पंजाब में ‘आप ‘ के ‘मान’ के लिये सत्ता कितनी आसान ?

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                                                                              तनवीर जाफ़री

                                            देश के सबसे नवोदित राजनैतिक दल ‘आम आदमी पार्टी ‘ ने राजधानी दिल्ली की राज्य की सत्ता पर क़ब्ज़ा जमाने के बाद अब देश के सबसे समृद्ध व संपन्न समझे जाने वाले राज्य पंजाब के विधानसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर देश के राजनैतिक पंडितों को हैरत में डाल दिया है। आश्चर्य की बात तो यह है कि ‘आप ‘ ने अपने चुनाव निशान के नाम व काम को सार्थक करने वाले ‘झाड़ू फेरने  ‘ के मुहावरे को जिस तरह पूर्व में दिल्ली के चुनावों में साकार किया था अपने विरोधियों पर लगभग उसी तरह की ‘झाड़ू फेरने ‘ वाली जीत पंजाब में भी दर्ज की है।ग़ौरतलब है कि ‘आम आदमी पार्टी ‘ ने  2015 में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों के विधानसभा चुनाव में 54.34 प्रतिशत मत हासिल करते हुये 67 सीटें जीत कर कांग्रेस व भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों को ज़ोरदार झटका दिया था। इस चुनाव में भाजपा मात्र 3 सीटें ही जीत सकी थी जबकि कांग्रेस पार्टी के तो 63 प्रत्याशियों की ज़मानत भी ज़ब्त हो गयी थी। उसी तरह 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने 62 सीटें हासिल की थीं जबकि भारतीय जनता पार्टी को केवल 8 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। 2020 में भी दिल्ली में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। 2015 व 2020 के चिनवों में स्वयं प्रदानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिल्ली में हैलीकॉप्टर से घूम घूम कई जनसभाएं की थीं। लगभग दिल्ली जैसा प्रदर्शन पंजाब में भी दोहराते हुये आम आदमी पार्टी ने यहाँ भी अन्य सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों के अरमानों पर पूरी तरह से ‘झाड़ू फेरते’ हुये पंजाब विधान सभा की कुल 117 सीटों में से 92 सीटें पर अपनी विजय पताका फहराई है। सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी को मात्र 18 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि राज्य में शासन करने वाले एक और प्रमुख राजनैतिक दल अकाली दल को मात्र 4 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। आप ने राज्य के सभी वर्तमान-निवर्तमान मुख्य व उप मुख्य मंत्रियों व दिग्गजों को भी बुरी तरह पराजित कर दिया है।

                       आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में अपने मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पार्टी के दो बार सांसद रह चुके भगवंत मान को पेश किया था। भगवंत मान ने हालांकि आम आदमी पार्टी से अपने जीवन के राजनैतिक सफ़र की शुरुआत तो ज़रूर की है परन्तु राजनीति में पदार्पण से पूर्व भी वे पंजाब ही नहीं बल्कि एक विश्वस्तरीय हास्य कलाकार (कॉमेडियन ) के रूप में अपनी पहचान बनाये हुये थे तथा एक सेलेब्रेटी के रूप में ही जाने जाते थे। उधर सांसद चुने जाने के बाद लोकसभा में आप का प्रतिनिधित्व करते हुये उन्हें जितनी बार भी लोकसभा में बोलने का मौक़ा मिला उन्होंने अपने काव्य शैली के चुटीले अंदाज़ में कई बार व्यंग्य पूर्ण कवितायें सुनाकर न केवल सत्ता पर प्रहार किये बल्कि देश को अपनी फ़िक्र व विचारधारा से भी अवगत कराया। मान अपने सांसद काल के दौरान न केवल अपने संसदीय क्षेत्र में ज़मीनी स्तर पर जनसमस्यों के समाधान करने को लेकर सक्रिय रहे बल्कि इस दौरान उन्होंने पूरे पंजाब का दौरा कर संगठन को भी राज्य स्तर पर मज़बूती प्रदान की।                 

