अक्सर जब ईमानदारी की बात होती है तो अधिकांश लोग अपने आप को ईमानदार प्रक्षेपित करने में लग जाते हैं जबकि उनके मन में कहीं एक चोर छुपा होता है जिसे वे ढंकने की कोशिश करते दिखते हैं। अब यदि आज की राजनीति की बात करें तो कुछ नगण्य अपवादों को छोड़ आज की राजनीति में यह प्रचलन बहुत जोरों पर है। राजनीतिज्ञ ईमानदारी को इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि उनके पास कुछ ऐसा है जिसे वे बेचना चाहते हैं। तभी न, जब उन्होंने राजनीति शुरू की थी तो एक बेहद साधारण परिवार से आए थे, गरीब थे, सरल थे अब करोड़पति और अरबपति हो गए हैं। यह पैसा कहां से आया, कैसे आया ? कल तक भाजपा के लिए अशोक खेमका बहुत महान अफसर थे जब वह वाड्रा के खिलाफ जी जान से लगे हुये थे। अब खट्टर जी ने उन्हें पुरातत्व की वस्तु बना दिया। ट्रांसपोर्ट लॉबी अधिक दुधारू है। यह भी नेताई ईमानदारी का खेल है।
बहरहाल नौकरी करने वाले तमाम लोग अक्सर अपने किस्से सुनाते पाये जाते हैं कि वे बहुत ईमानदार रहे, एक पैसे की बेईमानी नहीं की। कोई गलत काम उनसे नहीं करवाया जा सका। ऐसा कोई सिक्का नहीं बना जो उनको खरीद सके। आदि-इत्यादि। संभवतः उन्हें ऐसा अवसर न मिला हो या वे भविष्य में असुरक्षा के शिकार रहते हों। ईमानदारी की आड़ में लोग अपने दूसरे नकारात्मक गुण छिपाने का यत्न करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि ईमानदारों का टोटा है। ईमानदार हैं। कुछ धुर ईमानदार भी हैं। वे ईमानदार होने मात्र से संतुष्ट हो जाते हैं। कालान्तर में हर चीज में बेइमानी देखने की आदत बन जाती है उनमें, और वे छिद्रान्वेषी, चिड़चिड़े, शंकालु और रूखे होते जाते हैं। किसी भी बात या प्रस्ताव में गलती देखते ही उसे अगले की बेइमानी समझते हुये घंटों ईमानदारी पर प्रवचन देते हैं। यहीं ईमानदारी मार खा जाती है। गलतियाँ कभी-कभी अनजाने में भी होती हैं वे यह नहीं मानते।
ईमानदारी कोई विज्ञापित करने की वस्तु नहीं है न घमंड की। वह एक जीवन मूल्य है, एक जीवन उद्देश्य है। एक अच्छा संवेदनशील और संतुलित व्यक्ति ही ईमानदारी की मशाल आगे बढ़ा सकता है। ईमानदार होने के लिये जरूरी है कि वह इतना सजग और सचेत हो कि बेईमानों के इरादे समय रहते भांप ले और उस पर बिना किसी हल्ले के अंकुश लगा सके। बहुत सहजता से ऐसे अवसर कम से कम आने दे जिसमें बेईमानी की गुंजाइश हो। लेकिन आज के राजनीतिज्ञों को यह बात समझ में नहीं आती। उन के काफिले में चरित्रहीन, असामाजिक, लोभी, आपराधिक चरित्र भरपूर होते हैं जिन पर अंकुश लगाना तो दूर बल्कि उन्हें हर तरह का प्रोत्साहन और भरपूर संरक्षण दिया जाता है। न पुलिस उन्हें पकड़ती है न न्यायलय उन्हें सजा दे पाता है। जब आपकी नीयत ही ठीक न हो तो फिर इस तरह के चोंचलों का क्या अर्थ है।
राजनीति में बड़बोलापन बहुत है, कुटिलता और छद्म है। आज मोदी की ईमानदारी का बड़े जोरशोर से ढोल पीटा जा रहा है। ममता बनर्जी भी बड़ी ईमानदार बताई जाती हैं और मनमोहन सिंह तो सबसे बड़े ईमानदार होने का तमगा लिए हैं यद्दपि कोयले की कोठरी में काजल लग चुका है। केजरीवाल की ईमानदारी तो कांग्रेसियों ने छीन ली, बची खुची उनके साथी नौचे ले रहे हैं। संभव है ये लोग व्यक्तिगत रूप से ईमानदार हों पर उनके सहयोगी, मित्र, सम्बन्धी और वह दल जिसमें वे विश्वास जताते हैं, वे यदि ईमानदार नहीं हैं और ये लोग उन्हें संरक्षण देते हैं, उनकी बेईमानी को भी ईमानदारी कहते हैं तो आप सोचिये उनकी ईमानदारी का क्या मतलब है ?
