हिन्दुस्तानी सिनेमा की चुलबुली चांदनी आज जन्मदिन पर होतीं तो एक्ट्रेस जान्हवी की मॉम कहलातीं

विवेक कुमार पाठक
ये शब्द केन्द्र सरकार के स्किल इंडिया अभियान की आत्मा है मगर अचानक अपने करोड़ों प्रशंसकों को रोता बिलखता छोड़कर अनंत निद्रा में सो जाने वालीं लोकप्रिय अदाकारा और 2012 में इंग्लिश विंग्लिश फिल्म की नायिका पद्मश्री श्रीदेवी ने रुपहले पर्दे पर साकार कर दिया था। आज उन्हीं श्रीदेवी का जन्म दिन है है जो गौरी शिन्दे की इस सोद्देश्यपूर्ण फिल्म में शशि के रुप में परंपरागत घरेलू महिला होकर भी बहुत अलग थीं। शशि फिल्म में पूरा घर परिवार और बच्चों को संभालते हुए आन्टप्रनुर मतलब एक सफल उद्यमी थीं। वही उद्यमशीलता जिसके लिए देश में स्किल इंडिया नामक महाअभियान चलाया जा रहा है। वे पति व किशोरवय बेटी से उपेक्षित थीं मगर इससे एक महिला उद्यमी के लड्डुओं की मिठास कम नहीं होती थी। शशि ने फिल्म में दुनिया भर के दोस्तों के साथ आखिर इंग्लिश सीखकर बोलकर सबकी आंखों में पानी ला दिया था। इस सोद्श्यपूर्ण फिल्म के साथ श्रीदेवी का यह सफर मॉम तक जारी रहा मगर करोड़ों प्रशंसकों को छोड़कर श्रीदेवी के यूं चले जाने से एक शून्य बना है। भारतीय समाज में प्रेरक फिल्मों के लिए बॉलीबुड ने कभी चुलबुला तो कभी धीर गंभीर दिखने वाला अपना एक अलहदा स्टार हमेशा के लिए खो दिया है।
सिनेमा समाज में बदलाव लाने का कितना बड़ा माध्यम है यह हम पिछले कुछ सालों से लगातार देख रहे हैं। शाहरुख खान की चक दे इंडिया ने हॉकी और महिला खिलाड़ियों की दुनिया भर में ब्रांडिंग की है तो दंगल मे आमिर खान की बेटियांं ने कुश्ती में दांव लड़ाकर देश भर को जाग्रत कर दिया है। हरियाणा अब देश भर में महिला रेसलिंग का स्कूल बन चुका है। खास बात ये है कि इस सामाजिक बदलाव पर खाप पंचायतें बेअसर हैं। 15 साल बाद बॉलीवुड के पर्दे पर दिखने वाली श्रीदेवी फिल्मों से सामाजिक बदलाव की अगुआ बनकर सामने आ रहीं थीं। उनकी अभिनय क्षमता तो कई सालों पहले सदमा के रुप में पूरा देश देख चुका था मगर बीच के कालखंड में श्रीदेवी का फिल्मी कैरियर व्यावसायिक फिल्मों की चकाचौंध से घिरा रहा। तब निर्देशकों की महिला केन्द्रित फिल्मों में अरुचि भी इसका एक कारण था। अपने करियर में बेटियों की परवरिश के कारण 15 सालों तक फिल्मों से दूर रहीं श्रीदेवी ने बाद में इस अधूरेपन को पहचान लिया था। वे जान गईं थीं कि फिल्में मनोरंजन के अलावा भी बहुत कुछ कर सकती हैं। उनकी यह सोच कमबैक फिल्म इंग्लिश विग्लिश में रचनाधर्मी निर्देशिका गौरी शिन्दे ने साकार की।
100 से लेकर 500 करोड़ क्लब फिल्मों के दौर में एक 50 पार अभिनेत्री को केन्द्रीय भूमिका में रखना बॉक्स ऑफिस का गणित लगाने वाले निर्देशक नहीं कर सकते। एकता कपूर, करण जौहर से लेकर रोहित शेट्टी के युग में गौरी शिन्दे जैसी निर्देशिका बधाई की पात्र हैं जिन्होंने श्रीदेवी के अभिनय के चरम को उनके उत्तरार्ध में सिनेप्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत किया। इंग्लिश विंग्लिश को देखकर हर कोई कह सकता है कि यह फिल्म सिर्फ और सिर्फ श्रीदेवी कर सकती थीं। श्रीदेवी ने अपनी इस फिल्म में एक प्रौढ़ मां शशि को मासूमियत के साथ जिया था। इस फिल्म में नॉन इंग्लिश स्पीकिंग मां शशि के रुप में श्रीदेवी का किशोरवय बेटी के अंग्रेजी भाषी प्रिंसीपल से संवाद उनकी विलक्षण अभिनय क्षमता का दस्तावेज है। शशि अपने अंग्रेजी अज्ञान के कारण बेटी के तानों से रुआंसे चेहरे के साथ वर्तमान भारतीय समाज की समस्या का सटीक चित्रण करती नजर आईं थीं। 