                       अब आम आदमी पार्टी के पक्ष में पंजाब में चली इस सुनामी को चाहे इस ढंग से परिभाषित किया जाये कि यह आप द्वारा मतदाताओं के लिये खोले गये ‘मुफ़्त के पिटारे ‘ का कमाल है अथवा यह कहा जाये कि राज्य की जनता कांग्रेस व  शिरोमणि अकाली दल (बादल ) की पारंपरिक राजनीति से ऊब चुकी थी,अथवा आप को मिला प्रचंड बहुमत पंजाब को नशा मुक्त कराने के आप विशेषकर भगवंत मान के वादों पर विश्वास करने का नतीजा है ? या फिर इसे अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली शासन से प्रभावित होकर पंजाब के मतदाताओं द्वारा लिया गया अभूतपूर्व निर्णय माना जाये।अथवा शिक्षा,स्वास्थ्य,विकास,रोज़गार गोया सुशासन के लिए दिया गया जनादेश ? अथवा इसे उपरोक्त सभी परिस्थितियों का मिला जुला परिणाम कहा जाये परन्तु निश्चित रूप से मात्र आठ वर्ष पहले जन्मी पार्टी के हाथों एक समृद्ध व संवेदनशील कृषि प्रमुख राज्य की सत्ता सौंप कर पंजाब वासियों ने आम आदमी पार्टी से काफ़ी उम्मीदें ज़रूर लगा रखी हैं। और अब गेंद आम आदमी पार्टी के पाले में है कि वह पंजाब के लोगों के सपनों व उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाती है।

                          यहां यह समझना भी ज़रूरी है कि पंजाब, दिल्ली की तरह का छोटा राज्य नहीं बल्कि लगभग बीस हज़ार वर्ग मील के क्षेत्र में फैला 23 ज़िलों वाला एक बड़ा सीमावर्ती राज्य है। इसकी सीमायें जहाँ राजस्थान,हरियाणा व हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों से मिली हैं वहीँ इसकी सीमायें कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य से भी मिलती हैं। इसके अतिरिक्त लगभग 553 किलोमीटर लंबी पाकिस्तान सीमा भी पंजाब राज्य से मिलती है। इसलिये सीमावर्ती राज्य होने के नाते आतंकी घुसपैठ,नशीले पदार्थों व हथियारों आदि की तस्करी जैसी समस्याओं से निपटना भी ‘आप ‘ विशेषकर मान के लिये कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के बीच कई बार ऐसी खींचातानी देखी गयी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। मुख्यमंत्री केजरीवाल प्रायः केंद्र सरकार पर असहयोग व दिल्ली के विकास में बाधा खड़ी करने एवं राज्य के अधिकारों के हनन जैसे गंभीर आरोप लगते रहे हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल से भी केंद्र व राज्य के अधिकारों को लेकर कई बार तलवारें खिंची देखी गयीं। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार पंजाब में आप की सरकार से कितना सहयोग करेगी और पंजाब की मान सरकार दिल्ली दरबार से कितनी उम्मीदें रखेगा। गोया केंद्र राज्य के रिश्ते भी भगवंत मान की राजनीति की परीक्षा लेंगे। यहाँ यह ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि विभिन्न भाजपा शासित राज्यों में  ‘डबल इंजन की सरकार’ का दंभ भरने वाली भाजपा इसी ‘डबल इंजन ‘ के बहाने देश को विपक्ष मुक्त करने का भी खेल खेल रही है।         

                      पंजाब हरियाणा के मध्य प्रस्तावित 214 किलोमीटर लंबी नहर परियोजना, सतलुज यमुना लिंक नहर का विवाद बावजूद इसके कि यह विषय अभी सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। परन्तु पंजाब और हरियाणा राज्यों के बीच नदी जल बंटवारे को संदर्भित करता यह विषय कभी कभी दोनों राज्यों के बीच तनाव का कारण बन जाता है। मान के समक्ष इस विषय को भी अत्यंत सूझ बूझ व गंभीरता से निपटने की चुनौती होगी। बेशक पंजाब के बहुसंख्य सिख वोट अकालियों को नहीं गये,दलित मतों ने चन्नी के चेहरे को नापसंद करते हुये आप से ही उम्मीद बाँधी यहाँ तक कि हिन्दू मतों की सौदागरी करने वाली भाजपा भी पंजाब में पर्याप्त हिन्दू मत न ले सकी और वे भी प्रायः आप के पक्ष में गये। इन चुनौतियों और जनादेश के विश्वास के बीच सामंजस्य बिठाते हुये पंजाब में ‘आप ‘ के ‘मान’ के लिये सत्ता कितनी आसान होगी यह आने वाले दिनों में ही पता चल सकेगा।

                                                                          तनवीर जाफ़री

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