बेईमानी और भ्रष्टाचार तो इसी व्यवस्था के उत्पाद हैं जिस व्यवस्था में धन, मनुष्य से बड़ा माना जाता है। इसीलिए यहां अमीर और गरीब के बीच बहुत बड़ा आर्थिक फासला है। यह विषमता करोड़ों गुनी है जिसे यह व्यवस्था प्रश्रय देती है। अतः ऐसी व्यवस्था को आप महज बातों से या अपने गुस्से के इजहार मात्र से तो नहीं बदल सकते। उसके लिए एक बड़े और नियोजित संघर्ष की आवश्यकता होती है। आप समाज में अकेले नहीं चल सकते, अपने बेहतरीन जीवन मूल्यों की रक्षा करने के लिये आपको उसकी समर्थक सेना भी तैयार करनी पड़ती है। आज की व्यवस्था में ईमानदार बने रहने के लिये सबसे जरूरी है कि ईमानदारी हमेशा नेपथ्य में रहे। ईमानदार बने रहने के लिये जरूरी है कि आपको लोग ईमानदार व्यक्ति के रूप में जानने से पहले एक सक्षम, कार्यकुशल और ऐसे व्यक्ति के रूप में जाने जिसके जैसे लोग कम होते हैं।
तार्किकता, व्यवहार कुशलता, अभिव्यक्ति क्षमता, दुविधा रहित विचार ऐसी चीजें हैं जो जितनी मात्रा में होंगी वह आपकी ’कोर ईमानदारी’ की रक्षा करेंगी। आज ईमानदारी विरल होती जा रही है। जिसे देखो वो ईमानदारों का शिकार करने पर आमादा है। ईमानदार व्यक्ति की इमेज एक चिड़चिड़े, खूसट और शक्की आदमी के रूप में बनती जाती है। ऐसा साजिशन भी होता है। लोग एक ईमानदार व्यक्ति को अव्यवहारिक, समय की मांग को न समझने वाला और ’बड़े हरिशचन्द्र बनते हैं’ साबित कर देते हैं। अरविन्द केजरीवाल इस स्थिति के बहुत ही सटीक उदहारण हैं। ईमानदार लोगों को अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिये सक्षम, कार्यकुशल और किसी भी सिस्टम के अपरिहार्य बनना जरूरी है। टाटा स्टील का एक विज्ञापन आता था। उसमें टाटा ग्रुप की तमाम अच्छाईयां बताते हुये अंत में कहा जाता है- हम स्टील भी बनाते हैं। किसी भी सिस्टम में ईमानदार बने रहने के लिये जरूरी है कि लोग आपकी कार्यकुशलता, क्षमता, निर्णय की गुणता, दूरदर्शिता और अन्य तमाम गुणों की बात करते हुये यह कहें -‘और वो ईमानदार भी है’। महज ईमानदारी का झण्डा फ़हराने भर से कुछ नहीं होता। ईमानदार होने के लिए अच्छी नीयत, दृढ संकल्प और स्वार्थहीनता जरुरी होती है और ये गुण अच्छे मूल्यों व स्वस्थ वैज्ञानिक सोच से ही आ सकते हैं। केवल ईमानदारी का झण्डा फ़हराने से कुछ नहीं होने का।
-शैलेन्द्र चौहान
बहुत अच्छा लेख है। विशेष रूप से ये बात कि ईमानदारी का दिखावा न हो बल्कि वह वास्तव में होने के साथ कर्मठता लगन मेहनत और दूसरे गुण भी हों।