ईमानदारी बनाम वफादारी

अतंतः ईमानदार कहे जाने वाले पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह तक कोलगेट घोटाले की आंच पहुंच ही गई  और

पटियाला हाउस कोर्ट ने उन्हें आरोपी मानते हुए 8 अप्रैल  को कोर्ट में पेश होने हेतु नोटिस भेज दिया। इसके साथ

ही हिडालको कम्पनी के कुमार मंगलम बिरला, तात्कालीन कोयला सचिव समेत 6 अन्य लोगों को भी आरोपी मानते

हुए इस प्रकरण में नोटिस भेजा गया है। यह नोटिस वर्ष 2005 में बिड़ला की कम्पनी हिंडालको को ओडिसा के

तालीबीरा द्वितीय और तृतीय में कोयला ब्लाक अवटिंत करने के चलते जारी किया गया है। अब इस नोटिस पर

अपनी प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा मैं समन से निराश हूं लेकिन ये जीवन का हिस्सा है मैं

किसी को कानूनी प्रक्रिया का सामना करने को तैयार हूँ । मुझे पूरा विश्वास है कि सच जरूर सामने आएगा। वही

केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर का कहना है कि ‘‘यह कांग्रेस का घोटाला है और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को

कांग्रेस के साथ की कीमत चुकानी पड़ रही है। मनमोहन सिंह को कोर्ट की दहलीज तक ले जाने के लिए कांग्रेस ही

जिम्मेदार है। उल्लेखनीय है कि जिन धाराओं के तहत् मनमोहन सिंह को नोटिस भेजी गई है उनके भारतीय दण्ड

संहिता की धारा 409 भी है, जिसमें आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।

यद्यपि यह नोटिस मनमोहन सिंह को न्यायालय द्वारा भेजा गया है, पर इससे कांगे्रस बुरी तरह भड़क

गई है। मनमोहन सिंह की ईमानदारी का ढोल पीटते हुए उसने कहा है कि ‘मनमोहन सिंह की ईमानदारी पर किसी

को शक नही है। मनमोहन सिंह की पारदर्शिता को पूरा देश जानता है। हम बी.जे.पी. की इस मामले में

राजनीतिकरण करने की कोशिशों की निंदा करते हैं। अब कांग्रेस पार्टी को यह पता है कि नहीं कि मनमोहन सिंह

की ईमानदारी को ढोल बहुत पहले फूट चुका है, तभी तो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी मान्यता प्राप्त विपक्षी दल

भी नहीं बन पाई। रहा सवाल मनमोहन सिंह की पारदर्शिता का, तो ये कहने में कोई झिझक नहीं, कि ईमानदारी के

मामले में तो नहीं पर खानदान विशेष की वफादारी के मामले में  उनकी पारदर्शिता से पूरा देश परिचित है। बड़ी

सच्चाई यह भी है कि उनकी यही अंतहीन वफादारी ने अंततः उनको जेल के मुहाने पर ला खड़ा किया है। रहा

सवाल इस आरोप का भाजपा इस मामले का राजनीतिकरण कर रही है,  इस मामले में कांगे्रस पार्टी को यह पता

होना चाहिए कि सी.बी.आई. एक बार इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट लगा चुकी है,  पर न्यायालय के हस्तक्षेप के

चलते उसे इस मामले में मनमोहन सिंह से पूछताछ करनी पड़ी। जिसके आधार पर तैयार स्टटेस रिपोर्ट जो कोर्ट में

दाखिल की गई,  उसमें मनमोहन सिंह के विरूद्ध प्रथम दृष्टया प्रकरण सामने आया।

अब दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी इस स्थिति को स्वीकार करने का कतई तैयार नहीं है। जैसाकि पहले बताया

जा चुका है,  कि वह बराबर मनमोहन सिंह की ईमानदारी का ढोल पीट रही है उसका यह भी कहना है कि राज्यों के

मुख्यमंत्री खास तौर पर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री ने नीलामी के द्वारा खदान आबंटित न किये जाने पर

जोर दिया था। कांग्रेस पार्टी का यह भी कहना है कि यह व्यवस्था तो 1993 से सतत् चल रही थी और इसके लिए

यू.पी.ए. शासन को दोषी  नहीं ठहाराया जा सकता। कांग्रेस पार्टी का यह भी कहना है कि एक लोक कल्याणकारी

राज्य में मात्र नीलामी या व्यावसायिक आधार पर नीतिगत निर्णय नहीं लिए जाते, बल्कि जनसामान्य की भलाई के

आधार पर लिए जाते हैं ।

उल्लेखनीय है कि 1 लाख 86 हजार करोड़ रूपयों के यह घोटाला स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा घोटाला था।

यद्यपि वर्ष 2004 में ही यह तय हो गया था कि आगे कोयला खदानों का आबंटन नीलामी के द्वारा किया जाएगा,

पर उसको व्यावहारिक रूप देने के लिए न तो कोई आउटलाइन बनाई गई और न व्यावहारिक स्वरूप ही दिया गया।

