कब तक दरियादिली…

कपिल बी. लोमियो

पूर्वोत्तर की आग अब चारों ओर फैल चुकी है। बैंगलोर और दक्षिणी राज्यों से पूर्वोत्तर के लोगों का पलायन जारी है। इससे भी भयावह जो देश में हो रहा है वह है उस दंगे की आग के विरोध में उत्तर प्रदेश और मुंबर्इ आदि शहरों में दंगा। यह दंगे और इसमें शामिल दंगार्इ एक संक्रामक रोग की तरह होते है, इसलिए कोर्इ नहीं कह सकता है कि अमुक जगहों पर ऐसी स्थिति नही बनेगी। यही स्थितियाँ रही तो वह समय दूर नही जब न केवल पूर्वोत्तर बलिक सभी वे लोग जो विभिन्न महानगरों में काम कर रहे है, अपना सामान समेटना चालू कर दें।

बैंगलोर और दक्षिणी राज्यों में अफवाहों के बाद लोगों का पलायन और मुंबर्इ और उत्तर प्रदेश के शहरों में दंगों की विभिन्न समाचार पत्र और न्यूज़ चैनलों में आती तस्वीरों ने अनायास ही आजादी के ठीक बाद हुए दंगो और लोगों के पलायन की तस्वीरों की याद दिला दी। हालांकि इन दो स्थितियों में अंतर यह है कि जहाँ उस समय उन हालातों पर काबू पाना लगभग असंभव था, लेकिन आज के हालातों में नियंत्रित करने के लिए हमारे पास शासन और प्रशासन की पूरी फौज है। इतना होने के बाद भी इसको लेकर शंका ही उपजती है कि यह सरकार, शासन और प्रशासन इन स्थितियों पर नियंत्रित प्राप्त कर पाए। कारण, वोट बैंक की नीति जो शायद किसी दंगार्इ पर डंडा न चलाने दे। गौरतलब है कि कुछ ही दलों को छोड़कर बाकी सारे दल वोट बैंक की नीति के तहत ही अपनी राजनीति करते है, विशेषकर उन प्रदेशों और शहरों में जहाँ यह वोट बैंक ज्यादा मात्रा में है। बंबर्इ और उत्तर प्रदेश के दंगों में पुलिस का लाचार होकर इलाकों को दंगार्इयों की हाथों में सौंपने को क्या कहा जा सकता है। कुछेक दंगार्इ अपने हाथों में चेन, राड और डंडे लेकर आते है और पुलिस-प्रशासन की आँखों के सामने मौत का तांडव खेल जाते है तो इसे क्या कहेंगे? कुछ रिपोर्टो की माने तो विभिन्न जगहों पर हुए दंगों के कर्इ दंगार्इ या तो पकड़े गये थे या फिर पहचान लिए गये है, लेकिन उन को छोड़ दिया गया, किस दबाव में? अभी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में निवेश के लिए माहौल बनाने की बात कही थी, लेकिन इन घटनाओं के बाद शायद ही कोर्इ निवेशक यहाँ आने को तैयार होगा। इस पर शासन का बलवाइयों के प्रति नरम रवैये के चलते न केवल बहुसंख्यक वर्ग और विभिन्न वर्गो में बैचेनी, उग्रता, निराशा और असुरक्षा की भावना जन्म ले रही है, क्योंकि दंगों को करने वाले हाथ यदि रोके नही गये तो दंगो की आग किसी को भी झुलसा सकती है फिर चाहे वह किसी दंगार्इ का ही अपना क्यों न हो क्योंकि आग और गोली पूछते नही है।

मुंबर्इ के आज़ाद मैदान में इकट्टा हुए लोग हो या फिर उत्तर प्रदेश के शहरों में नमाज के बाद जमा हुर्इ भीड़, जिस प्रकार से दंगे भड़काए गए उससे स्पष्ट है कि यह एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था क्योंकि शांतिपूर्ण जुलूसो और इबादतगाहों में कोर्इ हथियारों के साथ नही जाता।

 

