कोरोना संक्रमण पर गर्मी का कितना प्रभाव?

योगेश कुमार गोयल

               अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि गर्मी के कारण कोरोना वायरस सतह पर ज्यादा देर तक नहीं टिक पाएगा। भारत में तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण के दृष्टिकोण से सीडीसी के इस बयान को इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि भारत के अनेक इलाके इस समय भीषण गर्मी से बुरी तरह तप रहे हैं और संक्रमण के आंकड़े भी तेजी से सामने आ रहे हैं। सीडीसी का कहना है कि किसी सतह पर वायरस वैसे भी कुछ घंटे ही टिक पाता है लेकिन गर्म मौसम और सूर्य की तेज रोशनी इसके जीवित रहने के समय को और कम कर देगी। कोरोना का कहर पूरी दुनिया में जारी है, जिससे अब तक विश्वभर में साढ़े तीन लाख से भी ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और 50 लाख से ज्यादा संक्रमित हो चुके हैं। भारत में भी अब प्रतिदिन कोरोना के छह हजार से ज्यादा नए मरीज सामने आ रहे हैं और मरीजों का आंकड़ा करीब डेढ़ लाख पहुंच चुका है। हालांकि सीडीसी के बयान से पहले भी कुछ शोधकर्ता कह चुके हैं कि गर्मी में कोरोना का जल्द ही खात्मा हो जाएगा लेकिन भारत में भीषण गर्मी में भी जिस प्रकार कोरोना के मामले कम होने के बजाय तेज गति से बढ़ रहे हैं, ऐसे में फिलहाल तो इसकी कोई संभावना नजर नहीं आती। फरवरी माह में एक जनसभा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी गर्म मौसम में कोरोना से राहत मिलने का दावा करते हुए कहा था कि यह वायरस अप्रैल माह में गायब हो जाएगा क्योंकि गर्मी प्रायः ऐसे वायरस को खत्म कर देती है लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि अमेरिका में तो कोरोना से मरने वालों की संख्या एक लाख पहुंच चुकी है। अधिकांश शोधकर्ताओं ने गर्मी बढ़ने पर कोरोना के खत्म होने के प्रामाणिक दावे नहीं किए हैं लेकिन कुछ शोधकर्ता ज्यादा गर्मी बढ़ने पर कोरोना का प्रकोप कम होने की आशंका अवश्य जता चुके हैं।

क्या कह रहे हैं शोधकर्ता?

               चीन में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक बढ़ते तापमान तथा मौसम में नमी से कोरोना का बढ़ता प्रभाव कम हो सकता है। चीन के करीब सौ गर्म शहरों में बीजिंग और शिन्हुआ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन के अनुसार ज्यादा गर्मी अथवा नमी से भी कोरोना के प्रकोप को खत्म तो नहीं किया जा सकता लेकिन इसके तेजी से फैलने पर अंकुश अवश्य लगाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि सौ चीनी शहरों में जैसे ही तापमान बढ़ा, कोरोना संक्रमित मरीजों की औसत संख्या 2.5 से गिरकर 1.5 रह गई थी। उनका कहना है कि एक समय चरम पर पहुंचे कोरोना के प्रकोप में वहां हुए मौसम में बदलाव के साथ ही गिरावट दर्ज की जाने लगी थी। सार्स वायरस की तलाश करने वाले हांगकांग यूनिवर्सिटी में पैथोलॉजी के प्रोफेसर जॉन निकोल्स भी मानते हैं कि कोरोना पर गर्मी का प्रभाव पड़ सकता है। उनके अनुसार यह वायरस ‘हीट सेंसेटिव’ है और गर्मी के मौसम में इसके फैलाव में कमी आ सकती है। वह कह रहे हैं कि जिन जगहों पर बहुत ज्यादा गर्मी है, वहां कोरोना का सामुदायिक संक्रमण होने का खतरा कम होता है।