यहां तक की आबंटन के लिए कोई मापदण्ड न बनाकर खदानों का मनमानी आबंटन किया गया। अब इस संबंध में

कांग्रेस पार्टी का मानना यह था कि चूंकि उसे मतदाताओं ने बहुमत के आधार पर चुना है,  इसलिए उसे कुछ भी

करने का अधिकार है,  यह तक कि लूट  की नीति पर चलने का भी अधिकार है। सरकार को 1 लाख 86 हजार

करोड़ का नुकसान तो एक पहलू है,  दूसरा पहलू ज्यादा भयावह था। खदानों को इस तरह से लुटाने के बावजूद न

तो पावर हाउसों को पर्याप्त कोयला मिला,  बिजली का उत्पादन भी नहीं बढ़ा। असलियत यह थी, कि जिन

कम्पनियों को कोयला-उत्खनन से कुछ लेना-देना नहीं था, वह खदानें लेकर 2जी स्पेक्ट्रम की तर्ज पर इन्होनें इन

खदानों को बेंच कर कई गुना अधिक कमा लिया।

असलियत यह थी कि यू.पी.ए. सरकार ने ऐसे लोगों को भी कोयला खदाने अवटिंत किया, जिन्होनें इसके

लिए आवेदन ही नहीं किया था। बहुत से ऐसे लोगों को भी कोयला खदाने दी गई जो इसके पात्र ही नहीं थे। 80

प्रतिशत आवंटित खदानों पर कोई खनन कार्य हुआ ही नहीं। इसके चलते सरकार को 100 गुना ज्यादा कीमत पर

विदेशों से कोयला मंगाना पड़ा। यद्यपि बाद में 2जी स्पेक्ट्रम के संबंध में प्रेसीडेंटल रेफरेंस होने पर सर्वोच्च

न्यायालय ने यह जरूर कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन का एक मात्र तरीका नीलामी नहीं है। लेकिन साथ

में यह भी कहा था कि आबंटन जनहित को ध्यान में  रखते हुए पारदर्शी तरीके से होना चाहिए। साथ ही शीर्ष

अदालत ने यह भी कहा था कि  मनमाने या गलत तरीके से किय गए आवंटन पर वह दखल दे सकती है। पर

अब इसमें कोई संदेह नहीं कि चाहे 2जी स्पेक्ट्रम का प्रकरण रहा हो,  या कोलगेट का प्रकरण रहा हो,  यू.पी.ए.

सरकार के ये आवंटन कतई जनहित में न होकर विशुद्ध घोटाला थे। कई जगह तो धोखाधड़ी की गई, जिसे लेकर

सी.बी.आई. ने कई कम्पनियों के विरूद्ध चार्जशीट प्रस्तुत किया। कई लोगों को यह शिकायत तो थी कि एकतरफा

कार्यवाही हो रही है यानी कि आबंटन प्राप्त करने वाले तो किसी मात्रा में कठघरे में खड़े किए जा रहे हैं,  पर गलत

आवंटन करने वालों पर कही भी आंच नहीं आ रही है। ‘‘पर देर है, अंधरे नहीं‘‘ की तर्ज पर आखिर में जवाबदेही

तय ही हो गई और यह साबित हो गया कि लोकतंत्र में  सर्वोच्च कुर्सी पर बैठा व्यक्ति भी  जवाबदेही से बच नहीं

सकता।  अब जहां तक मनमोहन सिंह की ईमानदारी का प्रश्न है,  वह कतई एक बकवास से ज्यादा कुछ नहीं।

आखिर में मनमोहन सिंह की यह कैसी ईमानादारी थी, कि उनके सामने सिर्फ देश लुटता ही नहीं रहा बल्कि उन्होनें

इस दिशा में अपने पद की दुरूपयोग भी किया। यहां तक कैग ने जब इन्हें घोटाला बताया तो मनमोहन सिंह ने

उस पर की आंखे तरेरी। इस तरह से मनमोहन सिंह को ईमानदार तो दूर-दूर तक नहीं कहा जा सकता। अलवत्ता

‘जो हुकम मेरे आका‘ की तर्ज पर वफादारी निभाने के चलते वह जेल यात्रा की प्रक्रिया में जरूर आ गए है। पर हो

सकता है कि मनमोहन सिंह जैसे वफादारों का यह सोचना हो कि चाहे जो भी हो,  स्वामिभक्ति और वफादारी से

भला वह कैसे चूक सकते है। बहुत से लोगों के लिए शायद यह बहुत बड़ा गुण हो,  पर इसी व्यक्तिगत स्वामिभक्ति

और वफादारी के चलते ही हमें इतिहास के 800 वर्ष के कालखण्ड तक गुलाम रहना पड़ा। इसी व्यक्तिगत वफादारी

का सिला यह है कि सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी को लेकर मनमोहन सिंह के घर तक मार्च करतीं हैं,  जिससे साबित

है कि मनमोहन सिंह की हैसियत मात्र एक रिमोट की थी।

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