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हिन्दू समाज दे अपने पिछडे और उपेक्षित बन्धुओं को सम्मान और स्नेह : मोहन भागवत

भोपाल, 28 फरवरी (हि.स.)। आज का विज्ञान भी कहता है कि सभी भारतीय 40 हजार वर्ष पूर्व से एक हैं उनका डीएनए इस बात का प्रमाण है कि प्रत्येक भारतवासी आपस में भाई हैं, उनका खून का रिश्ता है। यह हिन्दू समाज एकजुट होकर खडा हो जाए तो भारत खडा हो जाएगा। यानि स्वार्थभरी जितनी भी बुराईयाँ हैं वह समाप्त हो जाएगी, लेकिन हिन्दू एकजुट न हों इसके लिए अनेक शक्तियाँ आज अत्यधिक जोर देकर अपने-अपने तथा संगठित स्तर पर प्रयास कर रहीं हैं। यह बात दो दिन के प्रवास पर भोपाल आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने कही।

शहीद भवन में आयोजित सद्भावना बैठक में उन्होंने विभिन्न मत-पंथ और सम्प्रदाय प्रमुखों को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारे पिछडे उपेक्षित बन्धुओं की हिन्दू समाज से सुख की कोई अपेक्षा नहीं है, वह तो हजारों साल से अपने धर्म की रक्षा के लिए लडते और मरते आए हैं। उन्हें अपने इस समाज से सम्मान और स्नेह की अपेक्षा है जो कि हमें अपने इन बन्धुओं को देना चाहिए। श्री भागवत ने जोर देकर कहा कि 800 वर्षों से हिन्दू समाज के पिछडे वर्गों के लोग राजनीति पद-प्रतिष्ठित और अधिकारों से वंचित हैं, जिन्हें आज राजनीतिक स्तर पर मुख्य धारा में लाने की जरूरत है। हमारे मन में सद्भावना रही तो दुनियाँ की कोई ताकत नहीं जो हमें पीछे रख सके। उन्होंने कहा कि किसी भी दल को चुनने और सरकार के बारे में फैसला करने के लिए सभी स्वतंत्र हैं, लेकिन हिन्दू समाज के हित के लिए सभी जाति, सम्प्रदाय और संगठनों को मिलकर काम करने की जरूरत है। सभी एक दूसरे समुदायों से मेल-जोल बढाएं, ताकि गलतफहमियां दूर हो सकें ।

सरसंघचालक श्री भागवत ने कहा कि बाहर यह गलत फहमी है कि राजनीतिक दलों को संघ कंटनेल करता है, ऐसा नहीं है। संघ केवल अच्छी बातें सुझाता है मानना अथवा न मानना उनका काम है। अच्छा करेंगे तो फल अच्छा मिलेगा और बुरा करने पर बुरा। हमारे स्वयंसेवक सरकार में हैं उनसे जिन्हें काम है वह सीधे बात करें। यदि वह नहीं सुनते तो जैसी लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में अपनी बात के लिए यदि आन्दोलन की जरूरत है वह आप करिए, लेकिन हमेशा यह ध्यान रखें कि इस प्रतिस्पर्धात्मक व्यवस्था में हिन्दू समाज की एकता कहीं भंग न हो, क्योंकि समाज की एकता इन सब से ऊपर है। उन्होंने कहा कि सद्भावना समाज की गति का आधार है। व्यवस्थाएं बदलती रहती हैं, किन्तु इसके चलते अहंकार का भाव न आए । हृदय में समानता का भाव रहे यही समरसता के लिए आवश्यक है। उन्होंने विभिन्न समुदाय प्रमुखों से तीन बिन्दुओं पर सुझाव मांगे तथा अपेक्षा की कि वे अपने समुदाय विशेष के द्वारा सामाजिक सद्भावना और समाज सेवा के क्षेत्र में क्या-क्या कर सकते हैं। जिससे सामाजिक सद्भाव पैदा करने का आचरण बन सके।

श्री भागवत ने राजस्थान में आरक्षण की मांग को लेकर हुए मीणा-गुर्जर आन्दोलन का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह अनेक संत महात्माओं द्वारा किए गए सामाजिक जागरण के कार्य के परिणाम स्वरुप वहाँ किसी हिन्दू का रक्त नहीं बहा जबकि दोनों ही समुदायों ने अपनी-अपनी मांगों को लेकर आन्दोलन किया था।

शहीद भवन में आयोजित इस सद्भावना बैठक के प्रारंभ में सरसंघचालक श्री भागवत ने सर्वप्रथम शहीद भगत सिंह की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए तथा भारतमाता के चित्र पर माल्यार्पण करते हुए बैठक का शुभारंभ किया। मंच पर सरसंघचालक मोहनराव भागवत के अलावा क्षेत्र संघचालक श्रीकृष्ण माहेश्वरी तथा मध्यभारत प्रांत संघसंचालक शशिभाई सेठ उपस्थित थे।

हिंदू समाज की 103 जातियों के प्रतिनिधि के साथ अनेक सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी ने भाग लिया । जिनमें से 35 प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव एवं सुझाव संघ के सरसंघचालक श्री भागवत के सामने रखे। ज्ञातव्य हो सर संघचालक बनने के बाद श्री भागवत देश भर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजनानुसार बनाए गए 40 प्रांतों के निरंतर प्रवास पर हैं। इस कडी में यह उनकी 24 वीं सद्भावना बैठक थी।