               हालांकि आज स्थिति ऐसी है कि चीन के किसी भी प्रकार के दावे पर दुनिया का कोई भी देश सहजता से विश्वास करने की स्थिति में नहीं है लेकिन अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी तथा यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के शोधकर्ता भी कुछ ऐसा ही कह रहे हैं। उनके मुताबिक 22 मार्च तक हुए कोविड-19 के प्रसार के 90 फीसदी मामले ऐसे क्षेत्रों में देखे गए थे, जहां तापमान 3-17 डिग्री के बीच था तथा नमी एक खास रेंज में थी। अध्ययन में कहा गया था कि अमेरिका के एरिजोना, टेक्सास तथा फ्लोरिडा जैसे गर्म क्षेत्रों में न्यूयार्क तथा वाशिंगटन की भांति मामले सामने नहीं आए थे। हालांकि शोधकर्ताओं ने इसी के साथ यह चेतावनी भी दी थी कि उनके अध्ययन का अर्थ यह नहीं है कि कोरोना वायरस गर्म तथा नमी वाले क्षेत्रों में नहीं फैल सकता। यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ता स्टुअर्ट वेस्टन कहते हैं कि वह आशा करते हैं कि कोविड-19 मौसम के बदलने पर असर दिखाए लेकिन अभी तक इस बारे में कुछ भी बता पाना संभव नहीं है। राष्ट्रीय विज्ञान, अभियांत्रिकी एवं आयुर्विज्ञान अकादमी की एक रिपोर्ट के मुताबिक पर्यावरणीय तापमान, नमी तथा किसी व्यक्ति के शरीर के बाहर वायरस के जिंदा रहने के अलावा कई और कारक हैं, जो वास्तविक दुनिया में मनुष्यों के बीच संक्रमण की दर को प्रभावित और निर्धारित करते हैं।

मौसम में गर्मी बढ़ने का असर

               मौसम में गर्मी बढ़ने का कोरोना वायरस पर क्या और कितना प्रभाव होगा, भले ही कुछ शोधकर्ता इसके बारे में कुछ भी कह रहे हों लेकिन इसका कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है कि बढ़ते तापमान का कोरोना वायरस पर क्या असर होगा? भारत में तापमान अब लगातार बढ़ रहा है और उत्तर भारत में 45 डिग्री के आसपास पहुंच चुका है लेकिन कोरोना के मामले कम होने के बजाय लगातार बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। ऐसे में तापमान बढ़ने पर कोरोना का प्रकोप कम होने के दावों पर भरोसा करना कठिन हो गया है। इन दावों पर भरोसा करना इसलिए भी मुश्किल हो गया है क्योंकि इस समय ग्रीनलैंड जैसे ठंडे देश हों या दुबई जैसे गर्म शहर, दुनिया के तमाम देश कोरोना के कहर से त्रस्त हैं। इसीलिए अब बहुत से डॉक्टर कहने लगे हैं कि गर्मी में कोरोना का प्रभाव खत्म होगा या नहीं, इसके कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं, इसलिए केवल तापमान के भरोसे मत बैठिये। वायरोलॉजिस्ट डा. परेश देशपांडे कहते हैं कि यदि कोई गर्मी के मौसम में छींकता है तो ड्रॉपलेट्स किसी भी सतह पर गिरकर जल्दी सूख सकते हैं, जिससे कोरोना का संक्रमण कम हो सकता है लेकिन इससे कोरोना का प्रकोप खत्म हो जाएगा, यह नहीं कहा जा सकता। कई अन्य विशेषज्ञ भी मत प्रकट कर रहे हैं कि तेज धूप और गर्मी कोरोना वायरस के विकास और दीर्घायु को सीमित कर सकते हैं लेकिन यह दावा नहीं किया जा सकता कि प्रचण्ड गर्मी में भी कोरोना वाायरस पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।