जिस तरह से एक आतंकवादी नाम से या अमुक देश की नागरिकता से किसी धर्म या देश-विशेष का हो सकता है लेकिन आतंक फैलाने के बाद वह केवल आतंकवादी ही कहलाता, उसी प्रकार एक दंगार्इ भी आतंक फैलाने वाला और दूसरों की आजादी में दखल देने वाला ही होता है, उसे किसी धर्म-विशेष में बाँधना न केवल उस धर्म को कलुषित करना है बलिक उस पर नरम रवैया अपनाना उस धर्म-विशेष के दूसरे लोगों को भी अपराधी घोषित करने जैसा है, क्योंकि कोर्इ भी धर्म बेगुनाहों को मारने की इजाजत नही देता और मानव एकता की बात करता है, इसलिए बेगुनाहों को मारने वाला किसी धर्म विशेष से सम्बनिधत हो ही नही सकते है, चाहे वह किसी भी धर्म के कितने भी लक्षण ऊपरी तौर से दिखाता हो। अब तो ऐसा लगता है कि दंगार्इयों और आतंकवादियों में हाथ मिला लिया है, क्योंकि आतंकवाद द्वारा देश में उतनी उथल-पुथल नही मच सकती है जितनी कि दंगों से। वैसे भी समय-समय पर पुलिस और खुफिया विभागों ने कर्इ शहरों से आतंकवादियों से सम्बन्ध रखने वालों को उजागर किया है।

इसी वोट बैंक की नीति का नतीजा है कि घुसपैठ कर आए लोगों को तो भारत की नागरिकता और सारी सरकारी सुविधाऐं तक दे दी गर्इ है, लेकिन देश का मुकुट कहे जाने वाले कश्मीर के बाशिंदे अपने ही देश में शरणार्थी है और दर-दर भटक रहे है। देश तो वैसे ही गरीबी, महँगार्इ, भ्रष्टाचार आदि कर्इ बीमारियों से ग्रसित है जिनमें से कर्इ तो लाइलाज हो चुकी है, लेकिन प्रदेश और केन्द्र सरकारों द्वारा सत्ता की लालच में दंगाइयों के प्रति जो ढुलमुल नीतियाँ अपनार्इ जा रही है और उससे जो असंतोष उभर रहा है उससे आशंका होती है कि देश को न गृहयुद्ध बलिक केवल दूसरी गुलामी की ओर ले जाया जा रहा है।

2 COMMENTS

  1. अभी इस बात पर विचार चल रहा है कि इन दंगों मे क्या वास्तव में किसी धरम विशेष के या सम्प्रदाय विशेह का हाथ है या हमारे बहुसंख्यक समुदाय के किसी कट्टर पंथी वर्ग का?और इसी कि संभावना ज्यादा देखी जा रही होगी.२०१४ नजदीक है ,वोट का सवाल है,जो वास्तव में जिम्मेदार है उसको दोष देना अपनों को नाराज करना होगा इसीलिए अनिच्चय कि स्थिति बनाये रखकर दरियादिली से कम कर रहें हैं.वैसे भी मुंबई में कांग्रेस और यू पी में समाजवादी सरकारें उन दंगाइयों के साथ इतनी सहानुभूति नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा?

  2. उत्तर प्रदेश में इस समय जो सर्कार है वो केवल मुसलमानों के लिए काम कर रही है. पैदा होने से लेकर कब्रिस्तान तक जितनी लाभकारी घोशनाएँ हैं वो सब केवल एक वर्ग के लिए ही हैं.कब्रिस्तानों के सौदर्यीकरण तक की घोशनाएँ के गयी हैं.लेकिन हिन्दुओं या गैर मुस्लिमों के लिए कोई घोशनाएँ नहीं हैं. पूरे प्रदेश में तनाव का माहौल है. बरेली में दंगे थम नहीं रहे हैं. अन्य नगरों में भी कभी भी फ्लेश पॉइंट हो सकते हैं. कल ही मेरठ के सरधना तहसील के गाँव मुल्हेडा में गोकशी को लेकर बबाल हो चूका है और तनाव व्याप्त है जिसे समाप्त करने की कोई कार्य योजना प्रशाशन के पास नहीं है क्योंकि बलवाई वोट बेंक का हिस्सा हैं और इनके साथ सख्ती प्रशाशन नहीं कर सकता है.तो ऐसे में तो स्थिति कभी भी विस्फोटक हो सकती है. वास्तव में देश में इस समय कम्पटीटिव एपीजमेंट की राजनीती चल रही है. दुर्भाग्य से देश के सत्ताधीशों में देशहित की भावना पूरी तरह लोप हो चुकी है और अपनी विदेशी मूल की अक के दर से कोई सच्चाई स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है.लेकिन देश में ऐसे तत्व और संगठन मौजूद हैं जो इस देश को टूटने और बिखरने नहीं देंगे.और सौभाग्य से ऐसे अनेक लोग इस समय देश के ह्रदय प्रदेश और अन्य राज्यों में भी सत्ता में भी हैं. लोगों को अपने असली और नकली हितचिंतकों को पहचानना होगा और संगठित होकर देश घटक ताकतों का मुकाबला करना होगा.

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