृत के अत्यधिक जटिल होने के कारण  पांच सौ ईसा पूर्व अपभ्रंस की शुरुआत हुई | अपभ्रंस का अर्थ है संस्कृत का सरल रूप | दसवीं शताब्दी में हिंदी की पहली रचना खुमानरासो को लिखा गया जिसमे चित्तौड़गढ़ के राजा रावल खुमान की कहानी थी | तेरहवीं शताब्दी में हिन्दी खड़ी बोली के पहले कवि आमिर खुसरों ने पारसी और हिंदी में कई पहेली और गीत लिखे | जिस हिन्दी भाषा को आज हम लिखते और बोलते है इसकी नीव 18 वीं शताब्दी में भारतेन्दु हरिशचंद्र ने रखी | इसके लिए भारतेन्दु जी को आधुनिक हिन्दी भाषा का पितामह भी कहा जाता है | वर्ष उन्नीस सौ से आज तक इसी हिन्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है | हिन्दी भाषा ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भी अग्रणी भूमिका निभाया और जितने भी आंदोलन हुए उन्हें इसी भाषा ने आवाज दी |हिन्दी भाषा इतनी सरल और सौम्य है कि इसके शब्दों को लोग उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों के साथ भी मिलाकर बोलना शुरू कर दिए |बदलते समय के साथ हिन्दी शब्द शुभ प्रभात और शुभ रात्रि का स्थान अंग्रजी के शब्द गुड मॉर्निंग और गुड नाईट ने ले लिया तो वहीं हिन्दी शब्द दिनांक और यार उर्दू के तारीख़ और मित्र से पिछड़ते गये |इन्ही घटनाओं से प्रभावित होकर प्रसिद्ध हिन्दी के व्यंगकार हरिशंकर परसाई ने कहा कि “हिन्दी दिवस के दिन हिन्दी बोलने वाले दूसरें हिन्दी बोलने वालों से कहते है कि हिन्दी में बोलना चाहिए |”

राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी ने हिन्‍दी को जनमानस की भाषा कहा था। वह चाहते थे कि हिन्दी राष्ट्रभाषा बने। उन्‍होंने 1918 में आयोजित हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन में हिन्‍दी को राष्‍ट्र भाषा बनाने के लिए कहा था। आजादी मिलने के बाद लंबे विचार-विमर्श के बाद आखिरकार 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्‍दी को राज भाषा बनाने का फैसला लिया गया। हिन्दी का राष्ट्रभाषा बनाए जाने के विचार से बहुत से लोग खुश नहीं थे। कइयों का कहना था कि सबको हिन्दी ही बोलनी है तो आजादी के क्या मायने रह जाएंगे। ऐसे में हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी।इसका इसी से अंदाजा लगाया जा सकता कि आजादी के बाद हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपना पहला भाषण भी अंग्रेजी में दिया था।हम वैचारिक स्वतंत्रता के नाम पर अंग्रेजी के जाल में जकड़ते गए।हद तो तब हो गई जब अंग्रेजी में हस्ताक्षर करने वालों को लोग आधुनिक कहने लगे और ज्यादातर लोग आज भी अपनी हस्ताक्षर अंग्रेजी में करते है ।बदलते परिवेश में नौकरी जैसे शब्द का स्थान जॉब ने ले लिया तो वहीं वेतन को सेलरी प्रतिस्थापित किया ।