               प्रायः सभी तरह के वायरस गर्मी बढ़ने पर निष्क्रिय अथवा नष्ट हो जाते हैं लेकिन कोरोना वायरस के मामले में देखा गया है कि यह मानव शरीर में 37 डिग्री सेल्सियस पर भी जीवित रहता है। कई वायरोलॉजिस्ट कह चुके हैं कि फ्लू वायरस गर्मियों के दौरान शरीर के बाहर नहीं रह पाते लेकिन कोरोना को लेकर उनका भी यही कहना है कि कोरोना वायरस पर गर्मी का क्या असर पड़ता है, अभी तक कोई नहीं जानता। हालांकि कुछ शोधकर्ताओं का दावा है कि कोरोना वायरस 60 से 70 डिग्री सेल्सियस तापमान तक नष्ट नहीं हो सकता। अब अगर देखा जाए तो इतना ज्यादा तापमान न तो दुनिया के अधिकांश हिस्सों में होता है और न ही मानव शरीर के भीतर। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कह चुुका है कि हमें कोरोना वायरस के प्रकोप को खत्म करने के लिए गर्म तापमान पर भरोसा नहीं करना चाहिए। ‘द एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष डा. पी. रघुराम तो सीधे शब्दों में कह रहे हैं कि यदि कोरोना वायरस गर्मी से मरता तो ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर जैसे गर्म देशों में कोरोना संक्रमण की घटनाएं बहुत कम होनी चाहिएं थी। यूनिवर्सिटी ऑफ साउथंप्टन के प्रमुख डा. माइकल के मुताबिक कोविड-19 के फैलने की रफ्तार अन्य वायरसों से तेज है और इस वायरस पर गर्मी का प्रभाव जानने के लिए हमें अभी इंतजार करना होगा।

वायरसों पर बढ़ते तापमान का प्रभाव

               कोरोना पर बढ़ते तापमान के असर को लेकर शोधकर्ता अब तक जितने भी दावे करते रहे हैं, उनका एक अहम कारण यह माना जा सकता है कि अब तक अन्य वायरसों पर प्रायः तापमान का असर देखा जाता रहा है। दरअसल वायरस जनित ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं, जो मौसम के बदलाव के साथ सामने आती हैं और मौसम के स्थिर होते ही अपने आप खत्म भी हो जाती हैं। भारत में वैसे भी फरवरी-मार्च सामान्य तौर पर फ्लू का सीजन माना जाता है और फ्लू वायरस मौसम में गर्मी बढ़ने के साथ ही खत्म हो जाता है। इसी कारण कोरोना वायरस को लेकर भी दावे किए जाते रहे हैं कि मई-जून माह में भीषण गर्मी पड़ते ही कोरोना का भी स्वतः ही अंत हो जाएगा। 2002-03 में चीन में ‘सार्स’ नामक कोरोना वायरस का प्रकोप देखा गया था, जिससे करीब आठ सौ लोगों की मौत हुई थी। वैज्ञानिकों ने उस समय जब उस वायरस पर परीक्षण किए तो पाया था कि बाहरी सतहों पर वह वायरस 22-25 डिग्री सेल्सियस तापमान और हवा में 40-50 फीसदी नमी में भी पांच दिनों तक सक्रिय रहा लेकिन जैसे ही तापमान तथा हवा की नमी को बढ़ाया गया, उसकी सक्रियता कम होती गई। उस वायरस का प्रकोप वहां कोरोना की ही भांति नवम्बर माह के आसपास ही फैलना शुरू हुआ था और अगले वर्ष जून-जुलाई के आसपास करीब-करीब खत्म हो गया था। उस बारे में कहा गया कि मौसम में गर्मी बढ़ने के कारण उस वायरस का खात्मा हो गया था। कोविड-19 भी वास्तव में सार्स कोरोना वायरस के परिवार से संबंध रखता है। इसीलिए इसे लेकर भी कुछ लोगों द्वारा सार्स जैसे ही दावे किए जा रहे हैं। हालांकि इस संबंध में ब्रिटिश शोधकर्ता डा. सारा जार्विस का कहना है कि सार्स महामारी का प्रकोप वाकई तापमान बदलने की वजह से हुआ था या किसी अन्य कारण से, यह कह पाना मुश्किल है। दूसरी ओर सितम्बर 2012 में सउदी अरब में फैले मर्स कोरोना वायरस के प्रकोप पर नजर डालें तो वह वायरस वहां जिस समय फैला, उस समय वहां अच्छी खासी गर्मी थी लेकिन फिर भी उस वायरस ने वहां खूब पैर पसारे और बहुत सारे लोगों को मौत की नींद सुलाया। यह भी एक प्रमुख कारण है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक नोवेल कोरोना जैसे वायरस पर बढ़ते तापमान के प्रभाव को लेकर दावे के साथ कुछ भी कह पाने की स्थिति में नहीं हैं।

क्या स्थानीय वायरस बनकर रह जाएगा कोविड-19?

               वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोना वायरसों के परिवार के नए सदस्य ‘कोविड-19’ पर प्रोटीन की एक परत होती है और इस तरह के प्रोटीन की परत वाले वायरस में मौसम चक्र की मार झेलने की क्षमता अक्सर ज्यादा होती है। स्पेन के शोधकर्ता मिगुएल अराजो के अनुसार कोई वायरस वातावरण में जितने ज्यादा समय तक जिंदा रहने की क्षमता रखता है, उसका खतरा उतना ही ज्यादा बढ़ता जाता है। कोरोना वायरस के बारे में कहा जा रहा है कि यह 4 डिग्री सेल्सियस तापमान में 28 दिनों तक जिंदा रहने की क्षमता रखता है लेकिन इसके बारे में अभी साफतौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि यह ज्यादा से ज्यादा और कम से कम कितने तापमान में नष्ट हो सकता है। स्वीडन में संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ जैन अल्बर्ट मानते हैं कि इस वायरस पर मौसम का कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन अगर इस पर मौसम का असर होता है तो आगे चलकर कोविड-19 एक स्थानीय वायरस बनकर रह जाएगा। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि चूंकि प्रयोगशालाओं की परिस्थितियां प्रकृति की परिस्थितियों से काफी भिन्न होती हैं, इसलिए प्रयोगशाला में कृत्रिम तरीके से बढ़ाए गए तापमान के आधार पर प्राकृतिक मौसमी चक्र और बदलाव को नहीं समझा जा सकता।

सामाजिक दूरी ही बचाव का एकमात्र उपाय

               कुछ विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि महामारियां आमतौर पर मौसमी बीमारियों के वायरस जैसी नहीं होती। स्पेनिश फ्लू भीषण गर्मी में ही चरम पर पहुंचा था जबकि कई दूसरी महामारियां सर्दी के मौसम में फैली। इसलिए कोरोना जैसी महामारी को लेकर यह कहना बेहद कठिन है कि बढ़ती गर्मी का कोरोना वायरस पर आने वाले समय में क्या असर दिखेगा। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन तथा ट्रॉपिकल मेडिसन के शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना वायरस विश्व स्वास्थ्य संगठन के दायरे में आने वाले दुनिया के प्रत्येक क्षेत्र में फैल चुका है, जिनमें गर्म, ठंडे तथा आर्द्रता वाले अर्थात् सभी क्षेत्र शामिल हैं, इसलिए कोविड-19 पर गर्मी के प्रभाव को लेकर कोई एक निष्कर्ष निकालना आसान नहीं है। फिलहाल लगभग सभी शोधकर्ता केवल कम्प्यूटर मॉडलिंग पर ही विश्वास कर उसी के आधार पर बात कर रहे हैं। बहरहाल, गर्मी में कोरोना के प्रसार में कमी आने संबंधी भले ही कितने ही दावे किए जाएं लेकिन वास्तव में दुनिया के किसी भी वैज्ञानिक के पास कोरोना पर गर्मी के प्रचण्ड तापमान के प्रभाव को लेकर कोई निश्चित जवाब नहीं है। कोरोना को लेकर अभी तक की हकीकत यही है कि अगर यह वायरस एक बार इंसान के शरीर में प्रवेश कर गया तो इसे मारने का कोई तरीका अभी तक नहीं खोजा जा सका है। अभी इसकी कोई वैक्सीन भी तैयार नहीं हुई है। इसलिए फिलहाल तो सामाजिक दूरी बनाए रखना ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है।

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