18 घंटे घर में समर्पित रहने वाली शशि को इंग्लिश न आना कदम कदम पर बच्चे, पति , पासपोर्ट ऑफिस से लेकर विदेशी रेस्टोरेंट में अपमान दिलाता है मगर एक घरेलू भारतीय महिला की अनन्य क्षमताएं क्या होती हैं इसे इस फिल्म में इंटरवल के बाद खूबसूरत ढंग से पेश किया गया था। परदेश में बिना किसी को बताए कैसे अपनी कमजोरी दूर करके आत्मसम्मान की ओर बढ़ा जाता है यह इंग्लिश विंग्लिश फिल्म के जरिए श्रीदेवी भारतीय समाज को हमेशा सिखाती रहेंगी। अपनी भतीजी की शादी में मेहमानों के सामने शशि का इंग्लिश में हृदयस्पर्शी संवाद प्रशंसकों की आंखों को सजल कर गया था। उनका यह भावपूर्ण अभिनय भारत में कई अनेक उद्देश्यपरक फिल्मों की धरोहर  भी होता अगर वे सिनेमा में अपनी दूसरी पारी पूरी कर पातीं।
मॉम फिल्म में अपनी सौतेली बेटी आर्या के साथ उनका पात्र विघटित होते भारतीय परिवारों के लिए आस है। वे इस फिल्म में ऐसी मां के रुप में दिखीं जिसे सौतेली बेटी से मिली तमाम हिकारत का अंश मात्र भी मलाल नहीं है। वे बेटी को पापा की नजरों में भी अच्छा बनाए रखना चाहती हैं तो उसे लेटनाइट पार्टी के लिए अपनी जिम्मेदारी पर जाने देती हैं। विद्रोही किशोरवय एवं युवा पीढ़ी से आज किस कदर मां बाप को संवाद करने की जरुरत है यह फिल्म बहुत सुंदरता के साथ दर्शकों के सामने रखती है। फिल्म में अपनी सौतेली बेटी को इंसाफ दिलाने अपना करियर, परिवार सबको छोड़कर श्रीदेवी का दुष्कर्मियों के खात्मे में जुट जाना एक गलत कदम था मगर इसमें एक सौतेली बेटी के प्रति एक महिला का ममत्व समाज के लिए एक अच्छा उदाहरण है। टूटते भारतीय परिवारों में अब पुनर्विवाह कोई नई बात नहीं है। ऐसे में तलाक के बाद पिता के साथ रह रहे बच्चे नई मां के साथ किन भावनात्मक उलझनों में फंसे रहते हैं यह मॉम फिल्म हमें दिखाती है। एक दूसरी महिला के बच्चों को हृदय से प्यार, दुलार और माफी कैसे दी जाती है यह मॉम में श्रीदेवी खूब सिखला गई हैं।
श्रीदेवी इंग्लिश विंग्लिश में शशि तो मॉम में ममतामयी देवकी के रुप में भारतीय महिलाओं की  जीवटता, कुशलता, ललक, उद्यमशीलता, ममता एवं वीरता को पर्दे पर सामने लाई हैं। इन संदेशपरक फिल्मों के अलावा 54 साल की श्रीदेवी सिनेमा के सशक्त मंच से बहुत कुछ सिखा सकती थीं मगर ये क्लास अधूरी रह गई। खुद आन्टप्रनुर रहते हुए इंग्लिश विंग्लिश सीखने वाली श्रीदेवी हिन्दुस्तानी समाज की क्लास को अधूरा छोड़कर अचानक चलीं गईं।
अलविदा शशि………….अलविदा देवकी……………….। पर्दे पर देखी सुनी आपके लड्डूओं की खुशबू और खटाखट इंग्लिश की खनक आज हमारी स्मृतियों को महका रही है, हमारी यादों में तन्हाई के तारों को छेड़ रही है।
वी रियली मिस यू चांद सी चांदनी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here