  आज हिन्दी दुनिया कि तीसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है ।आज पूरे विश्व में लगभग एक सौ अस्सी करोड़ लोग हिन्दी बोलते है ।इस बदलते परिवेश में कई ऐसे देश है जहाँ के लोग हमारी सभ्यता  और संस्कृति को नजदीक से जानने और सिखने के लिए हिन्दी पढ़ते और सीखते हैं ।आज विश्व के 165 विश्वविद्यालयों में हिन्दी विभाग है ,जिसमे लोग हिन्दी पढ़ते है ।इससे विश्व मंच पर हिन्दी आलोकित हो रही है । भारत, फिजी के अलावा मॉरीशस, फिलीपींस, अमेरिका, न्यूजीलैंड, यूगांडा, सिंगापुर, नेपाल, गुयाना, सुरिनाम, त्रिनिदाद, तिब्बत, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम ,यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी और पाकिस्तान में कुछ परिवर्तनों के साथ ही सही लेकिन हिंदी बोली और समझी जाती है। दुनिया की सबसे प्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी (शब्दकोश) हर साल भारतीय शब्दों को जगह दे रही है। ऑक्सफोर्ड ने आत्मनिर्भरता, चड्डी, बापू, सूर्य नमस्कार, आधार, नारी शक्ति और अच्छा शब्द को भी अपने प्रतिष्ठित शब्दकोश में जगह दी है। साल 2017 में ऑक्सफोर्ड ने करीब 70 भारतीय शब्दों को शामिल किया था, जिनमें 33 से ज्यादा हिंदी थे। ‘अरे यार!’, भेलपूरी, चूड़ीदार, ढाबा, बदमाश, चुप, फंडा, चाचा, चौधरी, चमचा, दादागीरी, जुगाड़, पायजामा, कीमा, पापड़, करी, चटनी, अवतार, चीता, गुरु, जिमखाना, मंत्र, महाराजा, मुग़ल, निर्वाण, पंडित, ठग, बरामदा जैसे शब्द पहले से शामिल हैं।इसी तरह हर वर्ष हिन्दी के शब्दों को आक्सफोर्ड शब्दकोश शामिल कर रहा है ।

हिन्दी की बढती लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात लगाया जा सकता है कि विश्व के 132 देशो में बसे 2 करोड़ भारतीय मूल के लोग अपने अधिकतर कार्य हिन्दी में ही सम्पादित करते है ।भारतीय केन्द्रीय संस्थान के अनुसार अब तक 80 देशों के विद्यार्थी हिन्दी सीख चूके है और हर वर्ष लगभग 30 देशों के विद्यार्थी हिन्दी पढने आते है ।हिन्दी की बढती लोकप्रियता को ध्यान में रख कर ही गूगल ऐडसेंस ने स्वीकार किया कि लोग गूगल पर भी हिन्दी पढना और लिखना चाहते है ।इसी को ध्यान में रख कर हिन्दी ब्लॉग पर भी विज्ञापन अआने शुरू हो गये ।आज गूगल पर कई कंपनी और स्टार्टप अपने वेबसाइट और एप के इंटरफेस को हिन्दी के अनुकूल तैयार किये है ताकि एक बड़े हिन्दी भाषी वर्ग तक पंहुचा जा सके । आज हर कोई अपने विचारों को सोशल मीडिया के माध्यम से हिन्दी में आसानी से व्यक्त कर सकता है ,जो हिन्दी के लोकप्रियता को और बढ़ाता है ।हिन्दी की बढती लोकप्रियता के कारण ही वर्ष 2017 से 2022 के बीच 60 प्रतिशत की दर हिन्दी कंटेंट का मार्केट देश में बढ़ा है । हिन्दी के वैश्विकरण क प्रभाव ही था जो हल ही खत्म हुए जी 20 सम्मेलन के दौरान अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता ने भारतीय मीडिया से बात करते हए अपना पूरा साक्षात्कार हिन्दी में दिया था ।

 इन सब के बीच आज हिन्दी की पठनीयता को लेकर लगातार सवाल उठते रहते है ।निश्चित रूप आज समाज हिन्दी को रोजगार की भाषा स्वीकार्य करने में थोड़ा कंजूसी दिखा रहा है । हिन्दी की पठनीयता क लेकर सरकार को एक ठोस कदम उठाना होगा ताकि आने वाले समय में ज्यादा से ज्यादा लोग हिन्दी पढ़े ।  हिन्दी कैसे रोजगार परक होगी इसे भी ध्यान देने की जरुरत है । राजनीति से इतर हर दल को इन सभी विषयों पर विचार कर हिन्दी के विकाश के बारे में सोचना होगा ।         नीतेश राय

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